हिन्दू धर्म शास्त्रों में वट सावित्री पूजा सौभाग्यवती स्त्रियों का महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है। इस वर्ष वट सावित्री व्रत 2023 व्रत 19 मई 2023 को रखा जाएगा। हिंदू पंचांग के अनुसार इस व्रत को ज्येष्ठ कृष्ण त्रयोदशी से अमावस्या तक तथा ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी से पूर्णिमा तक करने का विधान है। अब आपके मन में यह प्रश्न जरूर होगा कि वट सावित्री व्रत क्यों रखा जाता है? इससे स्त्रियों को क्या लाभ प्राप्त होता है? यह व्रत स्त्रियां अपने पति की लंबी उम्र के लिए रखती या फिर इससे जुड़े कोई और विशेषता है?
इन सभी प्रश्न के उत्तर के साथ ही वट सावित्री व्रत से जुड़ी कथा, पूजा विधि तथा शुभ मुहूर्त आप इस आर्टिकल में विधिपूर्वक जाने वाले हैं। इसलिए सभी जातक वट सावित्री व्रत रखने से पूर्व है। इसकी व्रत कथा, मंत्र, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त आदि की विस्तार पूर्वक जानकारी जरूर प्राप्त करें। ताकि व्रत रखने पर आपको अभीष्ट फलों की प्राप्ति हो सके।
पौराणिक कथाओं की मान्यताओं के अनुसार देवी सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राणों की रक्षा के लिए कठोर व्रत को धारण किया था। तब से यह वट सावित्री व्रत के नाम से प्रचलित हुआ। देवी सावित्री ने इस व्रत को रखने के लिए वट वृक्ष की पूजा की थी।
आइए जानते हैं वट सावित्री व्रत से जातक को अर्थात इस व्रत को धारण करने वाली स्त्रियों को क्या लाभ प्राप्त होता है।
इस दिन स्त्रियां सर्वप्रथम ब्रह्म मुहूर्त में उठे और स्नानादि से निवृत्त होकर पवित्र जल को मिट्टी के घड़े में भरकर पूरे घर में छिड़काव करें।
इसके बाद बांस की टोकरी में सप्त धान्य भरकर ब्रह्मा की मूर्ति की स्थापना करें।ब्रह्मा के वाम पार्श्व में सावित्री की मूर्ति स्थापित करें।इसी प्रकार दूसरी टोकरी में सत्यवान तथा सावित्री की मूर्तियों की स्थापना करें। इन टोकरियों को वटवृक्ष के नीचे ले जाकर रखें। यह सभी विधियां करने के बाद ब्रह्मा तथा सावित्री का पूजन करें। वट वृक्ष की पूजा करते समय स्त्रियां रक्षा धागा बांधे।
अवैधव्यं च सौभाग्यं देहि त्वं मम सुव्रते।
पुत्रान् पौत्रांश्च सौख्यं च गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तुते।।
पूजा मंत्र को पढ़ते हुए स्त्रियां वटवृक्ष के जड़ों में पानी अर्पित करें।
इसके पश्चात वटवृक्ष का ध्यान करते हुए निम्न श्लोक पढ़े:-
यथा शाखाप्रशाखाभिर्वृद्धोऽसि त्वं महीतले।
तथा पुत्रैश्च पौत्रैश्च सम्पन्नं कुरु मा सदा।।
पूजा में जल, मौली, रोली, कच्चा सूत, भिगोया हुआ चना, फूल तथा धूप का प्रयोग करें।
जब स्त्रियां संपूर्ण पूजा विधि को विधि पूर्वक आवश्यक सामग्री के साथ पूर्ण करती है उसके पश्चात ब्राह्मणों को भोजन वस्त्र और गायों को चारा डालें।
पौराणिक कथाओ एवं प्रचलित वट सावित्री व्रत 2023 कथा के अनुसार सावित्री के पति की उम्र खत्म होने वाली थी।अर्थात सावित्री के पति सत्यवान अल्पायु थे।
एक दिन सावित्री के पूजा पाठ से प्रसन्न होकर देव ऋषि नारद उनसे मिलने पहुंचे। तभी देवी सावित्री को पता चला कि उसके पति अल्पायु है। तो उन्होंने नारद जी से उनकी उम्र बढ़ाने के लिए प्रार्थना की। नारद जी ने कहा, “आपके पति सत्यवान अल्पायु है। आप कोई दूसरा वर मांग लो। ” यह सुनकर देवी सावित्री ने कहा, “कि मैं हिंदू स्त्री हूं और हिंदू स्त्री एक ही बार वर का चुनाव करती है। और इसी समय मेरे पति सत्यवान के सिर में भयंकर पीड़ा हो रही है।” तब नारद जी ने वटवृक्ष व्रत के बारे में बताया।
पति की पीड़ा को देखकर सावित्री अपने पति को लेकर वटवृक्ष के नीचे बैठ जाती है। तभी यमराज के दूत तथा स्वयं यमराज वहां पर पहुंचते हैं। सत्यवान के प्राणों को हर कर दक्षिण दिशा की ओर ले जा रहे थे। सावित्री भी उन यम दूतों के पीछे पीछे चल देती है।
यमराज ने सावित्री को आते देख कहा, “हे पतिव्रता नारी! पृथ्वी तक ही पत्नी अपने पति का साथ देती है। अब तुम वापस लौट जाओ।” सावित्री ने कहा, “जहां मेरे पति रहेंगे मैं भी उनके साथ ही रहूंगी। यही मेरा पत्नी धर्म है।” सावित्री के मुख से यह उत्तर सुन कर यमराज बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने सावित्री को वर मांगने को कहा और बोले- मैं तुम्हें तीन वर देता हूं। बोलो तुम कौन-कौन से तीन वर लोगी।
तब सावित्री ने सास-ससुर के लिए नेत्र ज्योति मांगी, ससुर का खोया हुआ राज्य वापस मांगा एवं अपने पति सत्यवान के सौ पुत्रों की मां बनने का वर मांगा। सावित्री के यह तीनों वरदान सुनने के बाद यमराज ने उसे आशीर्वाद दिया और कहा- तथास्तु! तुम्हारी यह मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी।
सावित्री यमराज से वर प्राप्त करके उसी वट वृक्ष पर पुन: लौट आती है। जहां पर सत्यवान का पार्थिक शरीर रखा था। कुछ देर बाद सावित्री देखती है। कि सत्यवान के शरीर में कुछ हलचल हो रही है। थोड़ी देर में सत्यवान उठ खड़ा हुआ।
इस प्रकार देवी सावित्री ने वट वृक्ष की पूजा करते हुए अपने पति के तो प्राण बचाए ही, साथ ही अपने सास-ससुर के नेत्रों की ज्योति भी वापस लाने में सक्षम रही। तथा उनके ससुर का जो भी साम्राज्य छिन गया था वह भी उन्हें उन्हें प्राप्त हो गया।
जब एक हिंदू स्त्री अर्थात पतिव्रता नारी किसी कठोर व्रत का पालन करती है। तो यमराज भी उसकी इच्छा के बगैर कोई कार्य नहीं कर सकते। जैसा कि आपने इस कथा में पढ़ा देवी सावित्री द्वारा की गई वट वृक्ष पूजा का प्रतिफल अभीष्ट फल की प्राप्ति वाला सिद्ध हुआ है।
धार्मिक ग्रंथों, पुराणों तथा ऋषियों के वचनों से प्रभावित होकर कोई भी स्त्री इस वट वृक्ष की पूजा करती है। तथा जो भी मनोरथ मन में रखती है उसे स्वयं त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा विष्णु महेश संपूर्ण करते हैं। आपको इस कथा में पूर्व में ही बताया जा चुका है कि वटवृक्ष में ब्रह्मा विष्णु महेश तीनों महा शक्तियों का वास होता है।
जो भी भाग्यवान स्त्री आस्था के साथ इस व्रत को धारण करती है। तथा पूजा विधि विधान के साथ करती है। उसे अभीष्ट फल की प्राप्ति निश्चित तौर पर होती है। यह व्रत वह सभी महिलाएं रख सकती है। जिन्हें किसी भी प्रकार का शारीरिक, मानसिक, आर्थिक या पारिवारिक कष्ट हो रहा हो। व्रत को धारण करने पर स्त्रियां इस बात का अवश्य ध्यान रखें। कि उक्त मंत्र का जाप वह भक्ति भाव के साथ तथा आस्था के साथ शुद्ध उच्चारण करें। तभी उन्हें सही मायने में उचित फलों की प्राप्ति निश्चित तौर पर हो पाएगी।
वट वृक्ष एक पीपल के वृक्ष की तरह ही होता है। अर्थात इसे बरगद का पेड़ भी कहा जाता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार पीपल के वृक्ष में भगवान विष्णु का वास होता है। तथा जो भी जातक पीपल के वृक्ष की पूजा करते हैं। उन्हें परमपिता परमेश्वर भगवान श्रीकृष्ण की असीम अनुकंपा प्राप्त होती है। साथ ही इससे वृद्ध वृक्ष तथा बरगद के पेड़ जिसे वटवृक्ष कहा जाता है। उस वृक्ष में तीनों महा शक्तियां अपनी प्रभावी छवि रखते है। जो भी वटवृक्ष के जड़ों में दीप प्रज्वलित करता है। उसे भूत प्रेत आदि से शांति मिलती है। तथा मानसिक कष्ट दूर होता है।
वट वृक्ष की पूजा जो ऊपर बताई गई है। वह स्त्रियों के लिए है। परंतु अगर कोई पुरुष वट वृक्ष पर पूजा के तौर पर दीप प्रज्वलित करता है। तथा ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जप करता है। उसे तीनों देवों की असीम अनुकंपा प्राप्त होती है। जिस भी जातक को शारीरिक, मानसिक ,आर्थिक, पारिवारिक कामकाज, व्यापार आदि में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। उन्हें वटवृक्ष के चरणो में दीप प्रज्वलित करके भगवान ब्रह्मा विष्णु महेश का ध्यान करना चाहिए। ताकि वे अपने समस्त दुखों का निवारण पा सके।
दोस्तों आपने आज वटवृक्ष की कथा सुनी और वट वृक्ष का महत्व भी जाना वट सावित्री व्रत 2023 की संपूर्ण विधि आज आपने इस आर्टिकल में पढ़ी है। हमारा मानना है कि अगर आप हिंदुत्व को बड़ी गंभीरता के साथ लेते हैं। तथा हिंदू पौराणिक कथाओं को श्रेष्ठ स्थान पर रखते हैं। तो आप कभी भी किसी भी दुख के भागी नहीं होंगे। अगर मन में सच्ची आस्था होती है। तो उसे स्वयं परमात्मा के द्वारा बिना किसी व्रत या पूजा के भी प्रभु की असीम अनुकंपा प्राप्त होती है।