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देवोत्थान एकादशी 2023 में कब है, शुभ मुहूर्त ,और पूजा विधि | Devutthana Ekadashi

देवोत्थान एकादशी 2023 में कब है
February 3, 2023

देवोत्थान एकादशी 2023 – Devutthana Ekadashi 2023 

 

हिंदू धर्म में एकादशी के दिवस को हरि का दिन मानकर मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्री विष्णु को प्रसन्न करने के लिए पूजाओं का आयोजन किया जाता है और व्रत किए जाते हैं। माना जाता है दीपावली के बाद आने वाली देवउठनी एकादशी के दिन भगवान पूरे चार माह के बाद उठते हैं। इसलिए इसका यह नाम पड़ा था। इसके बाद ही शुभ कार्यों को किया जाता है। इस दिन किए गए व्रत में तरल पदार्थों को ग्रहण किया जाता है। जो व्यक्ति इस व्रत को नहीं रख पाता उसे पूरे दिन नारायण जी की आराधना करनी चाहिए। एकादशी में चावल को भोजन में शामिल नहीं करना चाहिए। इस एकादशी के व्रत से सौ गौ दान जितना पुण्य प्राप्त होता है। श्री हरि के उपासक इस दिन निर्जला व्रत का पालन भी करते हैं।

 

देवोत्थान एकादशी कब होती है? Devutthana Ekadashi Kab hai

 

प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी को देवोत्थान एकादशी के रूप में मनाया जाता है। कई स्थानों में इसे देवउठनी और प्रबोधिनी नाम से भी जाना जाता है। इस दिन मांगलिक कार्यों को वर्जित माना जाता है। यह दीपावली के प्रसिद्ध त्योहार के बाद आने वाली एकादशी होती है।

 

वर्ष 2023 में आने वाली देवउठनी एकादशी Dev Uthani Ekadashi 2023 

 

इस वर्ष 23 नवंबर को गुरुवार के दिन देवोत्थान एकादशी का उत्सव मनाया जाएगा। इस दिन रखे गए व्रत को पारणा मुहूर्त में ही खोलना चाहिए। इस मुहूर्त को शुभ माना जाता है और एकादशी की तिथि के अनुसार ही पूजन व दान आदि करना चाहिए। साल 2023 के मुहूर्ताें का समय कुछ इस प्रकार है

 

तारीख (Date) 23 नवंबर 2023
वार (Day) गुरुवार
एकादशी तिथि प्रारम्भ (Ekadashi Started) 22 नवंबर रात  11 बजकर 03 मिनट पर प्रारम्भ होगी
एकादशी तिथि समाप्त (Ekadashi Ended) 23 नवंबर को रात  9 बजकर 01 मिनट पर यह एकादशी समाप्त होगी
पारण (व्रत तोड़ने का) समय (Parana Time) 24 नवंबर को सुबह 6 बजकर 51 मिनट से 8 बजकर 58 मिनट तक है।

 

प्रबोधिनी एकादशी में प्रयोग किए जाने वाले मंत्र – Devutthana Ekadashi Mantra

 

पूजा के अंत में आवाहन मंत्र का उच्चारण करना चाहिए

“उठिए देव, बैठिए देव, अंगुरिया चटकावो देव, नया सूतः, नया कापास, देव उठिए कार्तिक मास।”

 

तुलसी पूजन के समय प्रयोग होने वाला तुलसी दशाक्षरी मंत्र

“श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वृन्दावन्यैः स्वाहा।”

 

दिव्य तुलसी मंत्र इस प्रकार है

       “देवी त्वं निर्मिता पूर्व मर्चि तासि मुनीश्र्वरैः।

       नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरि प्रिये।।”

 

नारायण जी को प्रेम भाव के साथ उठाने के लिए इस मंत्र का जाप करना चाहिए। 

 “उतिष्ठ, उतिष्ठ, गोविंद उतिष्ठ गरुड़ध्वज, त्वयो चोत्तिष्ठ मानेन, चोतिष्ठम् भुव नत्रयम्”

 

देवोत्थान एकादशी पूजा विधि Devutthana Ekadashi Vidhi

 

  • इस दिन सुबह उठकर भगवान विष्णु जी का ध्यान करना चाहिए। मन में उनकी आराधना करने के बाद ही विस्तर छोड़ना चाहिए। 
  • उसके बाद व्रत करने का मन में ही संकल्प लेना चाहिए। 
  • घर की सफाई करके पवित्र नदी, कुंड या सरोवर में स्नान करना चाहिए। यदि किसी सरोवर में जाना संभव न हो तो नहाने के पानी में थोड़ा गंगाजल मिला लेना चाहिए। 
  • स्नान के बाद भगवान श्री हरि की प्रतिमा या तस्वीर को ओखली में स्थापित कर उसे ढक दिया जाता है और पास में मिठाई, बेर, सिंघाड़ा, गन्ना और ऋतुफल को रख दिया जाता है। 
  • पूरा दिन भगवान की आराधना करनी चाहिए और मन वैदिक मंत्रों का उच्चारण करते रहना चाहिए। इस दिन तुलसी विवाह किया जाता है, जिसकी विधि को भी आगे बताया जाएगा। 
  • इस प्रकार रात के समय पूरे घर और पूजा स्थल में व पास में दीपक जलाए जाते हैं। 
  • रात के समय अपने कुटुंब के साथ पूजा स्थल के समक्ष एकत्रित होकर श्री हरि का पूजन करते हैं। हरि वासर के दिन अन्य देवी देवताओं की पूजा भी साथ में करनी चाहिए। पूजा के पूर्ण हो जाने के बाद घंटी और शंख बजाना चाहिए। माना जाता है ऐसा करके भक्त भगवान जी को उठाने का प्रयास करके अपनी उपस्थित का आवास करवाते हैं। 
  • इसके बाद आवाहन मंत्र का स्मरण करना चाहिए और बार बार उसे दोहराना चाहिए। इस आवाहन मंत्र के बारे में हम आपको ऊपर बता चुके हैं। 

 

तुलसी विवाह की विधि – Tulsi Vivaha Ki Vidhi 

 

तुलसी विवाह भी इस दिन की जाने वाली पूजा का ही हिस्सा है। इसलिए इसकी विधि के बारे में भी ज्ञान होना अति आवश्यक है। इस दिन पूजा के समय पीले रंग के वस्त्र को धारण करना शुभ माना जाता है।

इस पूजा विधि में तुलसी के पौधे के चारों और गन्ने के प्रयाग से मंडप बनाया जाता है और तोरण सजाया जाता है। तुलसी माता और शालिग्राम का पूजन किया जाता है और माता तुलसी के पौधे का एक दुल्हन की भांति श्रृंगार किया जाता है। तुलसी के साथ आंवले के पौधे को भी समीप रखा जाता है। उसके बाद दशाक्षरी मंत्र से माता तुलसी का आवाहन किया जाता है। इस मंत्र के बारे में हम आपको पहले ही बता चुके हैं। पानी का कलश भी साथ रखा जाता है और माता को सुहागी का सारा सामान अर्पित किया जाता है। अंत एक वास्तविक विवाह की तरह ही माता तुलसी और श्री हरि का विवाह किया जाता है। अंत में फल व मिठाई को प्रसाद के रूप में भक्तों द्वारा ग्रहण किया जाता है।

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