मार्गशीर्ष मेला – Margashirsha Mela
आज हम आप सभी को मार्गशीर्ष मेला के बारे में बताने जा रहे है। उत्तर प्रदेश की सरकार ने तीर्थनगरी सोरों के मार्गशीर्ष को वहां के प्रांतीय मेला घोषित किया है। उक्त घोषणा संयुक्त प्रांत मेला अधिनियम 1938 के तहत घोषणा की गई है। मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी से शुरू होकर पौष मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को समाप्त होती है। 15 दिनों तक चलने वाले मेले का समय निर्धारित किया जाता है। प्रांतीय मेला की घोषणा के साथ ही मेले की भव्यता,सौन्दर्यता कई गुना बढ़ जायेगी। शासन ने अधिसूचना में मेला परिसर की सीमाओं के बारे में भी स्पष्ट किया हैं।
मार्गशीर्ष मेला – तीर्थनगरी सोरों के इस मेलेे को अमृत कुंभ के नाम से भी जाना जाता है। भगवान वराह के सूकर क्षेत्र की धरा पर अवतरित होने के दिन से ही यह मेला शुरू हो जाता है। प्राचीन काल से ही यह मेला यहाँ आयोजित होता रहा है। सन 1868 से अंग्रेज शासकों ने इस मेले के आयोजन की बागडोर (जिम्मेदारी) अपने हाथों में ली थी। नगरपालिका अधिनियम लागू होने के बाद से यहाँ पर इस मेले की व्यवस्था की जुम्मेदारी नगरपालिका परिषद की ओर से अब तक लगातार की जा रही है।
प्रदेश सरकार ने संयुक्त प्रांत मेला अधिनियम लागू करने के बाद इसके के अंतर्गत मेला मार्गशीर्ष को प्रांतीय मेला घोषित कर दिया गया है। मार्गशीर्ष मेला और स्नान हिन्दू धर्म के पर्वों के मौके पर दूर-दराज से साधू-संत भी यहां स्नानं करने को पहुंचते है। कुंभ मेले की तरह यहाँ पर यहां स्नान पर्व भी आयोजित किए जाते हैं। इनमें विभिन्न अखाड़ों के संत भी यहाँ स्नान करने के लिए यहाँ आते हैं।
मार्गशीर्ष मेला – 13 नवंबर को यहाँ के प्रमुख सचिव श्री दीपक कुमार द्वारा प्रांतीय मेला घोषित करने की अधिसूचना में मेले की सीमाओं का स्पष्टीकरण करते हुए उल्लेख किया है। मेले का क्षेत्र उत्तर में हरि की पैड़ी गंगा जी (हरिद्वार) ही रहेगा। दक्षिण दिशा में कासगंज गेट तक, पूरब दिशा में रोडवेज बस स्टैंड तक, और पश्चिम में चौधरी रामप्रकाश यादव महाविद्यालय बदरिया तक इसकी विशाल सीमा रहेगी।
उत्तर प्रदेश के शासन ने सोरों के पौराणिक मेला मार्गशीर्ष को प्रांतीय मेला घोषित कर दिया है। प्रांतीय मेला घोषित होने की वजह से अब इस मेले की भव्यता एवं ख्याति और भी ज्यादा बढ़ेगी। मेला मार्गशीर्ष इस जिले का पहला प्रांतीय मेला होगा।
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