हिंदू शास्त्रों के अनुसार पूर्णिमा के दिन को बहुत विशेष माना जाता है। इस दिन तन और मन की शुद्धि के लिए पवित्र नदियों में स्नान किया जाता है। साल में बारह पूर्णिमाओं को पर्व के रूप में मनाया जाता है, जिसमें से आज हम मार्गशीर्ष पूर्णिमा के बारे में आपको बताने जा रहे हैं। इस माह को भगवान श्री कृष्ण जी का माह माना जाता है। इसलिए यह पूर्णिमा का दिन हिंदुओं के लिए और महत्व रखता है। इस दिन किए गए दान व पुण्य से सामान्य दिनों की अपेक्षा कई गुना अधिक फल मिलता है। मान्यताओं के अनुसार जिस प्रकार वैशाख, माघ और कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर पवित्र नदियों के स्नान से फल मिलता है, उसी प्रकार इस पर्व पर भी समान फल प्राप्त होता है।
इस दिन भगवान श्री विष्णु जी को प्रसन्न करने के लिए रखा गया व्रत बहुत उत्तम माना जाता है। माना जाता है इस दिन किए गए दान से बीस गुना ज्यादा फल मिलता है। पितृ तर्पण के लिए यह दिन बहुत शुभ माना जाता है। वर्ष 2023 में इसी दिन को दत्तात्रेय जयंती को भी मनाया जाएगा। सर्व सिद्धिदायक इस पवित्र दिन को सत्यनारायण की पूजा करनी चाहिए। पूरे अनुष्ठानों और व्रत के नियमों को जानने के बाद व्रत करने का संकल्प लेना चाहिए। इस दिन भगवान श्री विष्णु के साथ साथ श्री कृष्ण और भगवान शिव का पूजन भी किया जाता है। शाम के समय माता श्री लक्ष्मी जी की अराधना कर भक्त व्रत कथा को पढ़ते हैं।
हर साल आने वाली मार्गशीर्ष पूर्णिमा का उत्सव मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन आता है। पूरे भारतवर्ष में मनाए जाने वाला यह पर्व को कुछ स्थानों में कोरला पूर्णिमा और बत्तीसी पूर्णिमा के नाम से प्रसिद्ध है। वर्तमान समय में प्रयोग किए जाने वाले कैलेंडर के अनुसार यह पूर्णिमा वर्ष के अंतिम महीने में अर्थात दिसंबर के समीप आती है।
साल 2023 में जनवरी 6, 2023, शुक्रवार के दिन यह उत्सव आने वाला है। लेकिन हिंदू पंचांग के अनुसार पूर्णिमा तिथि 07 तक रहेगी। पूर्णिमा तिथि का ज्ञान होना बहुत आवश्यक है क्योंकि पूर्णिमा का त्योहार प्राचीन समय से चलता आ रहा है। उस समय हिंदू कैलेंडर के आधार पर इन तिथियों का पता लगाया जाता था। लेकिन आज के समय में सभी अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से तारिक देखते हैं। इसलिए हम आपको पूर्णिमा तिथि का समय वर्तमान समय और कैलेंडर के आधार पर बताने जा रहे हैं।
वर्ष 2023 में पौष, शुक्ल पूर्णिमा – प्रारम्भ – 02:14 ए एम, जनवरी 06 – समाप्त – 04:37 ए एम, जनवरी 07 इस तिथि का समापन हो जाएगा।
कथा के अनुसार एक समय की बात है जब किसी गांव में एक निर्धन ब्राह्मण रहता था। यह ब्राह्मण भगवान श्री हरि का बहुत बड़ा उपासक था। उसकी पूजा और भक्ति से खुश होकर भगवान श्री विष्णु ने उसे अपने दर्शन दिए और कहा कि कोई भी वर मांगो। मैं तुम्हारी आस्था और भक्ति से बहुत प्रसन्न हूं। तभी उस गरीब ब्राह्मण ने माता लक्ष्मी को अपने घर निवास करवाने का वर मांगा।
तभी भगवान ने उसे एक मार्ग बताया और कहा कि जो महिला मंदिर से सामने उपले बनाती है वही माता लक्ष्मी हैै। तुमको मात्र आदर पूर्वक उनसे प्रार्थना करनी होगी कि वह तुम्हारे घर आने का आमंत्रण स्वीकार करें। जब माता लक्ष्मी अपने चरण तुम्हारे घर में रखेंगी तो इस दरिद्रता का नाश हो जाएगा और धन धान्य की तुम पर वर्षा हो जाएगी।
ब्राह्मण ने अगले ही दिन माता को घर आने के लिए कहा। जिससे माता को समझ आ गया कि इसे श्री हरि द्वारा मेरे पास भेजा गया है। तब माता ने उस ब्राह्मण से कहा कि जब तुम्हारे द्वारा किया गया महालक्ष्मी का व्रत पूर्ण हो जाएगा तब वह तुम्हारे घर पधारेंगी। ब्राह्मण ने पूरे विधि विधान से व्रत किया और चंद्रमा को अर्घ्य देकर उसका यह व्रत पूर्ण हुआ। तब माता अपने वचन के अनुसार उसके घर आई। जिसके बाद से कभी भी उस गरीब ब्राह्मण को धन की कमी नहीं हुई। तब से इस व्रत को करने की प्रथा चलती आ रही है।
चंद्रमा दोष से प्रभावित जातकों के लिए यह दिन बहुत विशेष होता है। इस दोष से मुक्ति पाने के लिए इस दिन की गई पूजा को उत्तम माना जाता है। जिनकी जन्म कुंडली में चंद्रमा कमजोर होता है, इस दिन किए गए पूजन से इस समस्या का भी समाधान हो जाता है। कष्टों से मुक्ति प्रदान करवाने वाले इस दिवस का हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए बहुत महत्व है। इस दिन को पूरे भारत में पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है।
इस दिन बुरे विचारों को मन में नहीं लाना चाहिए और तामसिक भोजन व शराब का सेवन नहीं करना चाहिए। व्रत के पूर्ण हो जाने के बाद चंद्र देव को जल का अर्घ्य देना बहुत आवश्यक होता है। इसी अर्घ्य के बाद ही व्रत को पूरा मानते हैं। दान में सफेद वस्त्र और भोजन व फलों को किसी गरीब को देने से पुण्य प्राप्त होता है।
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