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Mokshda Ekadashi 2023 | मोक्षदा एकादशी,व्रत कब है,होता है,ममहत्व,कथा,

Mokshda Ekadashi
December 12, 2022

मोक्षदा एकादशी2023 – Mokshda Ekadashi 

Mokshda Ekadashi – मनुष्य मरणोपरांत मोक्ष की प्राप्ती हेतु प्रार्थना  करने के लिए इस मोक्षदा एकादशी पर्व को मनाता है। मोक्षदा एकादशी और गीता जयंती भी एक ही दिन पड़ती है। ऐसा माना जाता है की इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने महाभारत में अर्जुन को भगवद गीता का प्रथम उपदेश दिया था। ऐसा भी माना जाता है कि इस दिन व्रत/उपवास रखने से और भगवान श्री कृष्ण की पूजा करने से मनुष्य को सभी पापों से मुक्ति मिलती जाती है और पूर्वजों को स्वर्ग तक पहुंचने में सहायता भी मिलती है।

मोक्षदा एकादशी व्रत कब है – Mokshda Ekadashi Kab Hai 

इस साल 2022 में मोक्षदा एकादशी तिथि 23 दिसंबर 2023शनिवार को है, जो अगले दिन24  दिसंबर तक रहेगी।24  दिसंबर की सुबह भोजन ग्रहण करके व्रत तोडा जायेगा।  

एकादशी के दिन किसी की मृत्यु होने पर क्या होता है – Ekadashi Ke Din Kisi Ki Mrityu Hone Par Kya Hota Hai 

Mokshda Ekadashi – अगर कोई भी व्यक्ति अपनी नाक की नोक को देखने में असमर्थ हो जाता है तब ऐसा माना जाता है की  जल्द ही उसकी व्यक्ति की मृत्यु होने वाली है, क्‍योंकि ऐसा मानते है उसकी आंखें धीरे-धीरे ऊपर की तरफ मुड़ने लगती हैं और मृत्‍यु के समय आंखें भी पूरी तरह ऊपर की तरफ मुड़ जाती हैं। 

मोक्षदा एकादशी का ममहत्व – Mokshda Ekadashi Ka Mahatva 

Mokshda Ekadashi – धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवान! मैंने मार्गशीर्ष कृष्ण एकादशी अर्थात उत्त्पन्न एकादशी का सविस्तार पूर्वक वर्णन सुना। अब आप कृपा मुझे मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के बारे में भी बताएं । इस एकादशी किस नाम से जानते  है तथा इसके व्रत को करने का क्या विधान है।  इसकी विधि-विधान  क्या है। इसका व्रत करने से किस प्रकार फल की प्राप्ति होती है। कृपया यह सब मुझसे विधानपूर्वक बताइए।श्रीकृष्ण बोले: मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष मे होने वाली इस एकादशी को मोक्षदा एकादशी भी कहा जाता है। यह व्रत मनुष्य को मरणोपरांत मोक्ष देने वाला है तथा चिंतामणि के समान सब कामनाएँ पूर्ण भी इस व्रत के करने से होती है। जिससे मनुष्य अपने पूर्वजो के दुखों को भी खत्म कर सकते हैं। 

मोक्षदा एकादशी की कथा – Mokshda Ekadashi Ki Katha 

Mokshda Ekadashi – गोकुल नामक एक नगर में वैखानस नाम का राजा अपना राज करता था। उसके राज्य में चारों वेदों के महान ज्ञाता ब्राह्मण भी रहते थे। वह राजा अपनी प्रजा का अपने पुत्र की तरह पालन करता था। एक बार रात्रि के समय में राजा ने एक स्वप्न देखा कि उसके पिता नरकलोक में हैं। वह बड़ा आश्र्यचकित  हुआप्रात: काल वह वेदो के महान ज्ञाता ब्राह्मणों के पास गया और अपने स्वप्न के बारे में बताया । Mokshda Ekadashi – और उनसे कहा- मैंने अपने पिता को नरक में कष्ट भोगते हुए सपने में देखा है। उन्होंने मुझसे कहा कि हे पुत्र मैं नरक में ही पड़ा हूँ। यहाँ से तुम मुझे मुक्ति दिलाओ। जबसे मैंने उनके ये वचन सुने हैं तबसे मैं बहुत बेचैन रहने लगा हूँ। चित्त में बड़ी अशांति सी हो रही है। मुझे इस राज्य, धन, पुत्र, स्त्री, हाथी, घोड़े आदि में किसी भी प्रकार का सुख प्रतीत नहीं होता है। क्या करूँ। राजा ने ब्राह्मण से कहा इस दु:ख के कारण मेरा सारा शरीर इस दुःख से जल रहा है। अब आप कृपा करके कोई उपाय ऐसा  बताइए जिससे मेरे पिता को नरकलोक से मुक्ति मिल जाए। उस पुत्र का जीवन ही व्यर्थ है जो अपने माता-पिता का उद्धार न कर पाएं । एक उत्तम पुत्र वही होता है जो अपने माता-पिता तथा पूर्वजों का उद्धार करता है,जैसे एक चंद्रमा सारे जगत में प्रकाश कर देता है, परंतु हजारों तारे नहीं कर सकते। ब्राह्मणों ने कहा- हे राजन! यहाँ पास ही भूत, भविष्य, वर्तमान के महानज्ञाता पर्वत ऋषि का आश्रम है। आपकी इस समस्या क समाधान वे जरूर करेंगे।ऐसा सुनकर राजा प्रसन्न होता हुआ मुनि के आश्रम पर पहुंच गया। उस आश्रम में अनेक शांत चित्त योगी और मुनि तपस्या में लीन थे। उसी जगह पर पर्वत ऋषि मुनि बैठे थे। राजा ने मुनि को साष्टांग दंडवत प्रणाम किया। मुनि ने राजा से सांगोपांग कुशलता पूछी। Mokshda Ekadashi – राजा ने कहा कि महाराज आपकी कृपा से मेरे राज्य में सब कुशल मंगल हैं, लेकिन अकस्मात मेरे चित्त में अत्यंत अशांति होने लग लगी है। ऐसा सुनकर पर्वत मुनि ने आँखें बंद की और राजा के भूत विचारने लगे। फिर बोले हे राजन! मैंने योग के बल से तुम्हारे पिता के द्वारा किये गए कुकर्मों को जान लिया है। उन्होंने पूर्व जन्म में कामातुर होकर एक पत्नी को रति दी किंतु सौत के कहने पर दूसरे पत्नी को ऋतुदान माँगने पर भी नहीं दिया था। उसी कुकर्म  के कारणही  तुम्हारे पिता को नर्क में जाना पड़ा है।

Mokshda Ekadashi – तब राजा ने कहा ‍इसका कोई उपाय मुझे बताइए। मुनि बोले: हे राजन! आप मार्गशीर्ष एकादशी का व्रत/उपवास करें और उस उपवास के पुण्य को अपने पिता को ही संकल्प कर दें। इसके प्रभाव से आपके पिता की अवश्य ही नर्कलोक से मुक्ति मिल जाएगी।Mokshda Ekadashi – मुनि के ये वचन सुनकर राजा महल में आया और मुनि के कहे अनुसार ही कुटुम्ब सहित मोक्षदा एकादशी का व्रत/उपवास किया। इसके उपवास का पुण्य राजा ने अपने पिता को अर्पण कर दिया। इसके प्रभाव से उसके पिता को नर्कलोक से मुक्ति मिल गई और स्वर्ग में जाते हुए वे पुत्र से कहने लगे- हे पुत्र तेरा कल्याण हो। यह कहकर वे स्वर्ग की ओर चले गए।

Mokshda Ekadashi – मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष में आने वाली मोक्षदा एकादशी का जो व्रत।उपवास करते हैं, उनके समस्त पाप यही नष्ट हो जाते हैं। इस व्रत।उपवास से बढ़कर मोक्ष देने वाला अनन्य और कोई भी व्रत।उपवास  नहीं है। इस दिन गीता जयंती भी मनाई जाती हैं साथ ही यह धनुर्मास की एकादशी भी कहलाती हैं, अतः इस एकादशी का महत्व कई गुना और बढ़ जाता हैं। इस दिन से गीता-पाठ का अनुष्ठान प्रारंभ करें तथा प्रतिदिन कुछ समय के लिए गीता-पाठ अवश्य चाहिए।

 

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