वरुथिनी एकादशी – प्राचीन काल से एकादशी के दिन को पवित्र मानकर एक उत्सव की भांति मनाया जाता आ रहा है। इस दिन भगवान मधुसुधन और श्री हरी जी का पूजन करना चाहिए। इस दिन किए गए व्रत से कन्यादान और अन्नदान के समान फल मिलता है। अभागिनी स्त्री यदि इस व्रत को पूरे विधि विधान से करे तो उसको सौभाग्य की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में अन्न के दान को सबसे श्रेष्ठ बताया गया है। मृत्युलोक में किसी गरीब को भोजन करवाना अर्थात अन्नदान करने से बड़ा कोई भी दान नहीं है। एकादशी की तिथि के अनुसार मुहूर्त जानकर कर ही पूजा करनी चाहिए और व्रत को खोलना चाहिए।
वरुथिनी एकादशी – एकादशी का यह दिन वैशाख माह में आने वाले कृष्ण पक्ष को एकादशी के दिन मनाया जाता है। यह प्रत्येक वर्ष मनाए जाने वाला पर्व है जोकि इसी दिन आता है। साल 2023 में इस एकादशी को 16 अप्रैल रविवार के दिन मनाया जाएगा। इस दिन रखे गए व्रत को अगले दिन शनिवार को पारणा मुहूर्त में खोलना बहुत शुभ माना जाएगा। अधिक मास आने के कारण ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार इसकी तिथि अलग हो सकती है। लेकिन हिन्दू पंचांग के अनुसार यह वैशाख कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन ही वरुथिनी एकादशी माना जाएगा।
वरुथिनी एकादशी – कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव जी ने क्रोध में आकर धुंधुमार नाम के राजा को श्राप दे दिया था। इस श्राप के कारण उसका जीवन कष्टों से भर गया। तभी एक ऋषि द्वारा बताए जाने पर राजा धुंधुमार ने वरुथिनी एकादशी के व्रत को किया था जिससे की उसे सभी कष्टों से मुक्ति मिल गयी थी। तभी से इस दिन को स्वर्ग प्राप्ति, मोक्ष की कामना और पापों से मुक्ति पाने के लिए वरुथिनी एकादशी के त्यौहार के रूप में मनाया जाता है।
वरुथिनी एकादशी – भगवान श्री कृष्ण जी द्वारा कही गयी व्रत कथा के अनुसार प्राचीन समय की बात है। नर्मदा नदी की किनारे एक प्यारा सा राज्य था। जिस पर मान्धाता नाम का तपस्वी और दानी राजा राज करता था। एक दिन राजा जंगल में अपनी तपस्या में लीन थे। उस समय एक भालू आया और राजा के पैर पर आक्रमण कर दिया। राजा ने हिंसा के विरुद्ध अपनी विचारधारा को ध्यान में रखते हुए भालू पर पलटवार नहीं किया। भालू राजा को घसीटते हुए जब जंगल की ओर ले रहा था तो राजा घबरा गया और दर्द से चिल्लाने लगा। तभी राजा ने करुणा भाव से भगवान श्री विष्णु को अपनी रक्षा के लिए पुकारा। तभी प्रभु उस जगह प्रकट हुए और उन्होंने अपने सुदर्शन चक्र से को मारकर राजा की जान बचाई।
वरुथिनी एकादशी – राजा अपने पैर की दशा देखकर बहुत दुखी हुए। तभी भगवान ने राजा से कहा हे वत्स दुखी न हो, जिस भालू ने तुमको काटा है यह तुम्हारे पिछले कर्मों का दंड था । तुम मथुरा जाकर वरुथिनी एकादशी का व्रत करके मेरी वराह अवतार की मूर्ति का पूजन करो। इससे तुम्हे पुनः पहले से भी दृढ़ अंगों की प्राप्ति होगी। भगवान की आज्ञा का पालन करते हुए राजा ने ऐसा ही किया और विधिवत वरुथिनी एकादशी के व्रत को किया। जिसके फलस्वरूप उसको पहले से भी सुंदर और मजबूत अंग प्राप्त हुए। इसी के साथ साथ पूरी आस्था से व्रत का पालन करने पर राजा मान्धाता को मोक्ष की प्राप्ति हुई।
वरुथिनी एकादशी – वैशाख महीने में आने वे वरुधिनी एकादशी का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है। प्राचीन काल में भगवान श्री कृष्ण जी द्वारा इस एकादशी के बारे में धर्मराज युधिष्ठिर को बताया गया था। जिसमें उन्होंने इस एकादशी को पापों का नाश और सौभाग्य को प्राप्त करने वाली एकादशी कहा था। वरुधिनी एकादशी के व्रत को करने से मनुष्य मोक्ष को प्राप्त होता है। इस दिन भक्तों को विधिवत इस पवित्र व्रत को करते समय रात्रि को जमीन पर सोना चाहिए। एकादशी के व्रत को सभी व्रतों में श्रेष्ठ माना गया है। इसलिए इसे एक त्यौहार के रूप में पूरे भारतवर्ष में मनाया जाता है।
वरुथिनी एकादशी – यह भगवान मधुसुधन को समर्पित होता है। इस दिन दिए गए दान को बहुत महत्वपूर्ण बताया गया है। स्वर्ग लोक की कामना को मन में रख के भक्तों द्वारा इस दिन विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। भगवान श्री विष्णु के उपासकों के लिए यह दिन बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। इस दिन रखे जाने वाले व्रत को कोई भी कर सकता है। व्रत के समय चावल, अन्न, नमक और तेल को ग्रहण करना वर्जित होता है। इसमें श्रद्धालु फलाहार करते है और पुरे दिन श्री हरि की आराधना करते है। इस दिन अपने मन में बुरे विचारों को नहीं लाना चाहिए और तामसिक भोजन से दूर रहना चाहिए। इस दिन किए गए व्रत और पूजन से भगवान मधुसूदन अपने भक्तों पर कृपा बनाए रखते है।