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February 4, 2025

Tanot Mata Tample|तनोट माता मंदिर | तनोट माता का इतिहास ,प्रसिद्ध क्यों है ,मेला कब लगता है |

तनोट माता मंदिर राजस्थान के जैसलमेर जिले में स्थित एक प्रमुख धार्मिक स्थल है, जो भारत-पाकिस्तान सीमा के पास थार रेगिस्तान में 120 किलोमीटर दूर स्थित है। इस मंदिर की स्थापना आठवीं शताब्दी में हुई थी, और यह मंदिर प्रसिद्ध ममंदिया चारण (गढ़वी) की बेटी आवड माता को समर्पित है, जिन्हें तनोट माता के रूप में पूजा जाता है। प्राचीन चारण साहित्य के अनुसार, तनोट माता हिंगलाज माता का अवतार मानी जाती हैं और यह मंदिर एक प्रमुख धार्मिक स्थल के रूप में प्रसिद्ध है।

इतिहास में यह भी उल्लेख मिलता है कि भाटी राजपूत नरेश तणुराव ने विक्रम संवत 828 में इस मंदिर का निर्माण करवाया था और तनोट माता मंदिर की मूर्ति स्थापित की थी। इस मंदिर की ऐतिहासिक महत्ता उस समय और भी बढ़ गई जब 1965 में पाकिस्तानी सेना के आक्रमण के दौरान तनोट माता ने भारतीय सेना की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे यह मंदिर और भी विशेष बन गया। वर्तमान में, यह मंदिर भारत के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है, जहाँ भाटी समुदाय सहित जैसलमेर के लोग माता की पूजा करते हैं।

तनोट माता मंदिर का इतिहास

तनोट माता मंदिर राजस्थान की प्रसिद्ध देवी का स्थान है, जिन्हें उत्तरी भारत में देवी शक्ति के रूप में पूजा जाता है। माता का इतिहास अत्यंत प्राचीन और गहरा है, और यह मंदिर लगभग 1200 साल पहले प्रचलन में आया था। मंदिर के एक पुजारी के अनुसार, इस मंदिर के इतिहास से जुड़ी एक दिलचस्प कहानी है। बहुत समय पहले ममंदिया चारण नामक एक चारण हुए थे, जिनके कोई संतान नहीं थी—न बेटा, न बेटी। वे नंगे पैर कई बार हिंगलाज माता के दर्शन करने के लिए जाते थे, और लंबे सफर के बावजूद उनकी श्रद्धा और भक्ति कभी कम नहीं हुई।

एक रात, हिंगलाज माता ममंदिया चारण के भक्ति से प्रभावित होकर उनके सपने में आ गईं। सपने में ममंदिया चारण ने माता से विनती की कि वे उनके घर बेटी के रूप में जन्म लें। हिंगलाज माता ने उनका आशीर्वाद स्वीकार किया, और इसके बाद ममंदिया चारण को सात बेटियाँ और एक बेटा हुआ। इन बेटियों में से आवड़ को ही हिंगलाज माता के रूप में पूजा जाता है। इस घटना के बाद से तनोट माता की प्रतिष्ठा और भक्ति में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। उन्हें देवी शक्ति के रूप में पूजा जाने लगा, जो शक्ति, साहस और आस्था का प्रतीक मानी जाती हैं। आज भी लोग तनोट माता मंदिर को विश्वास और श्रद्धा के साथ पूजा करते हैं, और उनसे अपनी समस्याओं का समाधान प्राप्त करने के लिए आशीर्वाद मांगते हैं।

तनोट माता मंदिर की कथा और प्रतिष्ठा राजस्थानी साहित्य और सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।तनोट माता मंदिर भगवानी तनोट माता को समर्पित है, जिन्हें शक्ति, रक्षा और साहस की देवी के रूप में पूजा जाता है। तनोट माता मंदिर एक प्राचीन और पवित्र स्थल है, जिसका निर्माण राजपूत राजाओं द्वारा किया गया था। यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह राजस्थान की सांस्कृतिक धरोहर का भी अभिन्न अंग है।

यहां तनोट माता की प्रतिमा की पूजा की जाती है, और लाखों भक्त तनोट माता मंदिर में अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए आते हैं। हालांकि मंदिर की स्थापना की तिथि का निश्चित रूप से निर्धारण नहीं किया गया है, लेकिन इसका इतिहास अत्यंत प्राचीन है। मान्यता है कि यहां स्थित संग्रहालय में मिले प्राचीन लेखों में तनोट माता मंदिर की महानता का उल्लेख किया गया है।तनोट माता मंदिर का आकर्षण उसकी विशालकाय संरचना और राजपूताना स्थापत्य शैली में निर्मित सुंदर जालीदार कलाकृतियों में है।तनोट माता मंदिर परिसर में भक्तों को धार्मिक अनुष्ठान और पूजा के लिए स्थान उपलब्ध है। तनोट माता मंदिर राजस्थान के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है, जहां आने वाले श्रद्धालुओं को आत्मिक शक्ति और शांति का अनूठा अनुभव प्राप्त होता है। 

तनोट माता क्यों प्रसिद्ध है ?| Tanot Mata Kyu Parsidh hmm

तनोट माता क्यों प्रसिद्ध है ?| Tanot Mata kyu Parsidh Hai 

राजस्थान के जैसलमेर जिले स्थित तनोट माता मंदिर ने 1965 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान अहम भूमिका निभाई थी। मान्यता है कि तनोट माता मंदिर ने भारतीय सैनिकों की मदद की थी, जिसके कारण पाकिस्तानी सेना को पीछे हटना पड़ा था। उस समय पाकिस्तानी सेना ने इस क्षेत्र में करीब 3000 बम गिराए थे, जिनमें से 450 बम मंदिर परिसर में भी गिरे, लेकिन चमत्कारिक रूप से उन बमों में से एक भी नहीं फटा। यह घटना तनोट माता की शक्ति और रक्षा के प्रतीक के रूप में मानी जाती है। आज भी इस मंदिर में माता की पूजा भारतीय सीमा सुरक्षा बल (BSF) के जवान करते हैं, और यह स्थान उनके लिए एक धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व रखता है।

तनोट माता मंदिर को थार की वैष्णो देवी और सैनिको की देवी के उपनाम से भी जाना जाता है ! इस घटना की याद में तनोट माता मंदिर के संग्राहलय में आज भी पाकिस्तानी सेना द्वारा दागे गए जीवित बम रखे हुए है ! तनोट माता मंदिर का प्रसिद्ध होना उनकी महानता और दयालुता के कारण  है ! उनकी कथा में उनका उदाहरण लोगो को सहायता करने और अन्यो के लिए भलाई करने की प्रेरणा प्रदान करता है !उनके चमत्कारी आयोजनों से लोगो को भोजन की आपूर्ति मिलने लगी ,जिससे उनका नाम प्रसिद्ध हुआ !इसके अलावा उनकी देवी रूप में शक्ति और साहस को भी प्रकट किया गया है !जिससे उनकी प्रसिद्धि और भक्ति में वर्द्धि हुई है

तनोट माता का मेला कब लगता है ? | Tanot Mata Ka Mela Kab Lagta Hai 

तनोट माता का मेला जैसलमेर में वार्षिक रूप से लगता है और यह भारतीय प्राचीन सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत का हिस्सा है यह मेला चैत्र माह के अंत में या बैसाख माह के शुरुवात में लगते है जब लाखो सर्दालु तनोट माता ली कृपा और आशीर्वाद के लिए इस धार्मिक यात्रा में शामिल होते है ! यह मंदिर और मेला तनोट माता के प्रति लोगो के विशेष भक्ति और समर्पण का प्रतीक है !यहां पर लोग माँ तनोट की कृपा के लिए आते है खासकर जब वे सीमा पर सुरक्षा की दिग्गज सेना के लिए प्रार्थना करते है ! मेले के समय गांव में भक्ति और ऊर्जा का माहौल होता  है ! 

तनोट माता की कहानी 

तनोट माता की कहानी 

तनोट माता का भारत के जैसलमेर जिले के पश्चिमी राज्य राजस्थान में एक मंदिर है ! मामंदिया चारण की बेटी आवड़ को तनोट माता के रूप में पूजा जाता है !1972 में भारत-पाकिस्तान के लोंगेलावा युद्ध स्थल के बहुत करीब था ! समकालीन लोकगीत युद्ध के परिणाम के लिए मंदिर को आभारी मानते है ! तनोट माता राजस्थान की एक प्रसिद्ध देवी है ! उनकी कथा उनके प्रेम और सहायता के कारण लोगो के दिलो में सम्मान की भावना पैदा करती है !

प्राचीन कल में ,एक गांव में एक गरीब परिवार रहता था ! उनकी बेटी तनोट माता एक साहसी और उद्धार लड़की थी ! एक दिन गांव में भुखमरी का सामना हुआ ,लोगो के पास भोजन की कमी थी ! तनोट माता ने तब एक चमत्कारिक कदम उठाया ! वह तनोट माता से पूजा करते समय माँ तनोट से माँगा की भूखे और असहाय लोगो की मदद कर सके ! तनोट माता ने उनकी प्रार्थना सुनी और गांव में हमेसा के लिए भोजन का आयोजन कर  दिया ! यह चमत्कार भक्तो को  हैरान कर  दिया ! उस दिन से गांव की  स्थिति बदल गई ! तनोट माता की कृपा से हर गांववासी को खाना मिलने लगा और लोग आज भी उनको भक्ति और सम्मान के साथ पूजते है ! और उनसे गांव की सुरक्षा के लिए रोजाना प्रार्थना करते है !

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