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छठ पूजा कैसे करते हैं | Chhath Puja Kaise Karte Hai

छठ पूजा कैसे करते हैं
February 3, 2023

छठ पूजा कैसे करते हैं – Chhath Puja Kaise Karte Hai 

 

आइये हम आपको बताते है छठ पूजा के बारे में और छठ पूजा कैसे करते है ,पौराणिक कथाओं के अनुसार से छठ पूजा का महत्व आदिकाल से ही चला आ रहा है। इसका उल्लेख महाभातर में भी है। पांडवों की माता श्रीमती कुंती जी को विवाह से पहले ही सूर्य देव के आशीर्वाद स्वरुप पुत्र की प्राप्ति हुई थी। जिनका नाम कर्ण था। इसी तरह पांडवों कि पत्नी श्रीमती द्रौपदी जी ने भी अपने कस्टो को दूर करने के लिए छठ पूजा की थी। और यह वृत संतान कि प्राप्ति और संतान की मंगलकामना के लिए किया जाता है। 

यह पूजा कार्तिक माह कि शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से प्रारंभ होकर सप्तमी तक चलती है। प्रथम दिन मतलब चतुर्थी तिथि के दिन इसे ‘नहाय-खाय’ के रूप में मनाया जाता है। छठ पूजा नहाय-खाय से ही प्रारम्भ होती है। इस दिन व्रत करने वाले लोग सबसे पहले स्नान करते है और फिर नए वस्त्र धारण करते है। फिर सब पूजा करते है और पूजा के बाद चना दाल, कद्दू की सब्जी और चावल को प्रसाद मानकर उसे ग्रहण करते है। इस दिन जो भी व्रत रखने वाले होते है वो सर्वप्रथम भोजन करते हैं। उसके बाद ही परिवार के सभी सदस्य भोजन करते हैं। फिर उसके अगले दिन ही पंचमी को खरना व्रत किया जाता है। इस दिन संध्याकाल के समय उपासक प्रसाद के रूप में गुड़-खीर, रोटी तथा फल खाते है। फिर उसके बाद वो अगले 36 घंटे तक निर्जला व्रत रखते हैं। इसकी मान्यता यह है कि खरना पूजन से ही छठ देवी प्रसन्न हो जाती है और प्रसन्न होकर घर में वास करती हैं। इसलिए छठ पूजा की महत्वपूर्ण तिथि यानि षष्ठी पर नदी या जलाशय के तट पर भारी संख्या में श्रद्धालु एकत्रित हो जाते है। उसके बाद वो सभी उभरते हुए सूर्य को अर्ध्य समर्पित करते है। और इसी के साथ छठ पूजा का पर्व समाप्त करते है। 

 

छठ पूजा व्रत विधि – Chhath Puja Vrat Vidhi

 

 

  1. छठ पूजा के पर्व के दिन मंदिरों में पूजा नहीं की जाती है।और ना ही तो घरो में सफाई की जाती है।

  2. हम इस पर्व से दो दिन पहले चतुर्थी पर स्नानादि से निवृत्त होकर भोजन होता है।

  3. पंचमी को हम उपवास करने के बाद संध्याकाल के समय हम तालाब या नदी में स्नान करते है। और उसके बाद सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। फिर उसके बाद हम अलोना भोजन करते है। जो भोजन बिना नमक का होता है।

  4. षष्ठी के दिन सुबह सुबह ही स्नानादि के बाद संकल्प लिया जाता है। और हमेशा संकल्प लेते समय इस मंत्र का उच्चारण अवस्य करें।

 

ॐ अद्य अमुक गोत्रो अमुक नामाहं मम सर्व पापनक्षयपूर्वक शरीरारोग्यार्थ श्री सूर्यनारायणदेवप्रसन्नार्थ श्री सूर्यषष्ठीव्रत करिष्ये।

 

  1. इस पूजा के दौरान हमें पूरे दिन निराहार और निर्जल रहना होता है। और उसके बाद पुनः नदी या तालाब पर जाकर स्नान करना होता है। और फिर हम सूर्य देव को अर्घ्य देते है।

  2. अर्घ्य देने की भी एक विधि होती है। एक बांस के सूप में केला और अन्य फल रखकर  अलोना प्रसाद, एक पीले वस्त्र से ढक कर रख दें। उसके बाद एक दीपक जलाकर एक सूप में रखे दें। और उसके बाद उस सूप को अपने दोनों हाथों में लेकर इस मंत्र का उच्चारण करें। और इस मंत्र को तीन बार बोलते हुए सूर्य देव को अर्घ्य दें।

 

ॐ एहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजोराशे जगत्पते।

अनुकम्पया मां भक्त्या गृहाणार्घ्य दिवाकर:॥

 

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