लेख सारणी
जया पार्वती व्रत विशेष फलो की प्राप्ति चाहने हेतु रखा जाता हैं। इस बार 2022 में ये अद्वतीय व्रत आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी के दिन अर्थात 12 जुलाई 2022 मंगलवार के दिन रखा जाने वाला है। जया पार्वती व्रत प्रतिवर्ष जुलाई माह में आषाढ़ शुक्ल को रखा जाता है। इस व्रत का धार्मिक पुराणों में काफी महत्वपूर्ण स्थान है। जया पार्वती व्रत को विजय पार्वती व्रत के नाम से भी जाना जाता है। इस पवित्र व्रत को मालवा क्षेत्र (गुजरात) का लोकप्रिय व्रत माना जाता है। इस व्रत को वहां पर पर्व के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन माता पार्वती तथा शिव की पूजा की जाती है, और आस्था स्वरूप व्रत धारण किया जाता है।आइए जानते हैं जया पार्वती व्रत धारण करने का महत्व, व्रत पूजा विधि व शुभ मुहूर्त, तथा सम्पूर्ण व्रत कथा।
पौराणिक कथाओं में जया पार्वती व्रत का विशेष विवरण मिलता है। बताया जाता है कि इस दिन सुहागन स्त्रियां तथा अविवाहित कन्या इस व्रत को आस्था के साथ धारण करती है। जया पार्वती व्रत 5 दिनों तक कठिन पूजा विधि के साथ संपन्न किया जाता है। इस दिन अविवाहित कन्या और विवाहित महिलाएं बालू या रेत का हाथी बनाकर उस पर 5 तरह के फल फूल और प्रसाद अर्पित करती हैं। तथा माता पार्वती और भगवान शिव की आस्था के साथ पूजा करती है। मान्यता है, कि सुहागन स्त्रियां अपने अखंड सौभाग्य के लिए इस व्रत को धारण करती है। तथा कुंवारी कन्या है इस व्रत को सुयोग्य वर चाहने हेतु धारण करती है।
इसके अलावा जिस दांपत्य को पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई है। वह भी भगवान शिव और माता पार्वती के आशीर्वाद से पुत्र प्राप्ति का सौभाग्य प्राप्त कर पाते हैं। जया पार्वती व्रत को धारण करने वाले जातक को मनोवांछित फलों की प्राप्ति तो होती ही है। साथ ही इस व्रत को धारण करने पर गणगौर, हरतालिका और मंगला गौरी व्रत का भी फल प्राप्त होता है।
इन्ही धार्मिक मान्यताओं के चलते जया पार्वती व्रत को आस्था के साथ धारण किया जाता है। अगर आप भी इस व्रत को धारण करना चाहते हैं। तो इसकी पूजा विधि तथा शुभ मुहूर्त को जरूर ध्यान रखिएगा। आइए जया पार्वती व्रत को धारण करने से पहले पूजा विधि तथा शुभ मुहूर्त को जान लेते हैं।
जया पार्वती व्रत धारण करने वाले जातक अभीष्ट फल की प्राप्ति की ओर अग्रसर होते हैं, और जया पार्वती व्रत को विधि विधान के साथ धारण करना ही श्रेष्ठ फलों का कारक माना गया है।
पौराणिक कथा के अनुसार एक समय कौंडिल्य नगर में एक वामन नाम का योग्य ब्राह्मण रहता था। ब्राह्मण की पत्नी का नाम सत्य था। दोनों अपने व्यवहारिक जीवन में कुशल मंगल से रह रहे थे। परंतु उन्हें संतान का ना होना खिलता ही जा रहा था। ब्राह्मण परिवार ने यथासंभव सभी पर्यटन तथा पूजा विधियां की। परंतु उनके जीवन में पुत्र का सुख हैं ही नहीं ऐसा वह सोचने लगे।
एक दिन देव ऋषि नारद ब्राह्मण परिवार से मिलने पहुंचे। ब्राह्मण परिवार ने देव ऋषि नारद की यथासंभव खूब सेवा की। किन्तु उनकी सेवा में पहले जैसा भाव दिख नहीं रहा था। तभी नारद ने कहा कि आप कुछ चिंतित दिखाई देते हैं। तभ ब्राह्मणी सत्य ने कहा शायद मुझे कभी पुत्र होगा ही नहीं। क्या मेरी गोद ऐसे ही सुनी रहेगी। नाराज ने कुछ विचार किया और कहां तुम्हारे नगर के बाहर जो वन है, उसके दक्षिणी भाग में बिल्व वृक्ष के नीचे भगवान शिव माता पार्वती के साथ लिंगस्वरूप में विराजित हैं। आपको विधि विधान से उनकी पूजा करनी चाहिए। आपकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी।
ब्राह्मण और उनकी पत्नी ने पूजा विधि विधान से करना शुरू कर दी। इस पूजा को तकरीबन 5 वर्ष बीत चुके थे। परंतु ब्राह्मण परिवार को पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई। हालाँकि उन्हें देव ऋषि नारद के वचनों पर पूर्ण विश्वास था। इसलिए वह पूजा में संलग्न रहे।
एक दिन ब्राह्मण पुष्प चुनने जंगल की ओर जा ही रहा था कि एक सांप ने उसे काट लिया और ब्राह्मण मूर्छित होकर वहीं पर गिर पड़ा। काफी देर होने के बाद जब ब्राह्मण घर नहीं लौटे तो उसकी पत्नी को चिंता होने लगी और उसने खुद जाकर देखने का निर्णय किया। जब उसने देखा कि ब्राह्मण मूर्छित अवस्था में पड़ा है तो वह माता पार्वती का ध्यान करने लगी और माता से कहने लगी हे मातेश्वरी अगर मुझसे कोई गलती हो तो मुझे क्षमा करें और मेरे पति को जीवित करें।
यह सुनकर माता पार्वती साक्षात उस ब्राह्मणी को दर्शन देती है और उसके पति ब्राह्मण को स्वच्छ कर देती है। ब्राह्मण और उनकी पत्नी ने माता पार्वती की स्तुति का गान किया। माता पार्वती प्रसन्न हुई और वर मांगने को कहा तब सत्या ने कहा कि मुझे कोई संतान नहीं है मेरे घर में भी संतान का जन्म हो मुझे ऐसा आशीर्वाद दो। माता पार्वती ने कहा आपकी मनोकामना पूर्ण होगी। तथास्तु, ऐसा कहकर माता पार्वती अंतर्ध्यान हो गई।
इसी प्रचलन कथा के आधार पर गुजरात के मालवा क्षेत्र में इस पूजा को अर्थात इस व्रत को विधिपूर्वक धारण किया जाता है और माता पार्वती और शिव लिंग की पूजा विधि विधान के साथ की जाती है।