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मंदिर – Astrology https://astroupdate.com Online Astrologer Thu, 27 Apr 2023 06:53:18 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.4.4 https://astroupdate.com/wp-content/uploads/cropped-FEV_ICON-removebg-preview-1-32x32.png मंदिर – Astrology https://astroupdate.com 32 32 Sheetla Mata Mela Chaksu | शीतला माता मेला चाकसू https://astroupdate.com/sheetla-mata-mela/ https://astroupdate.com/sheetla-mata-mela/#respond Fri, 31 Mar 2023 09:21:04 +0000 https://astroupdate.com/?p=5050 जानिए शीतला माता मेला चाकसू के बारे में – Sheetla Mata Mela Chaksu 

आइये दोस्तों आज हम बात करेंगे राजस्थान के जयपुर जिले के चाकसू में स्तिथ शीतला माता  एवं शीतला माता मेला के बारे में और जानेंगे इस मंदिर के इतिहास के बारे में और इस माता की मान्यता के बारे में। 

शीतला माता मेला – शीतला माता का लक्खी मेला 2 दिन तक लगता है यहाँ पर दूर-दूर से भक्त दर्शन करने के लिए और माता को भोग लगाने के लिए यहाँ पर आते है। यह मेला होली के पर्व के सात दिन बाद चैत्र की सप्तमी को शुरू होता है और अगले दिन अष्टमी तक चलता है। सप्तमी के दिन यहाँ हर घर में रंदा पुआ बनाया जाता है जिसे राजस्थानी भाषा में बास्योड़ा भी कहते है। फिर अष्टमी के दिन माता के ठन्डे पकवानो का भोग लगाया जाता है। माता के इस लख्खी मेले में हजारो की संख्या में लोग दर्शन के लिए आते है। 

शीतला माता मेला –  माता के ठन्डे पकवानो का भोग लगाने के बाद उसे प्रसाद के रूप में स्वयं सेवन करते है। ऐसा माना जाता है की डंडे भोजन को खाने से माता प्रसन्न होती है और अपने भक्तो को आशीर्वाद देती है। 

शीतला माता की खंडित मूर्ति की पूजा की जाती है। हिन्दू धर्म में जितने भी देवी देवता है उनमे से केवल यही एकमात्र देवी है जिसकी खंडित मूर्ति की पूजा की जाती है। 

मंदिर का निर्माण किसने करवाया था ? | Shitla mata ke mandir ka nirman kisne karwaya tha ?

शीतला माता मेला – इस मंदिर में लगे हुए पुराने शिलालेखों के अनुसार राजस्थान के जयपुर जिले के चाकसू कस्बे में स्तिथ शील डूंगरी पर बना माता का मंदिर बहुत पुराना है। ऐसा बताया जाता है कि इस शीतला माता के मंदिर का निर्माण जयपुर जिले के महाराजा माधो सिंह ने ही करवाया था। इस मंदिर में मौजूद शिलालेखों के अनुसार मंदिर लगभग 500 वर्ष पुराना माना जाता है। इन शिलालेख में अंकित प्रमाणों के अनुसार तत्कालीन जयपुर के महाराजा माधोसिंह के पुत्र गंगासिंह एवं गोपाल सिंह को चेचक नामक रोग हो गया था। फिर इस मंदिर में माता ही पूजा-अर्चना की गई थी और माता को भोग लगाया गया तब वे चेचक रोग से मुक्त हुए थे। 

शीतला माता मेला – माता के इस चमत्कार के बाद राजा माधोसिंह ने चाकसू की पड़ाड़ी पर माता के मंदिर एवं बरामदे का निर्माण कराया भी था। इस मंदिर में माता शीतला की मूर्ति स्थापित है। यहां की खास बात ये भी है कि इस मेले के समय पर यहाँ पर कई समाज के लोगों की यहां पर पंचायतें भी लगती हैं। और यहां पर आपसी मतभेद को भुलाया जाता है और सब मिलजुल कर रहते है और कोई अनन्य विवाद भी अगर होता तो उसे भी सुलझाए जाता हैं।

पहला भोग राजपरिवार ही लगाता है – Pahala Bhog Raaj Parivaar Hee Lagaata Hai

शीतला माता मेला – शीतला माता के मंदिर का निर्माण राजपरिवार की ओर से करवाया था। इसीलिए इस मंदिर के निर्माण के बाद उनका यहां गहरा लगाव रहता है। तो इसी मान्यता से अभी भी शीतलाष्टमी पर माता को सर्वप्रथम जयपुर राजघराने की ओर से ही भोग लगाया जाता है। इसके बाद यहाँ पर आए हुए श्रद्धालु अपने घरों से लाए गए बासी (ठन्डे) पकवानों का भोग लगाते है। फिर माता के दरबार में जल का छिड़काव भी किया जाता है।

हिन्दू धर्म में इस माता का बहुत महत्व बताया गया है , सम्पूर्ण भारत में इस दिन शांति का माहौल रहता है अवं भाईचारे के साथ इस पर्व को मनाया जाता है , इस दिन छोटे बचो को माता का आशार्वाद जरूर प्रदान करवाना चाहिए क्यों की माता के आशीर्वाद से बचे सदैव स्वस्थ रहते है 

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जानिये रावण का मंदिर कहां पर है | Ravan Ka Mandir Kaha Par Hai https://astroupdate.com/ravan-ka-mandir-kaha-par-hai/ https://astroupdate.com/ravan-ka-mandir-kaha-par-hai/#respond Fri, 10 Mar 2023 04:57:40 +0000 https://astroupdate.com/?p=4855 रावण का मंदिर कहां पर है – Ravan Ka Mandir Kaha Par Hai

 

आइये हम आपको बताते है रावण का मंदिर कहां पर है। आप लोगो ने आजतक तो कई देवी देवताओं की पूजा की होगी। लेकिन अपने कभी भी भारत के ऐसे मंदिरों के बारे में सूना है क्या जहाँ पर रावण की भी पूजा की जाती है। जहां पर दशहरा के दिन वहां के स्थानीय निवासी रावण कि पूजा करते है। 

रावण का मंदिर कहां पर है – हम सभ यह तो जानते ही है कि रामायण का खलनायक रावण है। जिसे अन्याय तथा  अधर्म का भी प्रतीक माना जाता है। वह लंका में तो पूजा ही जाता है। क्योंकि वह लंका का ही राजा हुआ करता था। श्रीलंका का कोनस्वरम मंदिर है। जो दुनिया के सबसे प्रसिद्ध रावण मंदिरों में से एकमात्र ऐसा मंदिर है। लेकिन आप सबको यह जानकर हैरानी होगी कि भारत में भी कई ऐसे मंदिर हैं, जहां पर रावण की भी पूजा की जाती है। और कई स्थानों पर तो रावण भगवान शिव जी के मंदिर में भी विराजमान हैं। चलिए अब हम आपको इस लेख में बताते है कि रावण का मंदिर कहाँ पर है। 

रावण का मंदिर कहां पर है – हिमाचल प्रदेश के एक कांगड़ा जिले में स्थित है। बैजनाथ जी का मंदिर है, वो कोई रावण मंदिर नहीं है, लेकिन वहाँ पर एक भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग स्तिथ है। इस स्थान पर रावण से जुड़ी कुछ पौराणिक कथाएं जरूर शामिल हैं। कुछ लोगो का मानना है कि रावण ने इस स्थान पर बहुत अधिक समय तक शिव जी की पूजा की थी। इसलिए ऐतिहासिक घटना को चिह्नित करने के लिए उस स्थान पर एक मंदिर बना दिया था। जबकि ऐसा भी कहा है कि एक बार रावण अपने हाथों में शिवलिंग के साथ ही बैजनाथ से लंका जा रहे थे। इसलिए लोग ऐसा सोचते है लेकिन ऐसा कुछ नहीं है। अब हम आपको बताते है कि रावण का मंदिर कहाँ पर है। 

 

रावण का मंदिर कानपुर, उत्तरप्रदेश में 

 

रावण का मंदिर कहां पर है – कानपूर में एक ऐसी जगह है, जहां पर दशहरा के दिन रावण की पूजा की जाती है।लेकिन यहां पर रावण का मंदिर भी मौजूद है। लेकिन यह मंदिर साल में सिर्फ दो दिन के लिए दशहरा पर ही खोला जाता है। इस दिन पूरी विधि विधान के साथ रावण कि पूजा कि जती है। लेकिन बहुत कम लोगों ये बात पता है, कि जिस दिन भगवन श्री राम जी के हाथों से रावण को मोक्ष प्राप्त हुआ था। उसी दिन रावण का जन्म हुआ था। 

 

रावण का मंदिर

 

बिसरख, उत्तर प्रदेश में रावण मंदिर 

 

रावण का मंदिर कहां पर है – ऐसा भी कहा जाता है कि बिसरख गाँव में रावण का जन्मस्थान है। जो कि नोएडा, उत्तर प्रदेश के पास ही स्थित है। इसी स्थान पर ऋषि और उनके पुत्र रावण ने हजारों साल पहले एक शिवलिंग की पूजा की थी। लगभग एक सदी पहले कि थी। जब इस स्थान की खुदाई कि गई थी तब वहां पर एक शिवलिंग भी पाया गया था। और यह वह ही शिवलिंग है जिसकी पूजा रावण और उनके पिता जी करते थे। यहां के शिव मंदिर में रावण की मूर्ति भी स्थापित है। जिसकी पूजा बड़े विधि विधान के साथ की जाती है। इस गांव में कभी भी रावण के पुतले जलाया नहीं जाता है।

 

मंडोर, राजस्थान में रावण मंदिर 

 

रावण का मंदिर कहां पर है – मंडोर के निवासी मुख्य रूप से तो मौदगिल और ब्राह्मण हैं। जो रावण को अपना दामाद मानते थे। और इसलिए लोगों का यह मानना है कि मंडोर ही एक वो जगह है। जहां पर रावण और पत्नी मंदोदरी का विवाह हुआ था। जिस स्थान पर उनकी शादी हुई थी वह जगह अभी भी इस शहर में मौजूद है। लेकिन अब यह लगभग खंडहर में तब्दील हो चुकी है। यहां रावण का एक मंदिर भी है, जिसे विशेष रूप से वैवाहिक कार्यक्रम के दौरान बनवाया गया था।

 

मंदसौर, एमपी में रावण मंदिर 

 

रावण का मंदिर कहां पर है – इंदौर शहर से राजस्थान-एमपी सीमा लगभग 200 किमी दूर है। मंदसौर शहर को ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों का स्वर्ग भी माना जाता है। यह एक ऐसा स्थान है जहां पर 10 सिर वाली 35 फीट ऊंची एक रावण की मूर्ति स्तिथ है। और यहां पर इसकी पूजा भी की जाती है। इसका मंदिर तो वैसे खानपुर इलाके में स्थित है। और रावण के बहुत से  प्रशंसक इस स्थल पर आते जाते रहते हैं। इसी के पास शाजापुर जिले में भड़केड़ी गांव में भी स्थित है। वहाँ पर तो रावण के अजेय पुत्र मेघनाद को समर्पित किया जाता है। और यहां पर मेघनाद का एक मंदिर भी स्तिथ है। 

 

विदिशा, मध्य प्रदेश में रावण मंदिर 

 

रावण का मंदिर कहां पर है – मध्य प्रदेश में विदिशा नाम का एक शहर है, जहां लोग दावा करते हैं कि रानी मंदोदरी इस जगह की मूल निवासी थी। यह भोपाल से लगभग 6 किमी की दूरी पर स्थित है, और यहां दशहरा उत्सव रावण की 10 फीट लंबी लेटी हुई छवि की पूजा करके मनाया जाता है। कन्याकुब्ज ब्राह्मण समुदाय के स्थानीय लोग शादी जैसे अवसरों पर रावण का आशीर्वाद लेने के लिए इस मंदिर में आते हैं।

 

काकीनाडा, आंध्र प्रदेश में रावण मंदिर 

 

रावण का मंदिर कहां पर है – काकीनाडा बेहद सुंदर जगह है, जहां इसी नाम का बीच रोड पर एक मंदिर परिसर है, जिसमें एक बड़े शिवलिंग के साथ रावण की 30 फीट की मूर्ति स्थापित है। ऐसा कहा जाता है कि यह इस शिवलिंग की स्थापना किसी और ने नहीं बल्कि स्वयं रावण द्वारा की गई थी।

 

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जयपुर के घाट के बालाजी का भव्य मंदिर आरती का समय |Ghat K Balaji Temple https://astroupdate.com/ghat-k-balaji-temple/ https://astroupdate.com/ghat-k-balaji-temple/#respond Tue, 07 Feb 2023 10:50:47 +0000 https://astroupdate.com/?p=4235 जयपुर के निकट घाट के बालाजी का भव्य मंदिर – Ghat K Balaji Temple

 

राजस्थान की राजधानी जयपुर शहर की गलता घाटी में स्थित घाट के बालाजी का मंदिर प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण है।  चारों ओर से पहाड़ियों से घिरा यह मंदिर देखने में मन को आकर्षित और मनमोहक लगता है। 

 घाट वाले बालाजी मंदिर में जो भी व्यक्ति सच्चे मन से अपनी मनोकामना लेकर आता है। उसके मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है। इसी मान्यता के कारण यहां पर हर दिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु घाट के बालाजी का आशीर्वाद लेने आते हैं। 

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घाट के बालाजी

 

 

घाट के बालाजी मंदिर में दूर-दूर से लोग अपनी मनोकामनाएं लेकर यहां आते हैं और जब उनकी मनोकामना पूर्ण हो जाती है  तो वे यहां पर सवामणी का आयोजन भी करते हैं।  जिसमें चूरमे का भोग श्री बालाजी महाराज को लगाया जाता है जो कि यहां प्रमुख रूप से प्रसिद्ध है। 

घाट वाले बालाजी का मंदिर राजस्थान की राजधानी जयपुर से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। घाट वाले बालाजी का मंदिर गलता धाम से कुछ दूरी पर स्थित है।  घाट के बालाजी मंदिर के पास ही सिसोदिया रानी बाग स्थित है। 

जयपुर के  महाराजा जयसिंह का मुंडन संस्कार इसे बालाजी मंदिर में हुआ था। घाट के बालाजी मंदिर को जयपुर के राजाओं के कुल देवता के रूप में जाना जाता है।  

 

घाट के बालाजी मंदिर का इतिहास

 

घाट वाले बालाजी मंदिर को लेकर इतिहासकारों का मानना है कि इस मंदिर में 1965 में पौष बड़ा आयोजन की शुरुआत हुई थी,जो आगे चलकर लक्खी पौष बड़ा महोत्सव के नाम से जाने जाने लगा और धीरे-धीरे यह परंपरा पूरे जयपुर शहर में फैल गई।  आज जयपुर शहर के हर मंदिर में  पौष बड़ा  प्रसादी का आयोजन होता रहता है।  इसी के साथ अन्नकूट महोत्सव के साथ चौदस को मंदिर में विशेष रुप में प्रसादी का आयोजन होता है। 

माना जाता है कि इस दिन हनुमान जी महाराजा का जन्मदिन मनाया जाता है।  भाद्रपद में 6 कोसी और 12 कोसी परिक्रमा होती है। जयपुर शहर में निकलने वाली प्राचीन मंदिरों की परिक्रमा का  विश्राम स्थल घाट के बालाजी का मंदिर की है। 

 

घाट के बालाजी मंदिर की वास्तुकला

 

घाट के बालाजी मंदिर का निर्माण दक्षिणशैली से हुआ है। घाट के बालाजी मंदिर के गर्भ गृह के दाहिने हाथ पर कुछ ऊंचाई पर शिवजी का और पंच गणेश जी  का मंदिर बना हुआ है। यह मंदिर दर्शन शैली से बना हुआ है। इस ही स्थान पर पहले लक्ष्मीनारायण जी का मंदिर भी हुआ करता था।  जिसे बाद में जामडोली ने विराजित कर दिया गया। 

इसके बाद यहां पर शिवजी के मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा करवाई गई और मंदिर के बाहर पंच गणेश जी को विराजित किया गया। गणेश जी की मूर्तियां 40 वर्ष पहले मंदिर की सफाई अभियान के दौरान जमीन से निकाली गई। 

गणेश जी की मूर्तियां जिसके पास महिषासुर मर्दिनी और उसके पास शिव मंदिर चुने से ढका हुआ था। चुने को पूर्ण रूप से हटाने में 1 वर्ष का समय लगा और जब  पूर्ण रूप से चुने को हटाया तब मंदिर की आकृतियां और मूर्तियां दिखाई देने लगी।  जिन्हें बाद में  मंदिर में स्थापित कर दिया गया। 

 

घाट के बालाजी मंदिर में आरती का समय

 

जयपुर की घाट के बालाजी का मंदिर प्राचीन मंदिर मे माना जाता है।  घाट के बालाजी को  जयपुर का कुल देवता भी माना जाता है।  प्राचीन समय में मंदिर के आसपास कई सारे तालाब और पानी के  कुंड बने हुए थे। जिसके कारण इस  स्थान का नाम घाट वाले बालाजी पड़ गया।  

घाट वाले बालाजी मंदिर में प्रात 5:00 बजे बालाजी को स्नान कराया जाता है और उसके बाद बालाजी का श्रृंगार किया जाता है। घाट वाले बालाजी मंदिर में बालाजी की पहली आरती 7:00  होती है। और शयन आरती रात्रि 10:00 बजे होती है और बालाजी को भोग लगाकर मंदिर के पट बंद कर दी जाता है।  

 

घाट के बालाजी

 

 

 ऐसा माना जाता है कि दोपहर में 12:00 बजे से 3:00 बजे तक घाट वाले बालाजी के दर्शन करने से श्रद्धालुओं की मन्नत जल्दी पूर्ण होती है। 

 घाट वाले बालाजी मंदिर में हर मंगलवार और शनिवार को बालाजी का चोला बदला जाता है 

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आइये जानते है खाटू श्याम मंदिर कब खुलेगा | Khatu Shyam Mandir Kab Khulega  https://astroupdate.com/khatu-shyam-mandir-kab-khuleg/ https://astroupdate.com/khatu-shyam-mandir-kab-khuleg/#respond Fri, 03 Feb 2023 02:30:21 +0000 https://astroupdate.com/?p=3751 खाटू श्याम मंदिर कब खुलेगा – Khatu Shyam Mandir Kab Khulega 

Khatu Shyam Mandir Kab Khulega 

आइये आज हम जानेंगे की बाबा शयाम के मंदिर में कपाट कब खुलेंगे ,और ये 13 नवम्बर 2022 से बंद क्यों है। मंदिर प्रशासन और जिला प्रशासन मिलकर मंदिर में क्या परिवर्तन कर रहे है। आज हम चर्चा करेंगे इस सभी बातो पर। 

भक्तो आपको यह जानके बहुत ही ख़ुशी होगी की खाटू श्याम जी का मंदिर दिनांक 04 फरवरी 2023 को खुलने वाला है। आप सभी भक्तगण बाबा के दर्शन कर सकेंगे। और बाबा का आशीर्वाद प्राप्त कर सकेंगे। 

Khatu Shyam Mandir Kab Khulega – राजस्थान राज्य के जयपुर जिले के समीप सीकर जिले में सुप्रसिध्द खाटू श्याम मंदिर है। जिसके कपाट पिछले दो माह से बंद है। परन्तु अब ये बहुत ही जल्दी खुलने वाले है। और ये श्याम भक्तो के लिए बहुत ही बड़ी खुशखबरी है। अब फिर से पहले की तरह खाटू श्याम मंदिर में लाखो की संख्या में भक्तजन पहुंचेंगे और बाबा के दर्शन करेंगे। बाबा श्याम के दर्शन के लिए मंदिर में जगह की कमी होने की वजह से मंदिर में विस्तार कार्य चल रहा है। जो अब लगभग पूरा होने वाला है। सीकर जिले के जिला अधिकारी श्री अमित यादव ने मंदिर के विस्तार को लेकर लगभग सभी प्रकार की तैयारियां पूरी कर ली गयी है। श्री अमित यादव ने मंदिर प्रशासन और वह की आम जनता के साथ बैठक ली और मंदिर के विस्तार का कार्य फाल्गुन माह से पूर्व पूरा करने के आदेश भी दिए है। लेकिन अब जल्द ही प्रशासन की मोहर लगने के बाद खाटू श्याम मंदिर के कपाट खोले जायेंगे।  

Khatu Shyam Mandir Kab Khulega 

Khatu Shyam Mandir Kab Khulega – खाटू श्याम मंदिर के विस्तार कार्य के बाद श्याम बाबा के दरबार में हर दिन एक लाख भक्तजनो  को आनंदमय दर्शन करने की व्यवस्था कर दी गयी है। और अब मंदिर में भक्तो की सुविधा के लिए 16 कतार बनाई गई है। और सभी भक्तजन इन कतार में लग कर आराम से बाबा खाटू श्याम के दर्शन कर सकेंगे। सीकर जिले के कलेक्टर ने कहा की हमारा लक्ष्य तो मंदिर में हर दिन 10 लाख से भी ज्यादा भक्तो के दर्शन कि व्यवस्था करना है।  साथ ही आराम से दर्शन करने की व्यवस्था भी की गयी है। विस्तार कार्य पूरा होने के बाद खाटू श्याम बाबा के मंदिर में भक्तो को दर्शन के लिए पहले से भी अधिक समय मिलेगा। भक्त बाबा के सामने आराम से अपना सर झुकाकर अपनी मनोकामना मांग सकते है। जबकि इससे पहले भक्तो को सिर्फ बाबा की एक जलक ही देकने को मिलती थी। अब बिना धक्के के आराम से बाबा श्याम के दर्शन कर सकेंगे। 

और अब दोबारा से खाटू श्याम जी के मंदिर को खोलने के लिए कमेटी ने राजस्थान मुख़्यमंत्री श्री अशोक गहलोत जी को पत्र भी लिखा  है।  मंदिर ट्रस्ट के मंत्री श्याम सिंह जी ने सीएम को पत्र लिखकर आग्रह किया की भक्तो के लिए इस मंदिर को जल्द जल्द खोलने के आदेश हमे दें। ये मंदिर कमिटी और प्रशासन कि इच्छा है कि परिसर में हुए इस बदलाव के बाद खोल रहे है। मंदिर के नवचारो का शुभारम्भ मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत जी करे।  फिलाल अभी यह तय नहीं हुआ है कि यह मंदिर कब खुलेगा और श्याम भक्त आनंदमय दर्शन कर पाएंगे।    

दो महीने में इन चीजों का विस्तार किया गया खाटू श्याम मंदिर में

Khatu Shyam Mandir Kab Khulega 

Khatu Shyam Mandir Kab Khulega – खाटू श्याम जी मंदिर के कपाट को बंद हुए दो महा बीत चुके है। इन दो महा में मंदिर में अनेको बदलाव किये गए है। जैसे की हम बताते है इसमें अब श्रदालुओ के दर्शन के लिए उस मैदान को लगभग 75 फ़ीट बड़ा दिया गया है।

Khatu Shyam Mandir Kab Khulega – अर्थात पुरे हिस्से में कतार भी बनाई गई है। लखदातार मैदान में प्रवेश द्वार से लेकर परिसर और निकास द्वार तक पुरे स्थान को सी.सी.टी.वि कमेरो के द्वारा लेस कर दिया गया है। अर्थात उन लाइनो को टेड़ा मेड़ा भी किया गया है। मंदिर से दर्शन  करके लौटते समय धक्का मुक्की और भीड़ को देखते हुए दरबार में दरवाजे को बड़ा किया गया है। और साथ ही विश्रामकक्ष, शौचालय और आवास को भी दुरुस्त कर दिया गया है।  वही इससे पहले 15 जनवरी को मंदिर के कपाट खोलने की आज्ञा दी गयी थी। परन्तु कुछ कार्य अपूर्ण होने के कारण मंदिर खोलने का फैसला टाल दिया गया था।  

Khatu Shyam Mandir Kab Khulega – अर्थात वही लामिया तिराहे पर बने हुए लखदातार मैदान पर टीनसेट लगाकर मुख़्य स्थानों पर शौचालय बनवाने के भी फैसले लिए और फेसलो पर मोहर भी लगयी गयी।  अब कलेक्टर ने इ-रिक्शा को पंजीकरण कराने का निर्देश भी दिया और वही पार्किंग ठेकेदार को 52 बीघा में स्तिथ सरकारी पार्किंग को समतल करवाया गया है। जिससे की वहाँ पर लगने जाम से भक्तो को छुटकारा मिलेगा और वो आराम से श्याम बाबा के द्वार तक पहुंच सकेंगे।  

खाटू श्याम मंदिर के लाइव दर्शन 

शीतकाल का समय:
मंगला आरती -प्रात: 5.30 बजे
श्रृंगार आरती – प्रात: 8.00 बजे
भोग आरती – दोहपर 12.30 बजे
संध्या आरती – सांय 6.30 बजे
शयन आरती – रात्रि 9.00 बजे

ग्रीष्मकाल का समय:
मंगला आरती – प्रात: 5:30 बजे
श्रृंगार आरती – प्रात: 7.00 बजे
भोग आरती – दोपहर 12.30 बजे
संध्या आरती – सांय 7.30 बजे
शयन आरती – रात्रि 10.00 बजे

Khatu Shyam Mandir Kab Khulega – यदि आप भी खाटू श्याम बाबा के दर्शन करना चाहते है। तो आप मंदिर से जुड़े सोशल मीडिया के माध्यम से आप बाबा श्याम के दर्शन कर सकते है। यहाँ पर आप सभी को खाटू श्याम मंदिर के लाइव दर्शन भी कराये जाते है।  

अगर आप यहाँ पर जाकर मंदिर के लाइव दर्शन करना चाहते है तो हम आपको ये बता दे कि यह मंदिर प्रातः 4:30 बजे खुलता है। और फिर दोपहर 12:30 बजे कपाट बंद हो जाते है।  इसके बाद कपाट शाम 4:00 बजे खुलते है और फिर रात्रि के 10:00 बजे बंद हो जाते है।   

Khatu Shyam Mandir Kab Khulega – यहाँ श्याम बाबा के दर्शन करने हर वर्ष करोड़ो भक्तजन पधारते है। बाबा श्याम की आस्था ऐसी है की कई लोग तो मिलो दूर से पैदल चलकर यहाँ दर्शन करने के लिए आते है। अर्थात बाबा श्याम के भक्तो की आस्था तो दिन प्रति दिन बढ़ती ही जा रही है। और किसी समय में यहाँ पर सिर्फ फाल्गुन माह कि शुक्ल पक्ष की एकादशमी को ही सैकड़ो भक्त आकर भजन कीर्तन भी करते है। 

Khatu Shyam Mandir Kab Khulega 

 

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खोले के हनुमान जी मंदिर,इतिहास,दर्शन का समय | Khole Ke Hanuman Ji Temple https://astroupdate.com/khole-ke-hanuman-ji/ https://astroupdate.com/khole-ke-hanuman-ji/#respond Wed, 01 Feb 2023 12:43:57 +0000 https://astroupdate.com/?p=4115 खोले के हनुमान जी मंदिर

छोटी काशी के नाम से प्रसिद्ध गुलाबी नगरी जयपुर मे बहुत मंदिर है। लेकिन इस सब मंदिरों में अपनी अलग पहचान रखने वाला एक विशेष हनुमान मंदिर भी है। जिसे खोले के हनुमान जी के नाम से भी जाना जाता है। खोले के हनुमान जी मंदिर जयपुर में रामगढ़ मोड़ के पास राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 8 से लगभग 2 किलोमीटर अंदर है। खोले के हनुमान जी मंदिर का भव्य द्वार राष्ट्रीय राजमार्ग 8 पर स्थित है।

यह एक प्राचीन हिंदू मंदिर है। जो प्राचीन दुर्ग शैली से बना हुआ है। यह मंदिर 3 मंजिला इमारत जितना है। इस मंदिर की एक विशेषता यह भी है कि यहां हनुमान जी की लेटी हुई मूर्ति है।खोले के हनुमान जी के मंदिर में हनुमान जी के अलावा गणेश जी, ठाकुर जी, श्री राम दरबार मंदिर भी देखने को मिलते हैं। इसी के साथ मंदिर की दीवारों पर देवी-देवताओं की मूर्तियां और चित्रकारी देखने को मिलती है।

 

खोले के हनुमान जी

 

इतिहासकारों का मानना है कि 60 के दशक मे शहर की पूर्वी पहाड़ियों और जंगल के बीचो-बीच यह मंदिर स्थित होने के कारण कोई भी इस मंदिर तक नहीं पहुंच पाता था और तभी एक ब्राह्मण ने मंदिर तक जाने का विचार किया और मंदिर तक पहुंचा गया। खोले के हनुमान जी मंदिर के अंदर जब ब्राह्मण गया तो उसने देखा कि वहां भगवान श्री हनुमान जी की लेटी हुई अवस्था में एक बहुत विशाल मूर्ति है।

हनुमान जी की मूर्ति को देखकर ब्राह्मण ने के मन में हनुमान जी के प्रति आस्था का उद्गम हुआ और उसने यही रहकर हनुमान जी की पूजा भक्ति और सेवा करने का निर्णय कर लिया और अपने अंतिम सांस तक वह वही हनुमान जी साथ रहकर उसने हनुमान जी की सेवा करी और यही विलीन हो गए। उस ब्राह्मण देवता का नाम था, पंडित राधेलाल चौबे जी जो कि हनुमान जी के परम भक्त थे। पंडित राधेलाल चौबे जी के जीवन भर की मेहनत का फल यह निकला जो निर्जन स्थान जहा लोग जाने से भी डरते थे। आज वहां भक्तों का सैलाब उमड़ा रहता है और यह एक दर्शनीय स्थल बन गया।

पंडित राधेलाल चौबे ने मंदिर के विकास के लिए 1961 में नरवर आश्रम सेवा समिति की स्थापना की। जब स्थान पूरी तरह से निर्जन था तब यहां पहाड़ों की खोल से पानी बहा करता था। इसलिए इस मंदिर का नाम खोले के हनुमान जी पड़ गया।
खोले के हनुमान जी मंदिर में हनुमान जयंती और रामनवमी को एक विशेष त्यौहार का आयोजन किया जाता है। जहां लाखों की संख्या में भक्त धूमधाम से त्योहार को मनाते हैं।

खोले के हनुमान जी मंदिर का इतिहास

खोले के हनुमान जी मंदिर 60 के दशक के दौरान पहाड़ों पर बरसाती नाले और पहाड़ों की बीचो-बीच निर्जल स्थान में जंगली जानवरों के डर के कारण यहां कोई भी आने का साहस नहीं करता था। तभी एक साहसी ब्राह्मण ने इस जंगल में जाने का प्रण लिया और वहां जाकर उसने देखा कि यहां एक हनुमान जी की विशालकाय मूर्ति लेटी हुई अवस्था में विराजमान है। यहां पर बालाजी की मूर्ति को देख कर ब्राह्मण ने वहीं रहकर अपने आराध्य की सेवा पूजा करने का फैसला किया और जब तक उनके प्राण रहे तब तक वह उसी जगह रहे और वहीं उन्होंने अपने आराध्य देव की सेवा करें।

खोले के हनुमान जी मंदिर की वास्तु कला

खोले के हनुमान जी मंदिर जयपुर के रामगढ़ के पास राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 8 से 2 किलोमीटर अंदर है। मंदिर का मुख्य द्वार राष्ट्रीय राजमार्ग पर है। खोले के हनुमान जी मंदिर का निर्माण प्राचीन दुर्ग शैली से हुआ है। खोले के हनुमान जी मंदिर लगभग 3 मंजिल इमारत जितना है। जो देखने में बहुत ही भव्य और आकर्षक लगता है। मंदिर के सामने एक बहुत बड़ा खुला चौक भी है। जहां मेलों और त्यौहारों का आयोजन होता है। 

खोले के हनुमान जी मंदिर के दरवाजे के ठीक दाये और पंडित राधेलाल जी चौबे की एक बहुत बड़ी सुंदर प्रतिमा बनी हुई है। जो कि सफेद संगमरमर से बनी हुई है।

साल के 365 दिन यह दर्शन करने के लिए भक आते रहते है। लेकिन मंगलवार और शनिवार को यहां भक्तों की भीड़ देखने को मिलती है। लोगों का मानना है कि इस मंदिर में जो भी भक्तों सच्चे मन से कोई मनोकामना मांगता है तो वह पूर्ण होती है और मनोकामना पूर्ण होने के बाद यहां पर गोठ का आयोजन कर लोगों को प्रसादी वितरण की जाती है।

खोले के हनुमान जी मंदिर में आरती और दर्शन का समय

खोले के हनुमान जी मंदिर में प्रातः 5:00 बजे से लेकर रात्रि 9:00 बजे तक श्रद्धालु दर्शन कर सकते हैं इसी के साथ भगवान हनुमान जी की पहली आरती प्रातः 5:30 से और और शयन आरती रात्रि 8:00 बजे होती है। 

 

 

इसी के साथ श्रद्धालु यहां हनुमान जी के साथ साथ ठाकुर जी, गणेश जी, गायत्री माता , श्री राम दरबार, ऋषि वाल्मीकि जैसे अन्य भव्य मंदिरों के भी दर्शन कर सकते हैं। यहां श्री राम दरबार में भगवान राम के साथ लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न ,की मूर्तियां भी विराजमान है जो कि देखने में भी आकर्षक लगती है। 

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गलता जी मंदिर का इतिहास,वास्तुकला,जल कुंड | Galtaji Temple https://astroupdate.com/galtaji-temple/ https://astroupdate.com/galtaji-temple/#respond Wed, 01 Feb 2023 09:37:36 +0000 https://astroupdate.com/?p=4103 गलता जी मंदिर-Galtaji Temple

राजस्थान की राजधानी जयपुर शहर के बाहरी इलाके में स्थित एक पौराणिक हिंदू तीर्थ स्थल है। अरावली पर्वत श्रंखला मे  बना  यह तीर्थ स्थल गलता जी मंदिर के नाम से जाना जाता है। यहां कई सारे मंदिर ,पवित्र कुंड, मंडप, प्राकृतिक झरने बने हुए हैं। यह मंदिर एक सुंदर पहाड़ी इलाके के बीचो बीच में स्थित है जो एक खूबसूरत घाट से घिरा हुआ है।  यहां हर साल भारी संख्या में श्रद्धालु और पर्यटक आते हैं। 

 गलता जी मंदिर का निर्माण  गुलाबी रंग बलुआ पत्थर से किया गया था। गलता जी मंदिर एक बहुत विशाल परिसर के रूप  मे  किया गया हैं। जिसके अंदर कई सारे देवी देवताओं के मंदिर स्थित है। सिटी पैलेस के अंदर इस मंदिर की दीवारों पर प्राचीन चित्रकारी देखने को मिलती है।  जो कि इस मंदिर को और भी मनमोहक बना देते हैं।  गलता जी मंदिर अपनी वास्तुकला की वजह से सुप्रसिद्ध है।  इस मंदिर का निर्माण किस तरह से किया गया था कि देखने  देखने में यह  मंदिर किसी महल से कम ना लगे। 

यह अद्भुत मंदिर किसी भी  पारंपारिक मंदिर से तुलना करने पर एक भव्य महल यह हवेली जैसा प्रतीक होता है।  इस मंदिर की एक विशेषता यह भी है कि यहां लगभग हर जनजाति के वानर देखने को मिल जाएंगे।  प्राकृतिक खूबसूरती के साथ-साथ एक शांतिपूर्ण वातावरण प्रदान करता है जिसके कारण यह पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है।

 

गलता जी मंदिर

 

 गलता जी मंदिर का इतिहास – History Of Galtaji Temple In Hindi

गलता जी मंदिर को लेकर इतिहासकारों का मानना है कि यह मंदिर  16 वीं शताब्दी  की शुरुआत में रामानंदी संप्रदाय के लोगों द्वारा बनवाया गया था।  इस मंदिर की संरचना गुलाबी  बलुआ पत्थर से दीवान राव कृपाराम द्वारा बनवाई गई थी।  जोकि जयपुर के तत्कालीन राजा जय सिंह द्वितीय  के दरबार में दरबारी थे। 

 माना जाता है कि संत गालव ने 100 साल तक तपस्या करते हुए अपना संपूर्ण जीवन इसी स्थान पर बिताया और इसी स्थान पर लीन हो गए। 

 उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान प्रकट हुए और उन्हें आशीर्वाद दिया।  उन्हीं के आशीर्वाद स्वरुप इस पवित्र स्थान के जल को अद्भुत शक्तियां मिली। लोगों का मानना है कि गलता जी मंदिर के घाट में बने कुंड में नहाने से पाप और दोषों से मुक्ति मिलती है। 

बाद में उन्हीं संत की स्तुति करने के लिए गलता जी मंदिर का निर्माण किया गया और उन्हीं के नाम पर गलता जी नाम रखा गया।  कुछ विद्वानों का मानना है कि इसी जगह पर तुलसीदास द्वारा पवित्र रामचरितमानस कुछ अंश लिखे गए हैं। 

 गलता जी मंदिर की वास्तुकला- Architecture Of Galtaji In Hindi

अरावली  की पहाड़ियों में स्थित गलता जी मंदिर चारों ओर से हरे भरे पेड़-पौधों और झाड़ियों से  घिरा हुआ है।  गलता जी मंदिर को गोल गुंबदनुमा छत और दीवारों पर प्राचीन चित्रकारी करके सजाया गया है।  गलता जी मंदिर के अंदर भगवान राम ,भगवान कृष्ण और भगवान हनुमान के मंदिर भी स्थित है।  गलता जी मंदिर की एक प्राकृतिक खूबसूरती यह भी है कि यहां साल के 365 दिन प्राकृतिक ताजे पानी के झरने बहते रहते हैं।  और इसी के साथ यहां साथ पवित्र कुंड यानी पानी की टंकी है। इन सभी कुंडों में से गलता कुंड के पानी को सबसे पवित्र माना जाता है और इसकी खासियत यह है कि यह कभी सूखता भी नहीं है और हमेशा गोमुख से (Gaumukh)  शुद्ध और पवित्र  पानी बहता रहता है।

 

गलता जी मंदिर

 

गलता जी मंदिर में जल कुंड- Water Pool At Galtaji Temple In Hindi

गलता जी मंदिर अपने प्राकृतिक  जल स्रोत ,झरनों और ना  सूखने  वाले कुंडों के  लिए  जाना जाता है। यहां हर साल भक्तों का आना जाना लगा रहता है।  इसलिए यह सबसे ज्यादा धार्मिक और पूजनीय स्थान में से एक है।  गलता जी मंदिर में पानी स्वचालित रूप से टंकियों में इकट्ठा होता रहता है।  इसकी सबसे खास बात यह है कि इन टंकियों में जमा होने वाला पानी साल के 365 दिन बहता रहता है और ना ही यह कभी सोखता है। हिंदू त्यौहार मकर सक्रांति के मौके पर यहां लाखों की संख्या में भक्तजन पवित्र पानी में डुबकी लगाकर और मंदिर में पूजा अर्चना कर अपने सुखी जीवन के लिए कामना करते हैं।

]]> https://astroupdate.com/galtaji-temple/feed/ 0 आमेर की शिला माता, कहानी,देवी का स्वरूप,मंदिर निर्माण | Amber Fort Shila Mata Mandir https://astroupdate.com/shila-mata-mandir/ https://astroupdate.com/shila-mata-mandir/#respond Tue, 31 Jan 2023 12:34:24 +0000 https://astroupdate.com/?p=4071 आमेर की शिला माता-Shila Mata Mandir

ऐतिहासिक इमारतों ,सुंदर पर्यटन स्थलों और भव्य मंदिरों के लिए मशहूर राजस्थान की राजधानी जयपुर दुनिया भर में सैलानियों ,दर्शनार्थियों और भक्त जनों के लिए आकर्षण का केंद्र बना ही रहता है। इन  भव्य मंदिरों में से एक है जयपुर के शिला माता का मंदिर।  जिसे आमेर की शिला माता भी कहा जाता है।  जयपुर से 10 किलोमीटर दूर आमेर के किले में स्थापित माता शीला देवी का मंदिर अपनी बेजोड़ कला और आस्था के लिए जाना जाता है।  यहां पर शिला माता का काली स्वरूप देखने को मिलता है, जोकि कछवाहा राजवंशों की कुलदेवी के रूप में पूजी जाती है। और माना तो यह भी जाता है कि आमेर की शिला माता के  आशीर्वाद से आमेर के राजा मानसिंह ने  80 से ज्यादा युद्धों में विजय पताका लहराई ।

 

 

आमेर की शिला माता

 

 

आमेर की शिला माता की कहानी

मान्यता है कि आमेर के राजा मानसिंह सन 1580 ईस्वी में शीला देवी की प्रतिमा को आमेर लेकर आए और स्थापित किया।  इसलिए जयपुर में कहावत प्रसिद्ध है “सांगानेर को सांगो बाबो जैपुर को हनुमान, आमेर की शिला देवी लायो राजा मान।” अकबर के  सेनापति राजा मानसिंह अकबर के हर आदेश लड़ने जाया करते थे।  एक बार जब वह बंगाल के गवर्नर नियुक्त किए गए तो जसोर (जो कि वर्तमान में बांग्लादेश में स्थित है ) के  राजा केदार से लड़ने गए थे। लड़ाई में विजय हासिल होने के बाद राजा मानसिंह को भेंट में शिला माता की प्रतिमा दी गई थी।  जिसे बाद में राजा मानसिंह ने जयपुर के आमेर महल में भव्य मंदिर बनवा कर स्थापित किया। 

आमेर की शिला माता मंदिर निर्माण 

आमेर की शिला माता का मंदिर का निर्माण पूर्ण रूप से संगमरमर के छात्रों द्वारा कराया गया है जो महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय ने 1906  संपन्न किया था।  पहले यह मंदिर पूर्ण रूप से चूने और बलुआ पत्थरों से बना हुआ था। बाद में सवाई  मानसिंह ने  मंदिर को संगमरमर से बनवाया जो देखने में बेहद खूबसूरत दिखता है इस मंदिर कीइस मंदिर की एक विशेषता यह भी है कि यहां प्रतिदिन शिला माता को  प्रसाद का भोग लगने के बाद ही श्रद्धालुओं के लिए मंदिर के पट खोले जाते हैं। 

 

आमेर की शिला माता

 

आमेर की शिला माता देवी का स्वरूप

माना जाता है कि सबसे पहले  आमेर की शिला माता मुख पूर्व की ओर था। परंतु जब राजा मान सिंह द्वारा जयपुर की स्थापना का निर्माण का कार्य शुरू हुआ तो कार्य के अंदर विभिन्न प्रकार के विभिन्न विघ्न उत्पन्न होने लगे। तब राजा जयसिंह ने देश के प्रसिद्ध और अनुभवी वास्तु कारों और पंडितों को बुलाया और उनकी सलाह अनुसार मूर्ति को उत्तर दिशा की ओर इस तरह स्थापित किया गया की मूर्ति का मुख उत्तर की ओर करवा दिया गया ताकि जयपुर के निर्माण में किसी भी प्रकार की बाधाएं ना आए।  क्योंकि इससे पहले मूर्ति की दृष्टि शहर पर तिरछी पढ़ रही थी। आमेर की शिला माता मंदिर में मूर्ति को वर्तमान गर्भगृह में प्रतिष्ठित कराया गया जो वर्तमान में उत्तर मुखी है। आमेर की शिला माता मंदिर में देवी की मूर्ति काले चमकीले पत्थर से बनी हुई है।  यह एक पाषाण शिलाखंड से बनी हुई है। आमेर के शिला माता मंदिर में शीला देवी की यह मूर्ति महिषासुर नंदिनी के रूप में विख्यात है।  मूर्ति सदैव वस्त्रों और लाल गुलाब के फूलों से  आच्छादित रहती है।  जिसमें सिर्फ मूर्ति का मुख एवं हाथी दिखाई देता है।  आमेर की शिला माता मंदिर में देवी की मूर्ति का जो चित्रण है वह इस प्रकार है कि देवी महिषासुर को एक पैर से दबाकर दाहिने हाथ से त्रिशूल मार रही है।  इसलिए देवी के गर्दन दाहिनी और झुकी हुई है। आमेर की शिला माता मंदिर मे शिला माता के अलावा गणेश जी ,ब्रह्मा जी, विष्णु जी, शिव जी और कार्तिकेय की सुंदर मूर्तियां बाएं से दाएं की ओर विराजित है।  यह मूर्तियां आकार में छोटी परंतु देखने में उतनी ही मनमोहक है। आमेर की शिला माता मंदिर में मूर्ति को चमत्कारी माना जाता है।

  जयपुर के राजा महाराजाओं और राज परिवारों का  आमेर की शिला माता में अखंड विश्वास था और आज भी श्रद्धालु का आमेर की शिला माता में अद्भुत विश्वास और आस्था देखने को मिलती है।  आमेर की शिला माता मंदिर के प्रवेश द्वार पर 10 महाविद्याओं और नव दुर्गा की प्रतिमाएं विराजित है।  मंदिर के जगमोहन भाग में चांदी की घंटियां बंधी हुई है जिसको श्रद्धालु  देवी पूजा के पूर्व बजाते हैं।  आमेर की शिला माता मंदिर के कुछ भाग बांग्ला शैली से बने हुए नजर आते हैं।

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 गढ़ गणेश मंदिर,इतिहास,वास्तुकला | Garh Ganesh Temple https://astroupdate.com/garh-ganesh-temple/ https://astroupdate.com/garh-ganesh-temple/#respond Tue, 31 Jan 2023 09:00:55 +0000 https://astroupdate.com/?p=4052 गढ़ गणेश मंदिर – Garh Ganesh Temple

भगवान श्री गणेश को प्रथम पूज्य देवता कहा जाता है।  हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार किसी भी शुभ कार्य करने से पहले भगवान श्री गणेश की पूजा अर्चना की जाती है। शादी की पत्रिका  यानि  शादी का निमंत्रण पत्र सबसे पहले भगवान श्री गणेश को ही दिया जाता है।  और कहा जाता है कि मांगलिक कार्यों में श्री गणेश जी की कृपा स्वर प्रथम अनिवार्य है।  यूं तो गणेश जी के देशभर में लाखों मंदिर है।  देशभर में मौजूद गणेश जी के जितने भी मंदिर है सभी मंदिरों में गणेश जी की प्रतिमा को  सूंड के साथ देखा जा सकता है।  लेकिन राजस्थान की राजधानी जयपुर में भगवान श्री गणेश का एक ऐसा भी मंदिर है जहां बिना सूंड वाले गणेश जी विराजमान है।  और यह है विश्व प्रसिद्ध गढ़ गणेश मंदिर जोकि राजस्थान की राजधानी जयपुर में ब्रह्मपुरी के अंदर स्थित है।  यहां भगवान श्री गणेश को उनके बाल रूप में स्थापित किया गया है।  और उनके बाल रूप  की पूजा की जाती है। 

मंदिर में बुधवार के दिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु अपनी मनोकामना को लेकर मंदिर के प्रांगण में आते हैं।  और भगवान श्री गणेश के दर्शन करते हैं।  जयपुर के उत्तर दिशा में यह मंदिर अरावली पर्वतमाला पर एक पहाड़ी पर मुकुट के रूप में विराजमान है।  यह मंदिर बहुत ही प्राचीन है। गढ़ गणेश मंदिर तक जाने के लिए लगभग 500 मीटर की पहाड़ी चढ़ाई करनी पड़ती है।  इस मंदिर पर जाकर आप संपूर्ण जयपुर शहर को देखते हैं।  यहां से पुराना जयपुर पूरा नजर आता है।  एक तरफ तो पहाड़ी पर नाहरगढ़ नजर आता है और दूसरी तरफ पहाड़ी के नीचे जल महल,इसके साथ ही  सामने की तरफ शहर की बसावट का खूबसूरत नजारा देखने को मिलता है।  बारिश के दौरान यह इलाका पूरी तरह से हरियाली से लबालब हो जाता है और देखने में  मन मोहक लगता है। 

 

 गढ़ गणेश मंदिर

 

 गढ़ गणेश मंदिर का इतिहास History of Garh Ganesh Temple

 राजस्थान की राजधानी जयपुर शहर की उत्तर दिशा में स्थित अरावली पर्वत श्रृंखलाओं में नाहरगढ़ किले की ऊंची पहाड़ी पर स्थित भगवान गणेश का गढ़ गणेश मंदिर की  स्थापना 18वीं शताब्दी में की गई थी।  परंतु इस कुछ इतिहासकारों का यह भी मानना है कि गढ़  गणेश मंदिर यहां पुराणिक काल में स्थापित किया गया था और आक्रमणों द्वारा उसे ध्वस्त कर उसके मूर्तियों खंडित किया गया और उसके सोने और चांदी केआभूषण , वस्त्रों को लूट कर ले गए थे। 

इतिहासकारों की मानें तो मुगलों के आक्रमण द्वारा मंदिर को नष्ट करने के बाद, महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय द्वारा एक बार फिर से  मंदिर का जिर्णोद्धार किया गया  था।  इसके अलावा यह भी माना जाता है कि जिस पहाड़ी में गढ़ गणेश मंदिर स्थापित है।  उस पहाड़ी की तलहटी में सवाई जयसिंह द्वितीय ने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया था।  उसके बाद ही इस जयपुर शहर को सामरिक तथा आर्थिक महत्व देने के लिए नींव  रखी गई थी।  इसलिए माना जाता है कि गढ़ गणेश का मंदिर यहां प्राचीन काल  में स्थापित हुआ था जिसका जिर्णोद्धार  सवाई जयसिंह द्वारा  18वीं शताब्दी यानी 1740  में करवाया गया था। 

‘गढ़ गणेश मंदिर’ नाम कैसे पड़ा? How did the name ‘Garh Ganesh Temple’ come about?

गढ़ गणेश मंदिर के बारे में मान्यता है कि क्योंकि यह मंदिर जय गढ़ और नाहरगढ़ किले के पास एक पहाड़ी पर किले (गढ़ )की तरह बना हुआ है इसलिए इस मंदिर को  मंदिर को गढ़ गणेश मंदिर के नाम से जाने जाने लगा। महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने गुजरात के प्रसिद्ध पंडितों को बुलाकर 1740 इसे मैं यहां अश्वमेघ यज्ञ करने के लिए आमंत्रित किया और उसके बाद इस मंदिर की स्थापना की गई।  सवाई जयसिंह के द्वारा इस मंदिर की स्थापना इस प्रकार की गई कि हर सुबह सिटी पैलेस के चंद्र महल के उपरी मंजिल पर खड़े  होकर भगवान ‘गढ़  गणेश के दर्शन कर सके। 

गढ़ गणेश मंदिर की वास्तुकला Architecture of Garh Ganesh Temple

गढ़ गणेश मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यह मंदिर जयगढ़ नाहरगढ़ किले की पहाड़ियों पर एक किले के रूप में बनाया गया था इस वजह से गढ़ गणेश नाम मिला।  ऊंची पहाड़ी से देखने पर यह मंदिर किसी मुकुट जैसा प्रतीत होता है। पहाड़ी की चोटी पर स्थित मंदिर परिसर से जयपुर का पूरा नजारा देखा जा सकता है। गढ़ गणेश मंदिर का निर्माण इस  से किया गया था कि पूर्व राजपरिवार के सदस्य जिस महल में रहते थे उसे चंद्र महल के नाम से जाना जाता था।  यह सिटी पैलेस का हिस्सा था।  चंद्र महल की ऊपरी मंजिल से इस मंदिर में स्थापित मूर्ति का दर्शन होते थे।  माना जाता है कि पूर्व राजा महाराजा गोविंद देव जी महाराज और  गढ़ गणेश जी के दर्शन अपनी दिनचर्या की शुरुआत करने से पहले क्या करते थे।  मंदिर में दो बड़े मूषक भी है।  जिनके कान में श्रद्धालु जन अपनी मनोकामनाएं मांगते हैं। 

 

 गढ़ गणेश मंदिर

 

 इस मंदिर के निर्माण को लेकर एक मान्यता यह भी है कि सवाई जयसिंह द्वारा इस मंदिर की स्थापना इस तरह से की गई थी की, पूरा शहर मंदिर से देखा जा सके।  उनका मानना था कि ऐसा करने से पूरा शहर भगवान गणेश चरणों में रहेगा और शहर पर भगवान गणेश की बनी दीव्य  दर्ष्टि  बनी रहेगी।  इस मंदिर की खासियत है यह मंदिर जमीन से पहाड़ी के ऊपर 500 मीटर की ऊंचाई पर है और मंदिर तक पहुंचने के लिए 365 सीढ़ियां चढ़कर  जाना पड़ता है। 

]]> https://astroupdate.com/garh-ganesh-temple/feed/ 0 कैंची धाम कब जाना चाहिए और कैसे जाए | Kainchi Dham Kab Jaana Chaahiye https://astroupdate.com/kainchi-dham-kab-jaana-chaahiye/ https://astroupdate.com/kainchi-dham-kab-jaana-chaahiye/#respond Tue, 31 Jan 2023 06:06:33 +0000 https://astroupdate.com/?p=4034 कैंची धाम कब जाना चाहिए – Kainchi Dham Kab Jaana Chaahiye

कैंची धाम कब जाना चाहिए – कैंची धाम के निवासी श्री पूर्णानंद तिवारी जी के कथन अनुसार सन 1942 में एक रात के समय में जब वह अपने घर लौट रहे थे। तो खुफिया डांठ नाम की एक निर्जन स्थान था वहा पर उन्हें एक विशालकाय व्यक्ति को कंबल ओढ़े दिखा । तो पहले वह उस व्यक्ति को देखकर अचानक डर गए थे। परन्तु फिर उस व्यक्ति ने उन्हें अपने पास बुलाया, और उनके डर को दूर किया और फिर 20 वर्ष के बाद वापस लौटने का उनसे वादा करके वह उस स्थान से चले गए। यह व्यक्ति कोई ओर नहीं बल्कि नीम करौली बाबा ही थे।

कैंची धाम कब जाना चाहिए – अपने वादे के मुताबिक़ ठीक 20 वर्ष बाद 24 मई 1962 में रानीखेत से नैनीताल लौटते समय बाबा जी कैंची धाम में आकर रुक गए और सड़क किनारे जाकर बैठ गए। और फिर हमेशा के लिए वही के हो गये। सन्न 1962 के बाद बाबा जी कैंची में ही अपना निवास करने लग गए। विश्व भर में बाबा नीम करौली बाबा के नाम से विख्यात हुए और इस मंदिर की स्थापना भी बाबा नीव करौरली ने ही की थी। जिन्हें कुछ लोग उन्हें नीम करौली बाबा के नाम से भी पुकारते है।

कैंची धाम कब जाना चाहिए – नीम करौली बाबा का जन्म सन्न 1900 के आस-पास उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले में अकबरपुर नामक गांव में रहने वाले एक ब्राह्मण के परिवार में हुआ था। केवल 11 वर्ष की आयु में विवाह भी संपन्न हो गया था। फिर कुछ समय बाद उन्होंने अपना घर छोड़ दिया था। और वह साधु बन गए परन्तु बाद में उन्होंने कुछ समय अपने गृहस्थ जीवन भी व्यतीत किया। परन्तु इस दौरान भी उन्होंने अपने आप को सामाजिक कार्यों में व्यस्त रखा।

कैंची धाम कब जाना चाहिए

कैंची धाम कब जाना चाहिए – उसी दौरान वें 3 सन्तानो के पिता भी बने, परन्तु गृहस्थ जीवन उन्हें ज्यादा रास  नहीं आया और फिर वे सन्न 1958 में उन्होंने दुबारा से अपनी गृहस्थी त्याग दी। 15 जून 1964 को प्रथम प्रयास कर उन्होंने यहां पर हनुमान जी की मूर्ति को विधिवत रूप से स्थापित किया । और आज प्रत्येक वर्ष 15 जून को प्रतिष्ठा दिवस के रुप में मनाया जाता है ।

कैंची धाम कब जाना चाहिए – नीम करौली बाबा हनुमान जी के परम भक्त माने जाते है। इस बात का अंदाज आप इस बात से लगा सकते है। कि बाबा अपने पूर्ण जीवन काल में उन्होंने देश-विदेश में कुल 100 से भी ज्यादा हनुमान जिओ के मंदिर का निर्माण करवाया । सन्न 1964 में कैंची धाम की स्थापना दो साधुओं द्वारा जिनका नाम ‘प्रेमी बाबा’ और ‘सोमवारी महाराज’ था उनके के द्वारा की गई थी। तब यहाँ पर एक चबूतरा बनाया गया और फिर हवन भी किया गया था। उसके कुछ समय बाद यहाँ पर हनुमान जी के मंदिर का निर्माण किया गया। नीम करौली बाबा आश्रम की स्थापना की वर्षगाँठ के उपलक्ष में प्रति वर्ष यहाँ 15 जून को एक भव्य मेले का आयोजन किया जाता है और भंडारे का आयोजन भी किया जाता है। जिसमें देश-विदेश से लाखों की संख्या में लोग हिस्सा लेने यहाँ आते है।

 

कैंची धाम कहाँ पर स्थित है

कैंची धाम कब जाना चाहिए – कैंची धाम उत्तराखंड राज्य के नैनीताल जिले में स्थित है। रानीखेत राष्ट्रीय राजमार्ग 109 में स्थित है कैंची धाम। यह लाखों भक्तो की आस्था और विश्वास का एक केंद्र है। यह धाम बीसवीं शताब्दी में जन्मे हुए दिव्य पुरुष बाबा नीम करौली जी के द्वारा स्थापित की गई पावन भूमि है।

 

कैंची धाम की ऊंचाई एवं तापमान 

कैंची धाम कब जाना चाहिए – समुद्र तल से 4593 फीट की ऊंचाई पर स्थित है कैंची धाम। ग्रीष्म कालीन समय में कैंची धाम का तापमान 22 डिग्री तक हो जाता है तो वहीं शीतकालीन समय में यह 02 डिग्री तक भी हो जाता है। नैनीताल जिले से 19.6 किलोमीटर की दूरी पर कैंची धाम है। 

कैंची धाम कब जाना चाहिए – यदि आपका कभी नैनीताल जाने का विचार बनता है। तो यहां से आप कैंची धाम दर्शन करने के लिए भी जा सकते हैं। और वहां आप पर बाबा नीम करोली के आश्रम के दर्शन कर वापस नैनीताल भी लौट सकते हैं। या फिर आप रानीखेत जाने का विचार भी कर सकते है। नैनीताल से कैंची धाम की दूरी लगभग 19.6 किलोमीटर है।

कैंची धाम कब जाना चाहिए

 

कैसे सड़क मार्ग द्वारा रानीखेत पहुंचें

 कैंची धाम जाने हेतु आपको पहले नैनीताल पहुँचना होगा। जो राष्ट्रीय राजमार्ग NH 9 से होकर गुजरता है। यहां से आपको कैंची धाम जाने के लिए टेक्सी या निजी कार भी मिल जायेगी। सड़क मार्ग राष्ट्रीय राजमार्ग NH 109 से होकर जाता है।

कैसे पहुंचें ट्रेन मार्ग से रानीखेत 

कैंची धाम कब जाना चाहिए – कैंची धाम जाने के लिए सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम में है। यहां पहुँचने के बाद आप टैक्सी या निजी कार से कैंची धाम आसानी से पहुँच सकते हैं। काठगोदाम के रेलवे स्टेशन से कैंची धाम केवल 37.4 किलोमीटर की दूरी पर है। राष्ट्रीय राजमार्ग NH 109 से गुजरता है। इसमें आपको करीब 1 घंटे 30 मिनट का समय लगेगा।

 

कैसे पहुंचें हवाई मार्ग से रानीखेत 

कैंची धाम के लिए कोई विशेष हवाई अड्डा नहीं है। लेकिन यदि आप हवाई मार्ग से आना चाहते हो तो आप केवल पंतनगर एयरपोर्ट आ सकते है। पंतनगर एयरपोर्ट से आप टैक्सी कार की मदद से कैंची धाम आसानी से पहुँच सकते हो। पंतनगर एयरपोर्ट से कैंची धाम की दूरी लगभग 71.3 किलोमीटर की दूरी पर है। जोकि राष्ट्रीय राजमार्ग NH 109 से होकर गुजरता है। पंतनगर एयरपोर्ट से कैंची धाम पहुचने में आपको टैक्सी से लगभग 02 घंटे, 20 मिनट का समय लगता है।

क्यों प्रसिद्ध है कैंची धाम 

नीम करौली बाबा आश्रम की स्थापना दिवस के अवसर पर प्रत्येक वर्ष 15 जून को एक विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। और भंडारे का आयोजन भी किया जाता है। इस स्थापना दिवस में देश-विदेश से लाखों लाखो की संख्या में भक्त  हिस्सा लेते यहाँ पहुंचते है। कैंची धाम लाखों भक्तो की आस्था व विश्वास का केंद्र है।

अन्य जानकारी :-

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खाटू श्याम जी के कब जाना चाहिए | Khatushyam ji Ke Kab Jaana Chaahiye https://astroupdate.com/khatushyam-ji-ke-kab-jaana-chaahiye/ https://astroupdate.com/khatushyam-ji-ke-kab-jaana-chaahiye/#respond Sat, 28 Jan 2023 09:39:43 +0000 https://astroupdate.com/?p=4010 खाटू श्याम जी के कब जाना चाहिए – Khatushyam ji Ke Kab Jaana Chaahiye

खाटू श्याम जी के कब जाना चाहिए – आइये दोस्तों आज हम आप लोगों को इस लेख के द्वारा खाटू श्याम जी के कब जाना चाहिए। इस बारे में संपूर्ण जानकारी प्रदान करेंगे। जिसमें हम आप लोगों को खाटू श्याम जी के कब जाना चाहिए। और अन्य जानकारी के साथ-साथ खाटू श्याम जी के जाने की संपूर्ण यात्रा कैसे की जाती है।  इसके बारे में आपको बताएँगे। 

खाटू श्याम जी के कब जाना चाहिए – खाटू श्याम बाबा की महिमा का उल्लेख करते हुए अनेको प्रकार की पौराणिक कथाओं में बताया गया है। जो भी व्यक्ति यदि सच्चे मन से सिर्फ खाटू श्याम बाबा के नाम का ध्यान करता है और स्मरण करता है। तो वो व्यक्ति अपने जीवन की  समस्त कष्टों और परेशानियों से मुक्त हो जाता है। अब आप लोग सोचिए की जब खाटू श्याम बाबा के नाम में ही इतनी शक्ति है। तो खाटू श्याम जी के दर्शन प्राप्त करने के बाद बाबा से की गई प्रार्थना में कितनी प्रभाषाली और शक्ति वाली हो सकती है। 

खाटू श्याम जी के कब जाना चाहिए – इसी वजह से आज हम खाटू श्याम बाबा की महान शक्तियों को और महिमा को ध्यान में रखते हुए खाटू श्याम के दर्शन करने के लिए कब जाना चाहिए एवं खाटू श्याम जी के जाने की संपूर्ण इस मांगलिक यात्रा कैसी होती है। और खाटू श्याम जी के जाने से कौन-कौन से लाभ भक्तो को प्राप्त होते हैं। इस बारे में संपूर्ण जानकारी आपको बताने वाले है। यदि आप लोग भी खाटू श्याम जी के दर्शन करने के लिए जाने की सोच रहे हैं। तो फिर इस लेख में बताई गई खाटू श्याम बाबा से संबंधित जानकारी दी जा रही है। जो आप लोगों के लिए बहुत उपयोगी सिद्द हो सकती है। इसीलिए आपने निवेदन है की इस लेख को आप शुरू से अंत तक जरूर पढ़े आपको अनेको जानकारी प्राप्त होगी। 

खाटू श्याम जी के कब जाना चाहिए और क्यों जाना चाहिए 

खाटू श्याम जी के कब जाना चाहिए – यदि आपकी श्रद्धा है तो आप लोग खाटू श्याम जी के कभी भी दर्शन के लिए जा सकते हैं। क्योंकि ईश्वर के दर्शन लाभ करने का कोई निश्चित समय नहीं होता है।  जब आपका दिल करे तब आप उनके दर्शन लाभ के लिए मंदिर जा सकते हैं। परन्तु अनेको  प्रकार के धार्मिक ग्रंथों एवं ज्योतिष शास्त्र की मान्यता के अनुसार हर देवी देवता को सप्ताह के प्रत्येक दिन समर्पित होते है। जिन को अपने ध्यान में रखते हुए हर देवी-देवता के दर्शन करने के बाद उनकी विधिवत रूप से पूजा-अर्चना करने के बाद ही आपकी पूजा संपन्न होती है। विधि से सम्पूर्ण पूजा करने से ही आपकी पुकार सीधी ईश्वर तक पहुँचती है। 

खाटू श्याम जी के कब जाना चाहिए – इसी वजह से किसी भी देवी-देवता की पूजा-अर्चना करने या फिर दर्शन करने हेतु  आपको उस देवी या देवता को समर्पित दिन का जरूर ध्यान में रखते ही मंदिर में दर्शन के लिए जाना चाहिए। तभी आपकी यात्रा पूर्ण रूप से सफल मानी जाएगी।  ऐसे में खाटू श्याम बाबा के सम्बन्ध में ऐसी मान्यता है कि प्रत्येक वर्ष की फागुन माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी खाटू श्याम बाबा को पूर्ण रूप से समर्पित है श्याम बाबा भगवान् श्री कृष्ण के कलयुगी रूप में राजस्थान राज्य के सीकर जिले में उत्पन्न हुए थे। खाटू श्याम जी के मंदिर प्रांगण की मिट्टी के भी अद्भुद चमत्कार भी भक्त मानते है। 

खाटू श्याम जी के कब जाना चाहिए – इसी वजह से वहां इनका बहुत ही विशाल मंदिर बना गया है। यहाँ पर प्रत्येक वर्ष  फागुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को उनका जन्म दिवस मनाया जाता है।  और बहुत ही धूमधाम से बाबा का लख्खी मेला भी लगता है। और इसी दिन लाखो की संख्या में भक्त यहाँ आते है और बाबा के दर्शन करके अपनी मनोकामना पूर्ण करने की बाबा से प्रार्थना करते हैं। और भक्त अपने जीवन से सभी कष्टों को दूर करने के लिए बाबा से प्रार्थना भी करते है। खाटू श्याम बाबा अपने भक्तो के जीवन से सभी कष्टों को नष्ट करके उनके जीवन में खुशिया भर देते है। 


खाटू श्याम जी के कब जाना चाहिए – यदि आप भक्तगण फागुन माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को खाटू श्याम बाबा के दर्शन करने जाएंगे। तो आप भक्तो को खाटू श्याम बाबा के दर्शन करने की और यात्रा को पूर्ण रूप से सफल होगी। यह दिन खाटू श्याम बाबा को ही पूर्णरूप से समर्पित है। इसी दिन खाटू श्याम जी का जन्म हुआ था। इसीलिए इस दिन खाटू श्याम बाबा अपने भक्तो को कभी भी खली हाथ वापस नहीं भेजते है। 

खाटू श्याम जी जाने के माध्यम 

खाटू श्याम जी के मंदिर में जाने के सभी प्रकार के माध्यम मौजूद है। आप ट्रैन,बस,यदि आप कही दूर से बाबा के जाने के लिए आरहे है तो आपके लिए हवाई जहाज का माध्यम भी है। जो आपको जयपुर अंतराष्ट्रीय हवाई अड्डा है। वह से आप बस से बाबा के दरबार में पहुंच सकते हो। और आप ओपन निजी वहां से से बाबा के मंदिर में दर्शन के लिए जा सकते है। 

बाबा के दर्शन से पहले के कुछ नियम 

खाटू श्याम जी के दर्शन करने से पहले आपको कुछ बातो का पालन करना चाहिए। जिससे आपकी यात्रा सफल होगी और आप की दर्शन करने का लाभ भी प्राप्त होगा। 

  • खाटू श्याम बाबा के दर्शन  का लाभ प्राप्त करने के लिए आप सबसे पहले खाटू श्याम कुंड में स्नान कर अपने तन को पवित्र अवश्य करें। 
  • कुंड में स्नानं करने के बाद स्वच्छ वस्त्र को धारण करके खाटू श्याम बाबा के दर्शन के लिए लगी लाइन में लगे और बाबा के दर्शन करें। 
  • श्याम बाबा के दर्शन करने के लिए आप धूपबत्ती और देसी घी साथ लेकर भी जा सकते है। 
  • आप जब खाटू श्याम बाबा की प्रतिमा के समक्ष पहुंच जाएँ तो उनके सामने धूपबत्ती एवं देसी घी का दीपक जलाकर बाबा को कच्चे दूध एवं चूरमा के लड्डू का भोग भी लगाएं। 
  • दर्शन करेने के पश्चात आपकी जो भी मनोकामना है। वह आप श्याम बाबा से बताएं। ऐसा करेंगे तो आपकी मनोकामना जरूर पूरी हो जायेगी। 
  • इस तरह से नियमो का पालन करते हुए आप खाटू श्याम के दर्शन के लिए जायेंगे तो आपकी यात्रा सफल होगी और आपकी मनोकामना भी पूर्ण होगी। 
खाटू शयाम जी के जाने के लाभ  

खाटू श्याम जी के कब जाना चाहिए – खाटू श्याम बाबा भगवान् श्री कृष्ण जी के कलियुगी अवतार माने जाते है  इसी कारण  श्रीमद्भगवद्गीता में और सुंदरकांड का बहुत ही अच्छे श्याम बाबा का  वर्णन भीब किया गया है जिसमे खाटू श्याम बाबा के दर्शन लाभ प्राप्त करने के कुछ खास लाभ भी बताए गए हैं जिन्हें आज हम आज आप लोगों को इस लेख के माध्यम से बताने जा रहे है। खाटू श्याम जाने के कुछ इस प्रकार के लाभ भक्तो प्राप्त होते हैं जैसे :

  • भक्तो की समस्त प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण करें।
  • भटके हुए भक्त को उत्तम राह दिखाएं। 
  • हारे हुए व्यक्ति को फिर से नया जीवन जीने का हौसला दिलाए। 
  • बाबा की भक्ति करने वाले भक्तो को मोक्ष की प्राप्ति करवाएं। 
  • निरोग शरीर बनाएं। 
खाटू श्याम बाबा किसका रूप है 

खाटू श्याम बाबा भगवान् श्री कृष्ण के कलियुगी अवतार के रूप में पूजे जाते है। और भक्त बाबा की भक्ति करके आनंदमय जीवन जीते है। 

खाटू श्याम जी का मंदिर कहा पर है 

खाटू श्याम जी का मंदिर राजस्थान राज्य में जयपुर जिले के समीप सीकर जिले में है। रींगस से लगभग 18 किलोमीटर की दुरी पर बाबा का भव्य मंदिर बना हुआ है। 

खाटू श्याम बाबा कौन है 

खाटू श्याम जी के कब जाना चाहिए – खाटू श्याम बाबा के रूप में जिसकी हम भक्त पूजा करते है वह घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक थे।  उन्होंने अपने शीश का दान किया था तभी से भक्त उन्हें शीश का दानी भी कहते है। 

खाटू श्याम जी के कब जाना चाहिए – तो दोस्तों आज हमने आप भक्तो को आज इस लेख में खाटू श्याम बाबा के दर्शन करने कब जाएं। इसके बारे में संपूर्ण जानकारी प्रदान करने की भरपूर कोशिश की है। यदि आप भक्तो ने इस लेख को शुरुआत से अंत तक पढ़ा होगा। तो आप लोगों को खाटू श्याम जी से संबंधित सभी जानकारी प्राप्त हो गई होगी। तो मित्रों हम उम्मीद करते हैं। आप लोगों को हमारे द्वारा बताई गई जानकारी बहुत पसंद आई होगी और साथ में भक्तो केलिए उपयोगी भी साबित हुई होगी।

अन्य जानकारी :-

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गोविंद देव जी का मंदिर,इतिहास,दर्शन और आरती समय | Govind Dev ji Mandir https://astroupdate.com/govind-dev-ji-mandir-jaipur/ https://astroupdate.com/govind-dev-ji-mandir-jaipur/#respond Fri, 27 Jan 2023 12:03:10 +0000 https://astroupdate.com/?p=3944 गोविंद देव जी का मंदिर | Govind Devji Mandir 

जयपुर जिसे छोटी काशी के नाम से भी जाना जाता है।  यहां भव्य मंदिरों की कोई कमी नहीं है। इन ही  भव्य मंदिरों में से एक है गोविंद देव जी का मंदिर जो भगवान श्री कृष्ण को समर्पित है। गौड़ीय वैष्णव परंपरा का ऐतिहासिक गोविंद देव जी का मंदिर राजस्थान की राजधानी जयपुर के सिटी पैलेस में स्थित है।  गोविंद देव जी का मंदिर भगवान श्री कृष्ण और  राधा रानी को समर्पित है। 

मंदिर के देवताओं को तत्कालीन जयपुर के संस्थापक महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय द्वारा यूपी के वृंदावन से लाया गया था।  यह वैष्णव मंदिर भक्तजनों के लिए सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक है। लोकप्रिय  कहानियों के अनुसार गोविंद जी को “बजरकृत” कहा जाता है  क्योंकि इसे भगवान श्री कृष्ण के पोते द्वारा बनवाया गया था। आज से लगभग 5000 साल पहले जब “ बजरानाभ ” की आयु लगभग 13 साल रही होगी तब उन्होंने अपनी दादी यानी कि कृष्ण की बहू से पूछा कि भगवान श्री कृष्ण कैसे दिखते थे। तब उन्होंने भगवान श्री कृष्ण का विवरण दिया यह विवरण 3 पंक्तियों में दिया गया था।  पहली पंक्ति में श्री कृष्ण के पैरों का विवरण दिया गया। दूसरी छवि में श्री कृष्ण की छाती का और तीसरी छवि में श्री कृष्ण के चेहरे के बारे में विवरण दिया गया।  जब वह पृथ्वी पर अवतरित हुए थे।  उसी के आधार पर पहली छवि को “भगवान मदन मोहन जी”  के रूप में जाने जाने लगा और दूसरी छवि को “भगवान गोपीनाथ जी”कहा गया और इसी तरह तीसरे छवि को “गोविंद देव जी”के नाम से विश्व प्रसिद्ध हो गई जिसमें उनके  चेहरे के स्वरूप को वर्णित किया गया है और यही है हमारे गोविंद देव जी।

गोविंद देव जी का मंदिर

 

जैसे-जैसे समय बीतता गया यह पवित्र दिव्य चित्र कहीं लुप्त हो गए थे।  लगभग आज से 500 साल पहले वैष्णव संत और  उपदेशक श्री पूज्य चैतन्य महाप्रभु ने अपने एक शिष्य को गोविंद देव जी की मूर्ति की खुदाई करने को कहा जिसे आक्रमणकारियों से बचाने के लिए दफनाया गया था। 

विष्णु भक्तों के लिए श्री राधा गोविंद देव जी का मंदिर वृंदावन के बाहर सबसे महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक है।  गोविंद देव जी का मंदिर के बाहर पूजन सामग्री और गोविंद देव जी से संबंधित वस्तुएं जैसे कि मोर पंख, लड्डू गोपाल जी पोशाक, शंख इत्यादि उपलब्ध हो जाती है।  इसी के साथ गोविंद देव जी के सुंदर तस्वीरें भी देखने को मिलेगी।

गोविंद देव जी का मंदिर का इतिहास History of The Temple of Govind Dev Ji

भगवान श्री कृष्ण के स्वरूप में से एक गोविंद देव जी आमेर के कछुआ राजवंश के मुख्य देवता है। और जयपुर शासकों के इतिहास से जुड़े हुए हैं।  ऐसा माना जाता है कि मूल रूप से गोविंद देव जी की मूर्ति वृंदावन के एक मंदिर से थी। 17 वीं शताब्दी मी मुगल शासक औरंगजेब द्वारा हिंदू मंदिरों को तोड़कर और मूर्तियों को नष्ट करने आदेश दिया गया था।  लगभग उसी समय वृंदावन में श्री शिवराम गोस्वामी द्वारा गोविंद जी की मूर्ति की देखभाल की गई थी। मूर्ति को बचाने के लिए श्री शिवराम गोस्वामी मूर्तियों को लेकर वृंदावन से भरतपुर आ गए। क्योंकि भगवान श्री गोविंद जी महाराज ,शासक वंश के प्रमुख देवता थे।  इसलिए आमेर के तत्कालीन शासक महाराजा सवाई जयसिंह द्वारा मूर्ति को सुरक्षा प्रदान करने का जिम्मा लिया और इसमें आमेर की घाटी में सुरक्षित कर दिया गया। जिसके बाद में इस जगह को कनक वृंदावन के नाम से भी जाने जाने लगा। क्योंकि आमेर के शासक मुगल दरबार की सेवा करते थे। इसलिए मुगलों के साथ किसी भी प्रकार का प्रतिरोध का जोखिम नहीं उठा सकते थे।  इसलिए उसने मूर्ति को खुले में नहीं रखा और ना ही किसी को इसके बारे में पता लगने दिया। 

 इसके बाद 1735 सूर्य महल मैं राजा सवाई जयसिंह द्वारा मूर्ति की स्थापना की गई। ऐसा माना जाता है कि ऐसा करने के लिए उन्हें स्वंय भगवान ने उन्हें सपने में आकर निर्देश दिया था।  इसी के साथ महाराजा सवाई सिंह ने संपूर्ण सूरज महल को भगवान गोविंद देव जी को समर्पित कर दिया और खुद नए महल में रहने लग गए। जिसे चंद्र महल के नाम से भी जाना जाता है और  बाद में सूरज महल का नाम बदलकर गोविंद देव जी मंदिर कर दिया गया।

गोविंद देव जी मंदिर मे आरती (झांकी) का समय Aarti Timings in Govind Dev Ji Temple


झांकी

समय

मंगला झांकी

4:45 to 5:15 AM

धुप झांकी

7:45 to 9:00 AM

श्रृंगार झांकी

9:30 to 10:15 AM

राजभोग झांकी

11:00 to 11:30 AM

ग्वाल झांकी

17:30 to 18:00 PM

संध्या झांकी

18:30 to 19:45 PM

शयन झांकी

20:45 to 21:15 PM

 

मंदिर का  दर्शन समय और आरती  Temple Darshan Timings and Aarti

गोविंद देव जी का मंदिर भक्तों के लिए ग्रीष्म काल में सुबह 4:30 से दोपहर 12:00 बजे तक और शाम को 5:30 से 9:30 तक खुला रहता है।  और इसी तरह सर्दियों में सुबह 5:00 से 12:30 तक और शाम को 5:00 से 8:30 बजे तक खुला रहता है। 

गोविंद देव जी का मंदिर

 

गोविंद देव जी का मंदिर मे आरती का समय 30 मिनट से 45 मिनट के बीच होता  है। जो कि गर्मी और सर्दी के अनुसार बदलता रहता है।  गर्मियों के दौरान सुबह की मंगल आरती 4:30 बजे शुरू होती है उसके बाद धूप और शृंगार आरती क्रमश 7:30 को 9:30 बजे होती है। 

इसी प्रकार गोविंद देव जी का मंदिर में भगवान को भोग दोपहर 11:00 बजे से 11:30 तक चलता है इसे ‘राजभोग’ को कहा जाता है। इसी प्रकार संध्या आरती शाम 6:00 बजे होती है।  और शयन आरती रात्रि 9:00 बजे होती है। 

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बिड़ला मंदिर जयपुर ,इतिहास,वास्तु कला,दर्शन समय | Birla Mandir jaipur https://astroupdate.com/birla-mandir-jaipur/ https://astroupdate.com/birla-mandir-jaipur/#respond Fri, 27 Jan 2023 08:29:29 +0000 https://astroupdate.com/?p=3887 बिड़ला मंदिर जयपुर Birla Mandir jaipur

जैसा कि हम सब जानते हैं। भारत मैं विश्व प्रसिद्ध मंदिरों की कोई कमी नहीं है। इन्हीं विश्व प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है जयपुर का बिड़ला मंदिर जिसे लक्ष्मी नारायण मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। राजस्थान की राजधानी जयपुर में स्थित बिड़ला मंदिर वास्तुकला का एक अद्भुत नजारा पेश करता है। और इसे देखते ही मन उत्साहित हो जाता है। यह मंदिर भगवान श्री विष्णु और देवी लक्ष्मी को समर्पित है।  इसी के साथ मंदिर के अंदर वास्तुकला का एक अद्भुत नजारा देखने को मिलता है। जिसकी छवि अन्य हिंदू देवी देवताओं उपनिषदों का आकर्षण मंदिर के अंदर दीवारों पर देखने को मिलता है। मंदिर में हर वर्ष दीपावली जन्माष्टमी जैसे हिंदू त्यौहार को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है और मंदिर को सजाया जाता है। जोकि देखते ही बनता है और उस नजारे को देखने के लिए दूर-दूर से लोग मंदिर आते हैं।

मंदिर प्रतिदिन प्रातः 8:00 से दोपहर 12:00 बजे तक और शाम 4:00 से 8:00 के बीच खुला रहता है। लेकिन पर्यटकों के अनुसार है सबसे अच्छा समय संध्या के बाद का माना जाता है जहां मंदिर की खूबसूरती दिन दूनी रात चौगनी नजर आती है। बिड़ला मंदिर, जयपुर में मोती डूंगरी गणेश जी का मंदिर के पास तिलक नगर में स्थित है। जहां आपको भगवान श्री गणेश जी के मंदिर में भी जाने का अवसर प्राप्त होता है। इसी के साथ आप भगवान श्री नारायण और  भगवान श्री गणेश के एक साथ दर्शन प्राप्त कर सकते हैं। चलिए अब हम इस मंदिर के इतिहास और वास्तु कला को और अच्छे से जाने।

 

बिड़ला मंदिर जयपुर का इतिहास History Of Birla mandir

 

जयपुर के बिड़ला मंदिर का निर्माण 1988 में घनश्याम बिड़ला और रामानुज दास के निर्देशन में शुरू हुआ जो कि 22 फरवरी 1997 को  को आमजन के लिए खोल दिया गया। माना जाता है कि जयपुर के महाराजा द्वारा यह मंदिर की जमीन बिड़ला परिवार को एक रुपए अल्प राशि में दी गई थी। 

बिरला मंदिर जयपुर

बिड़ला मंदिर जयपुर वास्तु कला  Birla Mandir Jaipur Architecture

बिड़ला मंदिर जयपुर वास्तुकला का एक अद्भुत उदाहरण पेश करता है। शायद आज के जमाने में ऐसा मंदिर फिर से बना पाना मुश्किल हो। बिड़ला मंदिर जयपुर पूर्ण रूप से सफेद संगमरमर से बना हुआ है।  जोकि  देखने में बहुत ही सुंदर लगता है।  मंदिर के चार अलग-अलग हिस्से है।  जिसमें मुख्य भाग गर्भगृह,मीनार, मुख्य प्रवेश द्वार है इसमें तीन टावर है जो  तीन मुख्य धर्मों वह प्रदर्शित करते हैं और साथ ही साथ प्राचीन हिंदू कहानियों को दर्शाती हुई  कांच  की खिड़कियां हैं। संगमरमर की मूर्तियां हिंदू प्राचीन कथा को प्रदर्शित करती है।  इसके अंदर हिंदू देवी देवताओं विशेषकर श्री नारायण विष्णु , माता लक्ष्मी और भगवान गणेश को दर्शाया गया है और साथ ही साथ बाहरी दीवारों पर क्राइस्ट, वर्जिन मैरी, सेंट पीटर, बुद्ध, कन्फ्यूशियस और सुकरात जैसे दार्शनिक महात्माओं को दिखाया गया है।

बिड़ला मंदिर जयपुर के संत श्री रुकमणी देवी बिड़ला ,बृजमोहन बिड़ला की मूर्तियां अग्र भाग स्थित  मंडपम के साथ है।  जोकि मंदिर के सामने हाथ जोड़ें मुद्रा में दिखाई देते हैं।  बिड़ला मंदिर जयपुर को बनाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखा गया कि यह मंदिर अपनी एक अलग पहचान रखे इसके लिए मंदिर को जयपुर के क्षितिज से ऊपर उठा कर बनाया गया है।  मंदिर के पीछे पहाड़ पहाड़ है जिस पर महारानी गायत्री देवी का महल बना हुआ है।  जिसके कारण यह मंदिर देखने में और भी मनमोहक लगता है। इसके अलावा मंदिर के चारों और छोटे-छोटे बगीचे हैं और छोटे दुकाने हैं। मंदिर में बिड़ला परिवार का एक संग्रहालय भी बना हुआ है।  जहां बिड़ला  परिवार से जुड़ी हुई तस्वीरें और वस्तुओं को संग्रहित किया गया है।  

बिड़ला मंदिर जयपुर  दर्शन  का समय  Birla Mandir Jaipur Darshan Timings

 

यूं तो बिड़ला मंदिर साल के 365 दिन पर्यटन के लिए खुला रहता है। बिड़ला मंदिर में दर्शन का समय प्रातः 8:00 बजे से दोपहर के 12:00 बजे तक और शाम को 4:00 से 8:00 तक रहता है। बाकी समय मंदिर के पट बंद रहते हैं परंतु पर्यटक मंदिर जा सकते हैं और मंदिर की वास्तुकला का आनंद ले सकता है। 

 

 

यूं तो आप साल के 12 महीने में कभी भी जयपुर के बिड़ला मंदिर जा सकते हैं।  फिर भी बिड़ला मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय मार्च से अक्टूबर तक माना जाता है क्योंकि  बिड़ला मंदिर राजस्थान में जहां गर्मियों में तेज गर्मी पड़ती है।  अप्रैल से लेकर जुलाई तक यहां तेज  गर्मी पड़ती है। इसलिए जयपुर के बिड़ला मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय बसंत ऋतु या फिर सर्दियों के महीने यानी कि अक्टूबर से लेकर मार्च तक माना जाता है।  इस समय जयपुर शहर में  पर्यटक को आनंद की प्राप्ति होती है। लेकिन पर्यटक यह भी ध्यान रखें अगर आप सर्दियों के मौसम में जयपुर के बिड़ला मंदिर देखने का योजना बना रहे हैं तो अपने साथ ऊनी कपड़े यानि के गर्म कपड़े ले जाना ना भूलें क्योंकि इस दौरान यहां रात का तापमान 4 डिग्री तक आ जाता है। परंतु  दिन में मौसम घूमने के लिए सबसे अच्छा होता है। 

 

 

बिड़ला मंदिर जयपुर कैसे जाये  How To Reach Birla Mandir Jaipur

बिड़ला मंदिर जयपुर रेलवे स्टेशन से दूरी लगभग 5 किलोमीटर है। और नारायण सिंह सर्किल से लगभग 1 किलोमीटर है। बिड़ला मंदिर जयपुर के दर्शन करने के लिए राजस्थान की राजधानी जयपुर जा रहे हैं तो आपको बता दें कि आप हवाई यात्रा द्वारा भी जयपुर जा सकते हैं।  जोकि  काफी आरामदायक होगा। जयपुर में स्थित सांगानेर हवाई अड्डा भारतवर्ष के प्रमुख सभी हवाई अड्डे से डायरेक्ट कनेक्ट है। आप सांगानेर हवाई अड्डे से जवाहरलाल नेहरू मार्ग होते हुए बिड़ला मंदिर जयपुर  आ सकते  है जिसकी  दूरी तकरीबन 9 किलोमीटर है। इसके लिए आप किसी टैक्सी या कैब के द्वारा मंदिर आ सकते हैं। 

 

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