खाटू श्याम चालीसा | Khatu Shyam Chalisa Hindi | महत्व और लाभ

आइये हम जानते है  खाटू श्याम चालीसा का महत्व और लाभ – 

हिंदू धर्म के अनुसार खाटू श्याम चालीसा का पाठ करने से जीवन में  सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है। बाबा खाटू श्याम की कृपा से सिद्धि, बुद्धि, धन, बल और ज्ञान-विवेक की प्राप्ति होती है। बाबा के प्रभाव से इंसान धनी बनता है, वो तरक्की करता है। उसे कष्ट नहीं होता। प्रभु की कृपा उसके पूरे परिवार  पर होती है। वो सफलता के पथ पर आगे बढ़ता है। बाबा खाटू श्याम जी ने अपने शीश का दान दिया था |  इसलिए उनको सबसे बड़ा दाता कहा गया है |

खाटू श्याम चालीसा से पहले हम, उनके बारे में जान लेते है –

खाटू श्याम चालीसा से पहले हम, श्री खाटू श्याम जी के बारे में जान लेते है |  कहानी महाभारत के समय से शुरू होती है । खाटूश्याम जी पाण्डव पुत्र बलशाली भीम  के पौत्र थे |  घटोत्कच और मोरवीके पुत्र थे ।खाटूश्याम जी पहले बर्बरीक के नाम से जाने जाते थे |  वह  खाटू श्याम जी बाल अवस्था से बहुत बलशाली और वीर थे | उन्होंने युद्ध-कला अपनी माता मोरवी  तथा  भगवान् श्री कृष्ण से सीखी ।

खाटू श्याम भगवान शिव की तपस्या करके उनसे प्र्सन  किया शिव जी ने प्र्सन होकर उन्हें तीन बाण  दिये ।इसलिए उन्हें तीन बाण धारी  नाम से  भी जाना जाता है | और माता दुर्गा ने प्रसन्न होकर उन्हें धनुष प्रदान जिससे वो तीनो लोको में विजय प्राप्त कर सकते थे | 

जब वीर बर्बरीक को महाभारत के  युद्ध के बारे में पता चला तो उनकी भी इच्छा युद्ध में जाने की हुए । तो वे अपनी माता के पास गए और बोले मुझे भी महाभारत के  युद्ध में हिस्सा लेना है | यह सुनकर उनकी माता ने इन्हें हारे हुए की तरफ से युद्ध लड़ने के लिए कहा |  और जब वे युद्ध करने जा रहे थे |  तब उन्हें रास्ते श्री कृष्ण  ब्र्हामण रुप  में मिले और उन्होंने उपहास करते हुए बोला  कि ” हे बालक ये क्रीड़ा भूमि नहीं युद्ध भूमि है तीन बाणों से  युद्ध  क्या सैनिक भी नहीं मर पाओगे ।

यह सुनकर बर्बरीक बोले कि ” हे ब्रह्मण देव ये बाण कोई साधारण बाण नहीं हैं यह  मेरे आराध्य भगवान शिव ने मुझे वर में तीन अचूक बाण दिए हैं  इनसे मैं युद्ध को एक पल में समाप्त कर दूंगा।ब्रह्मण रूप में  श्री कृष्ण जी ने वीर बर्बरीक से कहा तो इसे सिद्ध करो और उन्होंने एक पीपल के पेड़ की और इसरा करते हुए कहा इस पिम्पल के सभी पत्तों  में छेद करो । वीर बर्बरीक ने बाण निकला और एक ही बाण  से सम्पूर्ण वृक्ष के पत्तों को बिंध दिया और श्री कृष्ण जी के पैर के चारो ओर घूमने लगा  । क्योकि एक पता  कृष्ण जी ने अपने पैर के निचे दबा लिया था  | 

तब बर्बरीक ने कहा की पैर हटा लीजिये वरना पैर में चोट लग जाएगी | इसके बाद ब्राह्मणरूपी श्री कृष्ण ने वीर बर्बरीक से दान की अभिलाषा व्यक्त की। बर्बरीक ने उन्हें वचन दिया और दान माँगने को कहा। ब्राह्मण रूप में  श्री कृष्ण ने वीर बर्बरीक से उसका शीश का दान माँगा लिया । वीर बर्बरीक क्षण-भर के लिए आश्चर्यचकित हुए, परन्तु अपने वचन पर अटल रहे। 

वीर बर्बरीक समझ गए कि यह कोई साधारण ब्राह्मण नहीं हो सकते। और ब्राह्मण को अपने वास्तविक रूप में आने के लिये निवेदन किया । और  ब्राह्मण के रूप में अपने गुरु श्री कृष्ण को देखकर वीर बर्बरीक ने उनसे पूछा कि आपने ऐसा क्यों किया । श्री कृष्ण बोले कि वीर बर्बरीक मेने आज तुमसे गुरु दक्षिणा ली है | वीर बर्बरीक ने कहा – गुरुदेव में मेरा शीश आपको देता हु परन्तु  मैं सम्पूर्ण महाभारत का युद्ध देखना चाहता हूं।  श्री कृष्ण ने वीर बर्बरीक के शीश को अमृत से सींचा और अजर अमर बना दिया। और कुरुक्षेत्र के पास की ऊंची पहाड़ी पर रख दिया जहां से सम्पूर्ण युद्ध दिखाई दिया।

 युद्ध समाप्त होने के बाद पाण्डवों को अपनी विजय का घमण्ड  हो गया। उनके घमंड को तोड़ने के लिए श्री कृष्ण ने कहा बर्बरीक ने पूरा युद्व देखा है उससे पूछते है |  तो बर्बरीक के शीश से पूछा और  बर्बरीक के शीश ने कहा कि श्री कृष्ण की  रणनीति  ,उनकी शिक्षा, उपस्थिति और मार्गदर्श्क से  ही आप यह युद्ध नई विजय प्राप्त की है । मुझे युद्धभूमि में सिर्फ उनका सुदर्शन चक्र घूमता दिखायी रहा था और शत्रु सेना को काट रहा था। और माता , श्री कृष्ण के आदेश पर कुरु सेना के रक्त से भरे प्यालों को  ग्रहण कर रही थीं।

 श्री कृष्ण  वीर बर्बरीक के निस्वार्थ बलिदान से  प्रसन्न होकर वीर बर्बरीक को कुछ मांगने को कहा | वीर बर्बरीक ने गुरु श्री कृष्ण से उनका सांवला रंग मांगा।  इस पर श्री कृष्ण बोले –  में अपना सांवला रंग तुम्हे देता हू और साथ ही मेरी सभी सोलह कलाएं तुम्हारे शीश में समाहित करता हु | और कहा तुम्हारी पूजा मेरे नाम श्याम से की जाएगी और तुम मेरे ही प्रतिरूप बनकर पूजे जाओगे | जो भक्त तुम्हारे खाटू श्याम चालीसा का जप करेगा और तुम्हारे दरबार में आएगा दुनिया में कोई उसे दुबारा हरा नहीं पायेगा | और उनकी सभी इछाये पूरी होंगी। 

आइये गुणगान करते है खाटू श्याम चालीसा का हिंदी में अवं खाटू श्याम चालीसा के अद्भुत चमत्कार

खाटू श्याम चालीसा

खाटू श्याम चालीसा

खाटू श्याम चालीसा || दोहा ||

श्री गुरु चरण ध्यान धर, सुमिरि सच्चिदानन्द।

श्याम चालीसा भजत हूँ, रच चैपाई छन्द।।

 

खाटू श्याम चालीसा | चौपाई

श्याम श्याम भजि बारम्बारा,सहज ही हो भवसागर पारा।

इन सम देव न दूजा कोई, दीन दयालु न दाता होई।

भीमसुपुत्र अहिलवती जाया, कहीं भीम का पौत्र कहाया।

यह सब कथा सही कल्पान्तर, तनिक न मानों इनमें अन्तर।

बर्बरीक विष्णु अवतारा, भक्तन हेतु मनुज तनु धारा।

वसुदेव देवकी प्यारे, यशुमति मैया नन्द दुलारे।

मधुसूदन गोपाल मुरारी, बृजकिशोर गोवर्धन धारी।

सियाराम श्री हरि गोविन्दा, दीनपाल श्री बाल मुकुन्दा।

दामोदर रणछोड़ बिहारी, नाथ द्वारिकाधीश खरारी।

नरहरि रूप प्रहलद प्यारा, खम्भ फारि हिरनाकुश मारा।

राधा वल्लभ रुक्मिणी कंता, गोपी बल्लभ कंस हनंता।

मनमोहन चितचोर कहाये, माखन चोरि चोरि कर खाये।

मुरलीधर यदुपति घनश्याम, कृष्ण पतितपावन अभिराम।

मायापति लक्ष्मीपति ईसा, पुरुषोत्तम केशव जगदीशा।

विश्वपति त्रिभुवन उजियारा, दीनबन्धु भक्तन रखवारा।

प्रभु का भेद कोई न पाया, शेष महेश थके मुनियारा।

नारद शारद ऋषि योगिन्दर, श्याम श्याम सब रटत निरन्तर।

कवि कोविद करि सके न गिनन्ता, नाम अपार अथाह अनन्ता।

हर सृष्टि हर युग में भाई, ले अवतार भक्त सुखदाई।

हृदय माँहि करि देखु विचारा, श्याम भजे तो हो निस्तारा।

कीर पड़ावत गणिका तारी, भीलनी की भक्ति बलिहारी।

सती अहिल्या गौतम नारी, भई श्राप वश शिला दुखारी।

श्याम चरण रच नित लाई, पहुँची पतिलोक में जाई।

अजामिल अरु सदन कसाई, नाम प्रताप परम गति पाई।

जाके श्याम नाम अधारा, सुख लहहि दुख दूर हो सारा।

श्याम सुलोचन है अति सुन्दर, मोर मुकुट सिर तन पीताम्बर।

गल वैजयन्तिमाल सुहाई, छवि अनूप भक्तन मन भाई।

श्याम श्याम सुमिरहुं दिनराती, शाम दुपहरि अरु परभाती।

श्याम सारथी सिके रथ के, रोड़े दूर होय उस पथ के।

श्याम भक्त न कहीं पर हारा, भीर परि तब श्याम पुकारा।

रसना श्याम नाम पी ले, जी ले श्याम नाम के हाले।

संसारी सुख भोग मिलेगा, अन्त श्याम सुख योग मिलेगा।

श्याम प्रभु हैं तन के काले, मन के गोरे भोले भाले।

श्याम संत भक्तन हितकारी, रोग दोष अघ नाशै भारी।

प्रेम सहित जे नाम पुकारा, भक्त लगत श्याम को प्यारा।

खाटू में है मथुरा वासी, पार ब्रह्म पूरण अविनासी।

सुधा तान भरि मुरली बजाई, चहुं दिशि नाना जहाँ सुनि पाई।

वृद्ध बाल जेते नारी नर, मुग्ध भये सुनि वंशी के स्वर।

दौड़ दौड़ पहुँचे सब जाई, खाटू में जहाँ श्याम कन्हाई।

जिसने श्याम स्वरूप निहारा, भव भय से पाया छुटकारा।

खाटू श्याम चालीसा|| दोहा ||

दोहा श्याम सलोने साँवरे,

 बर्बरीक तनु धार।

 इच्छा पूर्ण भक्त की,

 करो न लाओ बार।।

खाटू श्याम चालीसा समाप्त हुई – खाटू श्याम चालीसा पाठ सभी हिन्दू को करना चाहिए। 

 

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