लेख सारणी
बसंत ऋतू उतर भारत एवं उसके समीपवर्ती देशों की छः ऋतुहो में से एक ऋतू है जो फ़रवरी मार्च अप्रैल के मध्य अपना सौन्दर्य बिखरती है। हिन्दू संस्कृती से ऐसा माना गया है की माघ महीने की शुक्ल पंचमी से बंसत ऋतु का आरंभ होता है। फाल्गुन और चैत्र मास बसंत ऋतू के माने गये है फाल्गुन वर्ष का अंतिम एवं चैत्र वर्ष का पहला महीना है। इसी कारण हिन्दू संस्कृति के अनुसार वर्ष का अंत और प्रारंभ बसंत ऋतू के साथ ही होता है बसंत ऋतू के आते ही शर्दी काम हो जाती है और मौसम सुहावना हो जाता है पेड़ो में नए पते आने लगते है चारो तरफ हरियाली ही हरियाली हो जाती है पेड़ पोधो पर भवरें गुंजन करते रहते है पेड़ पौधे पर फल फूल लगने लगते है जिस से बोर गुंजन करते रहते हे और उनकी प्यारी आवाज कानो तक सुनाई देती है जिस से मन प्रशन्न हो जाता है। सरसो के खेत मके चारो तरफ पिले रंग के सुनहरे फूल ही फूल नजर आते है क्युकी इसी महीने में सरसो के फूल खिल जाते है चारो तरफ का वातावरण बहुत ही आन्दमय रहता है इसी लिए राग रंग उत्सव मनाने के लिए ये ऋतू सबसे सर्वश्रेष्ठ मानी गयी है। इसे ऋतुहो का राजा भी कहा जाता है।
बसंत ऋतू के समय प्रकर्ति के अंदर बहोत से परिवर्तन दिखाई देते है जिनसे भी पता लगया जा सकता है की बसंत ऋतू का आगमन हो गया है बसंत ऋतू के आगमन होते ही सभी प्रकार के परिवर्तन दिखाई देने लग जाते है। बसंत ऋतू वर्ष की 6 ऋतुहो में से एक है और जो सर्वश्रेष्ठ है बसंत ऋतू में वातावरण का तापमान बहुत ही आनदमय होता है जिस से मौसम बड़ा ही सुहाना लगता है। भारत में बसंत ऋतू फरवरी से मार्च तक रहती है। अन्य देसो में भी बसंत ऋतू होती है लेकिन अलग अलग समय पर होती है। इस बसंत ऋतू की मुख्य विशेष्ता है मौसम का गरम होना, फूलो का खिलना, पौधो का हरा भरा होना और बर्फ का पिघलना इस प्रकार के परिवर्तन प्रकर्ति में देकने को मिलते है. इस प्रकार के परिवर्त अन्य ऋतुहो में देकने को नहीं मिलते है।
इसीलिए बंसत ऋतू सभी के दिलो में एक अलग सी पहचान बन रखी है। भारत के मुख्य त्यौहार भी इसी महीने म भी आते है बसंत ऋतू के प्रारंभ में बसन्तपंचमी जिस दिन सरस्वती माँ का जन्मदिवस जिस कारण से चारो तरफ उल्लास ही उल्लास नजर आता है और बसंत ऋतू के अंतिम समय में होली एवं रंगो का त्यौहार और इस महीने में पेड़ पोधो उद्यानों में हरियाली ही हरियाली नजर आती है जिस से लोग उद्यानों में घूमने फिरने का शोक रहता है और सभी जिव जंतु मानव जाती इस सभी के लिए सबसे सर्वश्रेष्ठ ऋतू ये ही मानी गयी है। पौराणिक कथाओ के अनुसार इस बसंत को कामदेव को पुत्र भी कहा गया है कवि देव ने वसंत ऋतु का वर्णन करते हुए कहा है कि रूप व सौंदर्य के देवता कामदेव के घर पुत्रोत्पत्ति का समाचार पाते ही प्रकृति झूम उठती है, पेड़ उसके लिए नव पल्लव का पालना डालते है, फूल वस्त्र पहनाते हैं पवन झुलाती है और कोयल उसे गीत सुनाकर बहलाती है। इस प्रकार कवी देव ने बसंत ऋतू का वर्णन किया है। वेदों के अनुसार माने तो भागवत गीता में कहा गया है श्री कृष्ण द्वारा की में ऋतुओ में बसंत हूँ। बसंत ऋतू में हिन्दू त्योहारों की बात करे तो बसंत ऋतू में माँ सरस्वती के जन्म दिवस के रूप में भी मन्या जाता है जिसे बसंत पंचमी के नाम से जाना जाता है। बसंत पंचमी के बाद महाशिवरात्रि ,होली नामक पर्व भी इसी बंसत ऋतू में मनाये जाते है।
भारत एक विशाल देश जिस में हिन्दू संस्कृति में त्यौहार का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रहा है। भारत में प्रत्येक प्रांतो में हर त्योहार अलग अलग रूपों में या अलग तरीकों से मनाया जाता है। ये त्यौहार प्राचीन समय से आ रहे रीति रिवाज़ो के अनुसार ही मनाया जाता है। हिन्दू संस्कृती से ऐसा माना गया है की माघ महीने की शुक्ल पंचमी से बंसत ऋतु का आरंभ होता है जो इस वर्ष 2022 में 5 फ़रवरी को मनाया जायेगा। और इस दिन ज्ञान की देवी माँ सरस्वती का जन्मदिवस के रूप में भी मनाया जाता है। हिन्दू धर्म में हर एक त्यौहार का एक बहुत बड़ा महत्व होता है और प्रकर्ति में होने वाले परिवर्तन के बारे में भी इस त्यौहार से पता चलता है इस दिन सभी शिक्षण संस्थाओ में बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है। और माँ सरस्वती की पूजा की जाती है और इस दिन पिले वस्त्र पहने जाते है। और माँ को मिठाई के रूप में भी पिले पकवानों का भोग अर्पण किया जाता जाता है।
इस वर्ष बसंत पञ्चमी 2022 में 5 फ़रवरी शनिवार के दिन ये पर्व मनाया जायेगा बसंत का सीधा सा अर्थ सौंदर्य से है। बसंत पंचमी माघ मास के शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि को मनायी जाती है पंचमी तिथि का इस लिए महत्व की इस दिन माँ सरस्वती देवी जो विद्या की पुस्तकों की धारणी का जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। ग्रंथों के अनुसार इस दिन देवी मां सरस्वती प्रकट हुई थीं। तब देवताओं ने देवी स्तुति की। स्तुति से वेदों की ऋचाएं बनीं और उनसे वसंत राग। इसलिए इस दिन को वसंत पंचमी के रूप में मनाया जाता है। बसंत का सीधा सा अर्थ सौंदर्य से है बसंत पंचमी को आते ही प्रकर्ति में एक अलग सी ही रौनक आ जाती है प्रकर्ति में परिवर्तन दिखाई देने लगते है बसंत ऋतू को शुरु होते ही पेड़ पौधो पर नये पते ेव सुगंदित पुष्प आते है जिनकी एक अलग से पहचान बना थे है। और मौसम में भी परिवर्तन आने लगता है। बसंत ऋतू को सभी ऋतुओ का राजा भी इसी लिए कहा गया है राजा इस लिए कहा गया है की एक तो बसंत ऋतू और दूसरा बाबा बोले का महीना श्रावण मांस ये दोनों ही सभी प्राणियों के मन को जित लेते है क्युकी इन्ही दोनों महीनो में प्रकर्ति का नजारा एक बहुत ही आकर्षक होता है इन को आते ही प्रकर्ति में परिवर्तन होते है और ये प्राणियों को मनमोहित कर देते है। यह दोनों महीने ही सहित्य संगीत और सकारात्मक ऊर्जा उत्पन करते है।
इस दिन माँ सरस्वती वाणी एवं ज्ञान की देवी की पूजा की जाती है क्यों की आप सभी जानते हो की ज्ञान की देवी सरस्वती माता ही होती है और ज्ञान में सबसे सर्वश्रेष्ठ कहा गया है इस का प्रमाण आपको माँ वैष्णो देवी के मंदिर में भी माँ काली माँ सरस्वती एवं माँ लक्ष्मीं इन तीनो देवियो का ही वहा निवास करती है जिस प्रकार दुर्गा माता का महत्व नवरात्री एवं लक्ष्मी माता का महत्व दिवाली पर होता हे उसी प्रकार सरस्वती माता का महत्व बसंत पंचमी के दिन होता बसंत पंचमी के दिन सभी शिक्षण संस्थाहो में शिक्षक एवं विद्यार्थियों द्वारा बसंत पंचमी की दिन विशेष रूप से माता सरस्वती की पूजा अर्चना की जाती है एवं साथ ही विद्यार्थियों द्वारा अपनी पुस्तक कलम की भी विधि विधान के साथ पूजा की जाती है संगीतकार वाद्ययंत्र ये भी अपनी अपनी संगीत के यंत्रो की पूजा करते इसी दिन को बसंत पंचमी माँ सरस्वती के जन्मदिवस के रूप में हम लोग जानते है। इसीलिए माँ सरस्वती के जन्म दिवस के रूप में हम लोग बसंत पंचमी का उत्सव इतनी धूम धाम से मना थे है।
वेदो के अनुसार बताया गया है की बसंत पंचमी के दिन पिले रंग का महत्व है इस दिन माँ सरस्वती के भी पिले रंग के पुष्प अर्पित किये जाते है और माँ सरस्वती के पिले कपडे एवं पीला भोजन ही चढ़या जाता है और पिले रंग के कपडे पहने जाते है जिस से माँ सरस्वती अपने बच्चो से प्रशन्न रहती है मुख्य बात ये है की बसंत पंचमी के दिन मोसम बड़ा सुहाना रहता है। मौसम परिवर्तन होने लगता है सूर्य की किरण पृथ्वी और इस प्रकार दिखाई देती है की जैसे सोने की परत बिछा दी गयी हो इसीलिए चारो तरफ पीला रंग ही रंग नजर आता है सरसों के पुष्पों का सबसे ज्यादा महत्व रहता है इन पुष्पों को चढ़ाने से माँ सरस्वती अपने बच्चो से जल्दी प्रशन्न होती है और सरसो के पुष्प भी पक कर पिले हो जाते है इस से चारो तरफ पीला ही पीला नजर आता है और इस दिन माँ सरस्वती का पूजा करना भी शुभ माना गया है और पीला रंग उत्साह का भी प्रतीक होता है इसीलिए पिले रंग का महत्व होता है बसंत पंचमी के दिन पिले रंग का बहुत महत्व होता है क्यों की पिले वस्त्र कुमकुम का भी पूजा में काम में शुभ माना गया है। वास्तु शास्त्र के अनुसार भी माने तो घर के मुख्य गेट पर दीवार पर भी पीला रंग करने से घर का वास्तु शास्त्र बना रहता है।
नकारत्मक ऊर्जा को अपने पास नहीं आने देता है। यदि पिले रंग का रुमाल अपनी जेब में भी रखे तो नेगेटिव शक्तिया अपने पास या अपने दीमक में भी नहीं आती है। पिले रंग की कुमकुम या हल्दी का तिलक अपने ललाट पर लगाने से मन सही रहता है और ह्रदय शुद बना रहता है और किसी भी प्रकार के गलत विचार या नेगेटिव विचार अपने दीमक में नही आते है। विवाह के समय भी पिले रंग का बहुत महत्व होता है क्यों की फेरो के समय भी वर एवं वधु के पिले हाथ भी हल्दी से करवाया जाता है कन्यादान के समय पिले हाथ करने से ही फेरों का आगे का भी विधि विधान बाद में ही शुरू होता है। विवाह के समय तेल बान के समय भी पिली हल्दी का महत्व होता है और उस दिन भी परिवार के सभी लोग पिले रंग के वस्त्र आभूषण पहनते है। इसी लिए पिले रंग का हिंदू संस्कृति में बहुत ही बड़ा महत्व होता है। धार्मिक कार्य में भी पिले रंग के कपड़ो का बहोत महत्व होता है। इसीलिए पिले रंग का महत्व हर कार्य में होता है। ये रंग बागवान विष्णु का है। और इस से भगवान विष्णु काफी प्रशन्न होते है। इसी लिए बसंत पंचमी को पिले रनग का महत्व बतया गया है।
माँ सरस्वती की पूजा बसंत पंचमी पर करने से माँ सरस्वती अपने बच्चो से जल्दी प्रशन्न होती है इसलिए माँ सरस्वती की पूजा करना चाइये। आये हम अब जानते है माँ सरस्वती की पूजा कैसे करे।
1… बसंत पंचमी के दिन ब्रम मुहूर्त में उठ कर स्नान कर के माँ सरस्वती की प्रतिमा को पिले रंग की चुनड़ी, पिले रंग के पुष्पः पिले रंग का बोग अर्पण कर के माँ के सामने दीपक जला कर माँ सरस्वती की वंदना करे और पिले रंग का चन्दन माँ को अर्पित कर के अपने सर पर भी लगये
2…माँ सरस्वती की प्रतिमा के सामने अपनी पुस्तक कलम वाद्य यंत्र संगीत के यंत्र आदि माता की प्रतिमा के सामने रख कर उनकी भक्ति भाव से पूजा अर्चना करे और उनको भी दीपक दिखाए एवं चन्दन लगाये
3… माँ सरस्वती की प्रतिमा के सामने बैठ कर शुद्ध ह्रदय के साथ माँ सरस्वती को हाथ जोड़ कर उनकी प्रार्थना करे एवं माँ से विनती करे की हमे विद्या बुद्धि का भण्डार करे एवं
बसंत पंचमी के दिन माँ सरस्वती की पार्थना को करने से माँ अपने बच्चो से जल्दी प्र्शन्न होती है।
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता – या
वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवै: सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती नि:शेषजाड्यापहा (श्लोक 1)
आशासु राशीभवदंगवल्ली
भासैव दासीकृतदुग्धसिन्धुम्
मन्दस्मितैर्निन्दितशारदेन्दुं
वन्देSरविन्दासनसुन्दरि त्वाम् (श्लोक 2)
(SARASWATI MATA KI AARTI)
ओम जय सरस्वती माता, जय जय सरस्वती माता
सदगुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता
जय जय सरस्वती माता
चंद्रवदनि पदमासिनी रंगुति मंगल करारी
सोहे शुभ हंसा सियारी, अतुल तेज धारी
जय जय सरस्वती माता
बये कर मे वीणा, दये कर माला
शीश मुकुट मणि शोहे, गले मोतीयन माला
जय जय सरस्वती माता
देवी शरण जो आए, उसका उद्धार किया
बैथि मंथरा दासी, रावण संहार किया
जय जय सरस्वती माता
विद्या ज्ञान प्रदायिनी, जग में ज्ञान प्रकाश भरो
मोह और अग्यान नाश करो
जय जय सरस्वती माता
धुप गहरी बाज मेवा, मन स्विकार करो
ज्ञानचक्षु दे माता, जग निस्तार करो
जय जय सरस्वती माता
माँ सरस्वती जी की आरती जो कोई सुनाये
हितकारी शुक्कारी ज्ञान भक्ति पावे
जय जय सरस्वती माता।