सनातन् संस्कृति के उत्कृष्ट पर्व में से एक होली का पर्व सर पर है। होली का त्यौहार हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग है कोरोना का किस्सा बीते साल होली के बाद से ही शुरू हुआ था। मार्च में इसे 1 साल हो जाएगा। इस दौर में अपने प्रिय जनों के निधन से आहत होली के रसानुरागीयों के मन के हाल पर अनवारे इस्लाम की फरमाई दो पंक्तियां याद आ गई।
किससे होली खेलिए, मलिए किसे गुलाल।
चेहरे थे कुछ चांद से, डूब गए इस साल।।
इस लेख में हम होली और उसके शुभ मुहूर्त (Holi Dahan Muhurat 2021)आदि की चर्चा करें करेंगे।
लेख सारणी
कहा जाता है सनातन संस्कृति जितनी पुरानी है उतने ही पुराने इसके पर्व भी हैं कोई निश्चित समय नहीं बताया जा सकता। श्री कृष्ण की जन्मभूमि मथुरा और अन्य ब्रज क्षेत्र होली का प्रमुख केंद्र रहे हैं। होली का त्यौहार राधा-कृष्ण के प्रेम से भी जुड़ा है, पौराणिक कथाओं के अनुसार बसंत के इस मोहक मौसम में एक दूसरे पर रंग डालना उनकी लीला का एक अंग माना गया है। इसका तात्पर्य तो यही है कि श्री कृष्ण के द्वापर युग से ही होली का पर्व मनाया जाता रहा है। आप भाषा में कहा जाये तो एक कहावत है “बुरा ना मानोहोली है ” इसका तात्पर्य ये है की जो भी द्वेषता हम दिल में रखते है वो होली के लिए खिताब कर देनी चाहिए। ये त्यौहार दो दिलो को जोड़ने वाला त्यौहार है
हिंदू धार्मिक पर्व भारतीय पंचांग तिथि के अनुसार ही मनाए जाते हैं होली दो दिन का पर्व है दहन और दुलहंडी कुमार रविंद्र ने अपनी 2 पंक्तियों में होली के त्यौहार को बड़ी सुंदरता से पिरोया है।
फाल्गुन पिचकारी भरै, मौसम खिला बसंत।
गोरी होली खेलती, मन उल्लास अनंत।।
बसंत रितु में फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन होलिका दहन किया जाता है। प्रकृति होली का स्वागत टेसू के फूलों (पलाश) को बिछाकर करती है, प्राचीन समय में पलाश के फूलों से ही अबीर, गुलाल आदि बनाए जाते थे। ज्यौं-२ फाल्गुन मास की पूर्णिमा का चांद बादलों में छुपता जाता है त्यौं-२ यह पलाश के फूल भी पूरे साल के लिए डालियों से बिछड़ जाते हैं। जैसा की हम सब जानते है की 2020 हम सबके लिए कितना दुखदाई रहा है , आशा करते है की होली 2021 सभी देशवाशियो का उल्लास और मरोरंजन भरा रहे।
यहां पलाश के फूलों की चर्चा का एक और कारण भी है। होलिका, प्रहलाद और हिरण्यकश्यपु की कथा तो हम सभी ने कई बार सुनी है, जंहा बुराई का नाश करके सचाई और अच्छी जी जीत हुई थी वैसे ही होली का त्यौहार हम सभी को यही सन्देश देता है की बुराई का अंत हमेशा होता है। परंतु पुराणों से निकली एक और कथा भी होलिका दहन से संबंधित है आइए जानते हैं इसी कथा के बारे में :-
हिमालय पुत्री पार्वती चाहती थी कि उनका विवाह भगवान् शिव के साथ हो परंतु शिवजी अपनी तपस्या में रत् थे तभी भगवान कामदेव माता पार्वती की सहायता हेतु आते हैं और भगवान शिव पर प्रेम बाण चलाते हैं जिससे भगवान भोलेनाथ की तपस्या भंग हो जाती है क्रोध में भगवान शिव अपना तीसरा नेत्र खोलकर कामदेव को भस्म कर देते हैं।
कहा जाता है कि कामदेव ने जिस पेड़ पर बैठकर भगवान शिव जी की तपस्या भंग करने के लिए प्रेम बाण चलाए थे वह पलाश का ही पेड़ था जब शिवजी के तीसरे नेत्र से क्रोधाग्नि निकली तो कामदेव के साथ-साथ पलाश के पेड़ भी जलने लगे और भगवान भोलेनाथ से प्रार्थना करने लगे भगवान शिव की कृपा से इन वृक्षों का कल्याण हुआ और इनके फूलों ने शिव जी के तीसरे नेत्र की तरह आकार ले लिया।
इसके बाद शिव जी ने माता पार्वती को अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया तभी से होली की अग्नि में वासनात्मक आकर्षण को प्रतीकात्मक रूप में जलाकर होली को सच्चे प्रेम के सफलता उत्सव के रूप में मनाया जाता है।
-होलिका दहन हमेशा सूर्यास्त के पश्चात रात्रि के आने से पूर्व का समय के दौरान प्रज्ज्वलित करनी चाहिए,जब पूर्णिमा तिथि प्रचलित हो।
-प्रदोष काल आमतौर पर सूर्य अस्त के बाद में रात्रि के आने से पहले का समय प्रदोष काल कहलाता है।
-माह की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को भाद्रपद पूर्णिमा कहते हैं और यही वह समय है जब सभी प्रकार के शुभ कार्यों को करने से बचना चाहिए। क्योंकि इसके साथ ही श्राद्ध यानी पितृपक्ष शुरू हो जाते हैं
-भद्रा के समय पर होलिका दहन अमंगलिक होता है और होलिका दहन शुभ मुहूर्त का विचार भद्र तीर्थ की सामान्यता के आधार पर किया जाता है।
होलिका दहन भद्र माह समाप्त होने के बाद ही करना चाहिए और किसी भी परिस्थिति में, भद्र मुख के समय में होलिका दहन नहीं करना चाहिए क्योंकि यह कुछ बुरे भाग्य और बदकिस्मत परिस्थितियों को जन्म दे सकता है। Holi Dahan Mahurat 2021 25 मार्च को शाम 4 बजे का शुभ मुहूर्त है
जैसा की हम सब जानते है की इन दिनों कुंभ का मेला भी एक त्यौहार से कम नहीं है क्या आप जानना चाहते है की कुम्भ का मेला क्यों मनाया जाता है ? जानिए कुम्भ मेला 2021 के बारे में