आज पढ़े रथ यात्रा के बारे में कि क्यों इसे त्योहार के रूप मनाया जाता है, ओडिशा की रथ यात्रा, वर्ष 2023 में इसे कब मनाया जाएगा, इस पर्व का इतिहास और रथ यात्रा का क्या महत्व है?
हिंदुओं के लिए रथ यात्रा का पर्व बहुत ही पवित्र दिन माना जाता है। इस दिन को मत-भेद किए बिना सभी भक्तों द्वारा मिलजुल कर मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार इस त्योहार को आषाढ़ मास में आने वाले शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। जिसमें रथ यात्रा का बहुत बड़े स्तर पर आयोजन किया जाता है। दक्षिण भारत में इसे विशेष माना जाता है। ओडिशा में इस दिन भक्तों में उत्साह देखने वाला होता है। आइए ओडिशा में निकाली जाने वाली भगवान जगन्नाथ यात्रा के बारे में जानते हैं।
रथ यात्रा ओडिशा – Ratha Yatra Odisa
ओडिशा में रथ यात्रा का आयोजन देखने वाला होता है, जिसमें दूर दूर भक्त आकर इस पवित्र यात्रा में शामिल होते हैं। इस यात्रा में भगवान जगन्नाथ जी को भक्त माता गुंडिचा जी के मंदिर ले जाते हैं। इस रथ यात्रा के एक दिन पहले इस प्रसिद्ध मंदिर की सफाई करके इसे धोया जाता है। भारत के इस राज्य में तटवर्ती शहर पूरी नामक स्थान पर भगवान जगन्नाथ जी का प्रसिद्ध मंदिर है। हिंदू धर्म में चार धामों में जगन्नाथ जी को एक धाम माना जाता है। इसलिए इस स्थान पर रथ यात्रा का आयोजन बहुत बड़े स्तर पर किया जाता है।
रथ यात्रा क्यों मनाते हैं – Ratha Yatra Kyun Manate Hai
भगवान जगन्नाथ जी को विष्णु जी का अवतार माना गया है। माना जाता है इस यात्रा के समय रथ को खींचने मात्र से सौ यज्ञों के समान पुण्य प्राप्ति होती है। वहीं कथाओं के अनुसार जगन्नाथ जी के परम भक्त राजा रामचन्द्र देव को मंदिर में प्रवेश करवाने के लिए इस यात्रा को किया गया था। तभी से इस यात्रा को एक उत्सव की भांति मनाया जाने लगा। राजा रामचन्द्र देव ने विवाह के बाद इस्लाम धर्म को अपना लिया था। इस कारण से उनका मंदिर में प्रवेश करना निषेध हो गया था। वहीं मान्यताओं के अनुसार स्नान पूर्णिमा अर्थात ज्येष्ठ पूर्णिमा के शुभ अवसर पर भगवान जगन्नाथ पुरी का जन्मदिन होता है। इसलिए भी इस दिन को भक्त उनके जन्मदिन के रूप में पूरी आस्था से मनाते हैं।
वर्ष 2023 में इस त्योहार को कब मनाया जाएगा
इस साल 2023 में रथ यात्रा 20 जून 2023 मंगलवार को ये पवित्र पर्व मनाया जायेगा।
रथ यात्रा की ऐतिहासिक कथा – Ratha Yatra Ki Katha
रथ यात्रा की ऐतिहासिक व पौराणिक कथा का वर्णन कुछ इस प्रकार से है। एक समय सुभद्रा की उपस्थिति में गोपियों ने माता रोहिणी जी से भगवान श्री कृष्ण की रास लीला के बारे में जिज्ञासा उत्पन्न की। उस समय माता रोहिणी ने सुभद्रा के सामने रास लीला के बारे में बताना उचित नहीं समझा, इसलिए सुभद्रा को बाहर जाने को कहा। इसके साथ यह आदेश दिया कि कोई भी अंदर प्रवेश न करे।
उस समय भगवान श्री कृष्ण जी और बलराम अपनी बहन सुभद्रा के समक्ष खड़े हो गए और रोहिणी जी की बातों को सुनने लगे। इस समय देव ऋषि नारद जी भी उस स्थान पर पहुंच गए। तीनों भाई-बहनों को एक साथ नारद जी ने दैवीय दर्शन देने का निवेदन किया। उस समय नारद जी के आग्रह करने पर उन्होंने एक साथ अपने दैवीय दर्शन दिए। इन अमोघ दर्शन की कामना से ही जगन्नाथ में इस दिन को मनाया जाता है। माना जाता है कि रथ यात्रा के समय सुभद्रा, बलभद्र और श्री कृष्ण जी के इसी कथा के अनुसार पवित्र दर्शन होते हैं।
भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा – bhagwaan jagannath ratha yatra
इस यात्रा के समय अनुष्ठानों का पालन करके जगन्नाथ जी को माता गुंडिचा जी के मंदिर तक ले जाता है। पहांडी परंपरा का पालन करके के इस यात्रा को किया जाता है। माना जाता इस त्योहार के दिन तीनों भाई-बहन (श्री कृष्ण, बलराम एवं सुभद्रा) गुंडिचा माता के मंदिर में मिलने के लिए एकत्रित होते है।
वहीं यात्रा के एक दिन पूर्व छेरा पहरा की रस्म का पालन करते हुए, भगवान गणेश जी का ध्यान किया जाता है। उसके बाद सोने की झाड़ू से दिन में दो बार रथों का साफ किया जाता है। भगवान की दृष्टि से प्रत्येक मनुष्य समान होता है। इसलिए इस सफाई को राजा से लेकर एक सामान्य मनुष्य भी पूरी आस्था के साथ करता है। यात्रा के पांचवे दिन को हेरा पंचमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन का संबंध माता लक्ष्मी जी से होता है।
रथ यात्रा का महत्व – Ratha Yatra Ka Mahatva
इस दिन को पूरे भारतवर्ष में मनाया जाता है। इस कोई व्रत व पूजा का कोई विषेश विधान तो नहीं है। लेकिन इसके पीछे भी बताई गई कई पौराणिक कथाएं है। इस दिन सभी भक्त समान होते है और मिलजुल कर यात्रा में शामिल होते है। इस यात्रा में प्रथम स्थान पर बलभद्र जी का रथ होता है। जिसे तालध्वज के नाम से जाना जाता है। इसके बाद दर्पदलन नाम से प्रसिद्ध रथ मध्य में होता है। जिसे सुभद्रा जी का रथ कहा जाता है। सबसे अंत में भगवान जगन्नाथ जी का रथ होता है। जिसे नंदी घोष व गरूड़ ध्वज कहा जाता है।
पूरे विश्व से कई भक्त इस यात्रा में शामिल होते हैं। माना जाता है कि जो कोई भी पूरी आस्था और श्रद्धा से इस यात्रा में उपस्थित होता है। वह मनुष्य इस जीवन और मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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