श्री कृपालु महाराज का जन्म सन् 1922 में शरद पूर्णिमा की मध्यरात्रि में भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के प्रतापगढ़ नामक जिले के मनगढ़ ग्राम में ब्राम्हण कुल में हुआ था। आपको बतादें की जगद्गुरु श्री कृपालु महाराज का कोई भी गुरु नहीं है और वे स्वयं ही ‘जगदगुरुत्तम’ माने जाते हैं।
ये पहले ऐसे जगदगुरु हैं। जिन्होंने अपना एक भी शिष्य नहीं बनाया, परन्तु इनके लाखों की संख्या में अनुयायी हैं। जगदगुरु श्री कृपालु महाराज वर्तमान समय में मूल जगद्गुरु हैं। यों तो भारत देश के इतिहास में इनके पूर्व में लगभग तीन हजार वर्ष में चार और मौलिक जगदगुरु भी हो चुके हैं। परन्तु श्री कृपालु महाराज के जगदगुरु होने की एक विशेषता है की कृपालु महाराज को ‘जगदगुरुत्तम’ की उपाधि से विभूषित किया जाता है।
यह ऐतिहासिक घटना 14 जनवरी, सन् 1957 को हुई थी, जब श्री कृपालु महाराज जी की आयु मात्र 33 वर्ष की थी। सभी महान संतों ने मन से ईश्वर भक्ति करने की बात बताई है। जिसे हम ध्यान, सुमिरन, स्मरण या मेडिटेशन आदि नामों से भी जाना जाता है। श्री कृपालु महाराज ने पहली बार इस ध्यान को ‘रूप ध्यान’ का नाम देकर स्पष्ट किया कि ध्यान की सार्थकता तभी होती है। जब हम भगवान के किसी रूप को अपने ह्रदय में टिका कर रखें।
कृपालु महाराज अपने ही ननिहाल मनगढ़ में जन्मे और राम कृपालु त्रिपाठी ने गांव के ही विद्यालय से 7 वीं कक्षा तक की शिक्षा अर्जित की और उसके बाद आगे की शिक्षा के लिये वह महू, मध्य प्रदेश में चले गये। उन्होंने अपने ही ननिहाल में पत्नी पद्मा के साथ अपने गृहस्थ जीवन की शुरूआत की और राधा कृष्ण की भक्ति में लीन हो गये। भक्ति योग पर आधारित प्रवचन को सुनने केलिए भारी संख्या में श्रद्धालु वहा पहुंचने लगे। और फिर तो उनकी ख्याति देश में ही नहीं बल्कि विदेशो तक जा पहुँची।
घनश्याम त्रिपाठी | पुत्र |
बाल कृष्ण त्रिपाठी | पुत्र |
विशाखा त्रिपाठी | पुत्री |
श्यामा त्रिपाठी | पुत्री |
कृष्णा त्रिपाठी | पुत्री |
जगद्गुरु कृपालु महाराज के 5 (पांच) संताने है जिनमे दो पुत्र तो तीन पुत्री। कृपालु महाराज का 15 नवम्बर साल 2013 गुड़गाँव के फोर्टिस अस्पताल में उन्होंने अपनी अंतिम साँस ली ।
अपनी मौत से पहले ही उन्होंने तीनों पुत्रियों को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ के मनगढ़ ट्रस्ट, वृन्दावन ट्रस्ट और बरसाना ट्रस्ट की अध्यक्ष बनाकर जिम्मेदारी भी सौंप दी थी। इन ट्रस्ट के माध्यम से स्कूल, हॉस्पिटल, अनाथाश्रम, गोशालाओं आदि का संचालन भी किया जाता है।
बचपन से ही अध्यात्मिक माहौल मिला और अपने पिता की विरासत को संभालने के लिए तीनों पुत्रियों ने विवाह भी नहीं किया। आज तीनों उनकी ही यूपी से लेकर यूएसए तक पूरा प्रबंधंन कार्य को संभालती हैं। उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ के मनगढ़ आश्रम से लेकर यूएसए में बने आश्रम तक सभी लोग इन्हें दीदी कह कर सम्बोधित करते हैं।इन तीनों बहनों ने वृन्दावन से आगरा से और इलाहाबाद से अपनी पढ़ाई पूरी की है। विशाखा ने आर्ट (कला) से, श्यामा ने संस्कृत और कृष्णा ने लिटरेचर में पीएचडी की उपाधि दी है।
अन्य जानकारी : –