हिंदु धर्म में माघ माह में अनेक धार्मिक पर्व आते हैं। सब त्योहारों की अपनी-अपनी अलग विशेषताएँ और कथाएं होती हैं। सनातन धर्म पंचाग के अनुसार माघ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या की रात को मौनी अमावस्या के नाम से मनाया जाता है। माघ अमावस्या या मौनी अमावस्या को गंगा, नर्मदा, क्षिप्रा, यमुना और सरस्वती पवित्र नदियों में किए स्नान को बहुत विशेष माना गया है। ग्रहों और नक्षत्रों की बनी अदभुत अवस्था के कारण मौनी अमावस्या के दिन कई अलग अलग तरह के योग बनते हैं। दोष निवारण के लिए इस दिन की पूजा से कई गुना ज्यादा फल की प्राप्ति होती है। इस दिन पीपल वृक्ष और भगवान श्री विष्णु की पूजा का विशेष महत्व है।
मौनी अमावस्या के दिन सही विधि और शांत मन से मौन रखकर भगवान की अराधना करने पर मुनि पद की प्राप्ति होती है। मुनि शब्द से मौनी शब्द का जन्म हुआ था और पुरानी कथाओं व मान्यताओं के अनुसार प्रथम पुरूष की मान्यता प्राप्त मुनि ऋषि का जन्म इसी दिन हुआ था। इस दिन पर दान देना बहुत शुभ माना जाता और कई गुना फल की प्राप्ति होती है। इस दिन बुरे शब्दों के प्रयोग से बचना चाहिए। वैदिक ज्योतिष के अनुसार चंद्रमा का बुरा प्रभाव सीधे मन पर पड़ता है और अमावस्या के समय चंद्रमा दिखाई नहीं देता। जिससे चंद्रमा की अनुपस्थिति में मन विचलित रहने लगता है और कमजोर पड़ता है।
मन की शांति और चित्त की वृद्धि के लिए इस दिन मौन रखा जाता है। किसी कारणवश जातकों के लिए मौन व्रत रखना संभव नहीं हो पाता है तो वह कुछ समय का मौन व्रत रखकर पूजा पाठ करने के उपरांत इस व्रत को खोल सकते हैं। इसके अलावा यदि आप मौन व्रत नहीं रख रहें है फिर की वाणी का आवश्यकता अनुसार की प्रयोग करना चाहिए। मौनी अमावस्या के दिन बुरे शब्दों का प्रयोग करना अशुभ माना गया है। पितरों के पूजन के लिए इस दिन को उत्तम माना गया है। पितरों की पूजा के इस दिन चंद्रमा की रोशनी भी नहीं पड़ती है। जिसके चलते थाई अमावस्या के दिन कई ऐसी चीजों का ध्यान रखना पड़ता है जिससे की दोष लगता है और शनि के बुरे प्रभावों के पड़ने खतरा बना रहता है । मौनी अमावस्या के दिन क्या करना चाहिए और क्या नहीं इसके बारे में हम आपको आगे विस्तार से बताएंगे । इससे पहले मौनी अमावस्या के बारे में जानते हैं।
शास्त्रों में मौनी अमावस्या का विशेष महत्व बताया गया है। हिंदु पंचाग के अनुसार माघ के महीने में कृष्ण पक्ष के समय आने वाली रात्रि को सनातन धर्म में माघ अमावस्या अर्थात मौनी अमावस्या के नाम से जाना जाता है। इस दिन ग्रहों और नक्षत्रों के पवित्र संगम के कारण देवताओं का निवास होता है और मानसिक शांति और सुख की प्राप्ति के लिए मौन व्रत रखा जाता है।
मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन के समय अमृत की कुछ बूंदे पृथ्वी पर आ गिरी थी। यह बूंदे जिन जगहों पर गिरी थी वहीं से होकर हमारी पवित्र नदियां बहती हैं। इसलिए मौनी अमावस्या के दिन गंगा, नर्मदा और क्षिप्रा जैसी पवित्र नदियों में स्नान की विशेष महत्ता है। गंगा स्नान को इन सभी में से विशेष माना गया है। किसी कारणवश अगर आप इन पवित्र नदियों में नहीं स्नान कर सकें तो पास के किसी तालाब या बहते पानी में स्नान करना भी बहुत फलदायक होता है। कहा जाता इस अमावस्या के दिन बने विशिष्ट योग और देवताओं की उपस्थिति में सभी बहते पाने के स्त्रोतों में नहाने से गंगा माता स्नान के समान फल मिलता है। वहीं गंगा स्नान द्वारा पहले से कई गुना फल मिलता है।
मौनी अमावस्या के पर्व पर पूजा को शुभ मुहूर्त के समय में ही करना चाहिए। इस शुभ मुहूर्त अमावस्या की अवधि के आधार पर निकाला जाता है। इससे पहले या बाद में की गई पूजा सामान्य पूजा के समान ही मानी जाएगी। लेकिन इस मुहूर्त में विधि विधान से की गई पूजा शुभदायक होती है। पितरों की पूजा के लिए पूरा दिन शुभ है जिसमें आप पूजा से अपने पितरों को खुश करके उनका आशीर्वाद पा सकते हैं।
वर्ष 2024 में 9 फ़रवरी शुक्रवार के दिन की सुबह 8 बजकर 2 मिनट पर अमावस्या तिथि आरंभ हो जाएगी और अगले दिन शनिवार की सुबह 4 बजकर 28 मिनट पर समाप्त हो जाएगी।
भारत में मौनी अमावस्या के दिन गंगा स्नान के लिए लगी भक्तों की भीड़ इसके महत्व को साफ-साफ दर्शाती है। इस दिन पितरों की पूजा से पितृ दोष खत्म हो जातें हैं और गंगा स्नान अमृत स्नान के समान हो जाता है। इसी के साथ इस दिन किए दान का सौ गुना फल मिलता है। पीपल के वृक्ष की पूजा के बाद वृक्ष की परिक्रमा की जाती है। प्राचीन ग्रंथों में लिखा है कि पीपल के पेड़ में करोड़ो देवी-देवताओं का वास होता है। इस पवित्र वृक्ष की पूजा से ब्रह्मा, विष्णु और महेश यानि भगवान शिव तीनों तृप्त हो जाते हैं।
सनातन धर्म में इस दिन सूर्य को जल चढ़ाया जाता है जिससे पितृ दोष समाप्त होता है। इसी के साथ गौ माता की सेवा की जाती है। मौनव्रत से नकारात्मक भावों को दूर किया जाता है। इस दिन सभी नदियों का जल गंगा जल के समान हो जाता है इसलिए भक्त आस पास की नहरों, नदियों और कुंडो आदि में नहाकर नए वस्त्र धारण करने के पश्चात ही पूजा में बैठते हैं।
हिंदु धर्म में मौनी अमावस्या के साथ साथ इस दिन किए गए दान का भी बहुत महत्व है। दूध देने वाली गाय का मौनी अमावस्या के दिन दान करना बहुत शुभ माना गया है। मौनी अमावस्या के व्रत को योग पर आधारित महाव्रत कहा जाता है। कार्तिक के समान पुण्य माने जाने वाले इस माह में यदि आप मौनी अमावस्या का व्रत नहीं रख पाते है तो आपको मीठा भोजन ग्रहण करना चाहिए। मौनी अमावस्या के दिन स्नान के बाद विधि विधान से पूजा और जप करके नियमों का पालन करते हुए मौनव्रत रखना चाहिए।
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