लेख सारणी
होलिका दहन पूरे भारतवर्ष में मनाए जाने वाला प्रसिद्ध त्योहार है, इसे छोटी होली के नाम से जाना जाता है। इस दिन जलाए जाने वाली आग राक्षसी होलिका के जलने का प्रतीक होती है और इसलिए इसे जलाने वाली होली व कामदु पियरे कहा जाता है। होलिका दहन के मुहूर्त का शुभ समय भद्र तीर्थ की व्यापकता के अनुसार निकाला जाता है। जिस समय पूर्णिमा तिथि चल रही हो, उस तिथि के दिन शाम के समय में प्रदोष काल के मुहूर्त के जानकर होलिका दहन की चिता को जलाया जाता है। सामान्य रूप में सूर्यास्त के बाद ही प्रदोष काल का मुहूर्त आरम्भ होता है। इस दिन के मुहूर्तों का ज्ञान होना अति आवश्यक है।
साल 2022 में 17 मार्च को गुरूवार के दिन छोटी होली का पर्व मनाया जाएगा। इस वर्ष होलिका दहन के दिवस पर चार शुभ योग बन रहे हैं, जिसके बारे में हम आपको बाद में बताएंगे। पहले इस दिन से सम्बंधित मुहूर्तों के बारे में जान लेते है। वर्तमान वर्ष में होलिका दहन के मुहूर्त की अवधि 1 घंटे 10 मिनट की रहेगी और मुहूर्त काल कुछ इस प्रकार से रहेगा।
होलिका दहन के शुभ मुहूर्त का समय रविवार को शाम 09 बजकर 06 मिनट 38 सेकंड पर आरंभ होकर उसी रात 10 बजकर 16 मिनट 23 सेकंड पर समाप्त हो जाएगा।
पूर्णिमा तिथि शुरू: 17 मार्च, गुरूवार को दोपहर 1:29 बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त: 18 मार्च, शुक्रवार को दोपहर 12:47 बजे
भद्रा पुंछा का मुहूर्त शाम 09:06 बजे से 10:16 बजे तक है।
भद्रा मुखा का मुहूर्त रात्री 10:16 बजे से मध्यरात्री 12:47 बजे तक है।
इसके साथ 18 मार्च के दिन शुक्रवार को रात 12 बजकर १३ मिनट पर भद्रा का समापन हो जाएगा। इसलिए साल 2021 में होलिका दहन प्रदोष व्रत में किए जाने पर बहुत फलदायी और शुभ रहने वाला है। इतना ही नहीं इस साल वृद्धि योग, सर्वार्थ सिद्धि योग, ध्रुव योग और अमृत सिद्धि योग भी बन रहे है। वृद्धि योग में किये गए कार्य से लाभ और काम में बढ़ोतरी मिलती है। यह योग व्यापार के लिए बहुत लाभदायक है।
सर्वार्थ सिद्धि योग में मनुष्य द्वारा किया गए अच्छे काम से पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन किए जाने वाले कार्य में सिद्धि मिलती है। अमृत सिद्धि योग अधिकतर इस योग के साथ ही बनता है। इस योग में किए कार्यों में सफलता निश्चित ही प्राप्त होती है। इसलिए इन दोनों समय में शुभ काम करने चाहिए और गरीबों को भोजन कराना व दान देना चाहिए।
ध्रुव योग चन्द्रमा और राशियों पर सकारात्मक प्रभाव डालता है। इस योग के चलते मंगल और राहु ग्रह वृषभ राशि में, बुध ग्रह कुम्भ राशि में और केतु ग्रह वृश्चिक राशि में स्थित होता है।
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