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हरियाली अमावस्या का मेला | Hariyali Amavasya Ka Mela

हरियाली अमावस्या का मेला
June 12, 2024

हरियाली अमावस्या का मेला – Hariyali Amavasya Ka Mela

 

हरियाली अमावस्या का मेला 

 

आइये दोस्तों आज हम जानेंगे हरियाली अमावश्या के मेले के बारे में। और इस मेले की क्या-क्या खूबिया है ये सब जानेंगे इस लेख के माध्यम से। 

हरियाली अमावस्या का मेला राजस्थान के उदयपुर में लगता है। इस मेले की ख़ास बात ये है की इस मेले में केवल महिलाएं ही हिस्सा लेती है। पुरुषो का प्रवेश इस मेले में वर्जित है। यहाँ पर यह परंपरा लगभग 100 वर्षो से लगातार चली आरही है। 

 

हरियाली अमावस्या का मेला कहाँ और कब  लगता है? (Hariyali Amavasya ka Mela Kha Aur Kab Lgta Hai)

वैसे तो मेले कई अलग अलग स्थानों पर लगते हैं परन्तु उदयपुर जिले में हरियाली अमावस्या का मेल विश्व के अनेको मेलों में से बेशुमार मेला माना जाता है। इस हरियाली अमावश्या मेले की खास बात यह भी है कि ये मेला दो दिवसीय होता है। इस मेले में दूसरे दिन केवल महिलाओं एवं कुंवारी लड़कियों के लिए ही होता है। सौ सालों से लगातार चली आ रही यह परम्परा आज भी नियमित रूप से निभाई जा रही है। परन्तु इस साल जिला प्रशासन ने इस मेले के आयोजन करवाने के लिए कड़ी सुरक्षा भी करेगी। यह हरियाली अमावश्या  4 अगस्त 2024 को आयोजित किया जायेगा। 

 

 

जानिये हरियाली अमावस्या मेले की शुरुआत कब हुई? (Janeye Hariyali Amavasya Mela Ki Suruwat Kab Hui)

 

हरियाली अमावस्या के दिन राजस्थान में अनेको स्थानों ओर इस मेले का आयोजन किया जाता हैं। परन्तु उदयपुर वाले मेले की अपनी एक अलग ही पहचान है। इस मेले का शुभारम्भ तात्कालिक महाराणा फतहसिंह के कार्यकाल के समय में 1898 में की गई थी। महाराणा फतहसिंह ही एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने दुनिया में पहली बार केवल महिलाओं को ही इस मेले का आनंद लेने का अधिकार दिया । इसके लिए वे फतहसागर झील जिसे पूर्व में देवाली तालाब भी कहा जाता था। उस पर एक पाल बनवाई एवं वहां पर महिलाओं का हरियाली अमावश्या के मेले का आयोजन किया। तभी से यह परंपरा आज तक लगातार चली आ रही है।

 

हरियाली अमावस्या का मेला क्यों  मनाया जाता हैं ? (Hariyali Amavasya Ka Mela kyo Mnaya Jata Hai)

 

महाराणा फतह सिंह के नाम पर इस देवली तालाब के नाम को बदल कर फतहसागर रखा। जो की राजस्थान की प्रसिद्ध झीलों में शामिल है। जब पहली बार महाराणा फतहसिंह मेवाड़ की महारानी एवं अपनी धर्मपत्नी चावड़ी के संग देवाली तालाब पर भ्रमण करने गई थी तब महारानी ने फतह सिंह से महिलाओं के लिए भी एक मेले के आयोजन करने की मांग करि थी। अपनी पत्नी की इस बात को उन्होंने स्वीकार किया। उन्होंने महारानी की इस अपील को करने के बाद उन्होंने पूरे नगर में मुनादी भी कराव दी एवं दो दिवसीय इस मेले की शुरूआत भी कर दी इस मेले का दूसरा दिन केवल महिलाओं के लिए ही रखा जाए ऐसी घोषणा भी कर दी।

 

महाराणा संग्राम सिंह ने ही महिलाओ हेतु बनवाई थी बाड़ी (Maharana Sangram Singh Ne Hee Mahilao Hetu Banavaee Thee Baadee)

 

महाराणा संग्राम सिंह ने खुद इस सहेलियों की बाड़ी का आकार व डिजाइन को तैयार किया था। महाराणा संग्राम सिंह की रानी को बारिश की बूंदो की आवाज बहुत ज्यादा पसंद थी। इसीलिए इस बाड़ी में एक  ऐसे फव्वारे का निर्माण करवाया जिसके लगातार चलते रहने से बारिश के होने का अहसास रानी को होता रहता था।

 

 हरियाली अमावस्या का मेला का इतिहास ?(Hariyali Amavasya Ka Mela Ka Ethihash)

 

 राजस्थान के मेवाड़ में महिलाओं को एक विशिष्ठ दर्जा मिला है। अठारवीं शताब्दी में वहा के तत्कालीन महाराणा संग्राम सिंह ने ही शाही महिलाओं एवं उनकी सखियों के लिए ही इस बाड़ी का निर्माण किया था। इस बाड़ी में उनकी पत्नी विवाह के समय अपनी 48 सखियों के साथ प्रत्येक दिन प्राकृतिक माहौल में भ्रमण करने केलिए इस बाड़ी में आती थीं। इस बाड़ी के आकर्षण का केंद्र यहां पर लगे हुए फव्वारे हैं। जिन्हें संग्राम सिंह में इंग्लैण्ड से मारवाड़ मंगवाया गया था। वह फव्वारे गुरुत्वाकर्षण बल की पद्धति से बाड़ी में चलते थे। बीचों में लगी हुए छतरी से एक चादर की तरह पानी गिरता रहता है। ऐसा विशेष फव्वारा दुनिया में ओर कहीं नहीं पाया जाता है। 

 

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