सद्गुरु जग्गी वासुदेव जी का जन्म 3 सितम्बर सन्न 1957 को कर्नाटक राज्य के मैसूर नामक शहर में एक तेलुगु भाषी परिवार में हुआ था। वासुदेव जी के पिता एक चिकित्सक थे। जग्गी वासुदेव को प्रकृति से बेहद प्रेम था। कभी कभी वे कुछ दिनों के लिये जंगल में ही रहते थे। वहा पर वे पेड़ की ऊँची-ऊँची डाल पर बैठकर ताजा हवाओं का आनंद लेते और अनायास ही गहरे ध्यान करने लग जाते थे। जब वे घर लौटते तो उनकी झोली सांपों से भरी हुई होती थी। सांपो को पकड़ने में उन्हें महारत हासिल थी। 11 वर्ष की आयु में जग्गी वासुदेव ने योग का निरंतर अभ्यास करना आरम्भ कर दिया था। इनके योग शिक्षक श्री राघवेन्द्र राव, थे जिन्हें मल्लाडिहल्लि स्वामी के नाम से भी जाना जाता था। मैसूर विश्वविद्यालय से उन्होंने अंग्रजी भाषा में स्नातक की डिग्री भी प्राप्त की।
सद्गुरु जग्गी वासुदेव के द्वारा स्थापित की गई ईशा फाउंडेशन एक लाभ रहित मानव सेवा के लिए स्थापित एक संस्थान है।जो लोगों की शारीरिक, मानसिक और आन्तरिक कुशलता हेतु पूर्ण रूप से समर्पित है। इस ईशा संस्था को दो लाख पचास हजार से भी अधिक स्वयंसेवियों के द्वारा संचालित किया जाता है।
इसका मुख्यालय ईशा योग केंद्र कोयंबटूर में स्तिथ है। ग्रीन हैंड्स परियोजना अंग्रेजी ईशा फाउंडेशन की पर्यावरण से संबंधीत बहुमूल्य प्रस्ताव है।
पूरे तमिलनाडु राज्य में लगभग 16 करोड़ वृक्ष लगाने की परियोजना की घोषणा भी की है। अब तक के समय में ग्रीन हैंड्स परियोजना के अंतर्गत तमिलनाडु और पुदुच्चेरी में लगभग 1800 से भी अधिक समुदायों में, 20 लाख से अधिक व्यक्तियों के द्वारा 82 लाख पौधे को लगाने का आयोजन भी किया गया है।
इस संगठन के द्वारा 17 अक्टूबर 2006 को तमिलनाडु राज्य के 27 जिलों में एक साथ 8.52 लाख पौधे लगा कर गिनीज विश्व रिकॉर्ड भी बनाया गया था।
पर्यावरण की सुरक्षा के लिए किए गए इसके महत्वपूर्ण एवं नेक कार्यों के लिए इसे वर्ष 2008 में इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार भी दिया गया है । वर्ष 2017 में आध्यत्म के लिए आपको पद्मविभूषण से भी सम्मानित किया गया है अभी वे रैली फ़ॉर रिवर अब नदियों के संरक्षण हेतु भी अभियान चला जा रहा है।
ईशा योग केंद्र, ईशा फाउन्डेशन के संरक्षण में ही स्थापित है। यह योग केंद्र वेलिंगिरि पर्वतों की तराई में 150 एकड़ की हरी भरी भूमि पर स्थित है। घने वनों से घिरा ईशा योग केंद्र नीलगिरि जीवमंडल का एक हिस्सा माना जाता है। जहाँ भरपूर वन्य जीवन भी मौजूद है। यह आंतरिक विकास के लिए बनाया गया है। यह शक्तिशाली स्थान योग के चार मुख्य मार्ग – ज्ञान, कर्म, क्रिया और भक्ति को लोगों तक पहुंचाने के लिए पूर्ण रूप से समर्पित है। इसके परिसर में ध्यानलिंग योग मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा भी की गई है।
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