उत्पन्ना एकादशी – हिंदू ग्रथों में एकादशी के दिवस को भगवान श्री विष्णु के कारण बहुत पवित्र माना गया है। वर्ष में आने वाले 24 से लेकर 26 एकादशी के उत्सव भगवान श्री हरि को बहुत प्रिय होते हैं। प्रत्येक माह में दो एकादशी के उत्सव आते हैं जिसमें एक शुक्ल और दूसरा पर्व कृष्ण पक्ष के चलते मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार अधिकमास व मलमास के आने पर एकादशियों की तिथियां बढ़ जाती है। प्रत्येक एकादशी की अपनी विशेष व्रत कथा होती है। एकादशी के व्रत को सभी व्रतों में सबसे श्रेष्ठ माना गया है।
एकादशी के शुभ अवसर पर अनंत फल प्राप्ति हेतु पूजा, पाठ और व्रत आदि को शुभ मुहूर्त में ही करना चाहिए। हिंदू पंचांग के अनुसार सूर्योदय के आधार पर दिनों की गणना की जाती है। इसलिए अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से एकादशी तिथि की अवधि दो दिनों के बीच रहती है। एकादशी के दिन रखे गए व्रत को एकादशी के पारण मुहूर्त में खोलना चाहिए। पुराणों में इस मुहूर्त में खोला गया व्रत संपूर्ण माना गया है। इसलिए इन मुहूर्तों और कथाओं का ज्ञान होना बहुत आवश्यक है। तो आइए जानते हैं कि वर्ष 2021 में यह किस दिन आएगा और इसे कब मनाया जाता है।
उत्पन्ना एकादशी वह पर्व है जिसे मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष में मनाया जाता है। प्रत्येक वर्ष आने वाले इस उत्सव पर नारायण जी का पूजन किया जाता है। भगवान श्री विष्णु को अलग अलग 108 प्रकार के नामों से जाना जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह नवंबर या दिसंबर के समीप आती है।
इस साल 2023 में उतपन्ना एकादशी 8 दिसंबर 2023 को यानि शुक्रवार को मनाई जाएगी
शुभ मुहूर्त 1 : 15 pm से शुरू होकर 3 : 19 pm तक रहेगा
इसकी समय अवधि 2 घंटे 4 मिनट तक रहेगी
इस कथा के अनुसार सतयुग काल में एक मुर नाम का दैत्य था, जोकि बहुत बलशाली और अत्याचारी था। इस राक्षस ने सभी देवताओं को पराजित करके देवलोक से भगा दिया था। जिसके कारण देवता बहुत दुखी थे और शरण के लिए कोई स्थान न होने पर मृत्यु लोक में भटक रहे थे। भगवान शिव द्वारा आदेश दिए जाने पर सभी देवता क्षीरसागर में भगवान श्री विष्णु से सहायता मांगने के लिए गए।
तभी भगवान श्री विष्णु ने उस राक्षस का वध करने का निर्णय लिया और सभी देवताओं को चंद्रावती नगरी में जाने का आदेश दिया। सभी देवताओं ने जब उस नगरी की ओर प्रस्थान किया तो मुर दैत्य अपनी राक्षस सेना के साथ वहां प्रकट हो गया। उसको देखकर सभी देवता भयभीत होकर इधर-उधर भागने लग गए। तभी भगवान स्वयं रणभूमि पर आए और उस दैत्य से युद्ध करना आरंभ कर दिया।
इस युद्ध में मुर की सेना के कई दैत्य मारे गए और यह युद्ध पूरे 10 हजार वर्षाें तक चलता रहा। जिसमें मुर का शरीर बुरी तरह घायल हो गया, लेकिन उसने हार नहीं मानी वह लड़ता ही रहा। जिसके बाद भगवान श्री विष्णु जी मुर दैत्य को घायल छोड़कर स्वयं विश्राम करने के लिए बद्रिकाश्रम की हेमवती नामक गुफा में चले गए। जब भगवान योगनिद्रा में सो रहे थे तब मुर उनका पीछा करते करते वहां पहुंच गया। जैसे ही उसने भगवान को मारने का प्रयास किया तभी एक प्रकाश उत्पन्न हुआ। जिससे एकादशी देवी प्रकट हुई और देवी ने उस दैत्य का वध कर दिया। इस दिन को तब से उत्पन्ना एकादशी के पर्व के रूप में मनाया जाने लगा।
हरि वासर के नाम जाने वाले इस एकादशी के पर्व का सनातन धर्म में विशेष महत्व है। श्री हरि भगवान के उपासक इस दिन की बहुत उत्सुकता से प्रतीक्षा करते हैं। इस दिन वैदिक कर्मकांड से पूजा करना बहुत फलदायी होता है। पितृ-तर्पण के लिए इस दिन के दोपहर का समय बहुत शुभ होता है। इस दिन किए गए पूजन से जातकों के पूर्वजों के सभी पापों का नाश हो जाता है और उनको स्वर्ग प्राप्त होता है।
इस दिन पूजा के बाद भजन-कीर्तन करके प्रभु का गान गाया जाता है। उत्पन्ना एकादशी के अंत में क्षमा पूजा करना बहुत आवश्यक है क्योंकि मनुष्य कितने भी अनुष्ठानों का पूरा पालन करके पूजा को करे, फिर भी चंचल मन के कारण कही न कही गलती हो ही जाती है। पूजा के समय किसी अन्य वस्तु व कार्य के बारे में सोचने पर भी दोष लग जाता है। इसी कारण से अंत में क्षमा पूजा की जाती है। इस दिन सभी भक्त अपनी क्षमता के अनुसार दान देते हैं और ब्राह्मणों को भोजन के आमंत्रित करते हैं।
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