परशुराम जयंती क्यों मनाई जाती है – हिन्दू पुरातत्वों के अनुसार भगवान परशुराम जी को विष्णु भगवान के छठे अवतार के रूप में माना जाता है। प्रत्येक वर्ष वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को भगवान परशुराम की जयंती के रूप में मनाई जाती है। इसीलिए परशुराम जयंती को “परशुराम द्वादशी” के नाम से भी हिन्दू पुरातत्वों में जाना जाता है। इसी कारण से ही इस दिवस को अक्षय “तृतीया तिथि” के नाम से भी जाना जाता है।
परशुराम जयंती क्यों मनाई जाती है – भगवान परशुराम जी का नाम दो शब्दों के योग से बना है , परशु और राम, परशु शब्द से तात्पर्य है कुल्हाड़ी और राम मतलब भगवान विष्णु जी के आवतार। भगवान परशुराम को अन्य नाम से भी जाना जाता है, रामभद्र, भार्गव, भृगुपति, भृगुवंशी, जमदग्न्य से भी जाना जाता है। अक्षय तृतीया तिथी को ही त्रेता युग की शुरुवात माना जाता है। हिन्दू धर्मानुसार इस दिवस का महत्व है इस दिन को “सबसे पवित्र”और “सुभ्मंगलकारी” माना जाता है। इस दिन कोई भी कार्य करने के लिए शुभ मुहूर्त नहीं देखा जाता है।
परशुराम जयंती क्यों मनाई जाती है – हिन्दू धर्मानुसार इस दिन प्रात;काल जल्दी उठकर सर्वप्रथम स्नान करे और उसके बाद बाद स्वच्छ कपड़े अवश्य पहनें। इसके बाद पूजा में सबसे पहले धूप दीपक जलाकर हाथ जोड़कर व्रत के लिए द्रढ़ निश्च्य लें और पूजा आरंभ करें। सबसे पहले आप भगवान विष्णु और परशुराम को चंदन का टीका लगाएं, फिर कुमकुम, तुलसी के पते, फूल और फल चढ़ाएं। फिर अगरबत्ती को जलाएं। भगवान को कुछ मीठे व्यंजन का भोग लगाएं। फिर आरतीशुरु करें और हाथको जोड़कर भगवान से आशीर्वाद जरूर लें।इस दिन दान-दक्षिणा और पुण्य जरूर करें और भूखों को खाना अवस्य खिलाएं। इससे पुण्य फल की प्राप्ति होगी इस बात का भी ध्यान रखें कि परशुराम जयंती के दिन पूजा करने के बाद पूरे दिन उपवास रखना होगा और आप इस दिन केवल दूध भी पी सकते हैं। और फलो का भीं आहार कर सकते है।
परशुराम जयंती क्यों मनाई जाती है – परशुराम जी भगवान विष्णुजी के छठे अवतारमने जाते है। एक बार जब भगवान परशुराम जी शिवजी से मिलने कैलाशपर्वत गए। तब शिव जी ध्यान साधना लीन मे थे, इसलिए श्री गणेश भगवान जी ने परशुराम जी को रोक दिया। इस बात पर भगवान् परशुराम जी इतने क्रोधित हो गए की उनके बीच भयंकर युद्ध शुरू हो गया। इस युद्ध के दौरान भगवान् परशुराम जी के परसे के वार से गणेश जी जी का एक दांत खंडित गया। और तभी से भगवान गणेश जी को एक दंत भी कहा जाने लगा। उसी टूटे दांत से श्री गणेश जी भगवान् ने महाभारत लिखी थी।
परशुराम जयंती क्यों मनाई जाती है – जब भगवान् श्री राम और परशुराम जी आमने सामने आए तो क्या हुआ भगवान राम जी माता सीता के स्वयंवर में गए हुए थे। वहां उनसे प्रत्यंचा चढ़ाते हुए भगवान शिव जी का धनुष खंडित हो गया। धनुष के टूटने की आवाज को सुनकर भगवान परशुराम जी वहां आ गए। क्योंकि वह धनुष भगवान शिव जी का था। इसलिए परशुराम जी को क्रोध आ गया और भगवान राम व लक्ष्मण से उलझ गए। लक्ष्मण जी से उनका संवाद विवादके रूप में बदल गया, लेकिन जब भगवान विष्णु जी के सारंग धनुष से भगवान राम ने बाण का संधान कर दिया तो भगवान परशुराम जी ने भगवान राम की सत्यता को जान लिया।
परशुराम जयंती क्यों मनाई जाती है – उस समय भगवान राम जी ने एक चीज परशुराम जी को देकर कहा कि इसे कृष्ण के अवतार तक संभाल कर रखना। भगवान राम जी ने परशुराम जी को अपना सुदर्शन चक्र दिया था। कृष्णवतार के समय जब भगवान श्री कृष्ण जी ने “गुरु संदीपनी” के यहां शिक्षाको ग्रहण की तब परशुराम जी ने स्वम प्रकट होकर श्री कृष्ण को सुदर्शन चक्र सौंप दिया था। यह भी कहा जाता है कि महाभारत युद्ध के प्रसिद्ध पात्रों भीष्म,गुरु द्रोणाचार्य ,और कर्ण को भगवान परशुराम जी ने शस्त्र विद्या का ज्ञान पाठ सिखाया था। भगवान् परशुराम जी अपने जीवन भर की कमाई ब्राह्मणों को दान कर रहे थे,
परशुराम जयंती क्यों मनाई जाती है – तब द्रोणाचार्य उनके समीप पहुंचे। तब तक वे सब कुछब्राह्मणों को दान कर चुके थे। तब भगवान परशुराम जी ने दया धारणा से द्रोणाचार्य से कोई भी अस्त्र व शस्त्र चुनने के लिए कहा ,तब चतुर द्रोणाचार्य ने कहा कि मैं आपके सभी अस्त्रव शस्त्र उनके मंत्रों के साथ चाहता हूं। ताकि जब भी उनकी आवश्यकता महसूस हो तब उसका उपयोग किया जा सके। भगवान परशुराम जी ने कहा ऐसा ही होगा और इसी कारण से ही गुरु द्रोणाचार्य शास्त्र विद्या में महाज्ञानी हो गए |
परशुराम जयंती क्यों मनाई जाती है – बालयवस्था में भगवान परशुराम जी को उनके पिता और माता ‘राम’ नाम से पुकारते थे। बाद में जब वह बड़े हुए तब उनके पिता जमदग्नि ने उन्हें हिमालय पर्वत पर ले जाकर भगवान शिव की उपासना करने को कहा, पिता की आज्ञा को मानकर राम जी ने ऐसा ही किया उनके तप के प्रभाव से प्रसन्न होकर शिव जी ने उनको दर्शन दिए। और असुरों के वि नाश का आग्रह किया। राम ने स्वम का पराक्रम दिखाया।और असुरों का विनाश हो गया, राम के इसी पराक्रम को देखकर भगवान शिव जी ने उनको ‘परशु’ नाम का एक शस्त्र दिया। इसीलिए वह राम से “परशुराम” के नाम से जाने जाते है।
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