आमलकी एकादशी कब है – पुराणों में प्रत्येक एकादशी के दिन को बहुत पवित्र माना गया है। एकादशी का दिन भगवान श्री विष्णु के आर्शीवाद को प्राप्त करने के लिए अतिउत्तम है। आमलक्य एकादशी का दिन भी श्री विष्णु को समर्पित होता है, लेकिन इस दिन उनके पूजन के साथ आंवले के वृक्ष का पूजन भी किया जाता है। आमलक्य भी आमलकी एकादशी का एक अन्य नाम है। आंवले को आयुर्वेद की दृष्टि से बहुत अच्छा माना जाता है और इसे श्री हरि का पसंदीदा वृक्ष भी कहा गया है। इसलिए आमलकी एकादशी के दिन इस वृक्ष का महत्व बहुत बढ़ जाता है।
आमलकी एकादशी शब्द में उपस्थित आमलकी का अर्थ ही आंवला होता है। एकादशी के इस पर्व पर पूजा में आंवले का विशेष रूप से प्रयोग किया जाता है। इतना ही नहीं इसे भोजन में भी शामिल किया जाता है। मान्यताओं के अनुसार आंवले के पेड़ में भगवान विष्णु जी वास करते हैं। इस दिन आंवले की पूजा अलग से की जाती है और इसके रस को स्नान करने वाले जल में भी मिलाया जाता है, इसका दान किया जाता है और इसे प्रसाद के रूप में भी ग्रहण किया जाता है। कई स्थानों में तो इसे आंवला एकादशी के रूप में भी जाना जाता है।
हिंदू पंचांग के आधार पर आमलकी एकादशी की बात करें तो यह फाल्गुन माह में आने वाले शुक्ल पक्ष में पुष्य नक्षत्र की एकादशी को आती है। प्रत्येक वर्ष आने वाली यह एकादशी फरवरी या मार्च महीने में आती है। यह भी कहा जाता है कि फाल्गुन माह की कृष्ण शुक्ल पक्ष की एकादशी को उत्सव आता है।
आमलकी एकादशी के उत्सव में पूजा के साथ साथ व्रत को भी समान महत्ता दी जाती है। पुण्य को प्राप्त करने की कामना से यह आमलकी एकादशी को मनाया जाता है। मान्यताओं के अनुसार एकादशी के व्रत से सौ से ज्यादा तीर्थ दर्शन के समान पुण्य मिलता है। कई हवनों को करने के समान इस एक एकादशी के व्रत से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। पद्म पुराण में आमलकी एकादशी का वर्णन देखने को मिलता है। जिस कारण से भगवान विष्णु की अराधना कर उनके आर्शीवाद को बनाए रखने के लिए इस उत्सव को मनाया जाता है।
पौराणिक कथा के अनुसार चित्रसेन राजा पर राक्षसों द्वारा आक्रमण किया गया था। जिसमें वह मूर्छित हो कर बेसुद हो गए थे। जैसे ही वह होश में आए तब सभी राक्षसों के मृत शरीर उनके सामने पड़े हुए थे। उस समय राजा के मन में यह प्रश्न आया कि इन सभी राक्षसों का वध किसने किया है। तभी आकाशवाणी हुई जिसमें बताया गया कि यह सभी राक्षस तुम्हारे द्वारा आमलकी एकादशी के व्रत के प्रभाव से मर चुके हैं। उसके बाद से इस आमलकी एकादशी को मनाया जाने लगा।
साल 2021 में आमलकी एकादशी 25 मार्च को गुरुवार के दिन आने वाली है। जिसमें इसका पारणा मुहूर्त 2 घंटे 27 मिनट का होगा। एकादशी की तिथि के आधार पर इस दिन सभी पूजा पाठ करने चाहिए क्योंकि इस मुहूर्त के बीच के समय को ही आमलकी एकादशी माना गया है। एकादशी के आरंभ समय से लेकर समाप्त होने के बीच का समय उत्तम है। इसके बाद और पहले के समय की गणना सामान्य दिनों में आ जाती है।
आमलकी एकादशी का पारणा मुहूर्त 26 मार्च की सुबह 06ः18ः53 से 08ः46ः12 बजे तक रहेगा।
एकादशी की तिथि 24 मार्च की सुबह 10 बजकर 23 मिनट पर आरंभ होकर 25 मार्च गुरुवार की सुबह 09 बजकर 47 मिनट पर समाप्त हो जाएगी।
किसी भी एकादशी के आयोजन से पहले उसकी तिथि का ज्ञान होता अतिआवश्यक है अन्यथा तिथि के समापन के बाद किए गए पूजन से उतना फल नहीं मिल पाता जितना की उस एकादशी के समय में किए हुए पूजन से मिलता है।
आमलकी एकादशी भगवान श्री विष्णु की अराधना करके, उनके आर्शीवाद प्राप्ति हेतु मनाई जाती है इसलिए हिंदू धर्म में इसका बहुत महत्व है। भारत के कुछ क्षेत्रों में इस दिन भगवान श्री विष्णु के छठे अवतार परशुराम की स्वर्ण मूर्ति को स्थापित कर उसका पूजन किया जाता है। पूरे भारत में इसे बहुत आस्था से मनाकर पूजा-पाठ इत्यादि किया जाता है।
कहा जाता है कि इस दिन आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर श्री हरि की पूजा करनी चाहिए। आमलकी एकादशी का व्रत बहुत ही फलदायी होता है, जिसे पूरे विधि विधान से करने पर सौ गाय के दान के समान फल प्राप्त होता है। अपनी खराब सेहत या किसी अन्य कारण से यदि कोई इस व्रत को न रख पाए तो उसे विष्णु जी के मंदिर में जाकर पूजा करनी चाहिए और आंवला चढ़ाना चाहिए। पूजा के बाद प्रसाद के रूप में स्वयं भी इसे ग्रहण करना चाहिए। विष्णु भगवान द्वारा ब्रह्मा जी को जन्मा गया था ताकि वह सृष्टि की रचना कर सकें उस समय ही आवलें के पेड़ का भी जन्म हुआ था। इसलिए आमलकी एकादशी में आंवले पेड़ को इतना महत्व दिया जाता है।
अधिक पढ़ें