तुलसी विवाह क्या होता है? – तुलसी का प्रयोग प्राचीन काल से अब तक आयुर्वेदिक औषधियों को बनाने के लिए किया जाता है। तुलसी के और भी कई फायदे होते हैं। हिंदु धर्म में इसे एक देवी के रूप में पूजा जाता है और इसकी पूजा का भारत में बहुत महत्तव है। ज्यादातर हिंदु धर्म के लोगों के घर में आवश्य ही यह तुलसी का पौधा देखने को मिलता है। इसकी पूजा से स्त्रियों को बहुत लाभ होता है।
इसकी पूजा की विधि भी काफी सरल है जिसे आप खुद से भी कर सकते हैं। वही ज्यादा विधि विधान से बड़ी पूजा करने हेतु किसी ज्योतिष शास्त्र के विद्वान की सहायता ले सकते हैं। आज हम आपको यह बताएंगे कि क्यों तुलसी विवाह किया जाता है, वर्ष 2023 में यह पर्व कब आएगा़, क्या इस तुलसी विवाह के पीछे की कथा और मंत्रों और विधि के बारे में जानकर इस पवित्र पूजा के बारे में जानेंगे।
तुलसी विवाह के इस पर्व के पीछे भगवान विष्णु जी की कथा का वर्णन सुनने को मिलता है जिसके बाद से यह एकादशी के रूप में मनाया जाना शुरू हुआ था। महिलाओं व कन्याओं के लिए तुलसी विवाह बहुत लाभदायक फल देने वाला होता है। तुलसी विवाह को कन्यादान के बराबर मान्यता प्राप्त है। जिनके घर में कन्या नहीं होती है वो कन्यादान के पुण्य से वंचित रह जाते हैं और कन्यादान को सबसे बड़े दानों में गिना जाता है। इस पुण्य की प्राप्ति के लिए के लिए लोग इस तुलसी विवाह को करते हैं।
महिलाएं अपने बच्चों और पति के कल्याण के लिए तुलसी पूजन व तुलसी विवाह को करती हैं। वही कन्याएं अच्छे वर की प्राप्ति के लिए इस पूजा को करती हैं। इसकी पूजा से घर में सुख शांति बनी रहती है और लाभ होते हैं। इसके अलावा घर और मन में सकारात्मक शक्ति बनाए रखनें और आसपास के वातावरण की शुद्धी के लिए भी इस तुलसी विवाह को किया जाता है।
हिंदुओं में इस तुलसी विवाह को शादियों के मौसम की शुरूआत के रूप में देखा जाता है। माना जाता है कि इस विवाह के बाद शादियों के शुभ मुहूर्तों की तिथियां आना आरंभ हो जाती है। तुलसी का यह पवित्र पौधा हिंदुओं के घरों में देखने को मिल ही जाता है, इसे माता देवी लक्ष्मी का अवतार माना जाता है।
कार्तिक मास की एकादशी का हिंदू धर्म में बहुत महत्तव है। साल 2023 में 24 नवम्बर शुक्रवार के दिन तुलसी विवाह किया जाएगा। तुलसी विवाह को द्वादशी तिथि केे आरंभ होने के बाद और समाप्त होने से पहले किया जाना चाहिए। अलग अलग स्थानों के आधार पर सकीट समय जानने के लिए आप किसी ज्योतिषशास्त्र के विशेषज्ञ से संपर्क कर सकते हैं।
वर्ष 2023 की द्वादशी तिथि 23 नवम्बर को रात 09 बजकर 01 मिनट पर आरंभ हो जाएगी और अगले दिन 24 नवम्बर शुक्रवार की शाम 07 बजकर 06 मिनट पर समाप्त होे जाएगी।
इस समयकाल में किए गए तुलसी विवाह का विशेष महत्तव है और इससे ज्यादा जल्दी फल की प्राप्ति होती है।
इस दिन लोगों द्वारा तुलसी विवाह व्रत रखा जाता है और भगवान विष्णु के शालिग्राम के साथ माता तुलसी का विवाह करते हैं। इस विवाह को हिंदू धर्म में की जाने वाली शादी के जैसे ही किया जाता है। इस विवाह में सामान्य शादी के रीति-रिवाज और पंरपराएं देखने को मिलती हैं। किसी भी हिंदु विवाह की भांति इसमें भी शादी का मंडप बनाया जाता है और दोनों मूर्तियों की पूजा की जाती है।
तुलसी के पौधे को माता लक्ष्मी का ही रूप माना जाता है। इसलिए इस पवित्र पौधे को लाल साड़ी, गहने और श्रृंगार के साथ एक दुल्हन की तरह सजाया जाता है। भगवान विष्णु के प्रतिमा और शालिग्राम को भी एक कुंवारे लड़के की तरह मानकर, उन्हें धोती और यज्ञोपवीत अर्पित किया जाता है।
इस विवाह को पुजारी और सभी उम्र की कन्याओं और महिलाओं के सामने किया जाता है। जिसमें स्नान और रीति-रिवाज़ों के बाद मूर्ति और तुलसी के पौधे पर वरमाला भी चढ़ाई जाती है। अंत में भक्तों द्वारा सिंदूर, चावल और फूलों की वर्षा की जाती है और प्रसाद ग्रहण करने के बाद यह विवाह संपन्न हो जाता है। पुजारी शादी में बोले जाने वाले सभी मंत्रों को इस पूजा में भी बोलता है। इसके अलावा तुलसी माता के मंत्रो का उच्चारण भी किया जाता है। इन मंत्रो में से कुछ उपयोगी मंत्रो को आगे बताया गया है।
तुलसी विवाह से संबंधित वैसे तो एक से ज्यादा कथाओं के बारे में सुनने को मिलता है, परंतु हम यहां सबसे प्रसिद्ध कथा के बारे में बताएंगे। यह कथा पौराणिक काल से चली आ रही हैं और पुराणों में इसका विस्तार से उल्लेख है।
कथा के अनुसार तुलसी का पुराना वृंदा था जोकि एक राक्षस की पुत्री थी। जिसका विवाह जलंधर नाम के पराक्रमी असुर से हुआ था। वृंदा एक पतिव्रता स्त्री थी और भगवान विष्णु की बहुत बड़ी भक्त थी। उसकी अपने पति के प्रति की गई प्रार्थना से वह जलंधन नामक राक्षस अजेय हो गया था। इस राक्षस से सभी देवता बहुत परेशान थे और उन्होंने भगवान विष्णु से सहायता मांगी।
तब भगवान विष्णु ने जलंधर का रूप लेकर वृंदा के पतिव्रत धर्म का नष्ट कर दिया। जिससे वह राक्षस कमजोर हो गया और भगवान शिव ने उसका नाश कर दिया। लेकिन वृंदा को जब सच्चाई पता लगी तो वृंदा ने विष्णु को पत्थर बन जाने का शाप दे दिया और खुद को समुद्र में डूबा दिया। इसके बाद विष्णु और अन्य देवताओं ने अपनी आत्मा को इस पौधे में रखा, जिसे आज तुलसी के नाम से जाना जाता है।
कुछ समय पश्चात भगवान विष्णु प्रबोधिनी एकादशी के दिन एक काला पत्थर बनकर इस सृष्टि मे जन्मे और तुलसी से विवाह रचाया, जिसे आज शालीग्राम कहा जाता है।
तुलसी विवाह के समय बोले जाने वाले कई मंत्र है जिनका प्रयोग पूजा विधि में किया जाता है। पूजा में पुष्प चढ़ाने से लेकर दीपक जलाने के लिए अलग-अलग मंत्र होते हैं। जिसमें तुलसी के पत्ते तोेड़ते समय भी मंत्र उच्चारण से दोष नहीं लगता है। आइए हम इन अलग-अलग मंत्रो के बारे में जानते हैं।
ॐ सुभद्राय नमः
ॐ सुप्रभाय नमः
महाप्रसाद जननी, सर्व सौभाग्यवर्धिनी
आधि व्याधि हरा नित्यं, तुलसी त्वं नमोस्तुते।
देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः
नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।।
तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी।
धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमन: प्रिया।।
लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्।
तुलसी भूर्महालक्ष्मी: पद्मिनी श्रीर्हरप्रिया।।
वृंदा वृंदावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी।
पुष्पसारा नंदनीय तुलसी कृष्ण जीवनी।।
एतभामांष्टक चैव स्त्रोतं नामर्थं संयुतम।
य: पठेत तां च सम्पूज्य सौश्रमेघ फलंलमेता।।
तुलसी विवाह की विधि काफी सरल है जिसे जानकर आप अपने परिवार के साथ इसकी पूजा को कर सकते हैं। ज्यादा जल्दी फल प्राप्ति के लिए इसे पूरे मंत्रो और विधि विधान के साथ करना चाहिए। पूरे मंत्रो और विधि विधान के साथ इस विवाह को करवाने के लिए आप पुजारी की सहायता ले सकते हैं। इसे हिंदु धर्म में होने वाले एक सामान्य विवाह की तरह पूरे रिति रिवाज़ों और परंपराओं के साथ किया जाता है। तो आइए इसकी सरल पूजा विधि को जानते हैं।
हमे एक बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि शालिग्राम पर चावल नहीं चढ़ाये जाते हैं। इसलिए चावलों की जगह तिक का प्रयोग करना चाहिए।