परशुराम जयंती क्यों मनाई जाती है – हिन्दू पुरातत्वों के अनुसार भगवान परशुराम जी को विष्णु भगवान के छठे अवतार के रूप में माना जाता है। प्रत्येक वर्ष वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को भगवान परशुराम की जयंती के रूप में मनाई जाती है। इसीलिए परशुराम जयंती को “परशुराम द्वादशी” के नाम से भी हिन्दू पुरातत्वों में जाना जाता है। इसी कारण से ही इस दिवस को अक्षय “तृतीया तिथि” के नाम से भी जाना जाता है।
परशुराम जयंती क्यों मनाई जाती है – भगवान परशुराम जी का नाम दो शब्दों के योग से बना है , परशु और राम, परशु शब्द से तात्पर्य है कुल्हाड़ी और राम मतलब भगवान विष्णु जी के आवतार। भगवान परशुराम को अन्य नाम से भी जाना जाता है, रामभद्र, भार्गव, भृगुपति, भृगुवंशी, जमदग्न्य से भी जाना जाता है। अक्षय तृतीया तिथी को ही त्रेता युग की शुरुवात माना जाता है। हिन्दू धर्मानुसार इस दिवस का महत्व है इस दिन को “सबसे पवित्र”और “सुभ्मंगलकारी” माना जाता है। इस दिन कोई भी कार्य करने के लिए शुभ मुहूर्त नहीं देखा जाता है।
परशुराम जयंती क्यों मनाई जाती है – हिन्दू धर्मानुसार इस दिन प्रात;काल जल्दी उठकर सर्वप्रथम स्नान करे और उसके बाद बाद स्वच्छ कपड़े अवश्य पहनें। इसके बाद पूजा में सबसे पहले धूप दीपक जलाकर हाथ जोड़कर व्रत के लिए द्रढ़ निश्च्य लें और पूजा आरंभ करें। सबसे पहले आप भगवान विष्णु और परशुराम को चंदन का टीका लगाएं, फिर कुमकुम, तुलसी के पते, फूल और फल चढ़ाएं। फिर अगरबत्ती को जलाएं। भगवान को कुछ मीठे व्यंजन का भोग लगाएं। फिर आरतीशुरु करें और हाथको जोड़कर भगवान से आशीर्वाद जरूर लें।इस दिन दान-दक्षिणा और पुण्य जरूर करें और भूखों को खाना अवस्य खिलाएं। इससे पुण्य फल की प्राप्ति होगी इस बात का भी ध्यान रखें कि परशुराम जयंती के दिन पूजा करने के बाद पूरे दिन उपवास रखना होगा और आप इस दिन केवल दूध भी पी सकते हैं। और फलो का भीं आहार कर सकते है।
परशुराम जयंती क्यों मनाई जाती है – परशुराम जी भगवान विष्णुजी के छठे अवतारमने जाते है। एक बार जब भगवान परशुराम जी शिवजी से मिलने कैलाशपर्वत गए। तब शिव जी ध्यान साधना लीन मे थे, इसलिए श्री गणेश भगवान जी ने परशुराम जी को रोक दिया। इस बात पर भगवान् परशुराम जी इतने क्रोधित हो गए की उनके बीच भयंकर युद्ध शुरू हो गया। इस युद्ध के दौरान भगवान् परशुराम जी के परसे के वार से गणेश जी जी का एक दांत खंडित गया। और तभी से भगवान गणेश जी को एक दंत भी कहा जाने लगा। उसी टूटे दांत से श्री गणेश जी भगवान् ने महाभारत लिखी थी।
परशुराम जयंती क्यों मनाई जाती है – जब भगवान् श्री राम और परशुराम जी आमने सामने आए तो क्या हुआ भगवान राम जी माता सीता के स्वयंवर में गए हुए थे। वहां उनसे प्रत्यंचा चढ़ाते हुए भगवान शिव जी का धनुष खंडित हो गया। धनुष के टूटने की आवाज को सुनकर भगवान परशुराम जी वहां आ गए। क्योंकि वह धनुष भगवान शिव जी का था। इसलिए परशुराम जी को क्रोध आ गया और भगवान राम व लक्ष्मण से उलझ गए। लक्ष्मण जी से उनका संवाद विवादके रूप में बदल गया, लेकिन जब भगवान विष्णु जी के सारंग धनुष से भगवान राम ने बाण का संधान कर दिया तो भगवान परशुराम जी ने भगवान राम की सत्यता को जान लिया।
परशुराम जयंती क्यों मनाई जाती है – उस समय भगवान राम जी ने एक चीज परशुराम जी को देकर कहा कि इसे कृष्ण के अवतार तक संभाल कर रखना। भगवान राम जी ने परशुराम जी को अपना सुदर्शन चक्र दिया था। कृष्णवतार के समय जब भगवान श्री कृष्ण जी ने “गुरु संदीपनी” के यहां शिक्षाको ग्रहण की तब परशुराम जी ने स्वम प्रकट होकर श्री कृष्ण को सुदर्शन चक्र सौंप दिया था। यह भी कहा जाता है कि महाभारत युद्ध के प्रसिद्ध पात्रों भीष्म,गुरु द्रोणाचार्य ,और कर्ण को भगवान परशुराम जी ने शस्त्र विद्या का ज्ञान पाठ सिखाया था। भगवान् परशुराम जी अपने जीवन भर की कमाई ब्राह्मणों को दान कर रहे थे,
परशुराम जयंती क्यों मनाई जाती है – तब द्रोणाचार्य उनके समीप पहुंचे। तब तक वे सब कुछब्राह्मणों को दान कर चुके थे। तब भगवान परशुराम जी ने दया धारणा से द्रोणाचार्य से कोई भी अस्त्र व शस्त्र चुनने के लिए कहा ,तब चतुर द्रोणाचार्य ने कहा कि मैं आपके सभी अस्त्रव शस्त्र उनके मंत्रों के साथ चाहता हूं। ताकि जब भी उनकी आवश्यकता महसूस हो तब उसका उपयोग किया जा सके। भगवान परशुराम जी ने कहा ऐसा ही होगा और इसी कारण से ही गुरु द्रोणाचार्य शास्त्र विद्या में महाज्ञानी हो गए |
परशुराम जयंती क्यों मनाई जाती है – बालयवस्था में भगवान परशुराम जी को उनके पिता और माता ‘राम’ नाम से पुकारते थे। बाद में जब वह बड़े हुए तब उनके पिता जमदग्नि ने उन्हें हिमालय पर्वत पर ले जाकर भगवान शिव की उपासना करने को कहा, पिता की आज्ञा को मानकर राम जी ने ऐसा ही किया उनके तप के प्रभाव से प्रसन्न होकर शिव जी ने उनको दर्शन दिए। और असुरों के वि नाश का आग्रह किया। राम ने स्वम का पराक्रम दिखाया।और असुरों का विनाश हो गया, राम के इसी पराक्रम को देखकर भगवान शिव जी ने उनको ‘परशु’ नाम का एक शस्त्र दिया। इसीलिए वह राम से “परशुराम” के नाम से जाने जाते है।
अन्य जानकारी :-
]]>परशुराम जी को ब्राह्मण कुल के कुलगुरु माना गया है। परशुराम जयंती वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। वर्ष 2023 में परशुराम जयन्ती मंगलवार, मई 3 को में मनाई जाएगी है। इसे जयंती को परशुराम द्वादशी भी कहा जाता है। ये दिन पुण्य के रूम में माना जाता है और कहा जाता है की इस दिन किया गया पुण्य कर्म फल देने वाला होता है। परशुराम त्रेता युग (रामायण काल) में एक ब्राह्मण ऋषि के यहां जन्म लिया था। उन्होंने एकादश छन्दयुक्त “शिव पंचत्वारिंशनाम स्तोत्र” लिखा और इसका वर्णन भी किया।
ब्राह्मण देवता भगवान परशुराम की जयंती सम्पूर्ण देशभर में धूमधाम से मनाई जाती है। हिन्दू धर्म ग्रंथो के अनुसार भगवान परशुराम जी ऋषि ऋचीक के पौत्र और जमदग्नि के सुपुत्र थे। परशुराम जी की माता का नाम देवी रेणुका था। कहा जाता है की ये भोले भंडारी के बहुत बड़े भक्त थे। भगवान शिव ने ही परशुराम जी को अमोघ अस्त्र प्रदान किया था। परशुराम जी का उल्लेख रामायण, महाभारत, भागवत पुराण और कल्कि पुराण इत्यादि अनेक ग्रन्थों में किया गया है। परशुराम जी के गुरु भगवन शिव थे और उनका आशीर्वाद ही इन्हे आज इतना महान बनाते है।
जैसा की हम सब जानते है की इनका वास्तविक नाम राम था इनके परशु को सदैव धारण किया इस कारणवशइनका नाम परशुराम पड़ा । परशुराम जी ना ही केवल शिव भक्त थे बल्कि पिता भक्त भी थे। एक घटना के अनुसार पिता के आदेश पर इन्होने अपनी जन्म देने वाली माता का मस्तिस्क काट दिया था लकिन उनकी मृत्यु नहीं हुई क्यों की पिता के आशीर्वाद से माता का मस्तिष्क यथावत हो गया।
अक्षय तृतीया शनिवार, अप्रैल 22, 2023 कोतृतीया तिथि प्रारम्भ – अप्रैल 22, 2023 को 07:49 सुबह बजेतृतीया तिथि समाप्त – अप्रैल 23, 2023 को 07:47 सुबह बजे
शौर्य तेज बल-बुद्घि धाम की॥
रेणुकासुत जमदग्नि के नंदन।
कौशलेश पूजित भृगु चंदन॥
अज अनंत प्रभु पूर्णकाम की।
आरती कीजे श्री परशुराम की॥1॥
नारायण अवतार सुहावन।
प्रगट भए महि भार उतारन॥
क्रोध कुंज भव भय विराम की।
आरती कीजे श्री परशुराम की॥2॥
परशु चाप शर कर में राजे।
ब्रम्हसूत्र गल माल विराजे॥
मंगलमय शुभ छबि ललाम की।
आरती कीजे श्री परशुराम की॥3॥
जननी प्रिय पितु आज्ञाकारी।
दुष्ट दलन संतन हितकारी॥
ज्ञान पुंज जग कृत प्रणाम की।
आरती कीजे श्री परशुराम की॥4॥
परशुराम वल्लभ यश गावे।
श्रद्घायुत प्रभु पद शिर नावे॥
छहहिं चरण रति अष्ट याम की।
आरती कीजे श्री परशुराम की॥5॥
।। इति परशुराम जी की आरती समाप्त ।।
Om Jay Parashudhaaree, Svaamee Jay Parashudhaaree.
Sur Nar Munijan Sevat, Shreepati Avataaree..
Om Jay Parashudhaaree.
Jamadagnee Sut Narasinh, Maan Renuka Jaaya.
Maartand Bhrgu Vanshaj, Tribhuvan Yash Chhaaya..
Om Jay Parashudhaaree.
Kaandhe Sootr Janeoo, Gal Rudraaksh Maala.
Charan Khadaoon Shobhe, Tilak Tripund Bhaala..
Om Jay Parashudhaaree.
Taamr Shyaam Ghan Kesha, Sheesh Jata Baandhee.
Sujan Hetu Rtu Madhumay, Dusht Dalan Aandhee..
Om Jay Parashudhaaree.
Mukh Ravi Tej Viraajat, Rakt Varn Naina.
Deen-heen Go Vipran, Rakshak Din Raina..
Om Jay Parashudhaaree.
Kar Shobhit Bar Parashu, Nigamaagam Gyaata.
Kandh Chaar-shar Vaishnav, Braahman Kul Traata..
Om Jay Parashudhaaree.
Maata Pita Tum Svaamee, Meet Sakha Mere.
Meree Birat Sambhaaro, Dvaar Pada Main Tere..
Om Jay Parashudhaaree.
Ajar-amar Shree Parashuraam Kee, Aaratee Jo Gaave.
Poornendu Shiv Saakhi, Sukh Sampati Paave..
Om Jay Parashudhaaree
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अन्य जानकारी
Kaal Bhairav Jayanti – नवंबर महीने में 5 दिसंबर यानी मंगलवार को भैरव अष्टमी का पर्व है। यह दिन भगवान भैरव और उनके अनेको रूपों के समर्पित है। भगवान भैरव को भगवान शिव का एक रूप भी माना जाता है, इनकी पूजा-आराधना करने का विशेष महत्व माना गया है। मान्यता ऐसी है कि भगवान शिव के रौद्र रूप में काल भैरव की पूजा उपासन करने से भय और अवसाद,तनाव का अंत जल्दी होता है और किसी भी कार्य में आ रही बाधा या कोई भी समस्या हो वो समाप्त हो जाती है। ऐसा माना जाता हैं कि भगवान शिव के किसी भी मंदिर में पूजा करने के पश्च्यात भैरव मंदिर में जाना जरुरी होता है। ऐसा नहीं करने से भगवान शिव का दर्शन अधूरा माना जाता है। मान्यता ऐसी है कि मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को ही भगवान श्री शिव ने काल भैरव का रौद्र रूप धारण कर लिया था। इसी कारण इस दिन को काल भैरव अष्टमी (काल भैरव जयंती) के रूप में मनाया जाता है।
Kaal Bhairav Jayanti – हिन्दू धर्म शास्त्र की मान्यताओं के अनुसार भगवान श्री काल भैरव के बारे में ऐसा माना जाता है मनुष्य के द्वारा किये गए अच्छे बुरे कर्मों का हिसाब काल भैरव अपने पास ही रखते हैं।जो मनुष्य जीवों पर परोपकार करने वालों पर श्री काल भैरव की अति विशेष कृपा सदैव बानी रहती है। तो वे ही मनुष्य द्वारा किये गए बुरे कर्मो और अनैतिक आचरण करने वालों को वह स्वयं ही दंड भी देते हैं। माना जाता है कि काल भैरव अष्टमी के दिन (काल भैरव जयंती) वाले दिन काले कुत्ते को भोजन जरूर कराना चाहिए। ऐसा करने से काल भैरव अति प्रसन्न होते है। इसी के साथ ही शनि देव की भी असीम कृपा मनुष्य पर बानी रहती है।Kaal Bhairav Jayanti- और भगवान् श्री काल भैरव राहु से होने वाले अशुभ प्रभाव को भी नष्ट करते हैं। काल भैरव (काल भैरव जयंती) की पूजा करने से मन का भय और अज्ञात भय भी दूर होता है और किसी भी प्रकार की बुरी नजर का असर मनुष्य पर नहीं पड़ता है।
Kaal Bhairav Jayanti – काल भैरव भगवान शिव के रौद्र रूप को माना जाता है। शिव भगवान् का यही रूप काल भैरव की जयंती के रूप में माना जाता है। इसलिए, यह काल भैरव जयंती का दिन भगवान शिव भक्तो के लिए बहुत विशेष महत्व रखता है। Kaal Bhairav Jayanti – काल भैरव जयंती वाला दिन तब अधिक शुभ तब माना जाता है जब यह काल भैरव जयंती मंगलवार को या रविवार को होती है। क्योंकि ये दिन भगवान काल भैरव को पूर्ण रूप से समर्पित होते हैं। इसे महकाल भैरव अष्टमी या काल भैरव अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है।
Kaal Bhairav Jayanti – कालभैरव जयंती का पर्व भगवान काल भैरव और भगवान शिव के परम भक्तो के लिए बहुत विशेष महत्व रखता है। भगवान काल भैरव को भगवान शिव का डरावना रूप भी माना जाता है। शास्त्रों और हिंदू पौराणिक कथाओं मान्यताओ के अनुसार, उदाहरण के लिए जब भगवान महेश,भगवान् विष्णु और भगवान ब्रह्मा अपने वर्चस्व और शक्ति के बारे में आपस में ही चर्चा कर रहे थे, भगवान शिव भगवान् श्री ब्रह्मा द्वारा कही गई कुछ टिप्पणियों के कारण क्रोधित हो गए। Kaal Bhairav Jayanti- और फिर परिणामस्वरूप, भगवान कालभैरव भगवान शिव के माथे से प्रकट हुए और क्रोध में आकर भगवान ब्रह्मा के पांच सिर में से एक सिर को काट कर उनके धड़ से अलग कर दिया था।
काल भैरव जयंती के दिन भगवान कालभैरव कुत्ते पर सवार होते हैं और बुरे कार्य या अनैतिक आचरण करने वाले मनुष्यो को दंडित करने हेतु एक छड़ी भी रखते हैं। Kaal Bhairav Jayanti – भक्त कालभैरव जयंती की शुभ संध्या पर भगवान कालभैरव की पूजा-पाठ करते हैं ऐसा करने से सफलता और अच्छे स्वास्थ्य के साथ-साथ सभी अतीत और वर्तमान के पापों से छुटकारा पाया जा सकें। साथ ही ऐसा भी माना जाता है कि, भगवान कालभैरव की पूजा करने से, भक्त अपने सभी ‘शनि’ और ‘राहु ‘दोषो को भी समाप्त कर सकते हैं।
]]>Sardar vallabh bhai patel jayanti – कैसे एक साधारण परिवर में जन्म लेने वाले मनुष्य लोह पुरुष बना इसका जवाब इस लेख में मिलेगा. सरदार वल्लभभाई पटेल एक ऐसा नाम है। जो स्वतंत्रता आन्दोलन को प्रत्यक्ष रूप से देखा था, के ज़हन में आता हैं उनका शरीर नव उर्जा से भर जाता हैं, लेकिन मन में एक आत्म ग्लानि सी उमड़ पड़ती हैं, क्यूंकि उस वक्त का हर एक युवा और अन्य भारतवासी वल्लभभाई को ही प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहता था, लेकिन अंग्रेजो की निति गाँधी जी के निर्णय जवाहर लाला नेहरू की जिद्द के कारण वे भारत के प्रथम प्रधान मंत्री नहीं बन सके।
Sardar Vallabh Bhai Patel Jayanti – सरदार वल्लभ भाई पटेल लोह पुरुष के नाम से भी पहचाने जाते है। उनकी ख्याति किसी सुर वीर से काम नहीं थी। उन्होंने 200 वर्षो से अंग्रेजो की गुलामी में फसें देश के अलग अलग राज्यों को एक जगह संघटित कर भारत में मिलाया। ऐसा करने केलिए उन्हें किसी भी प्रकार की सैन्य बल की जरुरत भी नहीं पड़ी। बस यही उनकी महान ख्याति थी। जो इन्हे सबसे अलग पहचान दिलाती थी।
Sardar Vallabh Bhai Patel Jayanti – सरदार वल्लभ भाई पटेल एक किसान से सम्बन्ध रखते थे। एक साधारण मनुष्य की तरह इनके भी कुछ लक्ष्य थे। वह पढ़ना चाहते थे कुछ कामाना चाहत थे। फिर कुछ हिस्सा बचा कर वे इंग्लैंड जाकर अपनी पढाई पूरी करना कहते थे। इन सभी में बहुत ही कठिन परिस्तिथियों का सामना भी करना पड़ा। जीवन के शुरुआती दौर में इनके घरवाले इन्हे नाकारा समझते थे। सरदार वल्लभ भाई पटल ने 22 वर्ष की उम्र में अपनी मीट्रिक की पढाई पूरी की। फिर सरदार वल्लभ भाई पटेल ने घर दे दूर जाकर अपनी वकालात की पढ़ी पूरी की। जीके लिए उन्हें बिना पैसो के उधार में किताबें लेनी पड़ी,उसी समय इन्होने नौकरी भी की और अपने परिवार का पालन पोषण भी किया। इसी तरह अपनी जिंदगी से लड़ते – लड़ते आगे बढे ,परन्तु ये इस बात से अनजान थे की वे भविष्य में ओह पुरुष कहलाने वाले है। इंग्लैंड जाकर 36 महीने की पढाई को इन्होने 30 महीने में ही पूरी की उन दिनों में इन्होने अपने कॉलेज में अपना नाम रोशन किया। इसके बाद वे भारत लौट आये और एक बैरिस्टर के रूप में कार्य करने लगे। वे सूट बूट यूरोपियन तरीके से कपडे पहनने लगे उनमे काफी बदलाव आया। फिर ये गाँधी जी के विचारो को ध्यान में रख कर उन्होंने सामाजिक बुराइओं के खिलाफ उठाई और अपने भाषण क्र जरिये वो लोगो को अपनी तरफ खिंचने लगे। धीरे – धीरे वे राजनीती में सक्रिय रहने लगे।
इस बुलंद आवाज नेता वल्लभभाई ने बारडोली में सत्याग्रह का नेतृत्व किया था। यह सत्याग्रह उन्होंने 1928 में साइमन कमीशन के खिलाफ किया गया था. इसमें सरकार द्वारा बढ़ाये गए कर का खिलाफ किया गया था और किसान भाइयों की एकता को देख कर ब्रिटिश वायसराय को मजबूर होकर झुकना पड़ा. इस बारडोली सत्याग्रह की वजह पुरे भारत देश में वल्लभभाई पटेल का नाम विख्यात हुआ और लोगो में उत्साह की लहर दौड़ पड़ी. इस आन्दोलन की सफलता के मिलने के बाद वल्लभ भाई पटेल को बारडोली के लोग प्रसन्न होकर सरदार कहने लगे जिसके बाद इन्हें सरदार पटेल के नाम से जाना जाने लगा।
सरदार वल्लभ भाई पटेल की लोगो में पहचान धीरे धीरे बढ़ती ही जा रही थी, इन्होने लगातार नगर के चुनाव जीते और 1922, 1924 और 1927 में अहमदाबाद के नगर निगम के अध्यक्ष के पद पर चुने गए. 1920 के आसपास के दशक में पटेल ने गुजरात कांग्रेस को ज्वाइन किया, जिसके बाद वे 1945 तक गुजरात कांग्रेस अध्यक्ष बने रहे। 1932 में इन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया. इन्हें कांग्रेस में लोग इन्हे ज्यादा मान्यता देने लगे बहुत इनकी इज्जत भी करने लगे उस वक्त गाँधी जी,नेहरु जी एवं सरदार पटेल ही नेशनल कांग्रेस के मुख्य बिंदु थे. आजादी के बाद वे देश के गृहमंत्री एवं उपप्रधानमंत्री के रूप में चुने गए। वैसे सरदार पटेल प्रधानमंत्री के प्रथम दावेदार थे उन्हें कांग्रेस पार्टी के सर्वाधिक चाहने वाले व्यक्ति थे। लेकिन गाँधी जी की अकारण हट के कारण उन्होंने अपने आप को इससे दूर रखा।
Sardar Vallabh Bhai Patel Jayanti – सरदार पटेल एवं नेहरु दोनों गाँधी विचार धारा से प्रभावित थे। इसलिए एकसाथ थे। वरना तो इन दोनों की सोच विचार में बहुत अंतर था. जहाँ पटेल धरातल से जुड़े हुए थे।
Sardar Vallabh Bhai Patel Jayanti – वे साधारण व्यक्तित्व के धनि थे। वही नेहरु जी अमीर घरानों के नवाब थे, जमीनी हकीकत से अनजान थे। ये एक ऐसे व्यक्ति जो बस सोचते थे और वही कार्य सरदार पटेल करके दिखा देते थे. शैक्षणिक योग्यता हो या व्यवहारिक सोच हो इन सभी में पटेल नेहरु जी से बहुत आगे थे. कांग्रेस में नेहरू जी के लिए पटेल एक बहुत बड़ा रोड़ा थे.
1948 में हुई गाँधी जी की नाथू राम गोडसे के द्वारा मृत्यु हो जाने के बाद पटेल को इस बात का गहरा सदमा पहुँचा और उन्हें कुछ महीनो बाद हार्ट अटैक हुआ जिसके कारन वे भी इस दुनिया से 15 दिसम्बर 1950 को इस दुनिया से विदा लेकर चलेगये। लेकिन उनका नाम उनके जाने के बाद भी लोगो के दिलो में लोह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल के नाम से आज भी जिन्दा है।
Sardar Vallabh Bhai Patel Jayanti – सरदार वल्लभ भाई पटेल को 1991 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया। इनके नाम से कई शेक्षणिक संस्थायें भी है। सरदार वल्लभ भाई पटेल के नाम से हवाईअड्डा भी बनाया गया।
सरदार वल्लभ भाई पटेल के नाम 2013में उनके जन्मदिन के उपलक्ष में स्टेचू ऑफ यूनिटी गुजरात में उनका स्मृति स्मारक बनाने की शुरुवात की गई, यह स्मारक भरूच (गुजरात) के पास नर्मदा जिले में बनाया गया है।
स्टेचू ऑफ यूनिटी – Statue of unity /Sardar Vallabh Bhai Patel Jayanti
Sardar Vallabh Bhai Patel Jayanti – सरदार वल्लभ भाई पटेल की यद् में हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी जी ने गुजरात में सबसे ऊँची मूर्ति स्टेचू ऑफ यूनिटी का भव्य निर्माण करवाया। यह स्टेचू केवल 4 साल में बन कर तैयार हो गई थी।
]]>Shivaji Jayanti – छत्रपति शिवाजी महाराज (1630 – 1680ई) भारत के महान राजा एवं रणनीतिकार थे। शिवाजी महाराज का जन्म 19 फ़रवरी 1630 ई. शिवनेरी दुर्ग में हुआ था।वर्ष 2023 में शिवाजी जयंती 19 फरवरी को है। शिवनेरी दुर्ग भारत के महाराष्ट्र राज्य के पुणे के जुन्नैर गांव के पास में स्तिथ इस दुर्ग में हुआ था। शिवनेरी को महाराज छत्रपति शिवाजी की जन्मभूमि के नाम से भी जाना जाता है शिवाजी के पिताजी शाहजी बीजापुर के सुल्तान आदिल शाह की सेना में एक सेनापति के रुप में थे।Shivaji Jayanti – लेकिन लगातार युद्ध हो रहे थे इस कारण से अपनी गर्भवती पत्नी जीजाबाई की सुरक्षा को लेकर चिंतित थे, इस लिए उन्होने अपने परिवार को शिवनेरी में भेज दिया। शिवनेरी चारों ओर से खड़ी चट्टानों से घिरा एक अभेद्य गढ़ था। इस गढ़ के भीतर माता शिवाई का एक मन्दिर था.और इसी स्थान पर शिवाजी का जन्म हुआ था। इसी कारण शिवाजी का नाम इसी माता के नाम पर रखा गया।Shivaji Jayanti – इसी किले के अंदर एक सरोवर स्तिथ है जिसे बादामी तालाब के नाम से जाना जाता है। आज भी शिवाजी महाराज की यादे है। और इसी सरोवर के दक्षिण में माता जीजाबाई और बाल शिवाजी की मूर्तियां स्थित हैं। किले में मीठे पानी के दो स्रोत हैं जिन्हें गंगा-जमुना कहते हैं और इनसे वर्ष भर पानी की आपूर्ति चालू रहती है। शिवाजी महाराज मेवाड़ के सूर्यवंशी छत्रिय सिसोदिया राजपूतो के वंसज थे। शिवाजी महाराज के जीवन पर उनके माता पिता का काफी प्रभाव पड़ा। उनके बचपन में उनके साथ उनकी माता ही थी। उन्होंने बचपन से ही राजनीती एवं युद्ध का ज्ञान लिया था शिवाजी महाराज उस समय के वातावरण और घटनाओ को अछि प्रकार समझने लगे थे शिवाजी का विवाह 14 मई 1640 में लाल महल पुणे में हुआ था। शिवाजी महाराज ने कुल आठ विवाह किये थे। सखुबाई राणूबाई (अम्बिकाबाई); सोयराबाई मोहिते – (बच्चे- दीपबै, राजाराम); पुतळाबाई पालकर (1653-1680), गुणवन्ताबाई इंगले; सगुणाबाई शिर्के, काशीबाई जाधव, लक्ष्मीबाई विचारे, सकवारबाई गायकवाड़ – (कमलाबाई) (1656-1680)।
Shivaji Jayanti – छत्रपति शिवाजी महाराज के इतिहास के बारे में हम जानते है। छत्रपति शिवाजी का पूरा नाम शिवाजी राजे भोसले था शिवाजी राज भोसले पश्चिम भारत के मराठा साम्राज्य के संस्थापक थे शिवाजी के पिता का नाम शाह जी भोसले था और माता जी का नाम जीजाबाई था। Shivaji Jayanti – सेनानायक के रूप में शिवाजी की महानता निर्विवाद रही है। शिवाजी ने अनेक किलो का पुनः निर्माण करवाया था। शिवाजी के पिताजी ने शिवाजी के जन्म लेने के पश्च्यात ही उन्होंने अपनी पत्नी जीजाबाई को छोड़ दिया था। शिवाजी का बचपन बहुत ही कठिनाइयों के बिच गुजरा था और वे सौतेली माँ के सरक्षण के कारण पिताजी के सरक्षण से वंचित रहे उनके पिताजी बहुत शूरवीर नायक थे और वे अपनी दूसरी पत्नी पर आकर्षित थे। जिजाबाई का जन्म में एक उच्च कुल में हुआ था और बहुत ही प्रतिभाशाली थी फिर भी उनका जीवन कठिनाइयों में ही था। जीजाबाई का जन्म यादव वंश में हुआ था और प्रतिभाशाली और भाग्यवान महिला थी और उन के पिता भी बहुत ही शक्तिशाली और बलशाली सामंत थे। शिवाजी का लालन – पालन उन के दादाजी द्वारा किया गया था। उन के दादाजी नाम कोंडदेव था Shivaji Jayanti – और माताजी जीजाबाई और जीजाबाई के गुरुदेव की देख रेख में शिवजी का लालन पालन हुआ था। प्राचीन काल से ही रामयण महाभारत भागवत गीता में अनेक राजा हो के नाम मिलते है और ये राजा शूरवीर और न्यायप्रिय राजा हुआ करते थे। महाराजा छत्रपति शिवाजी रैयतों के राजा बनने की नींव रखी और उस से आगे जाने की हिम्म्त किसी भी रियासत के राजाओ में नहीं थी तिथि के अनुसार महाराज छत्रपति शिवाजी का जन्मदिवस 19 फरवरी को मनाया जाता है
Shivaji Jayanti – महाराज छत्रपति शिवाजी का व्यक्तित्व ऐसा था की उनको अपने मावलों और रैयतों से बहुत ही प्यार करते थे। शिवाजी के अंदर किसी भी प्रकार की सामाजिक जातिवादिक राजनीती नहीं थी उन्होंने जातिवादी की दीवारों को तोडा और सभी जाती समुदाय के लोगो का बहुत ही शानदार तरिके से सम्मान किया करते थे। छत्रपति शिवजी महाराज को बचपन से ही तलवार से खेलने का ही बहुत शोक हुआ करते थे और वो तलवार बाजी में बहुत निपूर्ण थे। Shivaji Jayanti – तलवार चलाने वालो को मनकारी की उपाधि और भाला फेंकने वाले को भालेराव की उपाधि दिया करते थे अपने सैनिको को दिया करते थे महाराज शिवाजी कभी भी अपने से ताकतवर दुश्मन से नहीं डरा करते थे महाराज शिवाजी को भय डर उन के मन में भी नहीं हुआ करता था। यह देश में शासन अछि तरह करने और अपनी प्रजा का ध्यान रकने के लिए ये अछि शैली हुआ करती है जिसका भारत में उपयोग किया था द्रढ़ता पूर्वक परिश्रम सरलता और ज्ञान के साथ साथ उन होने कठिनाईयो पर विजय प्राफ्त की और बड़ी सफलता को प्राफ्त किया और स्वराज की स्थापना की। और उन के पास इतनी बौद्धिक तार्किक शक्ति थी की उनको अंदाज था की क्या स्वराज के लिए क्या करना चाइये। उन होने इस प्रकार से किलो को निर्माण करवया था की उन किलो पर चलने से पहले दुश्मन को सोचना पड़े क्युकी उन होने किलों का निर्माण इस प्रकार करवया था की चारो और की परचिर मजबूत है। और खुदाई में पथरो का ही निर्माण किया गया था ीतिनि ऊचाई पर इस प्रकार के किलो का निर्माण करवया जा सकता थे उन्होंने इस प्रकार के किलो का निर्माण करवाया की दुश्मन का खतरा पानी के साथ साथ ज़मीन पर भी हो सकता है महारष्ट्र राज्य को आज भी इस सम्रद्ध विरासत पर गर्व है।Shivaji Jayanti – गुरिल्ला युद्ध छापामार युद्ध महाराज छत्रपति शिवाजी महाराज का मुख्य हथियार था। महाराज शिवाजी ने छापामार युद्ध के साथ कई अभियान और युद्ध जीते शत्रु सेना किये कितनी ही बड़ी क्यों न हो शिवाजी महाराज ने अपने मावलों की सहयता से शत्रु को परास्त कर दिया था शिवाजी ने स्वराज्य की स्थापना के साथ साथ कहि सैकड़ो किलो का निर्माण और उन सभी पर विजय प्राफ्त किया माना जाता है की हिंदवी स्वराज्य में शिवाजी महाराज के 400 किले थे। जिन पर अपना कब्ज़ा कर लिए थे जिनमे से कुछ किले उन होने खुद बनवाये थे और कुछ किले उन्होंने लड़ाई में जीते थे महाराज के किलो में वास्तुकला प्रबधन और गुरिल्ला कविताओं का प्रतिका था छत्रपति शिवाजी का स्वभाव इस प्रकार था की व खुद हिन्दू धर्म में होने के बावजूद भी उन्होंने कभी भी मुसलमानों को नुकसान नहीं पहुचाया।Shivaji Jayanti – शिवाजी महाराज यही बात हमेशा अपने साथियो से कहा करते थे की उनकी लड़ाई मुसलमानों के धर्म से नहीं है बल्कि उनके इस साम्राज्य से है। शिवाजी ने स्वराज्य में महिलाओ के खिलाफ होने वाले अन्याय उन पर उन्होंने वाले उत्पीड़न और हिंसा करने वाले अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा प्रधान करते थे। शिवाजी महाराज के दरबार में आने वाले निपटारों की सुनवाई खुद करते थे और उन का आमने सामने ही फैसला करते थे और उन मामलो को निपटा देते थे
Shivaji Jayanti – शिवजी महाराज की योजनाओ और उन के ताकतवर होने की मिसाल आज भी दी जाती है। शिवाजी महाराज ने 8 शादियां की थी और उनकी दूसरी पत्नी सोयराबाई के बारे में काफी कुछ पड़ने को या देकने को मिलता है। क्युकी उनकी दूसरी पत्नी सोयरबाई शिवाजी महराज के राजकाज के कार्य में काफी दखल अन्दांजी किया करती थी। जब शिवाजी महाराज का निधन हो गया था उसके बाद सभलजी ने उतरादिकार देखा करते थे।Shivaji Jayanti – तब सोयराबाई पर उनके खिलाफ साजिश करने का आरोप लगा इसके चलते उनको मृत्यु दंड की सजा दी गयी थी। इतिहास में माना जाता है की सोयराबाई को दबंग महिला के नाम से चित्रित किया जाता है Shivaji Jayanti – सोयराबाई छत्रपति शिवाजी की दूसरे बेटे राजमराम की माँ थी और सोयराबाई अपने बेटे को हर हाल में राज गदी और सिगाशन पर बैठना चाहती थी। शिवाजी महाराज का विवाह काम उम्र में ही हो गया था क्युकी उनकी सौतेली माँ तुकाबाई ने उन पर विवाह करने का दबाव बन रखा था इस लिए उनको काम उम्र में ही विवाह करना पड़ा था शिवाजी महाराज के पत्नी एवं उनके पुत्रो के नाम इस प्रकार है Shivaji Jayanti – सखुबाई राणूबाई (अम्बिकाबाई); सोयराबाई मोहिते – (बच्चे- दीपबै, राजाराम); पुतळाबाई पालकर (1653-1680), गुणवन्ताबाई इंगले; सगुणाबाई शिर्के, काशीबाई जाधव, लक्ष्मीबाई विचारे, सकवारबाई गायकवाड़ – (कमलाबाई) (1656-1680)।
Shivaji Jayanti – शिवाजी महाराज एक निडर राजा थे वह ज्यादतर बार वह युद्ध लड़ने के लिए घर से दूर ही रहा करते थे। इसीलिए वह निडर एवं पराकर्मी होने का सम्पूर्ण रूप से ज्ञान नहीं था।
किसी अवसर शिवाजी को बीजापुर के सुलतान के दरबार में ले गए। शाहजी ने तीन बार झुक कर सुल्तान को सलाम किया और शिवाजी को भी ऐसा करने को कहा गया था। लेकिन शिवजी को किसी भी अंग्रेजो के सामने झुकने की आदत नहीं थी इसीलिए शिवाजी अपना सर उठाये सीधा खड़े रहे। क्युकी शिवाजी महाराज एक विदेशी शासक के सामने किसी भी कीमत पर सर झुकाने को त्यार नहीं हुए थे। इतना ही नहीं वो दरबार में इस प्रकार जा रहे थे की शेर की तरह शान से चलते हुए दरबार से बार गए थे इसीलिए छत्रपति शिवाजी को एक कुशल और प्रबुद्ध सम्राट के रूप में जाना जाता है
]]>Rashtriya Yuva Divas – 12 जनवरी को प्रति वर्ष राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है। राष्ट्रीय युवा दिवस भारत के उन युवाओं और नौजवानों को समर्पित होने वाल एक खास दिन है,जो की हमारे देश के भविष्य को बेहतर सुदृढ़ और स्वस्थ बनाने की अपने अंदर क्षमता रखते हैं। राष्ट्रीय युवा दिवस को 12 जनवरी को ही मनाने का एक खास वजह है। क्योकि इसी दिन स्वामी विवेकानंद का जन्म हुआ था। स्वामी विवेकानंद के जन्मदिवस को देश के युवाओं के नाम पर समर्पित करते हुए प्रतिवर्ष राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप १२ जनवरी को मनाया जाने लगा। अब सवाल है कि स्वामी विवेकानंद जी का युवाओं से क्या सम्बन्ध है, जिसके कारण उनके जन्मदिवस को युवा दिवस के तौर पर मनाया जाता है स्वामी विवेकानंद जी की जयंती को कब से राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत की गई थी .स्वामी विवेकानंद जी कौन हैं और उनका देश की उन्नति में क्या योगदान रहा है
Rashtriya Yuva Divas – स्वामी विवेकानंद जी का जन्म 12 जनवरी सन 1863 को कोलकाता में हुआ था। स्वामी विवेकानंद का असली नाम श्री नरेंद्रनाथ दत्त था। वे वेदांत के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु भी थे। छोटी सी उम्र से ही उन्हें अध्यात्म में रुचि हो गई । पढ़ाई में अच्छे होने के बावजूद जब वह 25 साल के हुए तो अपने गुरु से प्रभावित होकर श्री नरेंद्रनाथ ने सांसारिक मोह माया को त्याग दी और संयासी बन गए। संन्यास लेने के बाद ही उनका नाम विवेकानंद पड़ा था । 1881 में विवेकानंद की मुलाकात श्री रामकृष्ण परमहंस से हुई।
Rashtriya Yuva Divas – स्वामी विवेकानंद जी को ऑलराउंडर भी कहा जाता है। वह धर्म, दर्शन, इतिहास, कला, साहित्य ,सामाजिक विज्ञान, के ज्ञाता माने जाते थे। शिक्षा अर्जित करने में अच्छे होने के साथ-साथ ही वह भारतीय शास्त्रीय संगीत का ज्ञान भी वे रखते थे। इसके अलावा स्वामी विवेकानंद जी एक एक अच्छे खिलाड़ी भी हुआ करते थे। वह युवाओं के लिए किसी प्रेरणास्त्रोत से कम नहीं हैं। उन्होंने कई मौकों पर अपने अनमोल विचारों,प्रवचन और प्रेरणादायक वचनों से युवाओं को आगे बढ़ने के लिए सामाजिक जीवन जीने के लिए प्रोत्साहित किया। इसी वजह से स्वामी विवेकानंद जी जयंती (जन्मदिवस) को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।
Rashtriya Yuva Divas – स्वामी श्री विवेकानंद के जयंती (जन्मदिन) को युवाओं के लिए समर्पित करने की शुरुआत 1984 में की गई थी। उन दिनों भारत सरकार ने ऐसा कहा था कि स्वामी विवेकानंद जी के दर्शन, आदर्श और उनके काम करने का तरीका हमारे भारतीय युवाओं के लिए प्रेरणा का एक बहुत बड़ा स्रोत हो सकते हैं। तभी से स्वामी श्री विवेकानंद की जयंती को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाने की घोषणा कर दी गई थी ।
Rashtriya Yuva Divas – राष्ट्रीय युवा दिवस के दिन इस अवसर पर प्रति वर्ष स्कूलों और कॉलेजों में भाषणों, अनन्य प्रतियोगिताओं जैसे विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों और समारोहों का भव्य आयोजन किया जाता है. इसका उद्देश्य भारत देश के युवाओं में प्रतिभा को बढ़ाने में मदद करना और युवाओ को प्रोत्साहन देना होता है और युवाओ को यह व्यक्त करने के लिए एक मंच प्रदान करना भी है कि वे विभिन्न मुद्दों के बारे में किस प्रकार का और क्या महसूस करते हैं. राष्ट्रीय युवा दिवस के उत्सव में विभिन्न प्रकार के सम्मेलनों और अनन्य कार्यक्रमों का आयोजन भी होता है जिसमें भारत के युवा हिस्सा लेते हैं और अपने विचारों का आदान-प्रदान भी करते हैं और स्वामी विवेकानंद जी के जीवन और उनके कार्यों का जश्न मनाते हैं.
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Gandhi Jayanti 2022 – ‘अहिंसा के पुजारी’और राष्ट्रपिता कहलाने वाले महात्मा गाँधी को बापू के नाम से भी सम्भोदित किया जाता है। महात्मा गाँधी का जन्म शुक्रवार 02 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर नमक स्थान पर एक साधारण परिवार में हुआ था। इनका पूरा नाम मोहनदास करमचंद गाँधी है इनके पिता का नाम करमचंद गाँधी था और माता का नाम पुतली बाई था। इनकी माता जी एक धार्मिक प्रवर्ति की महिला थी ये नित्य व्रत और उपवास रखती थी। गाँधी जी का पालन पोषण एक ऐसे परिवार में हुआ जो वैष्णव मत में विश्वास रखता था। गाँधी जी पर जैन धर्म का अधिक प्रभाव पड़ा जिसके कारण अहिंसा,सत्य जैसे व्यव्हार गाँधी जी में बचपन से ही था। गाँधी जी अपने माता पिता के सबसे छोटी संतान थे,वे दो भाई और एक बहन थी। उनके पिता जी मोढ़ बनिया जाती के हिन्दू थे। लोग महात्मा गाँधी को प्यार से बापू कहते थे। गुजरती उनकी मातृ भाषा थी। साधारण जीवन और उच्च विचार जीवन जीने वाले थे। उन्होंने अंग्रेजो की हुकूमत से सत्य और अहिंसा की राह पर चलते हुए अंतिम साँस तक लड़ाई की पूर्ण रूप से संघर्ष भीं किया। भारत छोडो आंदोलन,असहयोग आंदोलन,सविनय अवज्ञा आंदोलन में रह कर सभी तबके के लोगो को अपने साथ जोड़कर भारत देश को आज़ादी दिलाने में महात्मा गाँधी का विशेष योगदान रहा है,
इनका जन्म एक साधारण हिन्दू परिवार में हुआ था। इनके पिता जी दीवान थे। गाँधी जी वैसे तो हर धर्म को मानते थे किन्तु उन पर जैन धर्म का कुछ विशेष प्रभाव था। क्योकि जैनधर्म में अहिंसा को सर्वोपरि रखा गया है,इसी मान्यता के परिणामस्वरुप महात्मा गाँधी जी ने अपने सत्याग्रह में अहिंसा मुख्या एवं विशेष स्थान दिया गया है, महात्मा गाँधी जी सदैव अपने साथ भगवत गीता को रखते थे और उसी का अपने जीवन में अनुशरण भी करते थे। वे भगवान् को सत्य का रूप मानते थे और अहिंसा को सत्य रुपी भगवान को पाने का मार्ग मानते थे।
Gandhi Jayanti – गाँधी जी एक साधारण व्यक्तित्व के धनि थे औसत विद्यार्थी की तरह इनकी शिक्षा अल्फ्रेड हाई स्कूल में हुई थी। इन्होने अपने विद्यार्थी काल में अनेको प्रकार के पुरस्कार भी जीते, गाँधी जी पढ़ी में ज्यादा होसियार नहीं थे तो उन्होंने अपना जीवन घर के काम और अपने माता पिता की सेवा में लगाया। महात्मा गाँधी जी ने सच्चाई की रूप में राजा हरिश्चंद्र को अपना आदर्श माना। केवल तरह वर्ष की उम्र में पोरबंदर के एक व्यापारी की पुत्री से इनका विवाह सम्पन हुआ। साल 1887 में इन्होने मुंबई की यूनिवर्सिटी से मीट्रिक पास की और भावनगर के समलदास कॉलेज में दाखिला लिया। गाँधी जी डॉक्टर बनना चाहते थे लेकिन वे वैषणव धर्म के अनुयायी थे जिसमे चिर फाड् की अनुमति नहीं थी इसी कारण इनका डॉक्टर बनने का सपना टूट गया। जबकि उनका परिवार उनको बैरिस्टर बनाना चाहता था। लेकिन वो मीट्रिक की परीक्षा को पास करने के बाद वकालात की पढाई करने के लिए इंग्लैण्ड चले गए। साल 1888 में गाँधी जी पहली बार इंग्लैण्ड गए। उन्होंने वहा पर कानून विद्यालय ‘इंटर टेम्पल’ में दाखिला लिया उन्होंने अपनी वकालात की पढाई वही से पूरी की साल 1890 में वे अपनी वकालात की पढाई को पूरी कर सकुशल भारत लौट आये, वे जब भारत लौटे तब भारत में अंग्रेजो की हुकूमत से यहाँ के निवासियों को हो रही परेशानी और अंग्रेजो के द्वारा हो रहे अत्याचारों से मुक्ति दिलाने में उन्होंने अपना योगदान दिया।
Gandhi Jayanti – अफ्रीका में हो रही अश्वेतों और भारतीयों के साथ हो रहे नस्लीय भेदभाव और अपमान जनक नीतोयो का उन्होंने विरोध करने का फैसला किया। वहा भारतीयों और अश्वेतों को वोट देने के अधिकार से वंचित कर दिया गया था उन्हें फुटपाथ पर चलने जैसे कई अधिकारों से भारतीयों और अश्वेतों को वंचित रखा जाता था साल 1906 में दक्षिण अफ्रीका की “टांसवाल सरकार” द्वारा भारतीय जनता के पंजीकरण करने का एक अध्यादेश पारित किया था जो की हम भारतीयों के लिए बहुत ही अपमान जनक अध्यादेश था। साल 1984 में “नटाल इंडियन कांग्रेस” के नाम से एक संघटन को स्त्थापित किया गया। भारतीयों ने महात्मा गाँधी के साथ मिल कर गाँधी जी के ही नेतृत्व में विरोध जनसभा का आयोजन किया और इस आयोजन के परिणाम के रूप में मिलने वाली सजा/दंड को भोगने की शपत भी ली,गाँधी जी द्वारा सत्याग्रह की शुरुआत भी यही से की गई थी,
Gandhi Jayanti – ऐसा माना जाता है की गाँधी जी अहिंसा के पुजारी थे सच्चाई के मार्ग पर चलने वाले थे। अहिंसा के मार्ग पर चलके स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए उनके द्वारा किये गए नेक कार्य और पध्दत्तियो को उन्होंने सत्याग्रह का नाम दिया। सत्याग्रह का अर्थ है की अन्याय,शोषण, भेदभाव,अत्याचार के खिलाफ शांतिपूर्ण तरीके से अपने हक़ की लड़ाई को लड़ना था। अंग्रेजी हुकूमत द्वारा किये जाने वाले अन्याय भेदभाव से नहीं लड़ना था। सत्याग्रह के चक्कर में गाँधी जी को कई बार जेल भी जाना पड़ा। गाँधी जी ने अपने सत्याग्रह में असहयोग आंदोलन,सविनय अवज्ञा आंदोलन,भारत छोडो आंदोलन और दांडी आंदोलन का नित्य समय समय पर इनका भी उपयोग किया।
Gandhi Jayanti – चम्पारण और खेड़ा खेड़ा सत्याग्रह 1917 – 1918 वर्ष 1917 में अंग्रेजी सरकार द्वारा चम्पारण में नील की खेती करने पर मजबूर किया जाने लगा और नील की खेती का मूल्य भी अंग्रेजी सरकार ही तय करने लगी जिससे किसानो को काफी नुकसान का सामना करना पड़ता था। नील की खेती के विरोध में गाँधी जी द्वारा सरकार का विरोध किया जाने लगा। इस विरोध को अहिंसात्मक रूप से पूर्ण किया गया। किसानो के इस सत्याग्रह से अंग्रजी सरकार को विवश होना पड़ा और अंग्रेजी सरकार को गाँधी जी की बात को मानना पड़ा।
Gandhi Jayanti – अंग्रेजी सरकार के द्वारा रोजाना कोई न कोई नया कानून बनाया जाने लगा उस सरकार की अस्पष्ट नीतियों और बेलगाम टेक्स,महामारी और आर्थिक संकट से सभी जूझ रहेथे तब इन कठिन परिस्तिथि में वर्ष 1919 में रोलेट एक्ट जिसे अंग्रेजी सरकार के द्वारा पास किया गया था जिसे काला कानून भी कहा गया था 1919 में बने इस एक्ट का सम्पूर्ण भारत वर्ष में जगह जगह इसका विविरोध हुआ हड़ताल भी हुई। इस एक्ट के विरोध में जलियावाला बाग़ में एक जानसभा का आयोजन किया गया था। जिसमे जनरल डायर ने सभा को रोकने के लिए अंधाधुन गोलिया चलाई। सभा में उपस्तिथ सभी बड़े बूढ़े बच्चे सभी मौजूद थे जिन्हे जनरल डायर की गोलियों का शिकार होना पड़ा।
सितम्बर 1920 को गाँधी जी द्वारा असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव कोलकाता के कांग्रेस अधिवेसन में रखा गया। इस प्रस्ताव को पारित हो जाने के बाद से ही देश में असहयोग आंदोलन की शुरआत हुई।
Gandhi Jayanti – अंग्रेजी हुकूमत को भारत से निकाल फैकने के लिए 08 अगस्त 1942 को महत्मा गाँधी जी द्वारा इस भारत छोडो आंदोलन की शुरुआत की गई। भारत के इतिहास में 1942 भारत की आज़ादी के लिए किये गए आंदोलनों मी एक महत्व पूर्ण आंदोलन है अंग्रेजी सरकार को जड़ से उखड कर फैकने के लिए गाँधी जी द्वारा चलाया गया आंदोलन था। गाँधी जी द्वारा चलाये गए इस आंदोलन में जनता ने भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया।
Gandhi Jayanti – जनता के सहयोग से और सभी सत्याग्रहों के अमूल्य सहयोग से वर्ष 1947 में 15 अगस्त के दिन हमारे भारत को आज़ादी दिलाई। महात्मा गाँधी जी को उन्ही के शिष्य नाथू राम गोडसे द्वारा गोली मार कर उनकी हत्त्या कर दी थी। उसी दिन यानि 30 जनवरी का दिन आज भी शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है, इसी के साथ एक महान व्यक्तित्व का अंत होगया,लेकिन उनके विचार और उनकी आदर्शवादी भावनाये आज भी हमारे अंदर जिन्दा पूर्ण रूप से जिन्दा है,उनकी याद में आज भी 30 जनवरी के दिन प्रत्येक वर्ष में शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है,
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गोस्वामी तुलसीदास जी को कौन नहीं जानता। “रामचरितमानस” जैसे महाकाव्य की रचना करने वाले तुलसीदास आज संपूर्ण हिंदू धर्म में पूजनीय स्थान रखते हैं। तुलसीदास जी का जन्म संवत 1589 में उत्तर प्रदेश के वर्तमान बांदा जनपद के राजापुर नामक गांव में हुआ था। रामचरितमानस महाकाव्य के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी के पिता का नाम आत्माराम दूबे और माता का नाम हुलसी था। तुलसीदास जी एक महाकवि के रुप में धरती पर अवर्तीण हुए। हिन्दू पंचांग के अनुसार श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को अधिकतर विद्वान लोग तुलसीदास जी का जन्म उत्सव मनाते हैं। इस वर्ष तुलसीदास जयंती गुरुवार 23 अगस्त 2023 को मनाई जाएगी।
तुलसीदास जी अपने सांसारिक जीवन से विरक्त संत थे। उनकी रचनाओं पर भगवान श्री राम की विशेष कृपा रही है। भगवान राम से भेंट करवाने में गोस्वामी तुलसीदास जी सबसे बड़ा श्रय वीर हनुमान जी को देते हैं। हनुमान जी की कृपा से ही तुलसीदास जी भगवान श्रीराम से भेंट कर सके थे।
आइए जानते हैं तुलसीदास जी के जीवन से जुड़ी हुई रोचक तथ्य तथा तुलसीदास जयंती क्यों मनाई जाती है? और इसे मनाने के पीछे कथा क्या है? संपूर्ण जानकारी के लिए आप इस लेख को ध्यान पूर्वक पढ़ते रहिए।
तुलसीदास का जन्म सामान्य दुबे परिवार में हुआ। जब तुलसीदास जी का जन्म हुआ था उनके मुख से राम नाम की ध्वनि निकली। कुछ दिनों बाद अपनी माता को तुलसीदास जी ने खो दिया। पिता ने तुलसीदास जी को अभागा समझते हुए ऐसे ही छोड़ दिया। तुलसीदास जी अपने जीवन को संघर्षशील समझते हुए राम भक्ति में लीन होने लगे।
कुछ समय बात तुलसीदास जी की रत्नावली से शादी हो गई। तुलसीदास जी रत्नावली से बेहद प्रेम करते थे। परंतु रत्नावली एक धार्मिक स्त्री थी और उन्होंने तुलसीदास को अनेक रचनाएं रचने के लिए प्रेरित किया था। एक दिन रत्नावली अपने पीहर को चली गई तब तुलसीदास जी उसके साथ साथ चल दिए। रत्नावली को यह देख कर बड़ा दुख हुआ और तुलसीदास से कहा कि अगर आप इस हाडमांस वाले शरीर के क्यों प्रीती करते हो। यदि आप भगवान श्री राम के चरणों में ध्यान लगाते तो आप का बेडा पार हो जाता। यह शरीर तो नश्वर है यह आपकी शारीरिक इच्छा पूर्ति का सकता है, परंतु इसे आप भवसागर पार नहीं जा सकते। आपको भगवान श्री राम के चरणों में ध्यान लगाना चाहिए। इतना सुनने के बाद तुलसीदास जी क्षणभर भी वहां पर नहीं रुके और तुरंत वहां से चल दिए। तब से तुलसीदास जी महान कवि के रूप में उभर कर सामने आए।
तुलसीदास जी ने अपने जीवन काल में 16 रचनाएं रची है। जिनमें से मुख्य तौर पर ‘गीतावली’, ‘विनयपत्रिका’, ‘दोहावली’, ‘बरवै रामायण’, ‘हनुमान बाहुक’ यह सभी रचनाओ ने तुलसीदास जी को कविराज की उपाधि दे डाली। तुलसीदास जी का जीवन बदलने वाली रचना “रामचरितमानस” है। तुलसीदास जी ने महर्षि वाल्मीकि जी द्वारा लिखी गई संस्कृत रामायण को सरल भाषा में लिखते हुए अवध भाषा में वर्णन किया। रामचरितमानस तुलसीदास जी की सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाली रचना थी। इसी रचना के बदौलत तुलसीदास जी महान कवियों में शामिल हो गए।
तुलसीदास जी का जन्म श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को हुआ था। इसी जन्म दिवस को विद्वान जन तुलसीदास जयंती के रूप में मनाते हैं। गोस्वामी तुलसीदास अपनी रचनाओं के चलते वेद ऋषि यों को और विद्वान संतो को उपदेश देते हैं। तुलसीदास जी अपने जीवन में राम भक्ति के अलावा किसी अन्य को स्थान नहीं दिया। तुलसीदास जी की जयंती का महत्व मानने वाले संत तुलसीदास जी के चरण पखारते हैं और उनसे आशीर्वाद लेते हैं। तुलसीदास जी का संपूर्ण जीवन राममय था। राम की व्याख्या लिखते समय तुलसीदास जी अति प्रसन्न हुआ करते थे और अपनी रचनाओं में स्वयं राम के शब्दों को अपनी भाषा में वर्णन किया करते थे। तुलसीदास जी एक महान कवि होने के साथ-साथ संत शिरोमणि थे। इसीलिए धर्म गुरुओं द्वारा और राम भक्तों द्वारा गोस्वामी तुलसीदास जी की जयंती मनाई जाती है। उन्हें याद कर पूजा अर्चना यग हवन तथा रामायण पाठ किए जाते हैं।
गोस्वामी तुलसीदास जी ने महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखी गई वाल्मीकि रामायण जो की संस्कृत भाषा में थी उसे अवधी भाषा में अर्थात साल भाषा में रचित किया। तुलसीदास जी का जन्म त्रेता युग में ही हो गया था और इस समय आप जो तुलसीदास जी की जयंती मना रहे हैं। यह उनका पुनर्जन्म है।
दरअसल यह एक धार्मिक और बड़ी पौराणिक कथा है। सर्वप्रथम हनुमान जी ने रामायण रचना की थी। तब उन्होंने महर्षि वाल्मीकि को यह रामायण सुनाई थी। परंतु उस वक्त वाल्मीकि जी ने उस रामायण को अध्ययन कर रख दिया और कुछ समय बाद जब उन्हें इस बात का एहसास हुआ कि यह रामचरितमानस हनुमान जी ने लिखी है। तब उन्होंने इसे संस्कृत भाषा में दोबारा से रचना की थी। तत्पश्चात संवत 1589 ईस्वी में महर्षि वाल्मीकि का दूसरा जन्म तुलसीदास के रूप में होता है। इनका जन्म से ही भगवान राम के प्रति अतिशय प्रेम था।
जब तुलसीदास जी त्रेता युग में भगवान श्रीराम से भेंट करना चाहते थे। उस समय हनुमान जी ने तुलसीदास जी की श्री राम से भेंट करवाई थी। तुलसीदास जी भोले थे और भगवान श्रीराम के दर्शनों हेतु हनुमान जी से गुहार लगा चुके थे। तब हनुमान जी ने उन्हें निर्मल मन वाला मानते हुए भगवान राम से भेंट करवाना स्वीकार किया। तब से तुलसीदास जी भगवान श्री राम के चरणों का ही गुणगान किया करते हैं। उन्होंने जो भी रचनाएं की है वह इसी संदर्भ में सुशोभित है। तुलसीदास जी की रचनाओं में रामचरितमानस सबसे अधिक पढ़ा जाने वाला काव्य हैं।
तुलसीदास जी की अन्य रचनाओं में गीतावली’, ‘विनयपत्रिका’, ‘दोहावली’, ‘बरवै रामायण’, ‘हनुमान बाहुक’ यह सभी रामायण घटनाक्रम से जुड़ी हुई रचनाएं हैं। तुलसीदास जी ने अपने संपूर्ण जीवन काल में 16 पुस्तकों की रचना की है। तुलसीदास जी अपनी भाषा में ही अपनी रचनाओं को रचा करते थे। उस समय तुलसीदास जी अवध भाषा के अच्छे ज्ञाता थे। उन्होंने अपने संपूर्ण रचनाओं को अवध भाषा में ही रचना की है।
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“यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत अभ्युत्थानम अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ||” ये श्लोक तो आपने सुना ही होगा भगवत गीता में जब भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा, कि जब-जब धर्म की हानि होती है अधर्म का प्रकोप बढ़ने लगता है तब तब मेरा अवतार इस सृष्टि को पाप मुक्त करने हेतु निश्चित तौर पर होता है। आप यह जान लीजिए जब भी किसी प्रकार की आतताई बढ़ने लगती है तब भगवान का अवतार अवश्य होता है। चाहे वह कौन सा भी युग हो। अभी वर्तमान में कल युग चल रहा है और इस कलयुग में “कल्कि अवतार” होगा ऐसा शास्त्रों का कहना है। कल्कि अवतार के रूप में भगवान विष्णु अपना दसवां रूप प्रकट करेंगे। अब तक भगवान विष्णु के 9 अवतार हो चुके हैं। जिनमें पहला अवतार “मतस्य” के रूप में दूसरा “कूर्मा” तीसरा “वराह” चौथा अवतार “नरसिम्हा” पांचवा अवतार “वामन” छठा अवतार “परशुराम” सातवाँ “राम” और आठवा “कृष्ण” नौवा “बुद्ध” दसवा “कल्कि” अवतार होगा। ऐसा धार्मिक ग्रंथों का कहना है। यह बात सत्य है कि ऐसा जरूर होगा। लगभग 300 वर्षों से कल्कि अवतार जयंती भी मनाई जा रही है। जयंती को विधिवत मनाने की शुरुआत राजस्थान के मावजी महाराज ने की थी। श्रावण माह के शुक्ल पक्ष के छठवें दिन कल्कि जयंती मनाई जाती है। वर्ल्कि जयंती 2023 22 अगस्त को मनाई जाएगी।
आइए जानते हैं कल्कि जयंती क्यों मनाई जाती है? और मनाने के पीछे का कारण क्या है ? तथा इसके पीछे की शास्त्रार्थ कथा क्या है? यह सभी आप इस लेख में जानने वाले हैं। संपूर्ण लेख को ध्यान पूर्वक पढ़ते रहिए और जानकारी हासिल करते रहिए।
जैसा कि आप जानते हैं वर्तमान समय कलयुग का चल रहा है और इस कलयुग में बताया जाता है कि अंत होते-होते मनुष्य की उम्र 16 वर्ष ही रह जाएगी और कलयुग में टेक्निकली पाप बहुत बढ़ जाएगा। आप ऐसे समझिए कि कलयुग अपनी कला के माध्यम से लोगों पर अत्याचार करेगा और धर्म को झुकने पर मजबूर कर देगा। जब जब भी धर्म की हानि होती है धर्म को नुकसान होता है। तो भगवान अवश्य उसकी रक्षा हेतु धरती पर अवतरित होते हैं। कल्कि जयंती मनाने के पीछे यही कारण है कि भगवान की स्तुति की जाए और उन्हें जल्द ही अवतरित होने के लिए आमंत्रित किया जाए। ताकि सृष्टि में हो रहे पाप को जल्द से जल्द मिटाया जाए और श्रद्धालु और भक्त गणों को हो रही समस्या से निजात दिलाया जाए।
क्लिक जयंती की शुरुआत आज से 300 वर्ष पहले ही की जा चुकी है। इस जयंती की शुरुआत राजस्थान के मावजी नामक संत द्वारा की गई है। इस जयंती के दिन भगवान विष्णु, कृष्ण के साथ-साथ कल्कि अवतार की भी पूजा अर्चना की जाती है। राजस्थान के जयपुर प्रांत में कल्कि का बहुत बड़ा मंदिर भी है और इस दिन पूजा-अर्चना आदि कर भंडारा आदि किया जाता है। कल्कि जयंती मनाने के पीछे विशेष कारण यही माने जाते हैं कि भगवान की पूजा आराधना करने से भक्तों को शांति मिलती है और उन पर हो रहे अत्याचार का असर नहीं होता। इन्हीं मान्यताओं के चलते भगवान विष्णु तथा कृष्ण की पूजा अर्चना की जाती है। क्योंकि भगवान विष्णु का दसवां अवतार ही क्लिक अवतार के नाम से जाना जाएगा। विष्णु पुराण में कल्कि अवतार का विस्तार पूर्वक लेख मिलता है। इसे धार्मिक प्रवृत्ति के लोग सच मानते हैं और कुछ अज्ञानी जन इसे भ्रम अर्थात अपवाह मानते हैं। परंतु कलयुग में हो रहे अत्याचार का अंत तो कोई ना कोई दिव्य शक्ति ही करेगी यह तो तय है।
जैसा की हम सब जानते है , कल्कि अवतार भारतवर्ष में ही होगा यह सभी शास्त्रों का और धर्म ज्ञाताओं का कहना है। परंतु अभी तक कल्कि अवतार के जन्म स्थान को लेकर सभी इतिहासकारों और धर्म शास्त्रों में एक रहस्य बना हुआ है। कुछ धर्म शास्त्रों में कल्कि अवतार के स्थान का जिक्र हुआ है और परिवार का विवरण पढ़ने को मिलता है। उसी विवरण के आधार पर हम आपको यह विवरण दे रहे हैं। परंतु यह सही है इसका कोई प्रमाण उपस्थित नहीं है।आइए जानते हैं कल्कि अवतार का जन्म कहां होगा तथा उनका परिवार संबंधी विवरण:-
- कल्कि अवतार जन्म (जयंती) – सावन महीने की छठ
- माता-पिता – सुमति – विष्णुयश
- घोड़ा- सफेद
- बच्चे-जय, विजय, मेघमाल, बलाहक
- गुरु-परशुराम
- भाई-सुमंत, प्राज्ञ, कवी
- जन्म स्थान-संभल
सबसे बड़ा रहस्य तो यही है कि भारत में यह संभल गांव शहर या राज्य कहां पर है। इसका कोई वास्तविक स्थान का पता नहीं चल पाया है। परंतु कुछ लोग इसे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश आदि राज्यों में होना बताते हैं। कुछ इतिहासकारों का कहना है कि कल्कि अवतार किसी निम्न कुल में जन्म लेंगे और इनका रंग गोरा होगा तथा पीले वस्त्र धारण करते हुए सुंदर स्वरूप में प्रकट होंगे और कलयुग में हो रहे आतताई का अंत करेंगे। पुराने धर्म ग्रंथों में इस बात का जिक्र अवश्य हुआ है कि कलयुग में कल्कि अवतार होंगे और कलयुग जो कि एक राक्षसी स्वरूप है इसका अंत अर्थात वध करेंगे। जिसे हम कलयुग कहते हैं। कलयुग वास्तव में एक राक्षस प्रवृत्ति का इंसान है जो अपनी आतताई को इस युग में बड़ी बेपरवाही से फैलाने वाला है। घार्मिक और भोले लोग जो आस्था के रूप में भगवान को पूछते हैं उन्हें इस कलयुग में काफी कष्ट होने वाले हैं। क्योंकि आप अभी भी देख रहे होंगे कि जो धर्म पर अडिग हैं और सत्य बोलने वाले लोग हैं उनका गला अभी से ही कटने लगा है। जो झूठ बोलते हैं उनका बोलबाला अभी से ही बढ़ने लगा है। अब आप सोचिए अगर ऐसी स्थिति लगातार बढ़ती ही रहेगी तो धर्म पर चलने वाले लोग इस कलयुग में कैसे श्वांस ले पाएंगे।
कलयुग में हो रही आतताई हो का अंत करने हेतु ही कली अवतार होगा अब इस अवतार के पीछे बहुत बड़े रहस्य हैं। जिन पर से पर्दा अभी तक नहीं उठाया जा सका है। आइये आगे और जानते है कल्कि जयंती 2023 में क्या क्या होगा ?
कलिक अवतार को लेकर धर्म शास्त्रों के अनुसार काफी विवरण मिलता है और मुख्यतः विष्णु पुराण में कल्कि अवतार को विस्तार से बताया गया है। इस अवतार की पुष्टि करने हेतु गुरु गोविंद सिंह ने भी विष्णु पुराण में इस अवतार का जिक्र होना बताया है और उनका कहना है कि भगवान विष्णु का दसवां अवतार ही कलिक अवतार होगा।
भगवान विष्णु के इस अवतार की विशेषता के तौर पर कल्कि एक सफेद घोड़े पर सवार होंगे और घोड़ा चलते हुई स्थिति में दिखाई देगा। उनके हाथ में दिव्य तलवार होगी तथा उनका रंग गोरा होगा और वह पीले वस्त्र धारण करते हुए सफेद घोड़े पर सवार होंगे। कल्कि अवतार को लेकर कुछ मान्यताएं ऐसी भी है कि जब माता काली के पीछे का घोड़ा धीरे-धीरे जमीन पर आता हुआ दिखाई देता है जिस दिन वह जमीन पर आ जाएगा वहीं कलिक अवतार का सही समय होगा। सिख्ख गुरु गोविन्द सिंह ने बहुत से बड़े कार्य किये, उनके द्वारा भी कल्कि के जन्म के बारे में व्याख्या की गई है। गोविन्द सिंह के द्वारा दशम ग्रन्थ में चौबीस अवतार के बारे में बताया गया है। इन्हें सौ सिख्ख का अवतार भी कहा गया है। गुरु गोविन्द सिंह ने विष्णु पुराण के कुछ अनुछेद की भी व्याख्या की है। उन्होंने बोला की कल्कि विष्णु का अवतार है। जो कलियुग में सफ़ेद घोड़े पर तलवार लेकर आयेंगे।
कल्कि जयंती 2023 आ गयी है परन्तु कलिक अवतार का रहस्य अभी भी रहस्य बना हुआ है। परंतु कुछ इतिहासकार और धर्म शास्त्रों के अनुसार हिंदू धर्म का पतन होने पर कलिक अवतार होना निश्चित बताया है। हिंदू धर्म के मुख्य शास्त्र के रूप में वेद ही सर्वश्रेष्ठ है। वेदों का सार है उपनिषद और उपनिषदों का सार है गीता। इतिहास ग्रंथ महाभारत का एक हिस्सा है गीता। रामायण, पुराण और स्मृतियां भी इतिहास और व्यवस्था को उल्लेखीत करने वाले ग्रंथ है। धर्मग्रंथ नहीं। धर्म शास्त्रों के अनुसार कलियुग 4 लाख 32 हजार वर्ष का है। जिसका अभी प्रथम चरण का ही पालन हुआ है। कलियुग का प्रारंभ 3102 ईसा पूर्व से हुआ था, जब पांच ग्रह; मंगल, बुध, शुक्र, बृहस्पति और शनि, मेष राशि पर 0 डिग्री पर हो गए थे। आप इसे ऐसे समझिए 3102+2017= 5119 वर्ष कलियुग के बित चुके हैं और 426881 वर्ष अभी बाकी है। कल्कि अवतार कलियुग व सतयुग के संधिकाल में होगा। यह अवतार 64 कलाओं से युक्त होगा। जब भगवान राम का अवतार हुआ था वह 14 कलाओं के साथ हुआ था और भगवान श्री कृष्ण ने 16 कलाओं के साथ अवतार लिया था। अब आप सोचिए जब भगवान विष्णु 64 कलाओं के साथ अवतरित होंगे तो उनकी शक्ति कितनी भयंकर होगी। तथा उनका रूप तेजेश्वर और उनकी गति कितनी तीव्र होगी। इसका अंदाजा लगाना कलयुग के इंसान की बस में नहीं है।
जब भी भगवान विष्णु ने धरती पर दुष्टों का विनाश करने हेतु अवतरित हुए हैं। तब तब भगवान विष्णु मानव रूप में विवाह भी रचाया है और सृष्टि को संदेश देने हेतु सभी परंपराओं को यथावत निभाया है। इसी श्रंखला में जब भगवान विष्णु का कल्कि अवतार होगा तब भी वे कलयुग में विवाह करेंगे ऐसे धर्म शास्त्रों में वर्णित लेख मिलता है। इसी लेख के अनुसार कल्कि अवतार में उनके पिता का नाम विष्णुयश और माता का नाम सुमति होगा। उनके भाई जो उनसे बड़े होंगे क्रमशः सुमन्त, प्राज्ञ और कवि नाम के नाम के होंगे। याज्ञवलक्य जी पुरोहित और भगवान परशुराम उनके गुरू होंगे। भगवान श्री कल्कि की दो पत्नियां होंगी लक्ष्मी रूपी पद्मा और माता वैष्णवी शक्ति रूपी रमा। उनके पुत्र होंगे जय, विजय, मेघमाल तथा बलाहक। भगवान विष्णु का कल्कि अवतार निष्कलंक अवतार होगा।
कलिक अवतार का विवाह को लेकर एक रहस्य यह भी है कि जब त्रेतायुग में भगवान श्री राम माता सीता की खोज में थे। तब उन्होंने समुद्र किनारे एक बालिका को देखा जो तपस्या कर रही थी। बालिका ने भगवान राम को प्रणाम किया और कहा कि मैं आपसे विवाह करना चाहती हूं। मेरा नाम वैष्णवी है। तब भगवान राम ने कहा कि मैं इस जन्म में मर्यादा पुरुषोत्तम हूँ और मैं तुमसे शादी नहीं कर सकता। हां जब मेरा कलयुग में कल्कि अवतार होगा तब मैं तुमसे विवाह करूंगा ऐसा कुछ ग्रंथों में वर्णन मिलता है।
कलयुग अवतार के रहस्य को समझते हुए आप एक पौराणिक कथा सुनिए जब राजा परीक्षित जोकि द्वापर युग के अंतिम राजा थे। उस वक्त कलयुग जो कि एक दानव शक्ति है। उन्होंने राजा परीक्षित के स्वर्ण मुकुट में प्रवेश किया था। तब से कलयुग की शुरुआत हुई है। कलयुग की शुरुआत स्वर्ण से ही हुई है। कथा अनुसार राजा परीक्षित के स्वर्ण मुकुट से कलियुगे अपना प्रकोप फैला रहा है। आप अभी वर्तमान समय में देख भी रहे हैं कि सबसे ज्यादा सोने को महत्व दिया जा रहा है। इस पौराणिक कथा के आधार पर यह कहा जा सकता है कि कल्कि अवतार “कलयुग” नामक दैत्य का ही वध करने हेतु अवतरित होंगे। क्योंकि कलयुग नामक दैत्य अपने युग में धर्म को नष्ट करने के लिए यथासंभव प्रयोग करेगा और जो भी धर्म पर चलने वाले लोग हैं उनका जीना मुश्किल हो जाएगा। पाप अपने चरम सीमा पर होगा और अत्याचार दिन-ब-दिन बढ़ता ही जाएगा। इसी पाप का अंत करने भगवान विष्णु कल्कि अवतार धारण करेंगे और सृष्टि को पाप मुक्त तथा धर्म की पुनः स्थापना करेंगे।
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