चाणक्य के अनुसार धर्म क्या है – Chanakya Ke Anusar Dharm Kya Hai
चाणक्य के अनुसार धर्म क्या है
चाणक्य के अनुसार धर्म क्या है – चाणक्य ने सार्वजनिक रूप से धर्म के बारे में अपने विचार प्रस्तुत किये हैं। यहां उन्होंने किसी भी धर्म की निंदा नहीं की और ना ही प्रशंसा की है। उनके विचार प्रत्येक धर्मावलंबी के लिए उपयोगी माने जाते है। धर्म क्या है? धर्म कैसा हो? धर्म से मानवता का कितना गहरा संबंध है? तो दोस्तों आइए आज हम जानेंगे की चाणक्य के अनुसार धर्म क्या है
चाणक्य के अनुसार धर्म क्या है –आचार्य चाणक्य कहते है मैं तीनों लोकों के स्वामी भगवान श्री विष्णु को प्रणाम करता हूं। अनेक शास्त्रों से राजनीति के विषय की बातों को उद्धृत करके जन कल्याण व इस जग के हित के लिए कहता हूं। मेरे इस कार्य में भगवान् श्री विष्णु मेरी सहायता करें। एवं मुझे शक्ति भी प्रदान करें।
- प्रत्येक मनुष्य के हृदय में देवता निवास करते हैं। साधारण बुद्धि वाले व्यक्ति के लिए मूर्ति ही देवता है। और समदर्शियों वाले व्यक्तियों लिए सब स्थान में देवता ही दिखाई पड़ते हैं। समान भाव से व्यवहार रखने वाले व्यक्ति को कण-कण में देवता नजर आते हैं। ऐसे व्यक्तियों के लिए समस्त संसार ही ईश्वरमय होता है।
- दान करना अध्ययन करना आदि कर्म से अपने दिन को सार्थक बनाना चाहिए। किसी भी एक श्लोक के आधे को या उस आधे से भी आधे श्लोक को प्रतिदिन मनन करना चाहिए ये मनुष्य के लिए लाभकारी होता है।
चाणक्य के अनुसार धर्म क्या है – कहने का अर्थ यह है कि मनुष्य को सदैव कुछ न कुछ करते ही रहना चाहिए। दान करने में एवं अध्ययन करने में अपना समय जरूर लगाना चाहिए। रोज थोड़ा-थोड़ा करके ही बहुत कुछ व्यक्ति द्वारा याद किया जा सकता है। प्रतिदिन कम से कम इतना सा करके ही मनुष्य बहुत कुछ अपने मष्तिष्क में याद कर सकता है।
- जिस व्यक्ति को धर्म-अर्थ, काम तथा मोक्ष इनमें से कोई भी फल न प्राप्त हुआ हो, तो उस मनुष्य का मानव रूप में जन्म लेना केवल मरने के लिए ही है। ऐसे मनुष्य का जन्म लेना ही व्यर्थ है।
- जब तक व्यक्ति का शरीर स्वस्थ है। तब तक पुण्य कर्म कर लो। मृत्यु के आ जाने पर प्राण का अंत तो हो ही जाएगा। फिर उस समय कुछ भी पुण्य प्राप्त नहीं कर पाओगे। मनुष्य को अपने जीवन में समय रहते इसका लाभ लेना चाहिए।
- मानव के जीवन में सबकुछ सत्य पर ही निर्भर है। सत्य को ही सनातन मानते है। सत्य के अतिरिक्त शेष सब के सब मिथ्या है। मनुष्य को अपने जीवन में सदा सत्य का ही सहारा लेना चाहिए। व्यक्ति केवल एक सत्य के बल पर ही मनुष्य वह आपमें जीवन के हर क्षेत्र में विजय को प्राप्त कर सकता है।
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