आइये हम आपको बताते है की छठ पूजा कि शुरुआत कैसे हुई। ऐसा बतया जाता है कि रामायण और महाभारत के समय से ही छठ पूजा की परम्परा चली आ रही है। माना जाता है कि त्योहारों का देश भारत है। इसमें कई ऐसे पर्व है। जिन्हें बहुत कठिन माना जाता है। और इनमे से एक तो है लोक आस्था का सबसे बड़ा पर्व, छठ है।
नहाय-खाय के अनुसार ही आरंभ हुए लोकआस्था के इस चार दिवसीय महापर्व को जानते हुए बहुत सी कथाएं भी मौजूद हैं। हम आपको एक कथा के अनुसार बताते है कि छठ पूजा की शुरुआत कैसे हुई। जब महाभारत काल में पांडवों ने अपना सारा राजपाट एक जुए में हरा दिया था। उस समय द्रौपदी ने छठ व्रत किया था। इसी व्रत से उन्होंने जो भी मनोकामनाएं मांगी थी वो सारी पूर्ण हुईं थी। इसलिए पांडवों को उनका राजपाट वापस मिल गया था। इसके अलावा छठ पूजा का उल्लेख रामायण काल में भी है। एक और मान्यता के अनुसार, छठ पूजा या सूर्य पूजा महाभारत काल से ही की जा रही है। और ऐसा कहते है की छठ पूजा की शुरुआत सूर्य के पुत्र कर्ण के द्वारा कि गई थी। श्री कर्ण भगवान जी सूर्य जी के बहुत बड़े परम भक्त थे। मान्याता के अनुसार वे हर रोज घंटों तक पानी में खड़े रहकर सूर्य जी को अर्घ्य देते थे। सूर्य जी की कृपा से ही वो महान योद्धा बने थे।
किंवदंती के अनुसार बताया है कि, ऐतिहासिक नगरी मुंगेर के सीता चरण में कभी माता सीता जी भी छह दिनों तक वहाँ रहकर छठ पूजा की थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार 14 वर्ष वनवास के बाद जब भगवान श्री राम वापस अयोध्या नगरी में लौटे थे। तो श्री राम जी रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए ऋषि-मुनियों के आदेश मानते हुए एक राजसूय यज्ञ करने का फैसला किया था। इसके लिए उन्होंने मुग्दल ऋषि को भी आमंत्रण दिया गया था। लेकिन मुग्दल ऋषि ने भगवान श्री राम एवं सीता माता जी को अपने ही आश्रम में आने का आदेश दिया था। मुग्दल ऋषि की आज्ञा पर ही भगवान श्री राम एवं सीता माता ने स्वयं आश्रम पर प्रस्थान किया। और उन्हें इस पूजा के बारे में बताया गया। मुग्दल ऋषि ने मां सीता को गंगाजल छिड़क कर पवित्र किया था। और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष कि षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की पूजा करने का आदेश दिया। तभी माता सीता ने यहाँ पर ही रहकर छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान जी की पूजा की थी।
लोकआस्था और सूर्य उपासना के इस महान पर्व छठ की आज से शुरुआत हो गई है। इस चार दिवसीय त्योहार की शुरुआत नहाय-खाय की परम्परा से होती है। यह त्योहार पूरी तरह से श्रद्धा और शुद्धता का पर्व है। इस व्रत को महिलाओं के साथ ही पुरुष भी रखते हैं। चार दिनों तक चलने वाले लोकआस्था के इस महापर्व के लिए लगभग तीन दिन का व्रत रखना होता है। जिनमें से दो दिनों तक तो निर्जला व्रत रखा जाता है।
छठ पूजा को पहले केवल बिहार, झारखंड और उत्तर भारत में ही मनाया जाता था। लेकिन अब इसे धीरे-धीरे पूरे देश में मनाया जाता है, क्युकी अब सभी लोगो ने इसके महत्व को स्वीकार कर लिया है। छठ पर्व को षष्ठी का अपभ्रंश भी माना जाता है। इसी कारण इस व्रत का नाम छठ व्रत हो गया था। छठ पूजा का पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है। पहली बार तो चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक माह में इसे मनाया जाता है। चैत्र माह कि शुक्ल पक्ष कि षष्ठी पर मनाए जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ कहा जाता है। और कार्तिक माह कि शुक्ल पक्ष कि षष्ठी पर मनाए जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ कहा जाता है।
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