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पूजा विधि – Astrology https://astroupdate.com Online Astrologer Wed, 08 Feb 2023 05:52:14 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.4.4 https://astroupdate.com/wp-content/uploads/cropped-FEV_ICON-removebg-preview-1-32x32.png पूजा विधि – Astrology https://astroupdate.com 32 32 हनुमान जी की पूजा विधि ,मंत्र और नियम | Hanuman Ji Puja Vidhi https://astroupdate.com/hanuman-ji-puja-vidhi/ https://astroupdate.com/hanuman-ji-puja-vidhi/#respond Wed, 08 Feb 2023 05:52:14 +0000 https://astroupdate.com/?p=4273 हनुमान जी की पूजा विधि – Hanuman Ji Puja Vidhi

जानिये हनुमान जी की पूजा विधि ,ध्यान मंत्र और पूजा के नियम। हनुमानजी की पूजा करना बहुत ही आसान है परन्तु  उसके नियम और सावधानियां जानना भी बहुत जरूरी है। पूर्ण भक्तिभाव के साथ ही पवित्र नियम से उनकी पूजा करने से वे बहुत जल्द ही प्रसन्न होकर आपकी मनोकामना पूर्ण करते हैं। आओ जानते हैं कि कैसे करें हनुमान जी की पूजा।

 

  1. प्रात:काल स्नान ध्यान से निवृत हो उपवास का संकल्प लीजिए, और हनुमान पूजन की तैयारी करें।

  1. नित्य कर्म से निवृत्त होने के उपरांत हनुमान जी की प्रतिमा  या चि‍त्र को लाल या पीला कपड़ा बिछाकर लकड़ी के पाट पर रखें दीजिये और आप स्वयं कुश के आसन पर साफ़ और पवित्र वस्त्र पहनकर ही बैठें।

  1. प्रतिमा को स्नान कराएं और यदि चित्र है तो उसे अच्छे से साफ करिये। इसके पश्चात धूप, दीपक  प्रज्वलित करके पूजा शुरू कीजिए।

  1. “ऊँ ऐं हनुमते रामदूताय नमः मंत्र का उच्चारण करते हुए  हनुमानजी को अनामिका अंगुली(छोटी अंगुली के पास वाली) से तिलक लगाएं। और सिंदूर अर्पण करें, गंध, चंदन आदि लगाएं और फिर उसके बाद उन्हें हार और फूल चढ़ाइएं।

  1. अच्छे से पंचोपचार पूजन करने के बाद उन्हें प्रसाद(भोग) अर्पित करें। नमक, मिर्च और तेल का उपयोग नैवेद्य(प्रसाद)  में नहीं किया जाता है।

  1. अंत में हनुमान जी की पूजा कीजिए और उनकी आरती करें। उनकी आरती और पूजा करने के बाद उन्हें नैवेद्य को पुन: उन्हें अर्पित करें और अंत में उसे प्रसाद के रूप में सभी को बांट दीजिए।

 

हनुमान जी पूजा ध्यान मंत्र – Hanuman Ji Puja Mantra

 

 अपने हाथो में चावल व फूल लें और  इस हनुमान पूजा मंत्र का उच्चारण करते हुए श्री हनुमान जी का ध्यान कीजिये- 

 

अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं

दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यं।

सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं

रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।।

ऊँ हनुमते नम: ध्यानार्थे पुष्पाणि सर्मपयामि।।

 

 

मंत्र उच्चारण करने के उपरान्त हाथ में लिए हुए चावल व फूल श्री हनुमान जी को अर्पण कर दें।

इसके पश्चात हाथ में फूल को लेकर इस हनुमान पूजा मंत्र का उच्चारण करते हुए श्री हनुमान जी का आवाह्न करें और उन फूलों को हनुमानजी को अर्पित कर दीजिये।

 

हनुमान जी के पूजा के नियम – Hanuman Ji Ke Puja Ke Niyam

 

  1. हनुमान पूजा में शुद्धता और पवित्रता का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए। पूजन स्थल की साफ-सफाई अच्‍छे से कर लें।
  1. हनुमान पूजा एक पवित्र और साफ़ स्थान पर बैठकर ही करना चाहिए। विशेष रूप से या तो आपके घर के पूजा स्थान पर, मंदिर में, तीर्थ क्षेत्र में या पूर्व से नियुक्त साफ-सफाई करके पवित्र की गई जगह पर पूजा करे।
  1. हनुमान पूजा को विशेष व शुभ मुहूर्त में ही कीजिये। या फिर सुबह और सायं  काल को ही करें।
  1. हनुमान पूजा- पाठ करने के दौरान उपयोग  किए गए फूल लाल रंग के होने चाइये।
  1. हनुमान पूजा के पूर्व दीपक प्रज्वलित जरूर करना चाहिए। दीपक में जो बाती लगाई जा रही है वह भी लाल रंग के  सूत (धागे) की होनी चाहिए। किसी भी स्थान पर पूजा करने के पूर्व दीपक जरूर प्रज्वलित करें। हनुमान पूजा के दौरान जो दीपक आप जला रहे है, उसमें चमेली का तेल या शुद्ध घी होना चाहिए।
  1. हनुमानजी पूजा के बाद आरती करें और फिर उन्हें गुड़ और चने का नैवेज्ञ जरूर ‍अर्पित करें। इसके उपयुक्त चाहें तो केसरिया बूंदी के लड्डू, बेसन के लड्डू, मालपुआ या मलाई मिश्री का भोग भी जरूर लगाएं।
  1. हनुमानजी पूजा के समय सिर्फ एक वस्त्र पहनकर ही पूजन करें।
  1. हनुमान प्रतिमा या चित्र को लकड़ी के पाठ पर लाल रंग के कपडे को  बिछाकर स्थापित करें और स्वयं कुश के आसन पर बैठकर ही पूजा कीजिये।

 

हनुमान पूजा की सावधानियाँ – Hanuman Puja Ki Savdhaniya

 

  1. जिस दिन हनुमान पूजन करना हो उसके एक दिन पहले से ही मांस, मदिरा(शराब) आदि का सेवन करना छोड़ दीजिये।
  1. जिस दिन पूजा करनी हो उसके एक दिन पहले से ही ब्रह्मचर्य का पालन करना शुरू करें और मन में किसी भी अन्य प्रकार का आवेशपूर्ण विचार न रखें।

  1. हनुमान पूजा के मध्य में किसी भी प्रकार का बाधा उत्त्पन न हो इसका विशेष रूप से  ध्यान रखें।

  1. अगर घर में सूतककाल चल रहा है तो हनुमान पूजन न करें।

  2. हनुमान पूजा में चरणामृत या पंचामृत, तुलसी का उपयोग नहीं करें।

  3. महिलाएं हनुमान जी को जनेऊ, वस्त्र या झोला अर्पित न करें।

  4. महिलाओं को महावारी के समय पूजा से दूर ही रहना चाहिए।

  5. हनुमान जी की किसी भी प्रकार से तांत्रिक(तंत्री) पूजा नहीं की जानी चाहिए।

  6. हनुमान जी का उपवास रख रहे हैं तो इसका विशेष रूप से ध्यान रखे की  नमक, मिर्च और अनाज के सेवन नहीं करना।

  7. हनुमान जी को अर्पित करने वाला नैवेज्ञ(प्रसाद) शुद्ध घी में बना हुआ होना चाहिए।

 

अन्य जानकारी :-

 

]]> https://astroupdate.com/hanuman-ji-puja-vidhi/feed/ 0 होलिका दहन पूजन विधि और सामग्री | Holika Dahan Pujan Vidhi https://astroupdate.com/holika-dahan-pujan-vidhi/ https://astroupdate.com/holika-dahan-pujan-vidhi/#respond Tue, 07 Feb 2023 06:23:53 +0000 https://astroupdate.com/?p=4208 होलिका दहन पूजन विधि – Holika Dahan Pujan Vidhi         

 

  1. सर्वप्रथम होलिका दहन पूजन के लिए पूर्व या उत्तर दिशा की ओर अपना मुख(मुँह) करके बैठें।

  2. अब अपने इर्द -गिर्द (आस-पाश) जल की बूंदें छिड़कें।

  3.  गोबर से होलिका और प्रहलाद की मूर्त बनाएं।

  4. थाली में रोली, कच्चा सूत, चावल, फूल, साबुत हल्दी, पताशे, फल और एक कलश जल रखें।

  5. नरसिंह भगवान जी का स्मरण करते हुए मूर्त पर रोली, मौली, चावल, पताशे और फूल को अर्पित करें।

  6. उसक पश्चात सभी सामान को लेकर होलिका दहन वाले स्थान पर ले जाएं।

  7. अग्नि जलाने से पूर्व अपना नाम, पिता का नाम व गोत्र का नाम लेते हुए अक्षत (चावल) उठाएं और भगवान श्री गणेशजी का स्मरण कर होलिका पर चावल अर्पित करें।

  8.  इसके पश्चात प्रहलाद का नाम लीजिए और फूल चढ़ाएं।

  9.  भगवान नरसिंह जी का नाम लेते हुए पांच अनाज को अर्पित करे।

  10. अब दोनों हाथो को जोड़कर अक्षत(चावल) हल्दी और फूल चढ़ाइएं।

  11. कच्चे सूत को हाथ में लेकर होलिका पर लपेटते हुए परिक्रमा(घूमे) कीजिए ।

  12. आखिर में गुलाल डालकर चांदी या तांबे के कलश से पानी चढ़ाएं।

  13.  होलिका दहन के दौरान उपस्थित सभी लोगो को रोली का तिलक(टीका) लगाएं और शुभ शुभकामनाएं दीजिये।

 

होली पूजन सामग्री सूची – Holi Pujan Samagri

 

  • प्रहलाद की मूर्ति, 
  • गोबर से बनी हुई होलिका,
  • 5 या 7 प्रकार के अनाज (जैसे  गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर) 
  • 1 माला, और अन्य 4 मालाएं (अलग से)
  • रोली, 
  • फूल, 
  • कच्चा सूत, 
  • साबुत हल्दी, 
  • मूंग, 
  • पताशे, 
  • गुलाल, 
  • ताजा कवान, 
  • मिठाइयां,
  • फल,
  • गोबर से बनी ढाल
  • बड़ी-फुलौरी,
  • एक कलश पानी।  

 

अन्य जानकारी :-

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घटस्थापना पूजा विधि ,सामग्री ,शुभ मुहूर्त और महत्व | Ghatasthapana Puja Vidhi https://astroupdate.com/ghatasthapana-puja-vidhi/ https://astroupdate.com/ghatasthapana-puja-vidhi/#respond Tue, 07 Feb 2023 05:57:34 +0000 https://astroupdate.com/?p=4207 घटस्थापना पूजा विधि – Ghatasthapana Puja Vidhi 

 

घटस्थापना करने से पूर्व थोड़ा इसके बारे में जानिये: घट यानी मिट्टी का घड़ा। इसे नवरात्रि के प्रथम दिवस शुभ मुहूर्त में ईशान(उतर-पूर्व) कोण में स्थापित किया जाता है। घट में सर्वप्रथम थोड़ी-सी मिट्टी डाले, और फिर जौ(ज्वार) डालें। फिर उसके बाद  एक परत मिट्टी की बिछा दीजिये। एक बार फिर ज्वर डालें। फिर से मिट्टी की परत बिछाइएं। अब इस पर पानी का छिड़काव करें। इस तरह ऊपर तक पात्र को मिट्टी से भर देवे। अब इस पात्र को स्थापित करके पूजा करें। जहां पर घट स्थापित करना है, वहां एक पाट रखें और उस पर साफ लाल रंग कपड़ा बिछाकर फिर उस पर घट स्थापित कीजिए। घट पर रोली या चंदन से स्वास्तिक बनाएं। घट के गले में मौली बांध दीजिये।

 

अब एक तांबे के कलश में भर लीजिये और उसके ऊपरी भाग पर नाड़ा बांधकर उसे उस मिट्टी के पात्र(बरतन) अर्थात घट(घड़ा) के उपर रख दीजिये। अब कलश के ऊपर पात रखें, पत्तों के मध्य में नाड़ा बंधा हुआ है, अब नारियल लाल रंग के कपड़े में लपेटकर रखें। अब घट और कलश का पूजन करें। फल ,मिठाई ,नैवेज्ञ आदि घट के आस-पास रखें। इसके बाद  श्री गणेश भगवान की वंदना करें और फिर देवी का यज्ञ करें। अब देवी-देवताओं का यज्ञ करते हुए प्रार्थना करें कि

‘हे समस्त देवी और देवता, आप सभी 9 दिवस  के लिए कृपया कलश में विराजित हों।

 

यज्ञ करने के बाद ये मानते हुए कि सभी देवता कलश में विराजमान हैं और कलश की पूजा करें। कलश को टीका करें, भोग चढ़ाएं, फूलमाला अर्पित करें, इत्र(सुगन्धित पदार्थ) अर्पित करें, नैवेद्य (प्रसाद) यानी फल-मिठाई आदि अर्पित करें।

 

घटस्थापना की सामग्री – Ghatasthapana Ki Samagri

 

  • लाल रंग का वस्त्र 
  • कलश 
  • मिट्टी का कटोरा
  • साफ मिट्टी
  • कुमकुम 
  • गुलाल
  • लौंग
  • इलाइची
  • रंगोली 
  • सिंदूर
  • कपूर
  • जनेऊ 
  • धूपबत्ती
  • निरांजन 
  • आम के पात(पत्ते) 
  • पूजन के पान
  • हार-फूल
  • पंचामृत
  • गुड़ खोपरा
  • खारीक
  • बदाम
  • सुपारी
  • सिक्के 
  • नारियल
  • पांच प्रकार के फल
  • चौकी-पाट
  • कुश का आसन
  • नैवेद्य(प्रसाद या भोग)
  • जौ(ज्वार) 

 

 

घटस्थापना का शुभ मुहूर्त – Ghatasthapana Ka Shubh Muhurt

 

आश्विन घटस्थापना रविवार, अक्टूबर 15, 2023 को

घटस्थापना मुहूर्त – 11:44 ए एम से 12:30 पी एम

समय – 00 घण्टे 46 मिनट्स

अभिजित मुहूर्त के दौरान घटस्थापना मुहूर्त निश्चित होता है।

घटस्थापना मुहूर्त प्रतिपदा तिथि पर है।

घटस्थापना मुहूर्त निषिद्ध चित्रा नक्षत्र के दौरान है।

प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ – अक्टूबर 14, 2023 को 11:24 पी एम बजे

प्रतिपदा तिथि समापन  – अक्टूबर 16, 2023 को 12:32 ए एम बजे

चित्रा नक्षत्र प्रारम्भ – अक्टूबर 14, 2023 को 04:24 पी एम बजे

चित्रा नक्षत्र समापन – अक्टूबर 15, 2023 को 06:13 पी एम बजे

वैधृति योग प्रारम्भ – अक्टूबर 14, 2023 को 10:25 ए एम बजे

वैधृति योग समापन – अक्टूबर 15, 2023 को 10:25 ए एम बजे

 

 

घटस्थापना – अनुष्ठान और महत्व – Ghatasthapana Ka Mahatva

 

नवरात्रि सबसे बहुप्रतीक्षण हिन्दू त्यौहार है, जो की नौ दिनों तक अपार भक्ति और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। एक वर्ष में चार नवरात्र होती हैं जिनमें से शारदीय नवरात्रि और चैत्र नवरात्रि का बहुत अधिक प्रधानता है। कई अन्य अनुष्ठान और परंपराएं हैं जो इन दोनों नवरात्रि समारोहों के लिए समान हैं। ऐसा ही एक विशेष रिवाज है नवरात्रि घटस्थापना। शारदीय घटस्थापना, जैसा कि नाम से ही पता चलता है की  इसमें घट या कलश की स्थापना की जाती है। यह अनुष्ठान नौ दिवसीय उत्सव और उमंग की शुरुआत का प्रतीक है।

 

अन्य जानकारी:-

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वरलक्ष्मी पूजा कब है ,पूजा विधि और आवश्यक सामग्री | Varalakshmi Pooja https://astroupdate.com/varalakshmi-pooja/ https://astroupdate.com/varalakshmi-pooja/#respond Mon, 06 Feb 2023 05:50:39 +0000 https://astroupdate.com/?p=4176 वरलक्ष्मी पूजा विधि -Varalakshmi Pooja Vidhi

 

वरलक्ष्मी व्रत के दिन में महिलाएं अपने परिवार के सुखी जीवन के लिए उपवास रखती हैं और व्रत रखकर मां लक्ष्मी की पूजा करती हैं। घर की साफ-सफाई के उपरांत  स्नान करके ध्यान से पूजा के स्थल को गंगाजल से शुद्ध(पवित्र) करना चाहिए। इसके बाद उपवास का संकल्प करना चाहिए।

 

माता लक्ष्मी जी की मूर्ति को नए वस्त्र, आभूषण और कुमकुम से सजाइये। ऐसा करने के बाद माता लक्ष्मी जी की मूर्ति को पूर्व दिशा में गणेश जी की मूर्त के साथ फर्श पर रखें, और पूजा स्थल पर थोड़ा-सा तंदू फैलाएं। एक घड़े में जल को  भर कर कटोरी में रख दीजिये।  इसके बाद कलश के चारों ओर चंदन लगाएं।

 

कलश के पास पान, सिक्का, सुपारी, आम के पात (पते) इत्यादि रख दीजिये। इसके बाद नारियल पर चंदन, हल्दी व कुमकुम लगाकर कलश पर रख दीजिये।  थाली में लाल रंग का वस्त्र, अक्षत, फल, फूल, दूर्वा, दीपक़, धूप आदि से माता लक्ष्मी जी की पूजा करनी चाहिए। मां की मूर्त के समक्ष दीपक जलाएं और वरलक्ष्मी उपवास की कथा भी पढ़ें। पूजा के समापन के बाद महिलाओं को नैवेज्ञ (प्रसाद) बाँटिये। 

 

इस दिन उपवास निष्फल रहना चाहिए। रात में आरती-अर्चना के बाद आटा गूंथना बहुत ही उचित माना जाता है। इस व्रत को करने से माता लक्ष्मी जी की कृपा प्राप्त होती है।

 

वरलक्ष्मी व्रत के लिए आवश्यक सामग्री: -Varalakshmi Vrat Ki Samagri

 

वरलक्ष्मी व्रत पूजा के लिए आवश्यक वस्तुओं को पहले ही एकत्रित कर लेना चाहिए। इस सूची में दैनिक पूजा में उपयोग में आने वाली वस्तु  शामिल नहीं की गई है। परन्तु यह केवल उन वस्तुओं को सूचीबद्ध करता है जो विशेष रूप से वरलक्ष्मी व्रत पूजन विधि के लिए महत्वपूर्ण हैं।

 

  •  माता वरलक्ष्मी जी की मूर्ति
  •   फूलों की माला
  •  कुमकुम
  •   हल्दी
  •  चंदन पाउडर
  •  विभूति
  •  गिलास 
  • कंघी
  •  फूल
  •  पान के पत्ते
  •  पंचामृत
  •  दही
  •  केला
  •  दुग्ध (दूध)
  •  जल 
  •  अगरबत्ती
  •  कर्पूरी
  •  छोटी पूजा की घंटी
  •  तेल का दीप

 

वरलक्ष्मी व्रत की मान्यताएं – Varalakshmi Vrat Ki Manyataye

पुराणों,वेदो और शास्त्रों के अनुसार वरलक्ष्मी जयंती सावन के माह  शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाई जाती है।

 

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यह व्रत विवाहित जोड़ों को संतान प्राप्ति का सुख परदहां करता है। स्त्रीत्व के व्रत के कारण सुहागन महिलाएं इस व्रत को बड़े उमंग और उत्साह के साथ रखती हैं। इस व्रत को करने से इस व्रत से  सुख, धन और समृद्धि शीघ्र ही प्राप्ति होती है। वरलक्ष्मी व्रत रखने से अष्टलक्ष्मी पूजन के समान फल(सुख,धन,समृद्धि ) की प्राप्ति होती है।अगर  पति यह व्रत पत्नी के संग रखता है, तो इसका महत्व बहुत ज्यादा बढ़ जाता है। यह व्रत कर्नाटक और तमिलनाडु राज्यों में बड़े उत्साहऔर उमंग के साथ मनाया जाता है।और यह व्रत यह बहुत ही प्रचलित है। 

 

जानिए 2023 में वरलक्ष्मी व्रत कब है? Varalakshmi Vrat 2023 Me Kab Hai

 

ज्योतिष शास्त्रानुसार माता लक्ष्मी जी की पूजा करने के लिए सबसे ठीक समय उचित लग्न के दौरान होता ही है।माना जाता है कि यदि निश्चित लग्न के दौरान माँ लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है, तो माँ  लक्ष्मी दीर्घकालिक समृद्धि प्रदान करती है।

25 अगस्त 2023, दिन – शुक्रवार

वरलक्ष्मी पूजा के लिए कोई भी उपयुक्त समय चुना जा सकता है। हालांकि,सायं (शाम) का समय जो प्रदोष के साथ आता है। देवी लक्ष्मी का पूजन करने के लिए सबसे उचित माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिवस माँ वरलक्ष्मी की पूजा करना अष्टलक्ष्मी यानी धन की आठ देवियों(माताएं) आदि लक्ष्मी, विजयलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, गजलक्ष्मी, वीरलक्ष्मी, विद्यालक्ष्मी, सन्तानलक्ष्मी की पूजा करने के बराबर है। उत्तर भारत के मुकाबले यह व्रत दक्षिण भारत में अधिक महत्वपूर्ण है। वर-लक्ष्मी व्रत माता  लक्ष्मी को प्रसन्न करने और आशीर्वाद लेने के लिए सबसे उचित दिनों में से एक है।

                                

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देवोत्थान एकादशी 2023 में कब है, शुभ मुहूर्त ,और पूजा विधि | Devutthana Ekadashi https://astroupdate.com/devutthana-ekadashi/ https://astroupdate.com/devutthana-ekadashi/#respond Fri, 03 Feb 2023 07:38:55 +0000 https://astroupdate.com/?p=4171 देवोत्थान एकादशी 2023 – Devutthana Ekadashi 2023 

 

हिंदू धर्म में एकादशी के दिवस को हरि का दिन मानकर मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्री विष्णु को प्रसन्न करने के लिए पूजाओं का आयोजन किया जाता है और व्रत किए जाते हैं। माना जाता है दीपावली के बाद आने वाली देवउठनी एकादशी के दिन भगवान पूरे चार माह के बाद उठते हैं। इसलिए इसका यह नाम पड़ा था। इसके बाद ही शुभ कार्यों को किया जाता है। इस दिन किए गए व्रत में तरल पदार्थों को ग्रहण किया जाता है। जो व्यक्ति इस व्रत को नहीं रख पाता उसे पूरे दिन नारायण जी की आराधना करनी चाहिए। एकादशी में चावल को भोजन में शामिल नहीं करना चाहिए। इस एकादशी के व्रत से सौ गौ दान जितना पुण्य प्राप्त होता है। श्री हरि के उपासक इस दिन निर्जला व्रत का पालन भी करते हैं।

 

देवोत्थान एकादशी कब होती है? Devutthana Ekadashi Kab hai

 

प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी को देवोत्थान एकादशी के रूप में मनाया जाता है। कई स्थानों में इसे देवउठनी और प्रबोधिनी नाम से भी जाना जाता है। इस दिन मांगलिक कार्यों को वर्जित माना जाता है। यह दीपावली के प्रसिद्ध त्योहार के बाद आने वाली एकादशी होती है।

 

वर्ष 2023 में आने वाली देवउठनी एकादशी Dev Uthani Ekadashi 2023 

 

इस वर्ष 23 नवंबर को गुरुवार के दिन देवोत्थान एकादशी का उत्सव मनाया जाएगा। इस दिन रखे गए व्रत को पारणा मुहूर्त में ही खोलना चाहिए। इस मुहूर्त को शुभ माना जाता है और एकादशी की तिथि के अनुसार ही पूजन व दान आदि करना चाहिए। साल 2023 के मुहूर्ताें का समय कुछ इस प्रकार है

 

तारीख (Date) 23 नवंबर 2023
वार (Day) गुरुवार
एकादशी तिथि प्रारम्भ (Ekadashi Started) 22 नवंबर रात  11 बजकर 03 मिनट पर प्रारम्भ होगी
एकादशी तिथि समाप्त (Ekadashi Ended) 23 नवंबर को रात  9 बजकर 01 मिनट पर यह एकादशी समाप्त होगी
पारण (व्रत तोड़ने का) समय (Parana Time) 24 नवंबर को सुबह 6 बजकर 51 मिनट से 8 बजकर 58 मिनट तक है।

 

प्रबोधिनी एकादशी में प्रयोग किए जाने वाले मंत्र – Devutthana Ekadashi Mantra

 

पूजा के अंत में आवाहन मंत्र का उच्चारण करना चाहिए

“उठिए देव, बैठिए देव, अंगुरिया चटकावो देव, नया सूतः, नया कापास, देव उठिए कार्तिक मास।”

 

तुलसी पूजन के समय प्रयोग होने वाला तुलसी दशाक्षरी मंत्र

“श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वृन्दावन्यैः स्वाहा।”

 

दिव्य तुलसी मंत्र इस प्रकार है

       “देवी त्वं निर्मिता पूर्व मर्चि तासि मुनीश्र्वरैः।

       नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरि प्रिये।।”

 

नारायण जी को प्रेम भाव के साथ उठाने के लिए इस मंत्र का जाप करना चाहिए। 

 “उतिष्ठ, उतिष्ठ, गोविंद उतिष्ठ गरुड़ध्वज, त्वयो चोत्तिष्ठ मानेन, चोतिष्ठम् भुव नत्रयम्”

 

देवोत्थान एकादशी पूजा विधि Devutthana Ekadashi Vidhi

 

  • इस दिन सुबह उठकर भगवान विष्णु जी का ध्यान करना चाहिए। मन में उनकी आराधना करने के बाद ही विस्तर छोड़ना चाहिए। 
  • उसके बाद व्रत करने का मन में ही संकल्प लेना चाहिए। 
  • घर की सफाई करके पवित्र नदी, कुंड या सरोवर में स्नान करना चाहिए। यदि किसी सरोवर में जाना संभव न हो तो नहाने के पानी में थोड़ा गंगाजल मिला लेना चाहिए। 
  • स्नान के बाद भगवान श्री हरि की प्रतिमा या तस्वीर को ओखली में स्थापित कर उसे ढक दिया जाता है और पास में मिठाई, बेर, सिंघाड़ा, गन्ना और ऋतुफल को रख दिया जाता है। 
  • पूरा दिन भगवान की आराधना करनी चाहिए और मन वैदिक मंत्रों का उच्चारण करते रहना चाहिए। इस दिन तुलसी विवाह किया जाता है, जिसकी विधि को भी आगे बताया जाएगा। 
  • इस प्रकार रात के समय पूरे घर और पूजा स्थल में व पास में दीपक जलाए जाते हैं। 
  • रात के समय अपने कुटुंब के साथ पूजा स्थल के समक्ष एकत्रित होकर श्री हरि का पूजन करते हैं। हरि वासर के दिन अन्य देवी देवताओं की पूजा भी साथ में करनी चाहिए। पूजा के पूर्ण हो जाने के बाद घंटी और शंख बजाना चाहिए। माना जाता है ऐसा करके भक्त भगवान जी को उठाने का प्रयास करके अपनी उपस्थित का आवास करवाते हैं। 
  • इसके बाद आवाहन मंत्र का स्मरण करना चाहिए और बार बार उसे दोहराना चाहिए। इस आवाहन मंत्र के बारे में हम आपको ऊपर बता चुके हैं। 

 

तुलसी विवाह की विधि – Tulsi Vivaha Ki Vidhi 

 

तुलसी विवाह भी इस दिन की जाने वाली पूजा का ही हिस्सा है। इसलिए इसकी विधि के बारे में भी ज्ञान होना अति आवश्यक है। इस दिन पूजा के समय पीले रंग के वस्त्र को धारण करना शुभ माना जाता है।

इस पूजा विधि में तुलसी के पौधे के चारों और गन्ने के प्रयाग से मंडप बनाया जाता है और तोरण सजाया जाता है। तुलसी माता और शालिग्राम का पूजन किया जाता है और माता तुलसी के पौधे का एक दुल्हन की भांति श्रृंगार किया जाता है। तुलसी के साथ आंवले के पौधे को भी समीप रखा जाता है। उसके बाद दशाक्षरी मंत्र से माता तुलसी का आवाहन किया जाता है। इस मंत्र के बारे में हम आपको पहले ही बता चुके हैं। पानी का कलश भी साथ रखा जाता है और माता को सुहागी का सारा सामान अर्पित किया जाता है। अंत एक वास्तविक विवाह की तरह ही माता तुलसी और श्री हरि का विवाह किया जाता है। अंत में फल व मिठाई को प्रसाद के रूप में भक्तों द्वारा ग्रहण किया जाता है।

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छठ पूजा की शुरुआत कैसे हुई | Chhath Pooja Kee Shuruaat Kaise Huee https://astroupdate.com/chhath-pooja-kee-shuruaat-kaise-huee/ https://astroupdate.com/chhath-pooja-kee-shuruaat-kaise-huee/#respond Fri, 03 Feb 2023 06:35:46 +0000 https://astroupdate.com/?p=4162 छठ पूजा की शुरुआत कैसे हुई – Chhath Pooja Kee Shuruaat Kaise Huee

 

आइये हम आपको बताते है की छठ पूजा कि शुरुआत कैसे हुई। ऐसा बतया जाता है कि रामायण और महाभारत के समय से ही छठ पूजा की परम्परा चली आ रही है। माना जाता है कि त्योहारों का देश भारत है। इसमें कई ऐसे पर्व है। जिन्हें बहुत कठिन माना जाता है। और इनमे से एक तो है लोक आस्था का सबसे बड़ा पर्व, छठ है। 

नहाय-खाय के अनुसार ही आरंभ हुए लोकआस्था के इस चार दिवसीय महापर्व को जानते हुए बहुत सी कथाएं भी मौजूद हैं। हम आपको एक कथा के अनुसार बताते है कि छठ पूजा की शुरुआत कैसे हुई। जब महाभारत काल में पांडवों ने अपना सारा राजपाट एक जुए में हरा दिया था। उस समय द्रौपदी ने छठ व्रत किया था। इसी व्रत से उन्होंने जो भी मनोकामनाएं मांगी थी वो सारी पूर्ण हुईं थी। इसलिए पांडवों को उनका राजपाट वापस मिल गया था। इसके अलावा छठ पूजा का उल्लेख रामायण काल में भी है। एक और मान्यता के अनुसार, छठ पूजा या सूर्य पूजा महाभारत काल से ही की जा रही है। और ऐसा कहते है की छठ पूजा की शुरुआत सूर्य के पुत्र कर्ण के द्वारा कि गई थी। श्री कर्ण भगवान जी सूर्य जी के बहुत बड़े परम भक्त थे। मान्याता के अनुसार वे हर रोज घंटों तक पानी में खड़े रहकर सूर्य जी को अर्घ्य देते थे। सूर्य जी की कृपा से ही वो महान योद्धा बने थे। 

 

छठ पूजा की शुरुआत क्यों हुई – Chhath Pooja Kee Shuruaat Kyoo Huee

 

किंवदंती के अनुसार बताया है कि, ऐतिहासिक नगरी मुंगेर के सीता चरण में कभी माता सीता जी भी छह दिनों तक वहाँ रहकर छठ पूजा की थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार 14 वर्ष वनवास के बाद जब भगवान श्री राम वापस अयोध्या नगरी में लौटे थे। तो श्री राम जी रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए ऋषि-मुनियों के आदेश मानते हुए एक राजसूय यज्ञ करने का फैसला किया था। इसके लिए उन्होंने मुग्दल ऋषि को भी आमंत्रण दिया गया था। लेकिन मुग्दल ऋषि ने भगवान श्री राम एवं सीता माता जी को अपने ही आश्रम में आने का आदेश दिया था। मुग्दल ऋषि की आज्ञा पर ही भगवान श्री राम एवं सीता माता ने स्वयं आश्रम पर प्रस्थान किया। और उन्हें इस पूजा के बारे में बताया गया। मुग्दल ऋषि ने मां सीता को गंगाजल  छिड़क कर पवित्र किया था। और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष कि षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की पूजा करने का आदेश दिया। तभी माता सीता ने यहाँ पर ही रहकर छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान जी की पूजा की थी।

          

लोकआस्था और सूर्य उपासना के इस महान पर्व छठ की आज से शुरुआत हो गई है। इस चार दिवसीय त्योहार की शुरुआत नहाय-खाय की परम्परा से होती है। यह त्योहार पूरी तरह से श्रद्धा और शुद्धता का पर्व है। इस व्रत को महिलाओं के साथ ही पुरुष भी रखते हैं। चार दिनों तक चलने वाले लोकआस्था के इस महापर्व के लिए लगभग तीन दिन का व्रत रखना होता है। जिनमें से दो दिनों तक तो निर्जला व्रत रखा जाता है।

 

छठ पूजा को पहले केवल बिहार, झारखंड और उत्तर भारत में ही मनाया जाता था। लेकिन अब इसे धीरे-धीरे पूरे देश में मनाया जाता है, क्युकी अब सभी लोगो ने इसके महत्व को स्वीकार कर लिया है। छठ पर्व को षष्ठी का अपभ्रंश भी माना जाता है। इसी कारण इस व्रत का नाम छठ व्रत हो गया था। छठ पूजा का पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है। पहली बार तो चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक माह में इसे मनाया जाता है। चैत्र माह कि शुक्ल पक्ष कि षष्ठी पर मनाए जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ कहा जाता है। और कार्तिक माह कि शुक्ल पक्ष कि षष्ठी पर मनाए जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ कहा जाता है।

अन्य जानकरी :-

                 

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छठ पूजा कैसे करते हैं | Chhath Puja Kaise Karte Hai https://astroupdate.com/chhath-puja-kaise-karte-hai/ https://astroupdate.com/chhath-puja-kaise-karte-hai/#respond Fri, 03 Feb 2023 06:03:21 +0000 https://astroupdate.com/?p=4148 छठ पूजा कैसे करते हैं – Chhath Puja Kaise Karte Hai 

 

आइये हम आपको बताते है छठ पूजा के बारे में और छठ पूजा कैसे करते है ,पौराणिक कथाओं के अनुसार से छठ पूजा का महत्व आदिकाल से ही चला आ रहा है। इसका उल्लेख महाभातर में भी है। पांडवों की माता श्रीमती कुंती जी को विवाह से पहले ही सूर्य देव के आशीर्वाद स्वरुप पुत्र की प्राप्ति हुई थी। जिनका नाम कर्ण था। इसी तरह पांडवों कि पत्नी श्रीमती द्रौपदी जी ने भी अपने कस्टो को दूर करने के लिए छठ पूजा की थी। और यह वृत संतान कि प्राप्ति और संतान की मंगलकामना के लिए किया जाता है। 

यह पूजा कार्तिक माह कि शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से प्रारंभ होकर सप्तमी तक चलती है। प्रथम दिन मतलब चतुर्थी तिथि के दिन इसे ‘नहाय-खाय’ के रूप में मनाया जाता है। छठ पूजा नहाय-खाय से ही प्रारम्भ होती है। इस दिन व्रत करने वाले लोग सबसे पहले स्नान करते है और फिर नए वस्त्र धारण करते है। फिर सब पूजा करते है और पूजा के बाद चना दाल, कद्दू की सब्जी और चावल को प्रसाद मानकर उसे ग्रहण करते है। इस दिन जो भी व्रत रखने वाले होते है वो सर्वप्रथम भोजन करते हैं। उसके बाद ही परिवार के सभी सदस्य भोजन करते हैं। फिर उसके अगले दिन ही पंचमी को खरना व्रत किया जाता है। इस दिन संध्याकाल के समय उपासक प्रसाद के रूप में गुड़-खीर, रोटी तथा फल खाते है। फिर उसके बाद वो अगले 36 घंटे तक निर्जला व्रत रखते हैं। इसकी मान्यता यह है कि खरना पूजन से ही छठ देवी प्रसन्न हो जाती है और प्रसन्न होकर घर में वास करती हैं। इसलिए छठ पूजा की महत्वपूर्ण तिथि यानि षष्ठी पर नदी या जलाशय के तट पर भारी संख्या में श्रद्धालु एकत्रित हो जाते है। उसके बाद वो सभी उभरते हुए सूर्य को अर्ध्य समर्पित करते है। और इसी के साथ छठ पूजा का पर्व समाप्त करते है। 

 

छठ पूजा व्रत विधि – Chhath Puja Vrat Vidhi

 

 

  1. छठ पूजा के पर्व के दिन मंदिरों में पूजा नहीं की जाती है।और ना ही तो घरो में सफाई की जाती है।

  2. हम इस पर्व से दो दिन पहले चतुर्थी पर स्नानादि से निवृत्त होकर भोजन होता है।

  3. पंचमी को हम उपवास करने के बाद संध्याकाल के समय हम तालाब या नदी में स्नान करते है। और उसके बाद सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। फिर उसके बाद हम अलोना भोजन करते है। जो भोजन बिना नमक का होता है।

  4. षष्ठी के दिन सुबह सुबह ही स्नानादि के बाद संकल्प लिया जाता है। और हमेशा संकल्प लेते समय इस मंत्र का उच्चारण अवस्य करें।

 

ॐ अद्य अमुक गोत्रो अमुक नामाहं मम सर्व पापनक्षयपूर्वक शरीरारोग्यार्थ श्री सूर्यनारायणदेवप्रसन्नार्थ श्री सूर्यषष्ठीव्रत करिष्ये।

 

  1. इस पूजा के दौरान हमें पूरे दिन निराहार और निर्जल रहना होता है। और उसके बाद पुनः नदी या तालाब पर जाकर स्नान करना होता है। और फिर हम सूर्य देव को अर्घ्य देते है।

  2. अर्घ्य देने की भी एक विधि होती है। एक बांस के सूप में केला और अन्य फल रखकर  अलोना प्रसाद, एक पीले वस्त्र से ढक कर रख दें। उसके बाद एक दीपक जलाकर एक सूप में रखे दें। और उसके बाद उस सूप को अपने दोनों हाथों में लेकर इस मंत्र का उच्चारण करें। और इस मंत्र को तीन बार बोलते हुए सूर्य देव को अर्घ्य दें।

 

ॐ एहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजोराशे जगत्पते।

अनुकम्पया मां भक्त्या गृहाणार्घ्य दिवाकर:॥

 

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अहोई अष्टमी पूजा विधि, सामग्री, शुभ मुहूर्त और महत्व | Ahoi Ashtami Puja Vidhi  https://astroupdate.com/ahoi-ashtami-puja-vidhi/ https://astroupdate.com/ahoi-ashtami-puja-vidhi/#respond Tue, 31 Jan 2023 12:23:39 +0000 https://astroupdate.com/?p=4067 अहोई अष्टमी पूजा विधि – Ahoi Ashtami Puja Vidhi 

 

अहोई अष्टमी पूजा विधि के दौरान सर्वप्रथम प्रातःकाल नित्यकर्मों से निवृत होकर स्नान आदि करके स्वच्छ वस्त्र पहनिए। इसके पश्चात पूजन स्थल को साफ-सफाई करके उपवास का संकल्प लीजिये। और पुरे दिन भर निर्जला उपवास का पालन कीजिये। इसके पश्चात माँ दुर्गा और अहोई माता जी का ध्यान करते हुए शुद्ध घी दीपक जलाएं। आराधना स्थल को साफ करके उत्तर व पूर्व दिशा या ईशान कोण में चौकी को स्थापित  करें। चौकी को गंगाजल छिड़कर उसे पवित्र करके उस पर लाल या पीला रंग वस्त्र बिछाइये।इसके बाद  माता अहोई जी की मूर्त स्थापित करें।अब गेंहू के दानों से चौकी के बीच में एक ढेर बनाइये, इस पर जल से भरा एक तांबे का कलश जरूर रखिये।इसके बाद माता अहोई जी के चरणों में मोती की माला या चांदी के मोती रखिये।

अहोई अष्टमी पूजा विधि को ध्यान में रखते हुए हमे आचमन विधि करने के बाद,चौकी पर धूप-दीपक जलाएं और अहोई माता जी को पुष्प (फूल) चढ़ाइये।इसके पश्चात अहोई माता जी को रोली, दूध और भात का अर्पण कीजिये।बायना के साथ 8 पूड़ीया, 8 मालपुए एक कटोरी में लेकर चौकी के ऊपर रखिये।इसके पश्चात अपने हाथ में गेहूं के सात दानो और फूलों की पंखुडिया लेकर अहोई माता जी की कहानी पढ़िए।

अहोई अष्टमी माता की  कहानी पूर्ण होने पर, अपने हाथ में लिए गेहूं के दानो और पुष्प (फूल) माता जी  के चरणों में अर्पित कर दीजिये। इसके उपरांत मोती की माला या चांदी के मोती एक साफ दागे  या कलावा में पिरोकर गले में पहनिए।अब तारों और चन्द्रमा को अर्घ्य देकर इनकी पंचोपचार (हल्दी, कुमकुम, अक्षत, पुष्प और भोग) के द्वारा पूजा कीजिये।पूजा में रखी गई दक्षिणा अर्थात बायना अपनी सास (माँ) या घर की बुजुर्ग महिला को दें और उनका आशीर्वाद ले।अंत में  जल को ग्रहण करके अपने उपवास  का पूरा करें और भोजन को ग्रहण कीजिये।

 

अहोई अष्टमी पूजा विधि की सामग्री की सूची | Ahoi Asthami Puja Vidhi Samagree

 

  1. अहोई माता की मूर्त
  2. स्याहु माला
  3. दीपक करवा
  4. पूजा रोली
  5. अक्षत
  6. तिलक के लिए रोली
  7. दूब(घास के टुकड़े )
  8. कलावा
  9. पुत्रों को देने के लिए फल माता को अर्पण करने  के लिए श्रृंगार का सामान बयाना
  10. सात्विक भोजन
  11. चौदह पुरिया  और आठ पुओं का भोग
  12. चावल की कटोरी
  13. सिंघाड़े
  14. फल
  15. खीर 
  16. दुग्ध (दूध) 
  17. वस्त्र 
  18. बयाना में देने के लिए नेग (पैसे)

अहोई माता की आरती | Ahoi Mata Ki Aarti

 

ज़य अहोई माता ज़य अहोई माता।

तुमको निसदिन ध्यावत हरि विष्णु धाता॥

ब्राहमणी रुद्राणी कमला तू हे है जग दाता।

सूर्य चन्द्रमा ध्यावत नारद ऋषि गाता॥

माता रूप निरंजन सुख संपत्ती दाता।

जो कोई तुमको ध्यावत नित मंगल पाता॥

तू हे है पाताल बसंती तू हे है सुख दाता।

कर्मा प्रभाव प्रकाशक जज्निदधि से त्राता॥

जिस घर तारो वास वही में गुण आता।

कर ना सके सोई कर ले मन नहीं घबराता॥

तुम बिन सुख ना होवय पुतरा ना कोई पाता।

खान-पान का वैभव तुम बिन नहीं आता॥

सुभ गुण सुन्दर युक्ता शियर निदधि जाता।

रतन चतुर्दर्श तौकू कोई नहीं पाता॥

श्री अहोई मा की आरती जो कोई गाता।

उर् उमंग अत्ती उपजय पाप उत्तर जाता॥

 

अहोई अष्टमी व्रत का महत्व | Ahoi Vrat Ka Mahatva

 

अहोई अष्टमी पूजा विधि – अहोई अष्टमी का व्रत (Ahoi Ashtami Vrat 2023) करवा चौथ व्रत के चार दिन पश्चात और दिवाली से आठ दिन पहले रखा जाता है। उत्तर भारत में इस व्रत का बहुत महत्व है। अहोई अष्टमी को अहोई आठे के नाम से भी जाना जाता है। इस उपवास को निर्जला रखा जाता है।  पूजन  के बाद सितारों को देखकर और चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद इस उपवास  को खोला जाता है। व्रत करने वाली माताए  अहोई माता जी से अपनी संतान की दीर्घायु और उनके लिए खुशहाली मांगती हैं। अहोई अष्टमी के व्रत करने से सम्पूर्ण मनोकामनाए पूरी हो जाती है।

 

अहोई माता की पूजा का शुभ मुहूर्त  | Ahoi Mata Ki Puja Ka Muhurat

 

रविवार, 05 नवंबर 2023

तारों को देखने का सायं काल का समय: 05:58 अपराह्न लगभग।

अष्टमी तिथि शुरू: 05 नवंबर 2023 पूर्वाह्न 00:59 बजे। 

अष्टमी तिथि समाप्त: 06 नवंबर 2023 पूर्वाह्न 03:18 बजे। 

अन्य जानकारी :-

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