हिंदू शास्त्रों में एकादशी के दिवस को बहुत पवित्र बताया गया है। एकादशी के व्रत को सभी व्रतों में श्रेष्ठ बताया गया है। पौष कृष्ण एकादशी भी सफला एकादशी का ही दूसरा नाम है। प्रत्येक मास में दो एकादशी के पर्व आते ही हैं। संस्कृत भाषा में एकादशी का अर्थ ग्यारह होता है, इसलिए महीने के शुक्ल और कृष्ण पक्ष के ग्यारहवें दिन एकादशी का त्यौहार हिन्दू धर्म के अनुयायियों द्वारा मनाया जाता है। एकादशी के दिवस को भगवान श्री विष्णु का सबसे प्रिय उत्सव कहा जाता है। इस दिन पूजा के समय और दिन के खाली समय में “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करते रहना चाहिए। यह सूक्ष्म दिखने वाला मंत्र बहुत ही फलदायी होता है। इसके निरंतर उच्चारण से भगवान वासुदेव जी प्रसन्न होकर भक्तों पर कृपा दृष्टि बनाए रखते हैं।
हिन्दू पंचांग के अनुसार एकादशी के व्रत को 48 घंटों के बाद पारण मुहूर्त में खोला जाता है। इसके पीछे यह कारण है कि इस व्रत को एकादशी की तिथि पर संध्याकाल में शुरू कर दिया जाता है। तिथि के समाप्त हो जाने के अगले दिन इसे खोला जाता है जिससे इसके व्रत की अवधि दो दिनों के समान हो जाती है। इसके बाद इसे एकादशी तिथि के समाप्त हो जाने के अगले दिन सूर्योदय के बाद उपासकों द्वारा इस व्रत को खोला जाता है। इसलिए एकादशी के व्रत को रखने और पूजन को करने से पहले एकादशी के समय और शुभ मुहूर्त के बारे में ज्ञात होना अति आवश्यक है। इसलिए आगे हम आपको इसके मुहूर्त और पारण समय के बारे में संक्षेप में बताएंगे। इस लेख को पड़ने के बाद सफला एकादशी से सम्बन्धित आपके मन में चल रही कई दुविधाएं दूर हो जाएंगी।
सफला एकादशी को पौष के मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन मनाया जाता है। इस दिन एकादशी के सभी अनुष्ठानों का पालन किया जाता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के हिसाब से पौष मास दिसंबर और जनवरी का महीना होता है। इस साल 2024 में दो बार सफला एकादशी के पर्व है। जिसमे से एक त्यौहार 7 जनवरी रविवार के दिन मनाया जाएगा और दूसरा सफला एकादशी का उत्सव 26 दिसंबर को मनाया जाएगा। इस वर्ष संयोग से दो एकादशी के पर्व एक ही वर्ष में देखने को मिले है। ऐसा बहुत ही कम देखने को मिलता है।
साल 2024 में 26 दिसंबर को गुरुवार के दिन सफला एकादशी का पर्व मनाया जाएगा। जिसमें भगवान अच्युत और विष्णु पूजा का विधान होता है। पारण मुहूर्त सर्वदा सूर्योदय के बाद ही आता है। इस व्रत का पारण करने के भी शुभ मुहूर्त को देखना चाहिए जिसके बारे में हम आपको आगे संक्षेप ने बताएंगे। हरि वासर के समय व्रत का पारण शुभ नहीं माना जाता है। अभी हम एकादशी तिथि के समय, हरि वासर और अभिजीत मुहूर्त के बारे में बताएंगे। इन मुहूर्तों को ध्यान में रख कर ही पूजा करके संध्याकाल के समय व्रत करने का संकल्प करना चाहिए। तो साल 2024 में तिथि का समय और मुहूर्त कुछ इस प्रकार से रहेंगे।
इस दिन एकादशी का व्रत करने वाले उपासकों के लिए पारण मुहूर्त को जानना बहुत ही आवश्यक है। इस मुहूर्त में ही 48 घंटों तक रखे जाने वाला व्रत खोला जाता है। जैसा कि आप जानते होंगे, एकादशी की तिथि वर्तमान समय में प्रयोग किए जाने वाले कैलेंडर के अनुसार दो दिनों के बीच जैसे आती है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि हिन्दू पंचांग के अनुसार सूर्योदय के अनुसार दिनों की गणना की जाती है। इसलिए एकादशी के संध्याकाल में आरम्भ किया हुआ यह व्रत एकादशी की तिथि समाप्त होने के अगले दिन पारण मुहूर्त में खोला जाता है। प्राचीन काल से चली आ रही परम्पराओं के अनुसार इस व्रत को हरि वासर के समय के बाद ही पूर्ण माना जाता है। पारण मुहूर्त हरि वासर के समापन होने के बाद ही आता है। पारण मुहूर्त में खोला गया व्रत ही विधिवत व्रत माना गया है इसलिए पारण मुहूर्त की अवधि के बारे में हम आपको बताने जा रहे है, जोकि साल 2024 में कुछ इस प्रकार से रहेगा।
वर्ष 2024 में 27 दिसंबर को शुक्रवार की सुबह 7 बजकर 09 मिनट पर पारण मुहूर्त शुरू हो जाएगा।
आरम्भ होने के बाद 8 बजकर 48 मिनट पर इस पारण मुहूर्त का समापन हो जाएगा।
धर्मराज युधिष्ठर के पूछे जाने पर भगवान श्री कृष्ण ने उनको इस कथा के बारे में बताया था। श्री कृष्ण द्वारा बताई गई कथा के अनुसार एक समय महिष्मान नाम का राजा चम्पावती नगरी पर राज्य करता था। इस राजा की चार संतानें थी और चारों ही पुत्र थे। इन चार पुत्रों में से लुम्पक नाम का पुत्र सबसे बड़ा और महा पापी था। वह अपने पिता का सारा धन कुकर्मों और व्यर्थ की जगहों पर खर्च करता था। वह वेश्यागमन और बुरे कामों में सारा धन व्यय कर देता था और अपने से बड़ों का आदर भी नहीं करता था। राजा को जिस दिन लुम्पक के कुकर्मों के बारे में पता चला तो राजा ने उसे राज्य से निकलने का निर्णय लिया।
राज्य से बाहर हो जाने के बाद लुम्पक ने धन के लालच में चोरी और गलत काम करना शुरू कर दिया। एक समय ऐसा आया जब उसने पशुओं को मारकर खाना शुरू कर दिया। वह जंगल में एक पीपल के वृक्ष के नीचे रहता था, इस वृक्ष की गांववाले पूरी आस्था के साथ पूजा करते थे। पीपल के वृक्ष में करोड़ों देवी देवता निवास करते है। समय निकलता गया वह इस प्रकार ही पाप करके अपना जीवन व्यतीत करने लगा।
कुछ समय पश्चात पौष माह के कृष्ण पक्ष की दशमी को ठंड के कारण और पुरे वस्त्र न होने कारण वह सो नहीं पाया। इस प्रकार पूरी रात ठंड के कारण वह बहुत बीमार पढ़ गया। अगले दिन खराब स्वास्थ्य के कारण वह शिकार करने में सक्षम नहीं था। सूर्य की गर्मी में जैसे ही वह थोड़ा ठीक हुआ, वह कुछ फल इकट्ठा करके उसी पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ गया। जब सूर्यास्त हो गया तो उसने प्रार्थना की में कल ठंड के कारण सो नहीं पाया हूँ। कृपा करके आप इस अर्पित किए फल को स्वीकार कीजिए और मेरी रक्षा करें।
लुम्पक ने उस एकादशी के दिन कुछ भी नहीं खाया था, जिससे उसका उपवास पूर्ण हो गया था। यह देख कर और उसके द्वारा प्रार्थना करने पर भगवान श्री विष्णु बहुत प्रसन्न हुए। अगली सुबह वो ठीक हो गया और जब उसकी आँख खुली तो उसके सामने सुंदर वस्तुओं से सजा हुआ एक घोड़ा था। तभी आकाशवाणी हुई की तेरे एकादशी के दिन किए हुए व्रत से नारायण जी की तेरे पर कृपा हुई है, जिससे कि तुझे सभी पापों से मुक्ति मिल चुकी है। अब तू अपने पिता जी के पास जाकर राज्य को संभाल। यह सुनकर लुम्पक बहुत खुश हुआ और भगवान का मन से धन्यवाद करते हुए राज्य की रवाना हुआ।
उसके बाद से वह और उसका कुटुंब नारायण जी के आशीर्वाद को बनाए रखने के लिए प्रत्येक वर्ष इस व्रत को करने लगे। इसी प्रकार सफला एकादशी का व्रत और पूजन करने से अंत में लुम्पक वैकुण्ठ को प्राप्त हुआ। एकादशी के इस व्रत को करने और व्रत के दौरान कथा पड़ने और सुनने वाले मनुष्य को अश्वमेध यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होती है। इस श्रेष्ठ व्रत को कोई भी कर सकता है। इस व्रत को करने से सभी पापों का नाश हो जाता है।
पौष मास शुक्ल पक्ष के ग्यारहवें दिन मनाई जाने वाले इस पर्व का हिन्दू धर्म में बहुत महत्व है। इसे पूरे भारतवर्ष में पूरी आस्था और श्रद्धा के साथ मनाया जाता। है। सफला एकादशी के इस पावन अवसर पर भगवान अच्युत जी का पूजन किया जाता है। एकादशी को श्री हरि का दिन माना जाता है। इसी के साथ भगवान श्री विष्णु जी की पूजा भी की जाती है। इस दिन भक्तों द्वारा दिन में दो बार सुबह और शाम के समय पूजा के एकादशी की आरती की जाती है।
सफला शब्द का तात्पर्य है सफलता, इस दिन किए गए पूजन और विधिवत व्रत से मनुष्य को प्रत्येक कार्य में सफलता मिलती है। सफला एकादशी के दिन दीप दान अवश्य ही करना चाहिए। मान्यताओं के अनुसार एकादशी की रात्रि में जागरण करने से कई सालों की तपस्या से प्राप्त फल से भी अधिक फल की प्राप्ति होती है।
भगवान श्री विष्णु जी के उपासकों के लिए इस दिन और इस दिन की जाने वाले पूजा और व्रत का विशेष महत्व होता है। इस दिन श्रद्धालु बड़े स्तर पर पूजा, हवन और भंडारों आदि का आयोजन करते है। इस दिन किसी गरीब और ब्राह्मणों को भोजन करवाना बहुत ही शुभ और फलदायी माना गया है। इस दिन जरूरतमंदों को वस्त्र और अन्न दान करने से कई गुना फल मिलता है और पुण्य की प्राप्ति होती है। सफला एकादशी के मंगलकारी व्रत को पूरे विधि विधान से करने से मनुष्य को मृत्यु के बाद विष्णु लोक की प्राप्ति होती है। इसी के साथ साथ इस व्रत से मानव जीवन में भी सुखद जीवन की प्राप्ति होती है।
एकादशी के दिन विष्णु जी के अलग अलग नामों का उच्चारण करना चाहिए और वैदिक मंत्रों के साथ पूजा करनी चाहिए। यदि किसी जातक को पूजा और वैदिक मन्त्रों का पूर्ण ज्ञान न हो। तो किसी पंडित, ज्योतिष शास्त्र के विद्वान या पुजारी की सहायता लेकर पूजा करनी चाहिए।