शीतला सप्तमी 2023 | Sheetala Saptami 2023, व्रत कथा व महत्व

आइए जानते हैं शीतला सप्तमी कब मनाई जाती है, व्रत कथा और हिंदू धर्म में महत्व

शीतला सप्तमी हिंदू धर्म के अनुयायियों द्वारा मनाए जाने वाला लोकप्रिय त्योहार है। यह पर्व शीतला माता जी को समर्पित होता है। भारत में चेचक और छोटी माता जैसे रोगों से मुक्ति पाने के लिए शीतला माता का पूजन करते हैं। भारत में उत्तर प्रदेश, गुजरात और राजस्थान में इस दिन को विशेष माना जाता है। भारत के दक्षिणी क्षेत्रों में मरियम्मन देवता या पोलरम्मा देवी के रूप का पूजन किया जाता है। आंध्र प्रदेश और कर्नाटक राज्यों में इस सप्तमी के त्योहार को पोलला अमावस्या कह कर मनाते हैं। 

 

शीतला सप्तमी कब मनाई जाती है? – ( Sheetala Saptami kab Manai Jaati Hai )

हिंदुओं द्वारा इस पर्व को वर्ष में दो बार मनाया जाता है। लेकिन चैत्र माह में आने वाली सप्तमी को अधिक महत्ता दी जाती है। इसलिए विशेष चैत्र माह की शीतला सप्तमी को पहले जानते हैं। पहले चैत्र माह में आने वाले कृष्ण पक्ष के चलते सप्तमी तिथि को यह पर्व मनाया जाता है। वहीं दूसरी बार इस त्योहार को श्रावण के महीने में शुक्ल पक्ष के सातवें दिन को मनाया जाता है। 

 

शीतला सप्तमी क्यों मनाई जाती है? – (Sheetala Saptami Kyu Manai Jaati Hai )

माता दुर्गा के उपासक शीतला सप्तमी में आर्शीवाद प्राप्ति की कामना से इस दिन को मनाते हैं। शीतला माता को दुर्गा अवतार कहा गया है। मान्यताओं के अनुसार निरोगी जीवन की प्राप्ति के लिए की गई पूजा और व्रत को सबसे उत्तम माना जाता है। चेचक और छोटी माता जैसे रोगों से मुक्ति पाने के लिए विशेष अनुष्ठानों के साथ इनका पूजन किया जाता है। सप्तमी के दिन की गई पूजा से अत्यंत शीघ्र ही फल की प्राप्ति हो जाती है। इसलिए इस दिन को रोगों से मुक्ति पाने की कामना से भी मनाया जाता है। इस दिन पूरा कुटुम्ब मिल कर शीतला माता जी की आराधना में लग जाते हैं। विवाहित महिलाओं द्वारा अखंड सौभाग्य को प्राप्त करने के लिए इस सप्तमी के व्रत को किया जाता है। वहीं माताएं अपने बच्चों के अच्छे स्वास्थ्य की कामना से इस व्रत का पालन करती हैं। 

 

वर्ष 2023 की शीतला सप्तमी और शुभ मुहूर्त – ( Sheetala Saptami Muhurat)

 इस साल 14 मार्च  को यह पर्व मनाया जाएगा। इस अवसर पर गुरुवार का दिन है। जिसमें सप्तमी तिथि कुछ प्रकार से रहेगी।

वर्ष 2023 में  14 अप्रैल गुरुवार की सुबह 06 बजकर  16 मिनट पर सप्तमी तिथि का आरंभ हो जाएगी और अगले दिन बुधवार को शाम  06 बजकर 17 मिनट पर इस सप्तमी तिथि का समापन हो जाएगा।

 

वहीं  13 मार्च  को रात  09:27 बजे से सुबह 14 मार्च  को 8:22 बजे तक सप्तमी पूजा का शुभ मुहूर्त रहेगा। जिसकी अवधि 12 घंटे और 14 मिनट की रहेगी। 

 

शीतला सप्तमी की व्रत कथा – (Sheetala Saptami Vrat Katha)

प्रचलित पौराणिक कथा के अनुसार एक समय गांव में ब्राह्मण का परिवार था। जिसमें दो जोड़ो रहते थे। काफी लंबे समय के पश्चात दोनों बहुओं को संतान की प्राप्ति हुई थी। कुछ दिनों के बाद ही शीतला सप्तमी का पर्व आया और परंपरा का पालन करते हुए इस दिन ठंडा भोजन पहले से तैयार करके रखा गया। दोनों बहुओं के मन विचार आया कि पिछले दिन तैयार किए गए इस भोजन को ग्रहण करने से वह कहीं बीमार न हो जाएं। इसलिए दोनों ने सास की नजरों से छुपकर रोट तैयार करके उसका चूरमा बनाकर खा लिया। 

 

जब सास शीतला माता की आराधना में लगी हुई भजन कर रही थी तो उसने बहुओं को बच्चों को उठाकर भोजन करवाने के लिए कहा। जैसे ही दोनों अपने बच्चों को जगाने के लिए गई। तो दोनों शिशुओं को मृत अवस्था में पाया। विलाप करते हुए उन्होंने सारी व्यथा को सास से कहा। तो क्रोध में आकर सास ने दोनों बहुओं को घर से निकाल दिया और कहा शीतला माता के प्रकोप से ऐसा हुआ है। बच्चों को जीवित करके ही अब तुम दोनों इस घर में प्रवेश करना। 

शीतला मइया की जय 

ऐसे में दोनों बहुएं बच्चों के शवों को टोकरी में रखकर विलाप करते हुए वहां से निकल गई। विश्राम करने के लिए जब वह बरगद के पेड़ के नीचे बैठी तो उन्होंने शीतला और ओरी नाम की दो बहनों को जूं से परेशान पाया। दोनों बहुओं ने जूं को निकाल दिया। जिसके बाद दोनों बहनों ने उन्हें गोद हरी हो जाने का आर्शीवाद दिया। ऐसे में मृत बच्चों की ओर देखते हुए उन्होंने कहा गोद ही तो हमारी सूनी हो गई है। 

 

इन वचनों को सुनने के बाद शीतला ने कहा कि तुमको अपने पाप का दंड तो भोगना ही पड़ेगा। ऐसे में  उन्होंने शीतला माता के रूप को पहचान लिया और उनसे वितनी करने लगी। उनके मन में पश्चाताप की भावना को देखकर माता ने उनको क्षमा कर दिया। शीतला माता के आर्शीवाद से उनकी गोद पुन हरी हो गई। बच्चों को जीवित देख दोनों खुशी खुशी अपने घर चली गई। इस चमत्कार को देखकर सबको बहुत आश्चर्य हुआ। तभी से पूरा गांव शीतला सप्तमी के पर्व को पूरी आस्था के साथ मनाने लगा। 

 

आइये जानते इस इस पर्व का महत्व – (Sheetala Saptami Mahatva)

स्कंद पुराण में इस पर्व के बारे स्पष्ट रूप से वर्णन देखने को मिलता है। इस पर्व का सबसे प्राचीन सनातन धर्म में बहुत महत्व है। शास्त्रों में लिखा गया है कि शीतला देवी, मां दुर्गा और माता पार्वती का ही एक अन्य रूप है। इन दो माताओं का अवतार माने जाने वाली शीतला माता जी का पूजन बहुत की फलदायी होता है। इनको उपचार की देवी कहा जाता है, इसलिए शीतला माता को प्रकृति में उपचार शक्ति का प्रतीक माना जाता है। इनके नाम का अर्थ है शीतलता अथवा शांत। शीतला माता जी के उपासक इस दिन व्रत का पालन करके पूजा को पूरे विधि विधान से करते हैं। 

 

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