दुनिया के ऐतिहासिक व धार्मिक स्थलों में जयपुर का नाम बहुत ही शान से लिया जाता है। धार्मिक स्थलों और यहां के लोगों की आस्था की वजह से ही इसे छोटी काशी भी कहा जाता है। गुलाबी नगर के नाम से प्रसिद्ध शहर में आपको धार्मिक कुंड, मंडप, प्राचीन मंदिर और कई धार्मिक स्थल देखने को मिलते हैं। जयपुर के शासकों द्वारा इन प्राचीन मंदिरों और धार्मिक स्थलों का निर्माण किया गया था, जोकि अपनी आस्था और राजपूताना वैभव की वजह से जाने जाते हैं। आमेर किले का राजपरिवार आज के समय में भी शिला माता की अपनी कुल देवी के रूप में पूजा करता है और यह मान्यता उनके पूर्वजों द्वारा शुरू की गई थी जोकि आजतक चली आ रही है।
शिला देवी का छोटा मंदिर आमेर महल में स्थित जलेब चैक के दक्षिण भाग में बनाया गया है। जयपुर का प्रसिद्ध लक्खी मेला शिला माता के लिए ही लगाया जाता है। जयपुर के कछवाहा वंशीय राजाओं द्वारा शिला माता को कुल देवी के रूप में पूजा जाता रहा है। माता अम्बा का ही रूप माने जाने वाली शिला देवी को 1972 तक पशुओं की बलि देकर प्रसन्न किया जाता था जिस पर बाद में रोक लगा दी गई। प्रतिमा के टेढ़े चेहरे को इसकी विशिष्टता माना जाता है।
जयपुर के परकोटा इलाके के पास जेएलएन मार्ग पर नीचे की तरफ यह पुराना व लोकप्रिय मंदिर स्थित है। यह मंदिर की विशेषता यह है कि इसे साधारण नागर शैली में बनाया गया है। नए वाहनों की पूजा करवाने के लिए लोग लंबे लंबे समय तक कतारों में लगकर इंतजार करते हैं क्योंकि नए वाहन के लिए इस मंदिर में की गई पूजा को बहुत शुभ माना जाता है। गणेश चतुर्थी के समय इस मंदिर में लाखों लोग आते हैं और प्रत्येक बुधवार को यहां मोती डूंगरी गणेश का मेला लगता है।
बिरला मंदिर हिंदुओं के प्राचीन लक्ष्मी नारायण के मंदिरों में से एक है। जिसके निर्माण हेतु सफेद संगमरमर का प्रयोग किया गया है। बिरला मंदिर जयपुर के केंद्र में स्थित है जिसके कारण किसी भी स्थान से यहां पहुंचने में आसानी होती है। यह मंदिर दक्षिण शैली द्वारा बना हुआ है जिसका द्वार एक पुल की तरह बनाया गया है। इसलिए इस मंदिर में भारी वस्तुओं को ले जाने पर मनाही है। शाम के समय भारी मात्रा में भक्त इस मंदिर में आते हैं।
गुलाबी नगर के परकोटा में सिटी पैलेस परिसर में यह भगवान गोविंद का मंदिर स्थित है। गोविंद देव जी को राजपरिवार अपना मुखिया और जयपुर शहर इनको अपने आराध्य देव के रुप में पूजते हैं। सबसे कम खंभो पर निर्मित गोविंद देव जी मंदिर के सभागार को गिनीज बुक में दर्ज किया गया है। भगवान कृष्ण की छवि को वृंदावन से यहां लाया था, जिसे भगवान कृष्ण की जन्मभूमि के रूप में देखा जाता है। गोविंद देव जी को मात्र मंदिर में बने मोदकों का ही भोग लगाया जाता है। पूजा के बाद गोविंद देव जी को सात आरतियों द्वारा प्रसन्न किया जाता है।
यह मंदिर पहाड़ की चोटी पर बनाया गया है जोकि पूरे शहर से साफ-साफ दिखाई देता है। मंदिर तक पहुंचने के लिए लगभग 500 मीटर की चढ़ाई करके जाना पड़ता है। गणेश चतुर्थी के अगले ही दिन इस जगह बहुत बड़ा मेला लगता है।
यह सात कुंड और जटिल मंदिरों वाला गलता धाम जयपुर की शोभा को बढ़ाता है। माना जाता है कि ऋषि गालव ने इसी स्थान पर साठ हजार वर्षों की तपस्या की थी। इस स्थान में एक जलधारा गौमुख से निकल कर सूरज कुण्ड में जाकर गिरती है। इस धार्मिक कुण्ड में स्नान करना बहुत शुभ माना जाता है। जयपुर जाने वालों की यात्रा को अधूरी माना जाता है अगर वह गलता धाम न जा पाएं।
यह हनुमान मंदिर दिल्ली जयपुर मार्ग पर स्थित है और भगवान राम को समर्पित है। कहा जाता है कि पंडित राधेलाल चौबे को सन 1960 में भगवान हनुमान जी की लेटी हुई अवस्था में विशाल मूर्ति दिखाई दी थी। जिसे अगले साल एक मंदिर बनाकर उसमें स्थापित किया गया। आज के समय में इस मंदिर के भीतर श्री राम, गायत्री, शिव और गणेश मंदिर भी बने हुए हैं। इस जगह में स्थित पहाड़ियों से खोला यानि नाला बहा करता था। जिसके कारण इस मंदिर का नाम खोले के हनुमान जी पड़ा।
इसके अलावा भी जयपुर में कई प्रमुख मंदिर है जैसे कि घाट के बाला जी, जगत शिरोमणि मंदिर, ताड़केश्र्वरजी मंदिर, काले हनुमान जी मंदिर, चूलगिरी जैन मंदिर और स्वामीनारायण मंदिर जिसे अक्षधाम मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
हिंदुओं के साथ-साथ जयपुर में अन्य धर्मों के धार्मिक स्थल भी स्थित हैं। जिसमें गुरू नानक साहब का प्रसिद्ध स्थल गुरुद्वारा साहिब जोकि हनुमान नगर में स्थित है। यह सिक्खों का धार्मिक स्थल है। जहां रविवार के दिन कई लोग आते हैं और लंगर अर्थात भंडारा करवाते हैं। वहीं सेंट एंड्रयू चर्च भगवान यीशु को समर्पित है और जहां ईसाई धर्म के लोग आते हैं। इस चर्च को राजस्थान की प्राचीन चर्चों में गिना जाता है। इसी के साथ जयपुर के बाजार में बहुत लोकप्रिय जामा मस्जिद है जिसे हम मुसलमानों के पूजा स्थल के रूप में देखते हैं।
पूरे वर्ष इस छोटी काशी में कोई न कोई मेला व त्योहार मनाया जाता है। इसी आस्था के चलते जयपुर के शासकोें ने यहां इतने मंदिरों और धार्मिक स्थलों का निर्माण किया है कि आज के समय में इसे मंदिरों के शहर के नाम से बुलाया जाता है। इन प्राचीन मंदिरों की वास्तुशिल्प और मूर्तिकला दूर दूर से लोगों का ध्यान अपनी तरफ केंद्रित करती है।