सांई बाबा – श्री गोविंदराव रघुनाथ दाभोलकर द्वारा रचित श्री सांई सच्चरित्र में सांई बाबा बारे में बहुत कुछ जानने को मिलता है। संतों में सांई नाथ को सबसे श्रेष्ठ माना गया है। कुछ लोग इनमें भगवान शिव के अंश के होने की बात कहते हैं। सांई सच्चरित्र मराठी भाषा में लिखा गया एक पवित्र ग्रंथ है जिसे बाद में कई भाषाओं में अनुवादित किया जा चुका है। वर्ष 1910 में इस ग्रंथ का लिखना शुरू किया गया था जोकि 1918 में उनके समाधिस्थ होने पर लिखना समाप्त करना पड़ा था। सबका मालिक एक कहने के पीछे यह लक्ष्य था कि सभी मनुष्य एकेश्र्वरवाद पर ही विश्वास करें। वह मानवजाति में सुख फैलना और सभी में भाई चारा पैदा करने के उद्देश्य से संतों का जीवन व्यतीत करते थे।
पीर सांई बाबा जी नाथ संप्रदाय का पालन करने में विश्वास रखते थे। नाथ संप्रदाय साधुओं को उनकी वेषभूषा के आधार पर श्रेणीबद्ध किया जाता है। इनके पास हमेशा पानी का कमंडल हाथ में होता है या पास होता है, कान बिंधवाना, धूनी रमाना जीवन का हिस्सा माना जाता है और यह भिक्षा के द्वारा ही अपना जीवन व्यतीत करने हैं। यह अन्य किसी भी वस्तु और काम पर निर्भर नहीं होते हैं। वही अन्य मान्यताओं के अनुसार वह ठंड से बचने के लिए धूनी जलाते थे। लेकिन सच यह है कि वह जाति बंधन से मुक्त हो कर अपना जीवन जीते थे। सरल स्वभाव के होने की वजह से आज भी उनका जीवन मानवजाति के लिए एक रहस्य से कम नहीं है।
पूरे भारत में पूजे जाने वाले सांई नाथ का जन्म महाराष्ट्र के पाथरी गांव में 28 सितंबर 1838 में हुआ था। महाराष्ट्र के इस गांव को पातरी के नाम से भी जाना जाता है। सांई बाबा ने 15 अक्टूबर 1918 में शिर्डी में अपनी समाधि ली थी। ज्यादातर सुनने में आता है कि अपनी किशोरावस्था में वर्ष 1854 में उनको शिर्डी में पहली बार देखा गया था। सांई बाबा साधारण व्यक्ति नहीं थे, कई लोग उनको कबीर का अवतार मानते हैं। समाज में जाति और धर्म के भेद को मिटा कर समानता लाने लिए इन्होंने पृथ्वी पर जन्म लिया था। बच्चों से बहुत स्नेह करने वाले सांई बाबा को भगवान का अवतार माना गया है। उनके माता पिता और जन्म की तिथि की पूरी तरह से पुष्टि आज भी नहीं हो पाई है।
सांई बाबा ने अपने जीवनकाल में कई चमत्कार करके लोगों की भलाई की है और बहुतों को भयंकर रोगों से मुक्त कराय है। अमीर लोग भी पूरी तरह मोह माया को त्याग कर उनके आश्रम में जाकर नीचे बैठकर भजन करते थे और सांई नाथ जी के प्रवचनों का आनंद लेते थे।
शिरडी के सांई नाथ के मंदिर पर पूरे विश्व भर से लोग उनके दर्शन के लिए आते हैं। सांई बाबा का यह प्रसिद्ध मंदिर महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में कोपरगांव तालुका के शिरडी में स्थित है। यह मंदिर मुंबई से लगभग 250 किलोमीटर की दूरी पर है और औरंगाबाद से लगभग 110 किलोमीटर की दूरी पर यह शिरडी सांई नाथ का मंदिर स्थित है। इस स्थान को सांई की धरती कहा जाता है। 1922 में सांई की समाधि पर इस मंदिर का निर्माण किया गया था। इस मंदिर में हिंदु धर्म के साथ-साथ मुस्लिम धर्म के अनुयायी भी इनके दर्शन हेतु आते हैं।
भक्तों के लिए प्रमुख स्थान मस्जिद और चावड़ी बाजार उनके जीवनकाल में ही बनाए गए थे। आज के समय में उनको पुर्निमित कर भक्तों ने और बेहतर कर दिया है। जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग अंदर जा कर दर्शन कर सकें। समाधि मंदिर वह मकबरा है जहां सांई बाबा जी की मृत्यू के पश्चात उनके शरीर को दफन किया गया था। इसी स्थान पर सांई नाथ की संगमरमर की मूर्ति को उनके जीवन के आकार के समान बना कर स्थापित किया गया है। जिसकी प्रतिदिन पूजा की जाती है लोग उनकी मूर्ति के दर्शन मात्र के लिए दूर दूर से आते हैं। आज के समय में की गई व्यवस्था के अनुसार उनकी मूर्ति के समक्ष सैकड़ो भक्त बैठ कर अराधना कर सकते हैं। वहीं परिसर में खंडोबा मंदिर भी है, जहां क्षेत्रीय देवता के रूप में संत फकीर को पूजा जाता है।
लाइव तरीकों के माध्यम से कई भक्त इस पवित्र मंदिर के साथ अपनी आस्था को जोड़े हुए हैं। कोरोना महामारी के समय भी लाइव दर्शन के माध्यम से लोगों ने बड़ी संख्या में प्रत्येक दिन सांई बाबा के दर्शन किए हुए हैं। मंदिर की वेबसाइट के प्रयोग से सभी सुबह 4 बजे से रात 11 बजकर 45 मिनट तक इस मंदिर से इंटरनेट की सहायता से जुड़ सकते हैं। जिसके लिए आपको पूजा व आरती के समय का ज्ञात होना जरूरी है। आइए हम आपको पूजा व आरती के समय के बारे में बताते हैं।
शिरडी के सांई बाबा के मंदिर में सुबह 4 बजे समाधि मंदिर खोल दिया जाता है और जिसके बाद से काकड़ आरती के लिए तैयारियाँ होना आरंभ हो जाती हैं। मंदिर खुलने के 30 मिनट बाद समाधि स्थान पर काकड़ आरती की जाती है। उसके बाद 5 बजे मंगल स्नान किया जाता है।
सुबह 5 बजकर 40 मिनट के बाद सभी भक्तों के लिए दर्शन हेतु पंक्तियां लगना शुरू हो जाता है। मंदिर के द्वारकामाई स्थान पर 11 बजकर 30 मिनट पर धुनी पूजा की जाती है। फिर से दोपहर 12 बजे स्माधि स्थल पर आरती की जाती है। उसके बाद फिर से दर्शनों के भक्तों की लाइन का चलना शुरू हो जाता है। शाम के 4 बजकर 30 मिनट का समय दूसरी बार धूप आरती का समय होता है। बुजुर्ग भक्तों के लिए पंक्ति में अधिक समय तक खड़े हो पाना संभव नहीं हो पाता। ऐसे में आप दर्शन जल्दी करने के लिए टिकटों को भी ऑनलाइन वेबसाइट के माध्यम से बुक कर सकते हैं।
रात 9 बजे गुरूस्थान और चावड़ी को बंद करने का समय होता है। इसके 45 मिनट बाद द्वारकामाई स्थान को दर्शनों के लिए बंद कर दिया जाता है। इसी समय 9ः45 पर समाधि मंदिर में सेज आरती के लिए पुजारी इकट्ठा हो जाते हैं और आरती करते हैं। रात के 11ः45 पर द्वारकामाई को भी बंद कर दिया जाता है और इस प्रकार वेबसाइट को पुन इसी प्रकार प्रत्येक दिन लाइव दर्शनों के लिए खोला जाता है। आज के समय वेबसाइट के साथ-साथ एपलिकेशन भी उपलब्ध है, जिसके द्वारा आप अपने फोन में लाइव दर्शन पा सकते हैं।
इसके अलावा त्यौहारें के समय भी आप दर्शन कर सकते हैं, मार्च व अप्रैल के समय रामनवमी का पर्व मंदिर में बहुत धूम धाम से मनाया जाता है। जुलाई में गुरू पूर्णिमा और ईद का इस मंदिर में बहुत बड़े स्तर पर आयोजन किया जाता है। सांई बाबा को हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों के लोग अपने भगवान के रूप में मानते हैं। सितंबर व अक्टूबर में आने वाली विजयादशमी, जिसे ज्यादातर लोग दशहरे के नाम से जानते हैं। इस दिन शिरडी के सांई बाबा के इस मंदिर में विशेष पूजा पाठ किया जाता है, जिसमें बहुत दूर-दूर से भक्त आकर हिस्सा लेते हैं। हिंदू धर्म वाले अनुयायियों के लिए यह दिन बहुत विशेष होता है।
भारत के प्रमुख व प्रसिद्ध मंदिरों में शिरडी सांई बाबा मंदिर को गिना जाता है। शिरडी सांई बाबा जी का मंदिर उनकी समाधि व मृत शरीर के ऊपर बनाया गया है। सांई बाबा को एक ऐसे आध्यात्मिक गुरू जी थे जिनको हिंदु और मुस्लिम दोनों समुदाय के लोग आदरपूर्वक अपने अपने रिति रिवाज़ों से इनकी अराधना करते हैं। मंदिरों में जाकर भक्त पूजा करवाते हैं और गुरुवार के दिन सांई बाबा को खुश करने के लिए व्रत रखते हैं। साई बाबा भक्तों को भूख में देखकर दुखी होते हैं इसलिए व्रत के समय फलाहार जरूर करना चाहिए। सांई बाबा जी को मीठे फल बहुत प्रिय हैं। मंदिर में विशेषकर गुरुवार के दिन मीठे फलों को चढ़ाया जाता है और प्रसाद के तौर पर ग्रहण भी किया जाता है।
इनको प्रेम से भक्तों द्वारा संत, फकीर और सतगुरू नामों से भी बुलाया जाता है। इस शिरडी मंदिर, चावड़ी बाजार और मस्जिद का पूरे विश्व में विशेष महत्ता है।
मंदिर को भारत के सबसे ज्यादा चढ़ावा चढ़ने वाले पहले तीन मंदिरों में गिना जाता है। जिससे कि मंदिर के प्रति भक्तों की आस्था और शिरडी मंदिर के महत्व का अनुमान साफ-साफ लगाया जा सकता है। शांत वातावरण वाले इस मंदिर में आरती के समय में किए गए प्रवेश को बहुत ही शुभ माना गया है। सांई नाथ को गुरू का रूप माना गया है क्योंकि यह लोगों के मार्गदर्शन का ही काम करते आए हैं, इसलिए गुरुवार का दिन इनकी पूजा के लिए उत्तम माना जाता है। गुरुवार के दिन लोग मंदिरों में जाकर रंग बिरंगे फूलों की माला का सांई बाबा अर्पित करते हैं। सांई नाथ पुष्पों की माला से बहुत प्रसन्न होते हैं, चाहे माला किसी भी फूल की क्यों न हो। कहा जाता है कि इस मंदिर आया हुआ गरीब या अमीर कभी भी खाली हाथ नहीं जाता है।
भगवान का ही अवतार माने जाने वाले सांई नाथ के मंदिर में मांगी गई हर मनोकामना पूर्ण हो जाती है।
सबका मालिक एक