astrocare
domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init
action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in C:\inetpub\vhosts\astroupdate.com\httpdocs\wp-includes\functions.php on line 6114वैदिक ज्योतिष क्या होती है ? ज्योतिष शास्त्र का वर्णन हिंदुओं के वेदों में देखने को मिलता है, जिसमें धार्मिक कथाओं से साथ चिकित्सा, खगोल और रसायन विज्ञान जैसे विषयों की जानकारी मिलती है। वेदों से ही इस वैदिक ज्योतिष का जन्म हुआ है और इसी कारण से इसको वैदिक ज्योतिष का नाम मिला है। वैदिक ज्योतिष का प्रयोग भविष्य के बारे में एक परिकल्पना प्राप्त हो जाती है। इस भविष्यवाणी को ग्रहों, राशियों एवं नक्षत्रों की गणना के अनुसार किया जाता है।
हमारे पूर्वजों ने काफी वर्षों की मेहनत के बाद इस विद्या का निर्माण किया था और समय के साथ-साथ इसमें नई चीजों का संयोजन करके इसे और बेहतर बनाते गए। आज के समय में ज्योतिष विद्या का ज्ञान सीमित लोगों तक ही रह गया है। आइए आपको बताते हैं कि वैदिक ज्योतिष क्या है और जानते हैं इसके महत्व के बारे में।
यह वह विद्या है जिसमें व्यक्ति ग्रहों, राशियों, नक्षत्रों, चंद्रमा और सूर्य द्वारा मनुष्य जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में पढ़ता है जिससे भविष्य में आने वाले अच्छे व बुरे प्रभावों के बारे में जान सकता है। वैदिक ज्योतिष में नौ ग्रहों की गति, राशि चक्र, लग्न राशि और नक्षत्रों की गणना की जाती है। इसमें सूर्य व चंद्रमा की गतियों पर विशेष ध्यान दिया जाता है। सटीक परिणामों को जानने के लिए गणना में समय के छोटे-छोटे अंशों के अंकों पर बारीकी से नजर रखनी पड़ती है। इन गणनाओं में प्राण, पल, घटी, पक्ष, विकला और अयन आदि शामिल हैं।
वैदिक ज्योतिष की विद्या प्राप्ति से व्यक्ति को आत्मबोध हो जाता है और वह संसार के सच को देख पाता है।
ऐसा माना जाता है कि ज्योतिष शास्त्र का ज्ञान व्यक्ति की अपनी संतान के लिए ठीक नहीं होता है, तभी ज्यादातर ब्रह्मचर्य का पालन कर रहे लोग ही इसकी विद्या ग्रहण करते हैं। इसे पूरे तरीके रट पाना असंभव है इसको समझ-समझ कर याद किया जा सकता है। बिना किसी को गुरू बनाए मात्र किताब की सहायता से वैदिक ज्योतिष को नहीं सीखा जा सकता है। जयोतिष विद्या को एक तरह का विज्ञान माना जाता है, इसे मात्र विषय समझकर न पढ़े विज्ञान समझ कर ही इसमें रूचि रखें।
इसमें दिए गए सिद्धांतों को अनुभव करने बाद ही प्रयोग करें। अनुभव प्राप्त करने के लिए आप अपने रिश्तेदारों की जन्मकुंडली व राशि चक्र इत्यादि की सहायता ले सकते हैं। गणना से बनी हुई भविष्यवाणी को ही जातकों को बताना चाहिए चाहे वह कितनी भी नकारात्मक हो। जानबूझ कर दी गई गलत जानकारी से खुद पर बुरे प्रभाव पड़ते हैं और समय आने पर विद्या आपका साथ नहीं देती है।
ज्योतिष शास्त्र में गणित की सहायता से जन्मकुंडली को बनाया जाता है। उसके बाद जन्मपत्रिका के आधार पर जातकों के भविषयफल को बताया जाता है। इसके अलावा फलित ज्योतिष से ग्रहों की अवस्था, राशि और बने हुए लग्न को ध्यान में रखकर आने वाले परिणामों की कल्पना की जाती है। फलित ज्यातिष में भी गणित का प्रयोग करना ही पड़ता है।
नक्षत्रों द्वारा ही राशियों बनाई गई हैं। यह हमारे तारामंडल से जुड़ी हुई होती हैं और तारों की बनी हुई सामूहिक अवस्था को ही नक्षत्र कहा जाता है। 27 नक्षत्रों में हर नक्षत्र का मान 13 डिग्री 20 मिनट है और 30 डिग्री के साथ प्रत्येक राशि का राशिचक्र चलता है। इस राशिचक्र में अशिवनी नक्षत्र सबसे पहलेे आता है और कुल 12 राशियां होती है। जन्म के समय चंद्रमा जिस राशि मे हो उसे लग्न राशि कहते है इसके अलावा जन्म समय के अक्षांश और देशांतर के आधार पर पूर्व दिशा में उदित राशि को व्यक्ति की जन्म लग्न राशि कहते हैं।
वैदिक ज्योतिष का पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने के लिए कई वर्ष लग जाते हैं। इसे वेदों की आँख के नाम से भी बोधित किया जाता है क्योंकि इसकी उतपत्ति वहीं से हुई है। वैदिक ज्योतिष से भविष्य में आने वाली समस्याओं का पहले से ज्ञान हो जाता है जिससे परिस्थिति के ज्यादा गंभीर हो जाने से पहले ही उसका समाधान करने में मनुष्य सक्षम हो पाता है। इसकी सहायता से जातकों के स्वभाव, व्यवहार और गुणों के बारे में भी पता लगाया जा सकता है जिससे वह अपनी विशेषताओं से संबंधित पढ़ाई व व्यापार कर सकता है। पहले से पता होने की वजह से जातकों का काफी समय बच जाता है और अंत में उनको निराशा का सामना नहीं करना पड़ता है। इसलिए हिंदु धर्म में इसका विशेष महत्व है।
READ MORE: