जानिए दिवाली की पूजा विधि
दिवाली की पूजा विधि – सबसे पहले , उत्तर दिशा में अच्छे से साफ सफाई करके मंगलसूचक बनाएं। उसके ऊपर चावल के दाने रखिए । अब उसके ऊपर लकड़ी का पाट बिछाए । पाट के उपर लाल रंग का कपड़ा बिछाएं। और उसके ऊपर माता लक्ष्मी जी की मूर्ति या तस्वीर अवश्य रखें। तस्वीर में गणेश जी और कुबेर जी की तस्वीर भी होनी चाहिए। माता के दाएं व बाएं सफेद रंग हाथी के चित्रण भी होना चाहिए। आराधना के समय पंचदेव को स्थापित अवश्य करें। सूर्यदेव, श्रीगणेश जी , माता दुर्गा, भगवान शिव जी और विष्णु जी को पंचदेव कहा गया है। इसके बाद धूप का दीप जलाएं। सभी मूर्तियो और तस्वीरों को जल को छिड़ककर पवित्र करें।
दिवाली की पूजा विधि – अब स्वयं कुश के आसन पर बैठकर माता लक्ष्मी जी की षोडशोपचार आराधना करें। अर्थात 16 क्रियाओं से पूजन करें। पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, आभूषण, गंध, पुष्प, धूप, दीप, नेवैद्य, आचमन, ताम्बुल, स्तवपाठ, तर्पण और नमस्कार। पूजन के समाप्ति में सांगता सिद्धि के लिए दक्षिणा भी जरूर चढ़ाना चाहिए।
दिवाली की पूजा विधि – माता लक्ष्मी जी सहित सभी के मस्तक पर हलदी कुमकुम , चंदन और चावल का टीका लगाएं। उसके बाद उन्हें फूलो का हार और मालाएं चढ़ाएं। पूजन में अनामिका अंगुली(रिंग फिंगर) से गंध (चंदन, गुलाल, हल्दी आदि) लगाना चाहिए। इसी तरह से उपरोक्त सभी षोडशोपचार की सभी सामग्री से आराधना कीजिए। पूजा करते समय उनके मंत्रो का जाप भी करें।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः।
ॐ महालक्ष्म्यै नमो नम: धनप्रदायै नमो नम: विश्वजनन्यै नमो नम:।
दिवाली की पूजा विधि – पूजन करने के पश्चात प्रसाद या भोग लगाए। ध्यान में रखिये कि नमक, मिर्च और तेल का प्रयोग प्रसाद में नहीं किया जाता है। प्रत्येक पकवान पर तुलसी का एक पात रखा जाता है। इस दिन माता लक्ष्मी जी को मखाना, सिंघाड़ा, पताशे, हलुआ, खीर, अनार, पान, सफेद और पीले रंग के मिष्ठान्न, केसर के भात आदि का अर्पणन किया जाता हैं। पूजा के दौरान 16 प्रकार की गुंजिया, पपड़ियां, अनर्सा, मोदक भी भोग लगाया जाता हैं। आह्वान में पुलहरा भी चढ़ाया जाता है। इसके बाद चावल, बादाम, पिस्ता, छुआरा, हल्दी, सुपारी, गेंहूं, नारियल को भी अर्पित करते हैं। केवड़े के फूल और आम्रबेल का भोग अर्पित करते हैं।
दिवाली की पूजा विधि – उपासना करने के बाद अंत में खड़े होकर देवी-देवता ( श्रीगणेश जी, माता दुर्गा, भगवान शिव जी,माता लक्ष्मी, विष्णु जी) की आरती करके प्रसाद चढ़ाकर पूजा को समाप्त किया जाता है। पूजा के बाद कपूर आरती आवश्यक रूप से करें। कपूर गौरम करुणा का एक श्लोक(दोहा) बोलें। आरती को सबसे पहले उसे अपने आराध्य के चरणों की तरफ चार बार, इसके बाद नाभि की तरफ दो बार और अंत में एक बार मुख की तरफ घुमाएं। ऐसा सम्पूर्ण सात बार करिए । आरती करने के तुरंत बाद उस पर से जलका फेर दें। और प्रसाद स्वरूप सभी लोगों पर छिड़कें।
दिवाली की पूजा विधि – मुख्य पूजन के बाद अब मुख्य द्वार(दरवाजा )या आंगन में दीपक जलाएं। एक दीया यम के यश का भी जलाएं। रजनी में घर के सभी कोने में भी दीपक जलाएं। जब भी किसी प्रकार की विशेष पूजा करें तो स्वयं के इष्टदेव के साथ ही स्वस्तिक, कलश, नवग्रह देवता, पंच लोकपाल, षोडश मातृका, सप्त मातृका का पूजन भी करना चाहिए।
पूजा में रखें इन बातों का ध्यान
दिवाली के पूजन में रात्रि के शुभ मुहूर्त में ही की जाती है। मान्यताओं के अनुसार चौघड़िया का महायोग और शुभ करके लग्न को देखकर रात में लक्ष्मी जी की पूजा का प्रचलन प्राचीनकाल से ही चला आ रहा है। लक्ष्मी कारक का योग में पूजा करने से कर्ज से मुक्ति प्राप्त होती है, तो दूसरी ओर अच्छी और पवित्र भावना से लक्ष्मी जी की पूजा से धन और यश बढ़ता है।इस दिन प्रात:काल उठकर और निवृत्त होकर पूजा की तैयारी करनी चाहिए । पूजा के समय घर के सभी सदस्य इकटे होकर ही पूजा करें। पूजा जमीन पर आसन पर बैठकर ही करनी चाहिए।
पूजन के दौरान किसी भी प्रकार का अभद्र शोर नही करना चाइये। और ना ही किसी अन्य प्रकार की गतिविधियों पर ध्यान देना चाइये। भगवान् के लिए जलाये जाने वाले दीपक के नीचे चावल जरूर रखने चाहिए। पूजा के समय कभी भी दीपक से दीपक नहीं जलाना चाहिए। तांबे के बर्तन में चंदन नहीं रखना चाहिए और ना ही वह पात्र का चंदन देवी-देवताओं को लगाएं। घर की उतर दिशा में ही पूजा करें। पूजा के समय हमारा मुंह पूर्व या उत्तर में होना चाहिए। लक्ष्मी जी पूजा के दौरान सात मुख वाला घी का दीपक जलाना चाहिए। इससे माता लक्ष्मी जी की कृपण हमेशा बनी रहती है।
इस दिन किसी भी प्रकार का जुआ खेलना वर्जित है। मान्यताओं के अनुसार इस दिवस किसी के घर नहीं जाते। दिवाली मिलन का कार्य अगले दिन किया जाता है।आरती के बाद हमेशा दोनों हाथ से प्रसाद ग्रहण करें। पूजा-पाठ आसान के बगैर नहीं करना चाहिए। पूजा के बाद अपने आसन के नीचे दो बूंद जल डालें और उसे मस्तिष्क पर लगाए तभी उठना चाहिए, अन्यथा आपकी पूजा का प्रभाव देवराज इंद्र को चला जाता है।
अन्य जानकारी :-