चाणक्य हिंदू थे या जैन
चाणक्य हिंदू थे या जैन – चाणक्य को ही कौटिल्य, विष्णु गुप्त और वात्सायन भी कहते हैं। चाणक्य का जीवन बहुत ही कठिन रहा था और रहस्यों से भरा हुआ था। दोस्तों जानते हैं आज हम जानेंगे उनके जीवन को संक्षिप्त कहानी के रूप में ।
चाणक्य हिंदू थे या जैन – मगध के सीमावर्ती नगर में ब्राह्मण आचार्य चणक रहते थे। चणक मगथ के राजा के शासन से असंतुष्ण थे। चणक किसी भी तरह से महामात्य के पद पर रहकर राज्य को विदेशी आक्रांताओं से मुक्त करवाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने अपने मित्र अमात्य शकटार से विचार विमर्श कर के धनानंद को उखाड़ के फेंकने की योजना बनाई।
चाणक्य हिंदू थे या जैन – परन्तु गुप्तचर के द्वारा महामात्य राक्षस को और कात्यायन को इस षड्यंत्र का पता चल गया था। उसने मगथ के सम्राट घनानंद को इस षड्यंत्र के बारे में जानकारी दी। तो फिर चणक को बंदी बना कर कैद कर लिया। और पुरे राज्यभर में खबर फैल गई कि राजद्रोह का करने पर एक ब्राह्मण की हत्या की जाएगी। चणक के पुत्र कौटिल्य को जब यह बात पता चली तो वह चिंतित हो गए और दुखी हो गये। चणक का कटा हुआ सिर राज्य की राजधानी के चौराहे पर टांग दिया। अपने पिता के कटे हुए सिर को देखकर कौटिल्य (चाणक्य) के नेत्र से आंसू टपक वादे थे। उस समय चाणक्य की उम्र केवल 14 वर्ष की ही थी। रात के समय अंधेरे में उन्होंने बांस पर टंगे हुए अपने पिता के सिर को नीचे उतारा और एक कपड़े में लपेट लिया और वहा से चले गए।
चाणक्य हिंदू थे या जैन – अकेले चाणक्य ने ही अपने पिता का अंतिम संस्कार किया। उसी समय कौटिल्य ने गंगा का जल अपने हाथ में लेकर शपथ ली- ‘हे गंगे माँ, जब तक में अपने पिता के हत्यारे धनानंद से अपने पिता की हत्या करने का प्रतिशोध नहीं लूंगा तब तक कोई भी पकाई हुई कोई को वस्तु नहीं खाऊंगा। और जब तक महामात्य के रक्त से अपने बालो को नहीं रंग लूं, तब तक यह शिखा खुली हुए ही रखूंगा। पिता का तर्पण तभी सम्पूर्ण होगा, जब में हत्यारे धनानंद का रक्त अपने पिता की राख पर नहीं चढ़ा देता। हे यमराज! आप धनानंद का नाम अपने लेखे से मिटा दो। क्योकि उसकी मृत्यु का लेख केवल मैं ही लिखूंगा।’
चाणक्य हिंदू थे या जैन – इस घटना के बाद से कौटिल्य ने अपने नाम को परिवर्तित कर विष्णु गुप्त धर लिया। विद्वान पंडित राधामोहन ने विष्णु गुप्त (चाणक्य) को सम्बल दिया। पंडित राधामोहन ने विष्णु गुप्त की प्रतिभा को भांपा और फिर उन्हें तक्षशिला विश्व विद्यालय में उनका दाखिला भी करवाया। फिर विष्णु गुप्त की (चाणक्य ) जीवन की एक नई शुरुआत हुई। तक्षशिला विश्व विद्यालय में चाणक्य ने न केवल छात्रों को कुलपति को और बड़े बड़े विद्वानों को व शिक्षको को अपनी ओर आकर्षित कर लिया। ऐसा ही नहीं बल्की उसने पड़ोसी राज्य के नरेश (राजा) पोरस से भी अपना परिचय बढ़ा लिया।
चाणक्य हिंदू थे या जैन – सिकंदर के आक्रमण के समय में चाणक्य ने पोरस का साथ दिया था । सिकंदर की हार के बाद और तक्षशिला में सिकंदर के प्रवेश के बाद विष्णुगुप्त अपने गृह प्रदेश यानि मगध नगर को चले गए थे। फिर यहां से शुरुआत हुई उनके नए जीवन की। उन्होंने विष्णुगुप्त के नाम से ही शकटार से मुलाकात की थी। शकटार उनके पिता के मित्र थे जो अब वृद्ध हो गए थे। चाणक्य ने देखा की क्या हालत कर दी मेरे राज्य की घनानंद ने। उधर से विदेशियों का आक्रमण लगातार बढ़ता ही जा रहा है और उधर ये दुष्ट राजा नृत्य,मदिरा पान और हिंसा करने में चूर है।
चाणक्य हिंदू थे या जैन – एक समय विष्णु गुप्त भरी सभा में दरबार में पहुंच गए। चाणक्य ने फिर दरबार में क्रोध में आकर ही अपना परिचय तक्षशिला विश्व विद्यालय के आचार्य के रूप में वहा दिया और राज्य हो रहे विदेशी आक्रमण और अत्याचार के प्रति अपनी चिंता को व्यक्त कीया। उन्होंने यूनानी आक्रमण की बात भी सभा में बताई और अपनी शंका जाहिर की कि यूनानी हमारे राज्य पर आक्रमण करने वाला है। इस दौरान विष्णु गुप्त ने मगध के राजा धनानंद को खूब खरी-खोटी सुनाई एवं फटकार भी लगाईं और कहा कि मेरे राज्य को आक्रमण और अत्याचार से बचा लो महाराज। परन्तु भरी सभा मे चाणक्य का अपमान हुआ, एवं उपहास (मजाक) उड़ाया गया।
चाणक्य हिंदू थे या जैन – बाद में चाणक्य फिर से शकटार से मुलाक़ात करते हैं। तब शकटार बताते हैं कि राज्य में कई ऐसे पुरुष है जो संतुस्ट नहीं है। और समाज भी असंतुस्ट है। उनमें से एक चंद्रगुप्त भी है। चंद्रगुप्त मुरा का बेटा है। किसी अनन्य संदेह होने के कारण धनानंद ने मुरा को घने जंगल में निवास करने के लिए मजबूर कर दिया था। अगले दिन शकटार एवं चाणक्य ज्योतिष का रूप धारण कर के जंगल में पहुंच जाते है। जहां मुरा निवास करती थी उस जंगल में बहुत ही भोले-भाले परन्तु लड़ाकू प्रवृत्ति के आदिवासी लोग और वनवासी जाति के लोग भी निवास करते थे। जंगल में चाणक्य ने चंद्रगुप्त को राजा का कोई खेल खेलते हुए देखा। तभी से चाणक्य ने चंद्रगुप्त को अपने जीवन का मूल लक्ष्य बना लिया था। और फिर तभी से शुरू हुआ चाणक्य का नया जीवन।
चाणक्य हिंदू थे या जैन – चाणक्य ने चंद्रगुप्त को शिक्षा और दीक्षा देने के साथ-साथ ही भील,आदिवासी एवं वनवासियों को एकजुट कर अपनी एक सेना तैयार की और धननंद के साम्राज्य को उखाड़ फेंक दिया। और फिर चंद्रगुप्त को मगथ का नया सम्राट बनाया गया। उसके पश्च्यात चंद्रगुप्त के साथ ही उनके पुत्र बिंदुसार एवं पौत्र सम्राट अशोक भी दरबार में महामंत्री के पद पर रहकर चाणक्य का मार्गदर्शन किया।
चाणक्य हिंदू थे या जैन
चाणक्य हिंदू थे या जैन – चाणक्य की मौत एक रहस्यमयी मौत है। हमारे इतिहासकारों में इस बात को लेकर काफी मतभेद भी है। परन्तु कुछ शोधकर्ता उनकी मौत को लेकर अलग-अलग तीन प्रकार की थ्योरी प्रस्तुत की हैं। तो आओ दोस्तों जानते हैं कि आखिर चाणक्य की मौत हुई कैसे थी।
अन्य जानकारी :-