अजमेर का उर्स – राजस्थान राज्य की धार्मिक नगरी अजमेर में स्थित विश्व की प्रसिद्ध गरीब नवाज हजरत ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह में इस बार 811वां उर्स लगने का भी आगाज हो गया है। इस्लामी माह रजब के चांद के दिखने पर ही उर्स की विधिवत रूप से शुरुआत होने का ऐलान हुआ है। इस इस्लामी मौके पर नौबतखाने में शादियाने,नगाड़े एवं झांझ आदि बजाए गए।
अजमेर का उर्स – इस इस्लामी मौके पर बड़े पीर की पहाड़ी से तोपची फौजिया के द्वारा पांच तोपों की सलामी भी दी गई। ऐसा माना जाता है कि यहां पर साल में चार बार नक्कारे एवं नौबत को बजाया जाता हैं। उर्स के अतिरिक्त रबी-उल-अव्वल का भी चांद के दिखने पर,रमजान मुबारक का चांद दिखने पर एवं ईद का चांद यहा दिखाई देने पर ही शादियाने एवं नौबत बजाए जाते हैं।
अजमेर का उर्स – राजस्थान के अजमेर की दरगाह शरीफ में शादियाने की बजाने के साथ ही उर्स की मुबारकबाद देने का सिलसिला भी शुरू हो जाता है। यहां पर लोग एक-दूसरे के गले मिलकर उर्स की मुबारकबाद देते है। सांप्रदायिक सौहार्द एवं विश्व की शांति का संदेश सभी देने वाला यह उर्स मिसाल है हमारी कौमी एकता का। यहां पर देशभर से हजारों लाखो की संख्या में जायरीन ख्वाजा की बारगाह में फूल चढ़ाने आते हैं। और चादर चढाने भी आते है। उर्स के शुरू होते ही जायरीन अपने सिर पर फूलों से भरी टोकरी एवं अपने हाथों में चादर को फैलाए जत्थे के साथ दरगाह में पहुंचते हैं। अकीदतमंद यहां की मजार पर चादर एवं अकीदत के फूल को पेश कर के अपने लिए दुआ भी करते है।
अजमेर का उर्स – हजरत ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह के महफिल खाने में रात्रि के 11 बजे के बाद प्रत्येक वर्ष लगने वाले उर्स की प्रथम महफिल हुई। ये लगभग 800 वर्ष पुरानी परंपरा है। इस परंपरा के अनुसार देर रात को मजार शरीफ पर दरगाह दीवान जैनुअल आबेदीन ने प्रथम गुस्ल की रस्म को अदा की। फिर इस महफिल की भव्यता का अंदाजा आप इस बात से आसानी से लगा सकते है कि इस महफिल में पुरे देश भर की विभिन्न दरगाहो के सज्जादा नशीन,जायरीन-ए-ख्वाजा एवं खादिम बैठे हुए थे। इस महफिल के अंदर विश्व विख्यात कव्वालों ने फारसी भाषा एवं ब्रजभाषा में अपनी कलाम भी पेश की। आखिरी कलाम होने के पश्च्यात फातिहा भी पढ़ी गई। आखिर में कव्वालों ने कड़का भी पढ़ा। और इसके साथ ये पहली महफिल का समापन भी हो गया।
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