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जगन्नाथ पूरी रथ यात्रा कब है 2023, महत्व , मूर्ति का रहस्य – जानिए क्या चमत्कार है इस मंदिर मर

जगन्नाथ पूरी रथयात्रा 2023
January 24, 2022

जगन्नाथ पूरी रथ यात्रा का क्या महत्व है , 2023  में कब है ये यात्रा।

 

भगवान जगन्नाथ पूरी रथ यात्रा की महिमा भारत वर्ष  में एक पर्व के रूप में देखि जाती है। इस वर्ष 2023  में पूरी रथयात्रा अषाढ़ माह (जून महीने) के शुक्त पक्ष के दुसरे दिन 20 जून 2023 शुक्रवार  के दिन निकाली जाएगी। यूं तो भारत वर्ष में बहुत से मंदिर प्रसिद्ध हैं। बहुत सी प्रतिमाएं प्रसिद्ध हैं। हमारे धर्म शास्त्रों के अनुसार यह हमारे लिए सौभाग्य की बात है कि हम प्रभु की कृपा के कारण उनके दिव्य मंदिरों से जुड़े हुए हैं। भारतवर्ष में मंदिरों की प्रतिष्ठा कभी कम नहीं होगी ऐसा तीनों कालों में निहित रहेगा। ऐसी मान्यताएं  हमारे धर्म शास्त्रों में ऋषि-मुनियों ने पहले ही तय कर दी थी। दोस्तों आज हम जिस प्रतिमा की बात करने जा रहे हैं। वह कोई साधारण प्रतिमान नहीं है। उसकी दिव्यता की छवि आज पूरे भारतवर्ष में ही नहीं पूरे विश्व भर में  विख्यात हैं। जी हां हम बात कर रहे हैं। उड़ीसा के पुरी में बसने वाले भगवान जगन्नाथ की। भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा अपने आप में एक अलग ही पहचान सकती है। जब भी भगवान जगन्नाथ का नाम लिया जाता है। तो इनकी प्रतिमा का ध्यान जरूर आता है और यह प्रश्न भी उठता है कि आखिर भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा इतनी विकृत   क्यों है? यह प्रश्न तो आपके मन में भी उठ रहा होगा कि आखिर  भगवान जगन्नाथ  की प्रतिमा का रहस्य क्या है?

दोस्तों, आज इस आर्टिकल में आप भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा के रहस्य के साथ-साथ पूरी में होने वाली जगन्नाथ यात्रा का विस्तार से विवरण इस लेख में जाने वाले हैं। अतः आपसे निवेदन है किआस्था के साथ इस लेख को ध्यानपूर्वक पढ़ें। आइए जानते हैं, भगवान जगन्नाथ के बारे में विशेष तथ्यऔर जगन्नाथ पूरी रथ यात्रा के सन्दर्भ में ।

 

जगन्नाथ पूरी रथ यात्रा 2023  कब है और क्यों निकली जाती है 

 

दोस्तों, ओडिशा के पुरी में 21 दिन चलने वाली चंदन यात्रा, नरेंद्र सरोवर से पहले ही शुरू हो गई है। इस यात्रा के साथ-साथ भगवान जगन्नाथ की यात्रा के रथ भी सुसज्जित होना शुरू हो चुके हैं। आपको बता दें जगन्नाथ रथ यात्रा के रथ 10 दिन पहले ही सजने सवरने शुरू हो चुके हैं। दोस्तों इस बार भगवान जगन्नाथ पूरी की रथ यात्रा अषाढ़ माह (जून महीने) के शुक्त पक्ष के दुसरे दिन 21 जून 2023  को भव्य आयोजन के साथ निकालने की यथासंभव कोशिश रहेगी। क्योंकि गत वर्ष कोरोना काल के चलते कुछ पुजारियों और कार्यकर्ताओं ने ही विश्व प्रसिद्ध पूरी यात्रा को संपन्न किया था। अगर कोरोना काल का संकट इसी तरह रहा तो शायद इस बार भी कुछ ऐसा ही हो। हो सकता है इस बार भी भगवान जगन्नाथ बिना भक्तों के ही यात्रा करें। दोस्तों आपको बता दें जो भी भगवान जगन्नाथ पूरी रथ यात्रा में शामिल होते हैं। उनकी आस्था विश्वास और दृढ़ता इतनी मजबूत होती है। कि उन्हें कभी निराशा जीवन में दिखाई ही नहीं देती। ऐसे दिव्य क्षण में भक्तों का उपस्थित होना बहुत दुर्लभ है। परन्तु आस्था की शक्ति के आगे ईश्वर खुद मजबूर हो जाते है।  

दोस्तों, यात्रा से जुड़ी विशेष और भव्य तैयारियां शुरू की जा चुकी है। रथयात्रा से संबंधित अनुष्ठान अक्षय तृतीया 01 मई 2023  से शुरू हो चुकी है। तथा रथों के लिए काष्ठ का चयन बसंत पंचमी के दिन से शुरू होता है और उनका निर्माण अक्षय तृतीया से प्रारम्भ होता है।

जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा की विशेषता क्या है ?

दोस्तों, भगवान जगन्नाथ अर्थात भगवान श्री कृष्ण की प्रतिमा ही जगन्नाथ के नाम से विख्यात है। इस यात्रा में बलराम, श्रीकृष्ण और सुभद्रा के लिए, तीन अलग-अलग रथ निर्मित किए जाते हैं। इस यात्रा की विशेष बात यह है कि सबसे आगे भगवान श्री कृष्ण के दाऊ अर्थात बलराम का रथ होता है। बीच में बहन सुभद्रा का और अंत में जगन्नाथ अर्थात भगवान श्री कृष्ण का रथ होता है। इनकी मूर्तियों और रंग की पहचान इतनी आकर्षक है कि इन्हें देखते ही पहचान लिया जाता है।  कि कौन सा रथ भगवान जगन्नाथ का है। अर्थात भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा विशाल होने के कारण दूर से ही बड़ी दिखाई देती है।

 इस रथ यात्रा में महत्वपूर्ण तथ्य यह है की भगवान जगन्नाथ का नंदीघोष रथ 45.6 फीट ऊंचा, बलरामजी का तालध्वज रथ 45 फीट ऊंचा और देवी सुभद्रा का दर्पदलन रथ 44.6 फीट ऊंचा होता है। बलरामजी के रथ को ‘तालध्वज’ कहते हैं, जिसका रंग लाल और हरा होता है। और बीच में चलने वाले सुभद्रा  का रथ ‘दर्पदलन’ या ‘पद्म रथ’ के नाम से विख्यात है। तथा भगवान जगन्नाथ के रथ को ‘ नंदीघोष’ या ‘गरुड़ध्वज’ कहते हैं। इसका रंग लाल और पीला होता है।

पूरी यात्रा के तीनो रथ शुद्ध नीम की लकड़ी के बने होते हैं। नीम की लकड़ी का चयन एक विषय सीमित द्वारा किया जाता है।

 यह रथ यात्रा आषाढ़ माह की शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि को आरम्भ होती है। भक्तों को इस यात्रा में इतना आनंद आता है। कि शायद उन्हें हर साल इसी का बेसब्री से इंतजार रहता है। भक्तगण इन रथों को ढोल, नगाड़ों, तुरही और शंखध्वनि के बीच खींचते हैं।

पुरी रथ यात्रा से एक दिलचस्प तथ्य यह भी जुड़ा हुआ है जिन्हें रथ को खींचने का अवसर प्राप्त होता है, वह महाभाग्यवान माना जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, रथ खींचने वाले को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

 

 भगवान जगन्नाथ की मूर्ति का रहस्य तथा जगन्नाथ रथ यात्रा से जुड़ी कथा

 

दोस्तों कहते हैं, जब भगवान श्री कृष्ण का माया काल पूर्ण हुआ तो वह अपनी देह को त्याग कर बैंकुठ को प्रस्थान कर गए। उनकी देह को पांडवों ने विधि विधान और दिव्य आयोजन से उनका अंतिम संस्कार किया। कहते हैं कि जब भगवान श्री कृष्ण की देह जल रही थी तब पूर्ण शरीर जलने के बाद उनका दिल जलता ही रहा। पांडवों ने उस दिल को जल में प्रवाहित कर दिया और वह दिल एक दिव्य  लकड़ी अर्थात लट्ठ के रूप में परिवर्तित हो गया। वह बहती हुई लट्ठा राजा इंद्रदयुम्न को मिल गया और उन्होंने भगवान जगन्नाथ की मूर्ति के अंदर इसे स्थापित कर दिया। तब से वह यहीं है।

हिंदू शास्त्रों में यह भी विधान है कि इन मूर्तियों को हर 12 वर्ष में परिवर्तित किया जाता है और इस दिव्य लकड़ी को निकाल कर दूसरी नई मूर्तियों में स्थापित किया जाता है। इससे जुड़ी रोचक बात यह है कि आज भी हर 12 वर्ष से इन मूर्तियों को परिवर्तित किया जाता है। परंतु कोई भी पूजारी इन मूर्तियों में से वो लकड़ी आंखों से देख कर नहीं निकालते उनकी आंखों पर पट्टी बांध दी जाती है। और हाथों को कपड़े से ढक दिया जाता है। पुजारियों का अनुभव कहता है कि वह लकड़ी बहुत ही कोमल है। इस तरह उस लकड़ी को नई मूर्तियों में प्रतिष्ठित किया जाता है और दिव्य और भव्य आयोजन के साथ उन मूर्तियों को पुनः मंदिर में  प्रतिष्ठित कर दिया जाता है।

 

भगवान जगन्नाथ की मूर्ति का रहस्य क्या है 

 

हिंदू शास्त्रों में विदित पौराणिक कथाओं के अनुसार विश्व के सुप्रसिद्ध शिल्पी भगवान विश्वकर्मा जी ने राजा इंद्रदयुम्न से शर्त रखी थी कि वह भगवान जगन्नाथ की मूर्ति एक बंद कमरे में ही बनाएंगे। अगर कोई भी मुझे मूर्ति बनाते हुए देख लेगा तो यह मूर्तियां अधूरी रह जाएगी। राजा ने वह शर्त मान ली और भगवान विश्वकर्मा ने मूर्तियां बनाना शुरू कर दी। राजा इंद्रद्युम्न  रोज उस कमरे के दरवाजे के पास आकर मूर्तियां बनाने की आवाज सुना करता था।

 एक दिन जब वह दरवाजे के पास टहल रहा था तो उन्हें मूर्तियां बनाने की आवाज सुनाई नहीं दी। राजा के मन में शंका हुई कि शायद भगवान विश्वकर्मा पूरी मूर्तियां बना चुके हैं या फिर उन्होंने मूर्तियां बनाना बंद कर दिया है। राजा के मन में शंका उत्पन्न हो रही थी ,तो उन्होंने तुरंत दरवाजा खोलकर देखा। इतने में भगवान विश्वकर्मा मूर्तियों का काम छोड़कर तुरंत अंतर्ध्यान हो गए और भगवान जगन्नाथ बलराम और सुभद्रा की मूर्तियां अधूरी ही रह गई। आज भी यह मूर्तियां उसी आकार में है और उसी रूप में उनकी पूजा की जाती है। आज के समय में भी उन्हीं मूर्तियों की प्रतिमा बनाकर प्रतिष्ठित किया जाता है। तो दोस्तों यह थी भगवान जगन्नाथ पुरी की रथ यात्रा से जुड़ी हुई कथा।

 

जगन्नाथ पुरी में रथ यात्रा की शुरुआत कैसे हुई ?

 

 दोस्तों, अनेक धार्मिक ग्रंथो और काफी विद्वानों में इस यात्रा को लेकर मतभेद सामने आता है। इस बात को किसी धर्म ग्रंथ में स्पष्ट नहीं किया गया कि जगन्नाथ पुरी में रथ यात्रा का वास्तविक तथ्य क्या है ? वास्तविक कारण क्या है ? आज हम कुछ कारणों के बारे में बात करें तो यह सामने आता है कि जब सुभद्रा अपने भाइयों से मिलने द्वारिका आती है, तो उन्होंने भगवान श्री कृष्ण और बलराम से   नगर भ्रमण कि जिद्द की। तभी भगवान श्री कृष्ण ने बलराम के साथ दिव्य रथ सजाएं और तीनों रथों में बैठकर पूरे नगर में भ्रमण किया। तब बहन सुभद्रा अपनी मौसी देवी कृष्ण से गुंडीचा में मिलने जाती है। मौसी के जिद करने पर तीनों 10 दिन के लिए मौसी के घर ही रहते हैं। जब 10 दिन के बाद वह पुन: द्वारिका लौटते हैं उस दिन को ग्यारस के रूप में मनाया जाता है। जब भगवान 10 दिनों के बाद द्वारिकापुरी पर लौटे तो भव्य स्वागत किया गया उसी दिन से  जगन्नाथ रथ यात्रा शुरू होने की कथा प्रचलित है।

कुछ विद्वानों और धर्म ग्रंथों के टीका कारों का मानना है कि जब भगवान कंस को मार कर वापस द्वारिका लौटे थे। तब द्वारिका वासियों ने भव्य रथ में बैठा कर भगवान श्री कृष्ण का द्वारिका में स्वागत किया था। उस दिन से जगन्नाथपुरी में रथ यात्रा निकाली जाती है।

इसी के चलते एक मान्यता यह भी है कि कृष्ण की रानियां माता रोहिणी से निवेदन करती है, कि वह कृष्ण की रासलीला सुनाएं। परंतु रानिया नहीं चाहती थी कि सुभद्रा उस रासलीला को अपने कानों से सुने। तभी रोहिणी ने  भगवान श्री कृष्ण के साथ बलराम और सुभद्रा को नगर भ्रमण के लिए भेज दिया और वह नगर भ्रमण इतना दिव्य और भव्य था कि उसे देख कर स्वयं नारद जी वहां पर प्रकट हुए और भगवान से निवेदन करते हैं, कि हे प्रभु आपके दर्शन भक्तों को हर बार ऐसे ही होते रहे ऐसा आशीर्वाद प्रदान करें। तब से जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा का शुभारंभ माना जाता है।

दोस्तों, आपको यह बता दें कि यह सभी तथ्य सही है या गलत यह तो हम कह नहीं सकते। परंतु भगवान जगन्नाथ पूरी रथयात्रा भारतवर्ष में अलग ही पहचान  रखती है। पूरी यात्रा में देश से ही नहीं विदेशों से भी पर्यटक बड़ी उत्सुकता के साथ इस यात्रा को देखने के लिए लालायित रहते हैं। मान्यता हैं जो भी इस रथयात्रा का रस्सा खींचता है उसे अभीष्ट फलों की प्राप्ति होती है। इसलिए सभी श्रद्धालु उस रस्से को जरूर छूना चाहते हैं। ऐसा करने से सभी श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूरी होती है।

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