जयपुर जिसे छोटी काशी के नाम से भी जाना जाता है। यहां भव्य मंदिरों की कोई कमी नहीं है। इन ही भव्य मंदिरों में से एक है गोविंद देव जी का मंदिर जो भगवान श्री कृष्ण को समर्पित है। गौड़ीय वैष्णव परंपरा का ऐतिहासिक गोविंद देव जी का मंदिर राजस्थान की राजधानी जयपुर के सिटी पैलेस में स्थित है। गोविंद देव जी का मंदिर भगवान श्री कृष्ण और राधा रानी को समर्पित है।
मंदिर के देवताओं को तत्कालीन जयपुर के संस्थापक महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय द्वारा यूपी के वृंदावन से लाया गया था। यह वैष्णव मंदिर भक्तजनों के लिए सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक है। लोकप्रिय कहानियों के अनुसार गोविंद जी को “बजरकृत” कहा जाता है क्योंकि इसे भगवान श्री कृष्ण के पोते द्वारा बनवाया गया था। आज से लगभग 5000 साल पहले जब “ बजरानाभ ” की आयु लगभग 13 साल रही होगी तब उन्होंने अपनी दादी यानी कि कृष्ण की बहू से पूछा कि भगवान श्री कृष्ण कैसे दिखते थे। तब उन्होंने भगवान श्री कृष्ण का विवरण दिया यह विवरण 3 पंक्तियों में दिया गया था। पहली पंक्ति में श्री कृष्ण के पैरों का विवरण दिया गया। दूसरी छवि में श्री कृष्ण की छाती का और तीसरी छवि में श्री कृष्ण के चेहरे के बारे में विवरण दिया गया। जब वह पृथ्वी पर अवतरित हुए थे। उसी के आधार पर पहली छवि को “भगवान मदन मोहन जी” के रूप में जाने जाने लगा और दूसरी छवि को “भगवान गोपीनाथ जी”कहा गया और इसी तरह तीसरे छवि को “गोविंद देव जी”के नाम से विश्व प्रसिद्ध हो गई जिसमें उनके चेहरे के स्वरूप को वर्णित किया गया है और यही है हमारे गोविंद देव जी।
जैसे-जैसे समय बीतता गया यह पवित्र दिव्य चित्र कहीं लुप्त हो गए थे। लगभग आज से 500 साल पहले वैष्णव संत और उपदेशक श्री पूज्य चैतन्य महाप्रभु ने अपने एक शिष्य को गोविंद देव जी की मूर्ति की खुदाई करने को कहा जिसे आक्रमणकारियों से बचाने के लिए दफनाया गया था।
विष्णु भक्तों के लिए श्री राधा गोविंद देव जी का मंदिर वृंदावन के बाहर सबसे महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक है। गोविंद देव जी का मंदिर के बाहर पूजन सामग्री और गोविंद देव जी से संबंधित वस्तुएं जैसे कि मोर पंख, लड्डू गोपाल जी पोशाक, शंख इत्यादि उपलब्ध हो जाती है। इसी के साथ गोविंद देव जी के सुंदर तस्वीरें भी देखने को मिलेगी।
गोविंद देव जी का मंदिर का इतिहास History of The Temple of Govind Dev Ji
भगवान श्री कृष्ण के स्वरूप में से एक गोविंद देव जी आमेर के कछुआ राजवंश के मुख्य देवता है। और जयपुर शासकों के इतिहास से जुड़े हुए हैं। ऐसा माना जाता है कि मूल रूप से गोविंद देव जी की मूर्ति वृंदावन के एक मंदिर से थी। 17 वीं शताब्दी मी मुगल शासक औरंगजेब द्वारा हिंदू मंदिरों को तोड़कर और मूर्तियों को नष्ट करने आदेश दिया गया था। लगभग उसी समय वृंदावन में श्री शिवराम गोस्वामी द्वारा गोविंद जी की मूर्ति की देखभाल की गई थी। मूर्ति को बचाने के लिए श्री शिवराम गोस्वामी मूर्तियों को लेकर वृंदावन से भरतपुर आ गए। क्योंकि भगवान श्री गोविंद जी महाराज ,शासक वंश के प्रमुख देवता थे। इसलिए आमेर के तत्कालीन शासक महाराजा सवाई जयसिंह द्वारा मूर्ति को सुरक्षा प्रदान करने का जिम्मा लिया और इसमें आमेर की घाटी में सुरक्षित कर दिया गया। जिसके बाद में इस जगह को कनक वृंदावन के नाम से भी जाने जाने लगा। क्योंकि आमेर के शासक मुगल दरबार की सेवा करते थे। इसलिए मुगलों के साथ किसी भी प्रकार का प्रतिरोध का जोखिम नहीं उठा सकते थे। इसलिए उसने मूर्ति को खुले में नहीं रखा और ना ही किसी को इसके बारे में पता लगने दिया।
इसके बाद 1735 सूर्य महल मैं राजा सवाई जयसिंह द्वारा मूर्ति की स्थापना की गई। ऐसा माना जाता है कि ऐसा करने के लिए उन्हें स्वंय भगवान ने उन्हें सपने में आकर निर्देश दिया था। इसी के साथ महाराजा सवाई सिंह ने संपूर्ण सूरज महल को भगवान गोविंद देव जी को समर्पित कर दिया और खुद नए महल में रहने लग गए। जिसे चंद्र महल के नाम से भी जाना जाता है और बाद में सूरज महल का नाम बदलकर गोविंद देव जी मंदिर कर दिया गया।
झांकी |
समय |
मंगला झांकी |
4:45 to 5:15 AM |
धुप झांकी |
7:45 to 9:00 AM |
श्रृंगार झांकी |
9:30 to 10:15 AM |
राजभोग झांकी |
11:00 to 11:30 AM |
ग्वाल झांकी |
17:30 to 18:00 PM |
संध्या झांकी |
18:30 to 19:45 PM |
शयन झांकी |
20:45 to 21:15 PM |
मंदिर का दर्शन समय और आरती Temple Darshan Timings and Aarti
गोविंद देव जी का मंदिर भक्तों के लिए ग्रीष्म काल में सुबह 4:30 से दोपहर 12:00 बजे तक और शाम को 5:30 से 9:30 तक खुला रहता है। और इसी तरह सर्दियों में सुबह 5:00 से 12:30 तक और शाम को 5:00 से 8:30 बजे तक खुला रहता है।
गोविंद देव जी का मंदिर मे आरती का समय 30 मिनट से 45 मिनट के बीच होता है। जो कि गर्मी और सर्दी के अनुसार बदलता रहता है। गर्मियों के दौरान सुबह की मंगल आरती 4:30 बजे शुरू होती है उसके बाद धूप और शृंगार आरती क्रमश 7:30 को 9:30 बजे होती है।
इसी प्रकार गोविंद देव जी का मंदिर में भगवान को भोग दोपहर 11:00 बजे से 11:30 तक चलता है इसे ‘राजभोग’ को कहा जाता है। इसी प्रकार संध्या आरती शाम 6:00 बजे होती है। और शयन आरती रात्रि 9:00 बजे होती है।