चाणक्य का शिष्य कौन है
चाणक्य का शिष्य कौन है – चाणक्य का जन्म 375 ईसा पूर्व में हुआ था। वे महान शिक्षक,अर्थशास्त्री, प्रधानमंत्री, शाही सलाहकार, राजनीतिज्ञ थे एवं मार्गदर्शक भी थे। चाणक्य जाती से ब्राह्मण थे। चाणक्य को कौटिल्य एवं विष्णुगुप्त के नाम से भी जानते है। चाणक्य ने अर्थशास्त्र पुस्तक लिखी थी जो की बहुत ही प्रसिद्ध है।
चाणक्य का शिष्य कौन है – चाणक्य छोटे बालक थे तो उनके मुँह में एक कुत्ते के जैसा दांत था। ऐसा माना जाता था कि जिस किसी भी इंसान के कुत्ते के जैसा दांत होता है वह राजा जरूर बन जाता है।
चाणक्य का शिष्य कौन है –चाणक्य की माता इस बात से अधिक चिंतित हो गई थी और रोने भी लगी कि यदि उसका पुत्र जब राजा बन जाएगा तो वह उसे छोड़ कर चला जाएगा। तो फिर चाणक्य ने अपना वह दांत ही तोड़ दिया और ऐसा कहा कि वह कभी भी राजा नहीं बनेगा।
चाणक्य का शिष्य कौन है – चाणक्य के उस टूटे हुए दांत ने उनकी सूरत को बहुत ही भद्दा बना दिया था। उनके पैर भी कुछ-कुछ कुटिल से दिखाई देते थे। इसी वजह से उनकी पूरी वेशभूषा ही भद्दी बन गई थी।
चाणक्य का शिष्य कौन है
चाणक्य का शिष्य कौन है – चाणक्य के 2 (दो) शिष्य थे एक चन्द्रगुप्त मौर्य और दूसरा पब्बता था। परन्तु अति प्रिय शिष्य चंद्रगुप्त मौर्य ही था।
चाणक्य ने मगध का सम्राट केवल चन्द्रगुप्त मौर्य को ही बनाया था।
धनानंद राजा के पब्बता नाम का एक पुत्र था। जो वहा का सम्राट बनना चाहता था लेकि अपने पिता धनानंद के साथ वो रहना ही नहीं चाहता था। चाणक्य ने इसी बात का लाभ उठाया और उसे अपने साथ मिला लिया था।
अब चाणक्य के पास में दो शिष्य हो गए थे एक चंद्रगुप्त और दूसरा पब्बता। चाणक्य को अपने दोनों शिष्यों में से किसी एक को ही उन्हें चुनना था। जो धनानंद के पश्च्यात सम्राट बन सके। चाणक्य ने अपने दोनों शिष्यों को अपने गले में डालने के लिए एक-एक धागा दिया।
जब चंद्रगुप्त अपनी निद्रा में था तो चाणक्य ने पब्बता को अपने पास में बुलाया और कहा कि इस धागे को चंद्रगुप्त को बिना नींद से जगाए। उसके गले से बाहर निकाल कर लाओ। इस कार्य में वह सफलता प्राप्त नहीं कर सका।
बिलकुल वही प्रक्रिया चाणक्य ने चंद्रगुप्त के साथ भी करी थी। जब पब्बता जब अपनी निद्रा में था। तो उन्होंने चंद्रगुप्त को अपने पास बुलाया और उस भी धागे को पब्बता के गले से बिना उसे नींद से जगाए निकालने के लिए आदेश दिया। चंद्रगुप्त ने फिर पब्बता के सिर को ही काट कर उस धागे को पब्बता के गले से निकाल लिया।
इसके पश्च्यात चाणक्य ने चंद्रगुप्त को राज्य के राजकीय कार्यों हेतु तैयार किया। फिर उसे तक्षशिला विश्व विद्यालय में पढ़ने के लिए वहा दाखिला करवाया। जब चंद्रगुप्त उम्र में बड़ा हो गया तो चाणक्य ने एक सेना को तैयार करने के लिए उन छुपे हुए सोने के सिक्कों को निकाल लिया।
चाणक्य धनानंद के राज्य को छोड़ कर जंगलों में चले गए। वहां उन्होंने किसी एक तकनीक का उपयोग करके करीब 800 मिलियन से भी ज्यादा सोने के सिक्के का निर्माण किया था।
यह तकनीक चाणक्य को 1 सिक्के को 8 सिक्कों में बदल दिया करती थी। इन सिक्कों का निर्माण करने के बाद उस सोक्को को कही छुपा दिया। इसके बाद वे एक ऐसे योग्य व्यक्ति की तलाश में जुट गए जो धनानंद के बाद राज्य का सम्राट बन सके।
फिर उन्होंने एक दिन देखा कि एक चंद्रगुप्त नामक लड़का बहुत ही अच्छे सलीके से अपने साथी मित्रो को आदेश दे रहा है। जबकि चंद्रगुप्त एक शाही परिवार में जन्मा हुए लड़का था। उसके पिता की युद्ध में हत्या कर दी गई थी। तब देवताओं ने उसकी माँ को कहा कि चंद्रगुप्त को त्याग दो।
चंद्रगुप्त को एक शिकारी ने अपने पास ही रख लिया था और उसे काम करने के बदले में वे उसे धन दिया करता था। चंद्रगुप्त वही पर अन्य शिकारियों के लड़कों के साथ मिलकर खेल खेला करता था।
चाणक्य चंद्रगुप्त के आदेशात्मक कार्यों से बहुत ही प्रभावित हुए और उसे अपने साथ मिलाने का विचार किया । चाणक्य ने उसी शिकारी को एक हजार सोने के सिक्के दे दिए और वे चंद्रगुप्त को साथ लेकर वहा से चले गए।
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