सिंहस्थ मेला – Simhastha Mela
सिंहस्थ मेला
आइये दोस्तों आज हम आपको बताएँगे कुंभ,अर्धकुंभ एवं सिंहस्थ के बारे में। आज हम इसके बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त करेंगे।
सिंहस्थ मेला – कुंभ के मेले का आयोजन प्राचीन काल के समय से लगातार होता आ रहा है। परन्तु इस मेले का प्रथम लिखित में प्रमाण हमारे महान बौद्ध तीर्थयात्री ह्वेनसांग के द्वारा लिखित लेख में मिलता है। जिसमें छठी शताब्दी के सम्राट हर्षवर्धन के शासन काल में होने वाले कुम्भ का प्रसंगवश उल्लेख भी किया गया है। इस कुंभ के मेले का आयोजन चार स्थानों पर होता है। जो की इस प्रकार है।
1 – हरिद्वार
2 – प्रयाग
3 – नासिक
4 – उज्जैन
प्रत्येक तीन वर्ष में लगता है कुम्भ का मेला – Pratyek Tin Varsh Mein Lagata Hai Kumbh Ka Mela
सिंहस्थ मेला – बताये गए इन चार स्थानों पर प्रत्येक तीन वर्ष में कुंभ के मेले का आयोजन किया जाता है। इस वजह से किसी एक स्थान पर प्रत्येक 12 वर्ष के बाद कुंभ के मेले का आयोजन किया है। जैसे की उज्जैन में कुंभ के मेले का अयोजन होता आ रहा है। तो उसके पश्च्यात फिर तीन वर्ष बाद हरिद्वार में इस मेले का आयोजन होता है।
फिर उसके अगले तीन वर्ष बाद प्रयाग में इस मेले का आयोजन किया जाता है। और फिर उसके अगले तीन वर्ष बाद महाराष्ट्र के नासिक में कुंभ के मेले का आयोजन किया जाता है। उसके तीन वर्ष बाद फिर से उज्जैन में कुंभ के मेले का आयोजन किया जाता है। उज्जैन में लगने वाले कुंभ के मेले को ही सिंहस्थ कुम्भ कहा जाता है।
क्या है कुंभ का मेला – Kya Hai Kumbh Ka Mela
सिंहस्थ मेला
सिंहस्थ मेला – मिट्टी या किसी भी धातु के बने हुए कलश को ही कुंभ कहा जाता है। कुंभ का मूल अर्थ होता है घड़ा। इस मेले का सीधा संबंध समुद्र मंथन के दौरान अंत में बहार निकले वाले अमृत कलश से ही जुड़ा हुआ है। देवता और असुर जिस समय अमृत कलश को एक दूसरे से छीन रह थे। तभी उसकी कुछ बूंदें धरती पर बहने वाली तीन नदियों में जा गिरी थीं। जहां पर जब ये बूंदें गिरी थी तभी से उसी स्थान पर तब से कुंभ के मेले का आयोजन होता आ रहा है। तो आइये जानते है आज उन तीन नदियों के नाम
1 – गंगा
2 – गोदावरी
3 – क्षिप्रा
क्या है अर्धकुंभ – Kya Hai Ardhakumbh
सिंहस्थ मेला – अर्ध कुम्भ का शाब्दिक अर्थ होता है आधा। हरिद्वार एवं प्रयाग में दो कुंभ के मेलो के पर्वों के मध्य में छह वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ के मेले का आयोजन किया जाता है। हमारे पौराणिक ग्रंथों में भी कुंभ और अर्ध कुंभ के मेले के आयोजन को लेकर ज्योतिषीय विश्लेषण भी उपलब्ध है।
कुंभ मेले के पर्व प्रत्येक 3 वर्ष के अंतराल में हरिद्वार से इसकी शुरुआत होती है। हरिद्वार के पश्च्यात कुंभ के मेले का पर्व प्रयाग नासिक एवं उज्जैन में इस कुम्भ के मेले का आयोजन किया जाता है। प्रयाग और हरिद्वार में आयोजित किये जानें वाले इस कुंभ का पर्व में एवं प्रयाग और महाराष्ट्र नासिक में आयोजित किये जाने वाले कुंभ के पर्व के मध्य 3 वर्षो का अंतर रहता है।
क्या है सिंहस्थ कुम्भ – Kya Hai Simhastha Kumbh
सिंहस्थ मेला – सिंहस्थ कुम्भ का संबंध सिंह राशि से रहता है। सिंह राशि में बृहस्पति एवं मेष राशि में सूर्य के प्रवेश होजाने पर उज्जैन में इस कुंभ पर्व का आयोजन होता है। इसके अलावा सिंह राशि में बृहस्पति के प्रवेश करने पर भी कुंभ पर्व का आयोजन गोदावरी नदी के तट पर के नासिक में होता है। इसे हम्म महाकुंभ भी कहते हैं। क्योंकि यह संयोग 12 वर्ष के पश्च्यात आता है। इस कुंभ के मेले कारण ही लोगो में यह धारणा गई है की कुंभ के मेले का आयोजन प्रत्येक 12 वर्ष में ही होता है। परन्तु ये सत्य नहीं है।
इन चार स्थानों पर लगता है कुंभ मेला -Chaar Sthaano Par Lagata Hai Kumbh Mela
सिंहस्थ मेला
1 – हरिद्वार में
हरिद्वार का के कुम्भ का सम्बन्ध सीधा मेष राशि से होता है। कुंभ राशि में बृहस्पति के प्रवेश करने पर और मेष राशि में सूर्य के प्रवेश करने पर कुंभ के मेले का पर्व हरिद्वार में आयोजित होता है। हरिद्वार एवं प्रयाग में दो कुंभ के मेलो के पर्वों के बीच में छह वर्ष के मध्य में अर्धकुंभ के मेले का आयोजन किया जाता है।
2 – प्रयाग में
प्रयाग में कुंभ का कुछ विशेष महत्व माना जाता है क्योंकि यह कुम्भ 12 वर्षो के पश्च्यात गंगा नदी, यमुना नदी, और सरस्वती नदी, के संगम पर ही आयोजित होता है। ज्योतिषशास्त्रियों के कथनाअनुसार जब बृहस्पति कुंभ राशि में प्रवेश करता है और सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है। तब ही कुंभ के मेले का आयोजन प्रयाग में आयोजित किया जाता है।
अन्य मान्यता की माने तो मेष राशि के चक्र के अंदर बृहस्पति एवं सूर्य और चन्द्र के मकर राशि में प्रवेश करने पर अमावस्या के दिन इस कुंभ का पर्व प्रयाग में ही आयोजित किया जाता है।
3 – नासिक में
प्रत्येक 12 वर्ष में केवल एक बार ही सिंहस्थ कुंभ मेला आयोजन नासिक और त्रयम्बकेश्वर में आयोजित किया जाता है। जब सिंह राशि में बृहस्पति का प्रवेश होता है। तब कुंभ मेले का पर्व गोदावरी नदी के तट पर महाराष्ट्र के नासिक में आयोजित किया जाता है। अमावस्या वाले दिन बृहस्पति सूर्य एवं चन्द्र के कर्क राशि में प्रवेश होने पर इस कुंभ के मेले का पर्व गोदावरी नदी तट पर आयोजित किया जाता है।
4 – उज्जैन में
जब सिंह राशि में बृहस्पति और मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होता है। तब यह पर्व उज्जैन में आयोजित किया जाता है। इसके अतिरिक्त कार्तिक ये अमावस्या के दिन सूर्य एवं चन्द्र के साथ होने पर और बृहस्पति के तुला राशि में प्रवेश कर जाने पर मोक्षदायक कुंभ मेले का उज्जैन में आयोजन किया जाता है।
कथा कुम्भ की – Katha Kumbh Kee
सिंहस्थ मेला
सिंहस्थ मेला – अमृत के कलश पर अपना अधिकार को लेकर दानवों एवं देवता के मध्य में निरंतर बारह दिनों तक युद्ध चलता रहा था। जिसका एक एक दिन मनुष्यों के लिए एक एक वर्ष के समान बीत रहा था। अतएव कुंभ भी बारह प्रकार के होते हैं। उनमें से कम चार प्रकार के कुंभ पृथ्वी लोक पर होते हैं। एवं आठ प्रकार के कुंभ देवलोक में आयोजित होते हैं।
सिंहस्थ मेला – समुद्र मंथन की कथा में ऐसा बताया गया है कि कुंभ मेले का पर्व का सीधा सम्बन्ध सितारों से है। अमृत कलश को स्वर्गलोक तक लेकर जाने में जयंत को 12 दिनों का समय लगा था। देवों का एक दिन का समय मनुष्यों के लिए 1 वर्ष के सामान है। इसी वजह से सितारों के क्रम के अनुसार प्रत्येक 12वें वर्ष में कुंभ के मेले का पर्व विभिन्न तीर्थ स्थानों पर आयोजित होता है।
सिंहस्थ मेला – युद्ध के समय सूर्य, चंद्र एवं शनि आदि देवताओं ने मिल कर कलश की रक्षा करि थी। उस समय की वर्तमान राशियों पर रक्षा करने वाले चंद्र और सूर्यादिक ग्रह जब भी आते हैं। तब कुंभ का संयोग बनता है। एवं चारों पवित्र स्थानों पर प्रत्येक तीन वर्ष के बाद में क्रमानुसार कुंभ के मेले का आयोजन होता है।
सिंहस्थ मेला – इस का अर्थ है की अमृत की बूंदे छलकने के गिरने के दौरान जिन राशियों में सूर्य, चंद्रमा एवं बृहस्पति राशि की स्थिति के भी विशिष्ट प्राकर के योग के अवसर बनते हैं। वहां कुंभ के मेले का पर्व का इन राशियों में केवल गृहों के संयोग पर ही आयोजित किया जाता है। इस अमृत कलश की सुरक्षा कार्य में सूर्य, गुरु एवं चन्द्रमा के भी विशेष प्रयत्न रहे थे। इसीलिए इन्हीं गृहों की विशिष्ट स्थितियों में कुंभ के मेले का पर्व को मनाने की परम्परा है।
अमृत कलश मे से कुछ बूंदें निम्न स्थानों पर गिरी थी। उन जगहों के नाम ये है।
1 – गंगा नदी (प्रयाग, हरिद्वार)
2 – गोदावरी नदी (नासिक)
3 – क्षिप्रा नदी (उज्जैन)
इन सभी नदियों का संबंध गंगा नदी से है। गोदावरी को गोमती गंगा नदी के नाम से भी जानते हैं। क्षिप्रा नदी को उत्तरी गंगा नदी के नाम से पुकारते हैं। यहां पर गंगा गंगेश्वर की पूजा-अर्चना भी की जाती है।
अन्य जानकरी :-