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Krishna Janmashtami 2023 |  कृष्ण जन्माष्टमी 2023 कब है, महत्व, मुहूर्त, पूजा विधि और पारण विधि

Krishna Janmashtami 2023
October 15, 2021

Krishna Janmashtami – जन्माष्टमी 2023 कब है और  मुहूर्त | Janmashtami 2023 Muhurat 

संपूर्ण भारत वर्ष में कृष्ण जन्माष्टमी एक भव्य पर्व के रूप में मनाया जाता है |क्योंकि इस दिन  सृष्टि के पालक भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था, और  श्री कृष्ण के जन्म उत्सव को ही कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है | भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी कहते हैं, वर्ष 2023 में कृष्ण जन्माष्टमी 6, 7 सितम्बर बुधवार, गुरुवार  के दिन मनाई जाएगी . भगवान श्री कृष्ण ने द्वापर युग में अपनी रासलीलाओ, युद्ध लीलाओ तथा महाभारत जैसे युद्ध को नीति और धर्म के अनुरूप लड़ा है . भगवान श्री कृष्ण देवकी तथा वासुदेव की आठवीं संतान थे . भगवान श्री कृष्ण का जन्म कंस के कारागार में ही हुआ था .परंतु श्री कृष्ण का लालन-पालन गोकुल में हुआ था .

आइए जानते हैं कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में भगवान श्री कृष्ण को किस तरह से आराध्य मानते हुए पूजा अर्चना की जाती है ? तथा कैसे कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाता है ? और कृष्ण जन्माष्टमी 2023   के पर्व का महत्व तथा इससे जुड़ी धार्मिक कथा को आज आप इस लेख में विधिवत जानने वाले हैं. इसलिए आप इस लेख को ध्यान पूर्वक पढ़ते रहिए .

कृष्ण जन्माष्टमी 2023 का महत्व – Importance of Krishna Janmashtami

भारतवर्ष में कृष्ण जन्माष्टमी को भव्य पर्व के रूप में मनाया जाता है | हिंदू धर्म में भगवान श्री कृष्ण बहुत महत्व रखते हैं | धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथी और रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। अष्टमी के दिन श्री कृष्ण बाल रूप में लड्डू गोपाल की पूजा- अर्चना की जाती है। इस दिन व्रत भी धारण किया जाता है। जो श्रद्धालु भगवान श्री कृष्ण को श्रद्धा पूर्वक ध्यान करते हुए व्रत का विधि पूर्ण पालन करते हैं, उन्हें भगवान श्री कृष्ण की विशेष कृपा का सौभाग्य मिलता है .भगवान श्री कृष्ण का द्वापर युग में 16 कलाओं के साथ अवतार हुआ था .  कृष्ण भगवान की बाल कृष्ण लीलाओं के साथ रासलीला, कंस का वध, महाभारत जैसे भयंकर युद्ध तथा गीता जैसा ज्ञान मार्ग इस सृष्टि के लिए मर्मज्ञ स्थान रखते हैं .

भगवान श्री कृष्ण की सभी लीलाओ तथा ज्ञान मार्ग को हिंदू धर्म का आधार माना जाता है . इसी के चलते कृष्ण जन्माष्टमी के दिन भगवान को याद करते हुए उनके जन्म उत्सव में हर श्रद्धालु अपना तन मन धन न्योछावर कर देते हैं . कृष्ण का बाल स्वरूप की पूजा अर्चना की जाती है तथा उन्होंने बचपन में जो भी शरारतें की गई थी उन्हें दोहराते हुए मनोरंजन का साधन बनाया जाता है . भगवान श्री कृष्ण द्वारा बचपन में माखन चुराना, माखन की मटकी फोड़ना जैसी शरारत हर किसी का दिल मोह लेती है . इसी के चलते श्रद्धालु दही की मटकी फोड़ा करते हैं और बड़ी धूमधाम के साथ भगवान श्री कृष्ण का जन्म उत्सव पर्व मनाया जाता है. 

 

कृष्ण जन्माष्टमी 2023   मुहूर्त तथा पूजा विधि – Krishna Janmashtami Muhurat and Pooja Vidhi

वर्ष 2023   में कृष्ण जन्माष्टमी 6, 7 सितम्बर 2023 बुधवार, गुरुवार  के दिन मनाई जाने वाली है . कृष्ण जन्माष्टमी 2023   शुभ मुहूर्त अष्टमी तिथि प्रारंभ 6 सितम्बर दिन बुधवार को दोपहर 11 बजकर 43 मिनट से शुरू होगा .

अष्टमी तिथि समाप्त-  07 सितम्बर दिन गुरुवार  को  रात 12 बजकर 29 मिनट पर होगा।

 

कृष्ण जन्माष्टमी पूजा विधि – Krishna Janmashtami Pooja Vidhi

 अष्टमी के दिन जो भी श्रद्धालु कृष्ण जन्माष्टमी व्रत धारण करना चाहते हैं उन्हें सवेरे जल्दी उठकर शारीरिक स्वच्छ हो जाना चाहिए .

 भगवान श्री कृष्ण के यथावत मंदिर को स्वच्छ बनाएं .

 दीप प्रज्वलित करें तथा भगवान श्री कृष्ण का बाल मुहूर्त तथा बाल गोपाल की मूर्ति स्थापित करें .

 बाल गोपाल को जलाभिषेक करें स्वच्छ कपड़े धारण कराए .

 भगवान श्री कृष्ण के बाल स्वरूप को संभव हो तो झूला झुलाये .

 लड्डू का भोग लगाएं तथा प्रसादी में लड्डू ही विशेष तौर पर भगवान बालकृष्ण को पसंद है .

 बाल गोपाल के दिन में और रात्रि में पूजा करना विशेषकर फलदायक माना गया

 है . क्योंकि भगवान श्री कृष्ण का जन्म रात्रि में ही हुआ था .

बाल गोपाल का पूजा शुभ मुहूर्त में करना श्रेष्ठ फलों का कारक बनता है  इसलिए 6 सितम्बर दिन बुधवार को दोपहर 11 बजकर 43 मिनट से शुरू होगा

अष्टमी तिथि समाप्त-  07 सितम्बर दिन गुरुवार  को  रात 12 बजकर 29 मिनट पर होगा।

 

कृष्ण जन्माष्टमी व्रत विधि – Krishna Janmashtami Vrat Vidhi

 

  • अष्टमी के दिन जो भी जातक जन्माष्टमी व्रत धारण करना चाहते हैं वह सवेरे जल्दी उठकर शारीरिक स्वच्छ होने चाहिए .
  •  तत्पश्चात भगवान श्री कृष्ण के बाल स्वरूप का दर्शन करते हुए उनके पूजा अर्चना आदि करनी चाहिए .
  •  बाल गोपाल को लड्डू का भोग लगाएं तथा संभव हो तो झूला झुलाये .
  •  बाल गोपाल का ध्यान करते हुए भगवान का ध्यान करें और संपूर्ण दिन निराहार रहकर व्रत का संकल्प लें .
  •  व्रत धारण करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखें की व्रत का पारण अगले दिन सुबह ही होगा . इसलिए आप अन्न से बनी वस्तुओं को छोड़कर दूसरी वस्तुओं का आहार कर सकते हैं .
  •  भगवान श्री कृष्ण का रात्रि में जन्म हुआ था इसलिए रात को 12:00 बजे  तक पूजा अर्चना आदि समाप्त कर लेना चाहिए .पूजा अर्चना के लिए आप शुभ मुहूर्त का जरूर ध्यान रखें .

 

कृष्ण जन्माष्टमी व्रत पारण विधि – Krishna Janmashtami Paran Vidhi

जिन जातकों ने व्रत धारण किया है उन्हें अगले दिन अर्थात  8 सितम्बर  को सवेरे व्रत पारण करना श्रेष्ठ रहेगा . कुछ लोगे रोहिणी नक्षत्र के समापन के बाद भी व्रत का पारण करते हैं, परंतु  8 सितम्बर को सुबह 4  बजकर 14  मिनट बाद व्रत का पारण कर सकते हैं।

जन्माष्टमी का व्रत धारण करने वाले श्रद्धालु सात्विक भोजन के साथ शुभ मुहूर्त में व्रत का पारण करें तो उन्हें विशेष फल की प्राप्ति होती है . तथा भगवान श्री कृष्ण की विशेष कृपा के भागीदार बनते हैं .

 

 कृष्ण जन्माष्टमी पर्व कैसे मनाया जाता है -How to Celebrate Krishna Janmashtami?

भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन श्रद्धालु अति उत्साहित रहते हैं . क्योंकि इस दिन जगत के स्वामी भगवान नारायण का अवतार हुआ था . इस दिन श्रद्धालु भगवान श्री कृष्ण के बाल स्वरूप का दर्शन करते हैं  . तथा पूजा अर्चना आदि विधि विधान से किया करते हैं . गुजरात और अन्य राज्यों में कृष्ण जन्माष्टमी के दिन डांडिया नृत्य खेला जाता है . तथा कहीं पर हांडी फोड़ प्रतियोगिताएं की जाती है . जहां पर कुछ लोग पिरामिड बनाकर ऊपर टंगी हांडी को फोड़ कर आनंदित होते हैं. अनेक प्रकार की बाल लीलाओं का प्रसारण करते हैं . तथा अपने छोटे बच्चों को  बाल कृष्ण के रूप में सजाते हैं और उन्हें कृष्ण स्वरूप मानते हुए झूला झुलाते हैं . तथा मिठाइयां आदि खिलाते हैं .

 भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं का मंच पर नृत्य तथा संगीत के साथ मनोरंजन के रूप में प्रदर्शन किया जाता है . कई राज्यों में भगवान श्री कृष्ण की झांकियां निकाली जाती है और श्रद्धा पूर्वक कृष्ण लीलाओं के साथ त्योहार को जश्न के साथ मनाया जाता है . भगवान श्री कृष्ण के मंदिर में इस दिन श्रद्धालुओं की काफी भीड़ होती है . तथा जितने भी प्रसिद्ध मंदिर हैं उनमें भव्य आयोजन किए जाते हैं .

 कृष्ण जन्माष्टमी 2023   का व्रत धारण करने वाले जातक उत्साहित होते हुए भगवान के  अवतार दिवस को विशेष दिन मानते हुए श्रद्धा पूर्वक निराहार रहकर व्रत धारण करते हैं .तथा शुभ मुहूर्त में सात्विक भोजन के साथ व्रत का पारण करते हैं .

 कृष्ण जन्माष्टमी व्रत कथा –  Krishna Janmashtami Vrat Katha

 “यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत, अभ्युत्थानम अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्” . जब जब भी धरती पर धर्म की हानि होती है तथा अधर्म का प्रकोप बढ़ने लगता है तब भगवान स्वयं अवतरित होते हैं और उस आतताई का अंत करते हैं . इसी प्रकार भगवान चारों युगों में अवतरित होकर धर्म का पालन तथा अधर्म का नाश करते हैं . द्वापर युग में भोज वंशी राजा उग्रसेन राज्य किया करते थे . राजा उग्रसेन का चरित्र धार्मिक था. परंतु उनके पुत्र अति उदंडी तथा अधर्म का पालन करने वाला था . जिसका नाम कंस था . कंस खुद को को भगवान समझता था . कंस द्वारा धार्मिक पुरुषों को तथा साधुओं को क्षति पहुंचाई जा रही थी . राजा उग्रसेन लाख कोशिशों के बावजूद भी कंस को धर्म का मार्ग नहीं सिखा पाए .

कंस की दिन-ब-दिन बढ़ती आतताई को देखते हुए मथुरा राज्य में हाहाकार मचने लगा . जो धर्म पर जीते आ रहे थे उन्हें अब सांस लेना भी मुश्किल हो रहा था और अधर्म का तो बोलबाला बढ़ चुका था .

जानिए कृष्ण की बहन कौन थी ?

 कंस की बहन थी जिसका नाम देवकी था उन्होंने बहन की शादी यदुवंशी राजा वासुदेव से करवा दी . वासुदेव धर्म के मर्मज्ञ थे . जब कंस बहन को विदा करते हुए खुद उसको ससुराल पहुंचाने के लिए रवाना हुआ तब रास्ते में एक आकाशवाणी हुई . उस आकाशवाणी में तेज संबोधन हुआ कि कंस अब तुम्हारा अंत निकट आ चुका है. देवकी की आठवीं संतान ही तुम्हारी मौत का कारण बनेगी . तथा उसी के द्वारा तुम्हारा वध होगा . ऐसा सुनकर कंस को बड़ा आहत हुआ और उसने अपने प्राणों को संकट में जानते हुए देवकी तथा वासुदेव की उसी वक्त प्राण लेने की कोशिश की . तब देवकी ने कहा कि वह छोटी संतान तुम्हें कैसे मार सकती है. फिर भी अगर ऐसा होता है तो मैं तुम्हें अपने संपूर्ण पुत्र न्योछावर कर दूंगी और तुम मेरे और मेरे पति के प्राणों की रक्षा करो .

 देवकी के ऐसा कहने पर कंस मान गया और उसने अपने  पिता उग्रसेन को बंदी बनाकर कारागा में डाल दिया .कंस देवकी और वासुदेव को भी कारागार में बंद कर चुका था .

समय बीतता गया जैसे ही देवकी का गर्भ ठहरा तो कंस ने उनका पहरा बढ़ा दिया और कहा कि जैसे ही कोई पुत्र या पुत्री का जन्म हो तो तुरंत मेरे पास पहुंचाया जाए  ऐसी आज्ञा जानकर सभी द्वारपाल चौकाने रहने लगे .

आइये जानते है हिन्दू धर्म  में इस कथा का क्या महत्व है,  और  इसे क्यों जानना  चाहिए ?

 देखते ही देखते देवकी के 6 पुत्र कंस ने मौत के घाट उतार दिए . अब समय आ चुका था भगवान के अवतरित होने का इसी समय देवकी को आठवां गर्भ ठहरा  और कंस ने देवकी और वासुदेव की और चौकसी बढ़ा दी .

 भाद्रपद महा की कृष्ण पक्ष अष्टमी के दिन भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ और जन्म होते ही वासुदेव को एक दिव्य शक्ति के दर्शन हुए और उन्हें प्रेरणा मिली कि बाल कृष्ण को आप वृंदावन पहुंचा दें . तब वासुदेव ने देखा कि उसके हाथ और पैरों में बेड़ियां थी . गेट पर पहरेदार थे . परंतु जैसे ही वासुदेव खड़े हुए तो उनकी सभी बेड़ियां खुल गई और जितने भी द्वारपाल थे सभी नींद में चले गए .

 वासुदेव यमुना नदी पार करते हुए वृंदावन जाकर यशोदा के यहां पर अपने पुत्र बालकृष्ण को रख दिया और वहां से यशोदा से उत्पन्न हुई पुत्री को वापस लेकर पुन: कारागार में आ गए . जैसे ही भगवान की लीला समाप्त हुई तो सभी को पता चला कि देवकी ने आठवीं संतान को जन्म दे दिया है . तभी कंस तुरंत वहां पर पहुंच जाता है और आनंदित होता है कि अब मैं आठवीं संतान का वध कर दूंगा और मैं अमर हो जाऊंगा और वह आकाशवाणी झूठी साबित हो जाएगी . इतना सोच कर कंस उस कन्या को पत्थर की शिला पर जैसे ही पटकता है तो वह कन्या कंस के हाथ से छूटकर एक  दिव्य देवी के रूप में प्रकट होती और कंस से कहती है हे कंस ! तुम्हारा अंत निकट आ चुका है . तुम्हारा वध करने वाला इस दुनिया में जन्म ले चुका है और वह  सुरक्षित वृंदावन पहुंच चुका है .अब तुम अपनी मृत्यु का इंतजार करो . ऐसा कह कर वह दिव्य ज्योति अंतर्ध्यान हो जाती है .

जानिए कंस का वशुदेव जी ने क्या न्याय किया ?

 अब कंस को अपने प्राणों का भय लगने लगा और उसने देवकी और वासुदेव को प्रताड़ित करना शुरू कर दिया . तभी वासुदेव ने कहा कि हमारे जो भी पुत्री जन्म ली थी वह मैंने तुम्हें दे दी है और इसके अलावा हम कुछ नहीं जानते और हां तुम्हारे कारागार में जो भी द्वारपाल है उनसे पूछ लो कि अगर कोई अंदर आया था या बाहर आया था ऐसी कोई घटना नहीं हुई है.

 इधर जैसे ही यशोदा को पता चलता है कि उसके यहां पर पुत्र का जन्म हुआ है . तो नंदराम जी तथा यशोदा बड़े प्रसन्न होते हैं और उन्होंने पूरे गांव में इस दिन को बड़े भव्य उत्सव के रूप में मनाते हैं .अब भगवान श्री कृष्ण धीरे-धीरे बड़े होने लगे और बाल रूप में कई लीला रचने लगे. उनकी लीला सभी को मनमोहक लगती थी और उनका स्वरूप देखकर हर कोई उनका कायल हो जाता था . उनकी छवि मनमोहक थी . इसीलिए बचपन में भगवान श्री कृष्ण का कई नामों से जाप किया जाता था जैसे मदन मोहन, मदन गोपाल, बाल कृष्ण, लड्डू गोपाल, माखन चोर आदि नामों से भगवान कृष्ण को पुकार कर प्रजा प्रसन्न रहने लगी . इन्हीं लीलाओं के चलते भगवान श्री कृष्ण को आज भी याद किया जाता है . तथा उनकी श्रद्धा पूर्वक पूजा अर्चना की जाती है .

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