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Varshitap Kab Hai | वर्षीतप कब होता है, वर्षीतप पारणा क्या है और इसका क्या महत्व है
September 27, 2021

Varshitap Kab Hai | वर्षीतप कब होता है, वर्षीतप पारणा क्या है और इसका क्या महत्व है

आज वर्षीतप के बारे में जानते हैं, वर्षीतप कब होता है, वर्षीतप पारणा महोत्सव, वर्षीतप पारणा क्या है और इसका क्या महत्व है?

वर्षीतपजैन धर्म में वर्षीतप को विशेष माना जाता है। इसका सीधा संबंध जैन समाज के प्रथम तीर्थकर भगवान आदिनाथ जी सेे है। भगवान आदिनाथ जी को ऋषभ देव के नाम से भी जाता है। वर्षीतप के एक दिन दो पहल ही भोजन ग्रहण किया जाता है। जिसमें एक बार सुबह सूर्यादय से पहले और दूसरी बार सूर्यादय के पश्चात भोजन ग्रहण किया जाता है। इसी के साथ साथ व्रत के एक दिन भोजन नहीं किया जाता है। जैन समुदाय में वर्षीतप को सबसे बड़ा तप कहा गया है क्योंकि इस में छह महीने से भी अधिक समयकाल के लिए व्रत किया जाता है। 

वहीं दूसरी ओर हिंदू धर्म में भी इसे महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है। वर्षीतप सनातन धर्मियों के आखातीज से जुड़ा हुआ है, जिसे अक्षय तृतीया भी कहा जाता है। इस दिन किए गए तप से अनंत फल और अक्षय की प्राप्ति होती है। अक्षय का अर्थ होता है जिसका नाश अर्थात क्षय न हो सके। आगे हम आपको बताएंगे कि यह कब किया जाता है और वर्षीतप पारणा के पीछे क्या क्या कारण है। भगवान श्री आदिनाथ जी ने इसी तृतीया के दिन भौतिक एवं पारिवारिक सुखों का त्याग किया था। इसलिए हिंदू और जैन दोनों धर्म के लोगों के लिए यह दिन विशेष माना गया है।

 

वर्षीतप कब होता है? (Varshitap Kab Hai)

चैत्र माह में वर्षीतप का आरंभ हो जाता है। जैन अनुयायियों द्वारा इस व्रत को पूरे 13 महीने तक एक दिन को छोड़कर किया जाता है। यह तप ही वर्षीतप के नाम से दुनियाभर में प्रसिद्ध है। वर्षीतप के इस एक दिन में भोजन को पूर्ण रूप से त्याग दिया जाता है। 13 माह की इस तपस्या को व्रत के रूप में करके आखातीज की दिन पारण किया जाता है। इसलिए आखातीज को कब मनाया जाता है, इस बारे में ज्ञान होना भी अतिआवश्यक है।

वैशाख माह में शुक्ल पक्ष में आने वाली तृतीया के शुभ अवसर को अक्षय तृतीया कहते हैं और इसे आखा तीज के रूप में मनाया जाता है। वर्षीतप की अवधि को लगभग 13 माह और 13 दिन का माना जाता है। उपवास के प्रथम दिन में मात्र उबले पानी को ही ग्रहण किया जाता है। यह फागुन के माह से वैशाख माह तक मनाया जाता है। जिसमें चंद्र माह के आठवें दिन को इसका आरंभ और वैशाख के चंद महीने के तीसरे दिन को इसका समापन कहा जाता है।

 

वर्षीतप पारणा महोत्सव 

जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर श्री आदिनाथ भगवान जी अहिंसा और सत्य के मार्ग पर चलते थे। उन्होंने सभी सांसारिक सुखों को त्याग दिया था। इस महोत्सव को जैन धर्म के अनुयायियों द्वारा मिलजुल कर पावन तीर्थाें पर आयोजित किया जाता है। इस महोत्सव के समय आदेश्वर भगवान की प्रक्षाल पूजा की जाती है। पारणा महोत्सव को आदिनाथ भगवान और श्री शांतिनाथ के पूजन के साथ आरंभ किया जाता है। मान्यताओं के अनुसार पुण्य भूमि पर अक्षय तृतीया पारणा महोत्सव में मिलजुल कर धर्म लाभ अर्जित करना बहुत फलदायी है और यह मनुष्य का कर्तव्य भी बनता है। कई स्थानों पर धर्म लाभ अर्जित करते समय मुकुट पहनाने की परंपरा भी की जाती है।

वर्षीतप पारणा (Varshitap Parna)

वर्षीतप पारणा से संबंधित एक कथा है जिसमें जैन समाज के आराध्य देव भगवान आदिनाथ जी को लगभग 13 महीना के बाद भिक्षा मिली थी। जिसमें उनको गन्ने का रस पीने को प्राप्त हुआ था। उनके सुपौत्र श्रेयांश कुमार द्वारा ऋषभ देव को इस रस की प्राप्ति हुई थी। इसलिए वर्षीतप करने वाले भक्त इस दिन गन्ने के रस से वर्षीतप का पारणा करते आ रहे हैं। 

जैन समाज में यह परंपरा बाबा आदम के जमाने से चलती आ रही है। इस परंपरा को आखातीज के दिन किया जाता है क्योंकि भगवान आदिनाथ जी को इसी दिन गन्ने के रस की प्राप्ति हुई थी। कई भक्त पालीताणा तीर्थ गुजरात और उत्तर प्रदेश के हस्तिनापुर में जाकर इस विशेष वर्षीतप का पारणा करते हैं।

 

वर्षीतप का महत्व (Varshitap Ka Mahatva)

वर्षीतप का जैन समाज में बहुत महत्व है। इसी के साथ साथ आखातीज से संबंध होने की वजह से हिंदू धर्म के अनुयायी इस दिन को बहुत ही महत्वपूर्ण मानते हैं। देशभर में आखातीज का त्योहार मनाया जाता है। यदि किसी जानक के विवाह के मुहूर्त में बाधा आती है। तो इस दिन को शुभ मुहूर्त मानकर लोग विवाह करते हैं। 

यह सबसे कठोर एवं कठिन तपों की सूची में आता है। इसके अनुष्ठानों का इतने लंबे समय तक पालन करना बहुत मुश्किल होता है। इस दिन दान करना बहुत ही फलदायी माना जाता है। जिन उपासकों के लिए व्रत का पालन करना संभव नहीं हो पाता। वह आराधना, जप और दान से इस दिन को मनाते है। इस पवित्र दिन पर तामसिक भोजन से दूर रहना चाहिए। इस दिन बुरे विचारों को मन में न लाते हुए लड़ाई और झगड़े से दूर रहना चाहिए। हिंदू और जैन धर्म के अनुयायियों के लिए यह समयकाल बहुत महत्व रखता है।

 

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