हिंदू धर्म में एकादशी के दिवस को हरि का दिन मानकर मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्री विष्णु को प्रसन्न करने के लिए पूजाओं का आयोजन किया जाता है और व्रत किए जाते हैं। माना जाता है दीपावली के बाद आने वाली देवउठनी एकादशी के दिन भगवान पूरे चार माह के बाद उठते हैं। इसलिए इसका यह नाम पड़ा था। इसके बाद ही शुभ कार्यों को किया जाता है। इस दिन किए गए व्रत में तरल पदार्थों को ग्रहण किया जाता है। जो व्यक्ति इस व्रत को नहीं रख पाता उसे पूरे दिन नारायण जी की आराधना करनी चाहिए। एकादशी में चावल को भोजन में शामिल नहीं करना चाहिए। इस एकादशी के व्रत से सौ गौ दान जितना पुण्य प्राप्त होता है। श्री हरि के उपासक इस दिन निर्जला व्रत का पालन भी करते हैं।
प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी को देवोत्थान एकादशी के रूप में मनाया जाता है। कई स्थानों में इसे देवउठनी और प्रबोधिनी नाम से भी जाना जाता है। इस दिन मांगलिक कार्यों को वर्जित माना जाता है। यह दीपावली के प्रसिद्ध त्योहार के बाद आने वाली एकादशी होती है।
इस वर्ष 23 नवंबर को गुरुवार के दिन देवोत्थान एकादशी का उत्सव मनाया जाएगा। इस दिन रखे गए व्रत को पारणा मुहूर्त में ही खोलना चाहिए। इस मुहूर्त को शुभ माना जाता है और एकादशी की तिथि के अनुसार ही पूजन व दान आदि करना चाहिए। साल 2023 के मुहूर्ताें का समय कुछ इस प्रकार है
तारीख (Date) 23 नवंबर 2023 वार (Day) गुरुवार एकादशी तिथि प्रारम्भ (Ekadashi Started) 22 नवंबर रात 11 बजकर 03 मिनट पर प्रारम्भ होगी एकादशी तिथि समाप्त (Ekadashi Ended) 23 नवंबर को रात 9 बजकर 01 मिनट पर यह एकादशी समाप्त होगी पारण (व्रत तोड़ने का) समय (Parana Time) 24 नवंबर को सुबह 6 बजकर 51 मिनट से 8 बजकर 58 मिनट तक है।
पूजा के अंत में आवाहन मंत्र का उच्चारण करना चाहिए
“उठिए देव, बैठिए देव, अंगुरिया चटकावो देव, नया सूतः, नया कापास, देव उठिए कार्तिक मास।”
तुलसी पूजन के समय प्रयोग होने वाला तुलसी दशाक्षरी मंत्र
“श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वृन्दावन्यैः स्वाहा।”
दिव्य तुलसी मंत्र इस प्रकार है
“देवी त्वं निर्मिता पूर्व मर्चि तासि मुनीश्र्वरैः।
नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरि प्रिये।।”
नारायण जी को प्रेम भाव के साथ उठाने के लिए इस मंत्र का जाप करना चाहिए।
“उतिष्ठ, उतिष्ठ, गोविंद उतिष्ठ गरुड़ध्वज, त्वयो चोत्तिष्ठ मानेन, चोतिष्ठम् भुव नत्रयम्”
तुलसी विवाह भी इस दिन की जाने वाली पूजा का ही हिस्सा है। इसलिए इसकी विधि के बारे में भी ज्ञान होना अति आवश्यक है। इस दिन पूजा के समय पीले रंग के वस्त्र को धारण करना शुभ माना जाता है।
इस पूजा विधि में तुलसी के पौधे के चारों और गन्ने के प्रयाग से मंडप बनाया जाता है और तोरण सजाया जाता है। तुलसी माता और शालिग्राम का पूजन किया जाता है और माता तुलसी के पौधे का एक दुल्हन की भांति श्रृंगार किया जाता है। तुलसी के साथ आंवले के पौधे को भी समीप रखा जाता है। उसके बाद दशाक्षरी मंत्र से माता तुलसी का आवाहन किया जाता है। इस मंत्र के बारे में हम आपको पहले ही बता चुके हैं। पानी का कलश भी साथ रखा जाता है और माता को सुहागी का सारा सामान अर्पित किया जाता है। अंत एक वास्तविक विवाह की तरह ही माता तुलसी और श्री हरि का विवाह किया जाता है। अंत में फल व मिठाई को प्रसाद के रूप में भक्तों द्वारा ग्रहण किया जाता है।