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Varad Chaturthi 2023 | वरद चतुर्थी, पूजन विधि, व्रत कथा, चंद्र दर्शन वर्जित है, दोष का निवारण मंत्र

Varad Chaturthi 2023
November 17, 2022

वरद चतुर्थी 2023 – Varad Chaturthi 2023

Varad Chaturthi  – हर वर्ष सावन माह में शुक्ल पक्ष के दौरान आने वाली चतुर्थी की तिथि “वरद चतुर्थी” के नाम से प्रति वर्ष मनाई जाती है. इस वर्ष 2023 में ये 20 अगस्त 2023 को वरद चतुर्थी का व्रत संपन्न होगा। इस दिन भगवान श्री गणेश का पूजन किया जाता  है।  वरद चतुर्थी का अर्थ है भगवन श्री गणेश द्वारा आशीर्वाद देना। गणेश जी को अनेकों नामों से भी पुकारा जाता है। श्री गणेश भगवान को विनायक, विध्नहर्ता जैसे आदि नामों से पुकारा जाता है। 

Varad Chaturthi – प्रत्येक माह में आने वाली चतुर्थी तिथि भगवान श्री गणेश से संबंधित है अत:प्रत्येक  माह के दौरान आने वाली चतुर्थी को भिन्न-भिन्न नामों से पुकारा जाता है। इस चतुर्थी को वरद विनायकी चतुर्थी के नाम से पुकारा जाता है। वरद चतुर्थी पर भगवान् श्री गणेश जी का पूजन दोपहर के समय पर एवं मध्याह्न के समय पर करना अत्यंत ही शुभ फलदायक होता है। 

वरद चतुर्थी की पूजन विधिVarad Chaturthi Ki Pujan Vidhi

Varad Chaturthi  – वरद चतुर्थी की पूजा मुख्य तौर पर दोपहर में की जाती है। इस समय पर पूजा का अपना विशेष महत्व रहता है। वरद चतुर्थी पूजा स्थल पर भगवान श्री गणेश की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करनी चाहिए। व्रत का संकल्प करना चाहिए। अक्षत, रोली, फूल की माला, गंध, धूप आदि से श्री गणेश जी को अर्पित करने चाहिए।  श्री गणेश जी दुर्वा अर्पित और मोतीचूर के लड्डुओं का भोग लगाना चाहिए। 

  • श्री गणेश जी को दूर्वा अर्पित करते समय ऊँ गं गणपतयै नम: के मंत्र का उच्चारण जरूर करना चाहिए। 
  • कपूर, घी के दीपक से श्री गणेश जी की आरती करनी चाहिए। 
  • भगवान श्री गणेश को भोग लगाना चाहिए। और उस प्रसाद को सभी परिवार के सदस्यों में या भजतो में बांटना चाहिए। 
  • व्रत में फलाहार का सेवन करते हुए संध्या के समय भगवन श्री गणेश जी की पुन: पूजा-अर्चना करनी चाहिए। पूजा के पश्चात ब्राह्मण् को स्वादिष्ट भोजन कराना चाहिए। उसके बाद स्वयं को भोजन ग्रहण करना चाहिए। 

    वरद चतुर्थी कब है – Varad Chaturthi Kab Hai 

    इस वर्ष 2023 में वरद चतुर्थी का पर्व 20 अगस्त 2023 को वरद चतुर्थी का पर्व मनाया जाएगा। इस वरद चतुर्थी के पर्व के दिन भगवान् श्री गणेश की पूजा-अर्चना की जाती है। ऐसा माना जाता है की भगवान् श्री गणेश की पूजा दोपहर के समय में की जाती है। दोपहर के समय में पूजा करना अधिक फलदाई होता है।

वरद चतुर्थी की व्रत कथाVarad Chaturthi Ki Vrat Katha 

Varad Chaturthi – एक बार की बात है भगवान श्री शिव और माता पार्वती जी जब हिमालय पर समय व्यतीत कर रहे होते हैं। तो माता पार्वती भगवान शिव से चौसर का खेल खेलने आग्रह करती हैं। श्री शिव भगवान माता को प्रसन्न करने हेतु चौसर खेलने को तैयार हो जाते है। लेकिन दोनों के बीच हार और जीत का निर्णय हो पाना संभव नहीं था।  क्योंकि उन दोनों के लिए हार या जीत का फैसला कर पाने के लिए कोई भी तैयार नहीं होना चाहता था। ऎसे में भगवान ने एक सुझाव दिया और फिर उन्होंने अपनी शक्ति द्वारा एक घास-फूस से बालक का निर्माण किया। और उस बालक को चौसर में दोनों की हार जीत का निर्णय करने का फैसला करने का अधिकार दिया। 

Varad Chaturthi – खेल में माता पार्वती जी ही जीतती हैं। पर बालक से पूछा गया तो वह बालक ने कहा की भगवान शिव जीते है। इस प्रकार के वचन सुन माता पार्वती गुस्सा हो उठती हैं।  और उस पुतले रुपी बालक को सदैव कीचड़ में पड़े रहने का श्राप दे देती हैं।  बालक ने माफी मांगते हुए कहा की उसने ऎसा जानबुझ कर नही किया उसे क्षमा कर दें।  बालक को रोता देखते माता पार्वती जी बहुत दुखी हुई और कहा की तुम्हारे श्राप की मुक्ति संभव है। 

Varad Chaturthi  – आज से ठीक एक साल बाद नाग कन्याएं चतुर्थी के दिन यहां पूजा के लिए आएंगी।  उन नाग कन्याओं से तुम गणेश चतुर्थी का व्रत विधि पूछना और फिर उसी के अनुरुप व्रत को करना उसके बाद तुमारे सभी कष्ट दूर हो जाएंगे। इस प्रकार से एक वर्ष के पश्चात वरद चतुर्थी वाले दिन नाग कन्याएं उसी  स्थान पर आ जाती हैं। और फिर उस बालक को वरद चतुर्थी पूजा की विधि भी बताती है। बालक ने भी उस दिन वरद चतुर्थी का व्रत किया और उससे माता पार्वती प्रसन्न हुए और वो बालक माता पार्वती के श्राप से मुक्ति प्राप्त कर लेता है।

वरद चतुर्थी पर चंद्र दर्शन वर्जित है – Varad Chaturthi Par Chandra Darshan Varjit Hai 

Varad Chaturthi – वरद चतुर्थी तिथि शुरू होने से लेकर खत्म होने तक चन्द्रमा का दर्शन करना वर्जित है। ऐसी मान्यता है की चतुर्थी तिथि के दिन चंद्र देव को नहीं देखना चाहिए। पौराणिक कथाओं और परम्पराओ के अनुसार चंद्रमा को श्री गणेश द्वारा श्राप दिया गया था। की यदि कोई भी चतुर्थी तिथि के दिन चंद्रमा का दर्शन करेगा तो उसे कलंक लगेगा। इसी कारण से चतुर्थी की तिथि के दिन चंद्रमा के दर्शन को वर्जित किया है। ऐसा कहा जाता है कि इस दोष का प्रभाव भगवान श्री कृष्ण को भी झेलना पड़ा था। लेकिन इस में मुख्य रुप से भाद्रपद माह में जो चतुर्थी आती है उस तिथि को ज्यादा महत्व दिया जाता है। 

Varad Chaturthi – भगवान श्री कृष्ण पर स्यमन्तक नाम की मणि की चोरी करने का झूठा आरोप लगा था। झूठे आरोप के कारण भगवान श्री कृष्ण की स्थिति देख के नारद ऋषि ने उन्हें बताया कि भगवान श्री कृष्ण ने भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन चन्द्रमा को देखा था।  जिसकी वजह से उन्हें मिथ्या दोष का श्राप झेलना पड़ा था। नारद जी की सलाह द्वारा ही भगवान को चतुर्थी तिथि के दिन भगवान् श्री गणेश जी का पूजन करने की विधि शुरू हुई थी। तब भगवान श्री कृष्ण ने मिथ्या दोष से मुक्ति के लिये वरद गणेश चतुर्थी के व्रत को किया और मिथ्या दोष से मुक्ति को प्राप्त की थी। 

मिथ्या दोष का निवारण मंत्र – Mithya  Dosh Ka Niwaran 

Varad Chaturthi – चतुर्थी तिथि के प्रारम्भ और अन्त समय के आधार पर चन्द्रदर्शन लगातार दो दिनों के लिये वर्जित होता है। हमारे हिन्दू धर्म ग्रंथ धर्मसिन्धु के नियमों के अनुसार इस चतुर्थी तिथि के दौरान चन्द्र दर्शन वर्जित होता है। इसी नियम के अनुसार चतुर्थी तिथि के चन्द्रास्त के पूर्व समाप्त होने के बाद भी चतुर्थी तिथि में उदय हुए चन्द्रमा के दर्शन चन्द्र के अस्त होने तक इसे नहीं देखने की बात को कही गयी है। 

किसी कारण से चंद्र दर्शन हो भी जाते हैं तो इस दर्शन के कारण होने वाले मिथ्या दोष से मुक्ति पाने हेतु मंत्र का जाप भी बताया गया है। जो भगवान् श्री कृष्ण ने भी किया था। इस दिए गए मन्त्र का जाप करना सर्वोत्तम होता है। 

                  सिंहः प्रसेनमवधीत्सिंहो जाम्बवता हतः।

           सुकुमारक मारोदीस्तव ह्येष स्यमन्तकः॥

Varad Chaturthi – इस चतुर्थी तिथि को कलंक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है लेकिन अन्य चतुर्थी पर इस का इतना ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ता है। अगर किसी कारण से गणेश चतुर्थी के दिन चन्द्रमा के दर्शन हो जाएं तो मिथ्या दोष से बचाव के लिए उपाय के बारे में भी बताया गया हैं। जिसमें श्री गणेश जी का पूजन व गणेश मंत्र जाप के द्वारा इस दोष की शांति हो जाती है। 

 

 

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