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action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in C:\inetpub\vhosts\astroupdate.com\httpdocs\wp-includes\functions.php on line 6114Khatu Shyam Ji – भारत देश के राजस्थान राज्य में सीकर जिले के एक छोटा सा गांव जो विश्व भर में प्रशिद्ध खाटूनगरी के नाम से विख्यात नगर वा पर शीश के दानी श्याम बाबा का एक विशाल मंदिर जो पुरे विश्व में प्रशिद्ध जो वहा बसा हुआ है जो पुरे विश्व में विख्यात है हिन्दू धर्म में अनेक देवी देवता हो का बहोत बड़ा एक महत्व है सभी देवी देवता अपने अपने रूपों में जाने जाते है आज हम इन्ही देवताओ में एक कलियुग के अवतारी बाबा श्यामजी के बारे में जान रहे है खाटूश्यामजी को श्री कृष्ण द्वारा वरदान मिला था की जैसे जैसे कलियुग अपने चर्म सीमा में आगे बढ़ेगा वैसे वैसे उनका नाम पूजा जायेगा क्यों की भगवान श्री कृष्ण बर्बरीक के महान बलिदान से काफी प्रशन्न हुए और उन्हये वरदान दिया था की जैसे जैसे कलियुग बढ़ेगा वैसे वैसे तुम्हारा नाम श्याम के नाम से पूजे जाओगे तुम्हारे भक्तो का केवल तुम्हारा सच्चे मन से नाम लेने मात्र से ही उनका उद्धार होता रहेगा यदि भक्त तुम्हारी सच्चे और प्रेम भाव से भक्ति और पूजा करने मात्र से ही उन की हर एक मनोकामना पूर्ण होगी और सभी कार्य सफल होंगे
Khatu Shyam Ji – महाभारत के समय से ही आरंभ होती है। महाभारत के समय श्याम को बर्बरीक के नाम से जाना जाता थे। बर्बरीक अति बलशाली गदाधारी भीम के पुत्र घटोत्कच और दैत्य मूर की पुत्री मोरवी के पुत्र हैं। बाल्यकाल से ही वे बहुत वीर और महान योद्धा थे। बर्बरीक ने युद्ध कला अपनी माँ और भगवान श्री कृष्ण से सीखी थी नौ दूर्गा माता रानी की घोर तपष्या कर के उन्हें प्रशन्न किया और तीन अमोघ बाण प्राप्त किये इसी प्रकार श्याम बाबा को तीन बाणधारी के नाम से भी पुरे विश्व में विख्यात है। अग्नि देव कठोर तपस्या करने के बाद अग्नि देव प्र्शन्न हुए और उन्हें धनुष प्रधान किया अग्निदेव ने जो धनुष प्रधान किया था वो धनुष इतना बलशाली था की वो तीनो लोको में विजय प्राप्त कराने में समर्थ था।
Khatu Shyam Ji – महाभारत का युद्ध कौरव और पांडव के मध्य अपरिहार्य हो गया था, यह समाचार बर्बरीक को प्राप्त हुए तो उनकी भी युद्ध में समलित होने की इच्छा जाग्रत हुई जब वे अपनी माँ से आशीर्वाद प्राप्त करने पहुँचे तब माँ उन को हारे हुए पक्ष का साथ देने का वचन दिया। वे अपने नीले रंग के घोड़े पर सवार होकर तीन बाण और धनुष के साथ कुरूक्षेत्र की रणभूमि की ओर चल पड़े।
Khatu Shyam Ji – जब बर्बरीक अथार्त श्याम बाबा कौरव और पांडव के मध्य जो युद्ध हो रहा था उस समय श्री श्याम बाबा अपनी माँ का आर्शीर्वाद लेकर यूद्ध में शामिल होने जा रहे थे उसी टाइम उन्हें रास्ते के मध्य में सर्वव्यापी सम्पूर्ण जगत के निर्माता भगवान श्री कृष्ण जो एक सादारण मनुष्य की तरह एक ब्रामण की वेशभूसा धारण किये हुए बर्बरीक के बारे में जानने के लिए उन्हें रोका और यह जानकर उनकी हँसी उड़ायी कि वह मात्र तीन बाण से युद्ध में सम्मिलित होने आया है ऐसा सुनकर बर्बरीक ने उत्तर दिया कि मात्र एक बाण शत्रु सेना को परास्त करने के लिए पर्याप्त है और ऐसा करने के बाद बाण वापस तूणीर में ही आएगा। यदि में तीनो बाणो का प्रयोग इसी युद्ध में ले लिया तो सम्पूर्ण ब्रमांड का सर्वनाश हो जायेगा यह जानकर भगवान् कृष्ण ने उन्हें चुनौती दी की इस वृक्ष के सभी पत्तों को वेधकर दिखलाओ।
वे दोनों पीपल के वृक्ष के नीचे खड़े थे। बर्बरीक ने चुनौती स्वीकार की और अपने तूणीर से एक बाण निकाला और ईश्वर को स्मरण कर बाण पेड़ के पत्तों की ओर चलाया। बाण ने क्षणभर में पेड़ के सभी पत्तों को वेध दिया और श्री कृष्ण के पैर के इर्द-गिर्द चक्कर लगाने लगा, क्योंकि एक पत्ता उन्होंने अपने पैर के नीचे छुपा लिया था; बर्बरीक ने कहा कि आप अपने पैर को हटा लीजिए अन्यथा ये बाण आपके पैर को भी वेध देगा। तत्पश्चात, श्री कृष्ण ने बालक बर्बरीक से पूछा कि वह युद्ध में किस ओर से सम्मिलित होगा; Khatu Shyam Ji – बर्बरीक ने अपनी माँ को दिये वचन को दोहराया और कहा युद्ध में जो पक्ष निर्बल और हार रहा होगा उसी को अपना साथ देगा। श्री कृष्ण जानते थे कि युद्ध में हार तो कौरवों की निश्चित है और इस कारण अगर बर्बरीक ने उनका साथ दिया तो परिणाम गलत पक्ष में चला जाएगा। जो सादारण ब्रामण मनुष्य का वेश धारण किये हुए श्री कृष्ण ने बर्बरीक से दान मांगने की इच्छा प्रकट की तो बर्बरीक ने भगवान श्री कृष्ण से वचन किया और उन दान मांगने को कहाँ। ब्रामण का वेश धारण किये हुए श्री कृष्ण ने उनसे सीष का दान माँग लिया वीर बर्बरीक क्षण भर के लिए अचम्भित हुए, परन्तु अपने वचन से अडिग नहीं हो सकते थे। वीर बर्बरीक बोले एक साधारण ब्राह्मण इस तरह का दान नहीं माँग सकता है, अत: ब्रामण से अपने वास्तिवक रूप से अवगत कराने की प्रार्थना की। ब्राह्मणरूपी श्री कृष्ण अपने वास्तविक रूप में आ गये।
Khatu Shyam Ji- श्री कृष्ण ने बर्बरीक को शीश दान मांगने का कारण समझाया युद्ध आरम्भ होने से पूर्व युद्धभूमि पूजन के लिए तीनों लोकों में सर्वश्रेष्ठ क्षत्रिय के शीश की आहुति देनी होती है; इसलिए ऐसा करने के लिए वे विवश थे बर्बरीक ने उन से प्राथना की कि वे अंतिम समय तक युद्ध देकना चाहते है भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक की प्राथना स्वीकार कर ली भगवान श्री कृष्ण बर्बरीक के इस बलिदान से प्रशन्न होकर बर्बरीक को इस युद्ध में वीर की सबसे अलंकृत उपाधि प्रधान की उन के शीश को युद्ध भूमि के पास ही एक पहाड़ी पर सुशोभित किया गया जहा से बर्बरीक समपूर्ण युद्ध का जायजा ले सकते थे। फाल्गुन माह की द्वादशी को उन्होंने अपने शीश का दान दिया था इस प्रकार वे शीश के दानी कहलाये।
Khatu Shyam Ji – इसी लिए भगवान श्री कृष्ण बर्बरीक से अत्यधिक प्रशन्न होकर उन्हे वरदान दिया था की तुम श्याम नाम से जाने जाओगे और जैसे जैसे कलियुग बढ़ेगा वैसे वैसे तुम्हारी पूजा होगी और कलयुग में तुमरा ये नाम श्याम के नाम से सम्पूर्ण जगत में पूजा जायेगा। क्योंकि उस कलयुग में हारे हुए का साथ देने वाला ही श्याम नाम धारण करने में समर्थ है।
Khatu Shyam Ji – उन का शीश खाटू नगर में दफ़नाया गया था इसलिए इन्हे खाटूश्याम बाबा कहाँ जाता है आज वर्तमान समय में खाटू श्याम बाबा का मंदिर भारत देश के राजस्थान प्रदेश में सीकर जिले के एक छोटे से गांव खाटू नगर जहाँ श्याम बाबा का मंदिर स्तिथ है जो सम्पूर्ण विश्व में प्रसिद्ध है श्याम बाबा के मंदिर का निर्माण इस प्रकार से हुआ है की।
Khatu Shyam Ji – जिस स्थान पर शीश को दफनाया गया था खाटूनगरी में उस स्थान पर प्रतिदिन एक गौ माता आती थी और अपने स्तनों से दुग्ध की धरा स्वतः ही बहा रही थी। बाद में खुदाई के बाद वो शीश प्रकट हुआ जिसे कुछ दिनों के लिए एक ब्रह्माण को सूपुर्द कर दिया गया। एक बार खाटू नगर के राजा को स्वप्न में मन्दिर निर्माण के लिए और वह शीश मन्दिर में सुशोभित करने के लिए प्रेरित किया गया। तदन्तर उस स्थान पर मन्दिर का निर्माण किया गया और कार्तिक माह की एकादशी को शीश मन्दिर में सुशोभित किया गया, जिसे बाबा श्याम के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। मूल मंदिर 1027 ई. में रूपसिंह चौहान और उनकी पत्नी नर्मदा कँवर द्वारा बनाया गया था। मारवाड़ के शासक ठाकुर के दीवान अभय सिंह ने ठाकुर के निर्देश पर 1720 ई. में मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। मंदिर इस समय अपने वर्तमान आकार ले लिया और मूर्ति गर्भगृह में प्रतिस्थापित किया गया था। मूर्ति दुर्लभ पत्थर से बना है। खाटूश्याम, परिवारों की एक बड़ी संख्या के कुलदेवता है।
तत्सतथेती तं प्राह केशवो देवसंसदि !
शिरस्ते पूजयिषयन्ति देव्याः पूज्यो भविष्यसि
Khatu Shyam Ji – भावार्थ: “उस समय देवताओं की सभा में श्री हरी ने कहा— हे वीर! ठीक है, तुम्हारे शीश की पूजा होगी और तुम देवरूप में पूजित होकर प्रसिद्धि पाओगे।”
वहाँ उपस्थित सभी लोगों को इतना वृत्तान्त सुनाकर देवी चण्डिका ने पुनः कहा— “अपने अभिशाप को वरदान में परिणति देख यक्षराज सूर्यवर्चा उस देवसभा से अदृश्य हो गये और कालान्तर में इस पृथ्वी लोक में महाबली भीम के पुत्र घटोत्कच एवं मोरवी के संसर्ग से बर्बरीक के रूप में जन्म लिया। इसलिए आप सभी को इस बात पर कोई शोक नहीं करना चाहिए और इसमें श्री कृष्ण का कोई दोष नहीं है।”
स्कन्द पुराण के अनुसार श्लोक संख्या 66 71 72 के अनुसार कहा गया है
इत्युक्ते चण्डिका देवी तदा भक्त शिरस्तिव्दम !
अभ्युक्ष्य सुधया शीघ्र मजरं चामरं व्याधात !!
यथा राहू शिरस्त्द्वत तच्छिरः प्रणामम तान !
उवाच च दिदृक्षामि तदनुमन्यताम !!
Khatu Shyam Ji – ऐसा कहने में आता है की चण्डिका देवी ने उस भक्त वीर बर्बरीक के के शीश को जल्दी से अमृत से अभ्युक्ष्य (छिड़क) कर राहू के शीश की तरह अजर और अमर बना दिया और इस नविन जागृत शीश ने उन सबको प्रणाम किया और कहा— “मैं युद्ध देखना चाहता हूँ, आपलोग इसकी स्वीकृति दीजिए।”
Khatu Shyam Ji – ऐसा मत हमे स्कन्द पुराण में देकने को मिलता है
भगवान श्री कृष्ण ने स्कन्द पुराण के श्लोक 66 73 74 में ये बतया है की
ततः कृष्णो वच: प्राह मेघगम्भीरवाक् प्रभु: !
यावन्मही स नक्षत्र याव्च्चंद्रदिवाकरौ !
तावत्वं सर्वलोकानां वत्स! पूज्यो भविष्यसि !!
Khatu Shyam Ji – भगवान मेघ के समान गम्भीरभाषी भगवान श्री कृष्ण ने कहा है की -”हे वत्स” जब तक ये पृथ्वी आकाश सूर्य नक्षत्र चन्द्रमा है तब तक तुम सब के लिए पूजनीय हो
स्कन्द पुराणों के अनुसार ऐसे मत आज भी देकने को मिलते है और स्कन्द पुराण के अनुसार माना गया है की आज भी बाबा श्याम का शीश अजर अमर है
Khatu Shyam Ji – खाटू श्यामजी की आरती का शुद्ध उच्चारण और खाटूश्यामजी की कथा करने से सभी प्रकार के पापो से छुटकारा है। हर प्रकार की दुःख दर्द पीड़ा दूर होती है खाटू श्याम जी की आरती सुबह शाम दोनों टाइम करना चाहिए साफ़ स्वच्छ कपडे पहन कर आरती करते समय श्याम बाबा की प्रतिमा लगा कर दीपक अगरबत्ती नैवेद्य आदि का बोग लगा कर साफ़ एवं स्वच्छ जगह पर बैठ कर करना चाइये जिस से शीश के दानी श्याम प्यारे जल्दी अपने भक्तो से प्रसन्न होते है
(खाटूश्यामजी आरती)
(khatu shyamji aarti)
ॐ जय श्री श्याम हरे,
बाबा जय श्री श्याम हरे।
खाटू धाम विराजत,
अनुपम रूप धरे॥
ॐ जय श्री श्याम हरे…॥
रतन जड़ित सिंहासन,
सिर पर चंवर ढुरे ।
तन केसरिया बागो,
कुण्डल श्रवण पड़े ॥
ॐ जय श्री श्याम हरे…॥
गल पुष्पों की माला,
सिर पार मुकुट धरे ।
खेवत धूप अग्नि पर,
दीपक ज्योति जले ॥
ॐ जय श्री श्याम हरे…॥
मोदक खीर चूरमा,
सुवरण थाल भरे ।
सेवक भोग लगावत,
सेवा नित्य करे ॥
ॐ जय श्री श्याम हरे…॥
झांझ कटोरा और घडियावल,
शंख मृदंग घुरे ।
भक्त आरती गावे,
जय-जयकार करे ॥
ॐ जय श्री श्याम हरे…॥
जो ध्यावे फल पावे,
सब दुःख से उबरे ।
सेवक जन निज मुख से,
श्री श्याम-श्याम उचरे ॥
ॐ जय श्री श्याम हरे…॥
श्री श्याम बिहारी जी की आरती,
जो कोई नर गावे ।
कहत भक्त-जन,
मनवांछित फल पावे ॥
ॐ जय श्री श्याम हरे…॥
जय श्री श्याम हरे,
बाबा जी श्री श्याम हरे ।
निज भक्तों के तुमने,
पूरण काज करे ॥
ॐ जय श्री श्याम हरे…॥
ॐ जय श्री श्याम हरे,
बाबा जय श्री श्याम हरे।
खाटू धाम विराजत,
अनुपम रूप धरे॥
ॐ जय श्री श्याम हरे…॥
(खाटू श्याम जी पुष्पांजलि)
हाथ जोड़ विनती करू तो सुनियो चित्त लगाये
दस आ गयो शरण में रखियो इसकी लाज
धन्य ढूंढारो देश हे खाटू नगर सुजान
अनुपम छवि श्री श्याम की दर्शन से कल्याण
श्याम श्याम तो में रटूं श्याम हैं जीवन प्राण
श्याम भक्त जग में बड़े उनको करू प्रणाम
खाटू नगर के बीच में बण्यो आपको धाम
फाल्गुन शुक्ल मेला भरे जय जय बाबा श्याम
फाल्गुन शुक्ला द्वादशी उत्सव भरी होए
बाबा के दरबार से खाली जाये न कोए
उमा पति लक्ष्मी पति सीता पति श्री राम
लज्जा सब की रखियो खाटू के बाबा श्याम
पान सुपारी इलायची इत्तर सुगंध भरपूर
सब भक्तो की विनती दर्शन देवो हजूर
आलू सिंह तो प्रेम से धरे श्याम को ध्यान
श्याम भक्त पावे सदा श्याम कृपा से मान
जय श्री श्याम बोलो जय श्री श्याम
खाटू वाले बाबा जय श्री श्याम
लीलो घोड़ो लाल लगाम
जिस पर बैठ्यो बाबो श्याम
॥ॐ श्री श्याम देवाय नमः॥