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सभी धर्मों में सुबह जल्दी उठने को कहा जाता है। हिंदू धर्म में सभी महत्वपूर्ण कार्याें और बड़ी वस्तुओं को मुहूर्त के समय खरीदना शुभ माना जाता है। इस प्रकार पुराणों व ज्योतिष शास्त्र के अनुसार एक दिन में पूरे 30 मुहूर्त आते हैं। सूर्योदय होने से पहले ब्रह्म मुहूर्त आता है जिसे नींद त्याग करके ज्ञान को प्राप्त करने के लिए बहुत शुभ समय माना जाता है। रात्रि के चौथे प्रहर को ब्रह्म मुहूर्त कहा जाता है। सूर्योदय से पहले ब्रह्म मुहूर्त और विष्णु मुहूर्त आते हैं जिसमें प्राचीन काल से ब्रह्म मुहूर्त में सुबह उठकर ऋषि मुनि अपने दिन की शुरुआत करते आ रहे हैं।
चौबीस घंटे के 30वें भाग अर्थात रात्रि के अंतिम प्रहर के समाप्त हो जाने के बाद ही ब्रह्म मुहूर्त आरंभ हो जाता है। यह कालखंड मुहूर्त 48 मिनट या दो घंटे समय तक का हो सकता है। प्राचीन काल में सूर्योदय के आधार पर दिनों की गणना की जाती थी। इसलिए वर्तमान समय के हिसाब से अधिकतर त्योहारों के समय काल की अवधि त्योहार की तारीख से पहले ही आरंभ हो जाती है। इसी प्रकार वर्तमान समय के आधार पर ब्रह्म मुहूर्त का समय सुबह के 4 बजकर 24 मिनट पर आरंभ हो जाता है और 5 बजकर 12 मिनट पर समाप्त हो जाता है। इस मुहूर्त में यदि कोई सोता है तो उसके द्वारा किए गए पुण्यों का नाश होता रहता है।
इस मुहूर्त में हमारे पूर्वज काफी लंबे समय से इस मुहूर्त काल में साधना करते आ रहे हैं जिसका उल्लेख हमें पुराणों व ग्रंथों में भी देखने को मिलता है। वाल्मीकि ने भी रामायण में सीता द्वारा अशोक वाटिका में वेद मंत्रों के पाठ को करने का वर्णन किया है। जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि इस समय की गई साधना पूरे दिन में सबसे श्रेष्ठ है। वेदों के अनुसार मनुष्य को सूर्योदय से पहले ही शौच और स्नान कर लेना चाहिए। उसके बाद साधना में लग जाना चाहिए। इस समय में प्राप्त होने वाली सकारात्मक ऊर्जा साधना में ध्यान लगाए रखने और बुरे विचारों को मन से दूर रखने के लिए सहायता करती है। जिससे साधना के मन स्थिर और शांत रहता है और पूरे दिन आलस्य पास भी नहीं आता। शास्त्रों में इस समय सोना निषिद्ध बताया गया है।
शास्त्रों के अनुसार मंत्र उच्चारण या किसी पूजा को करने से पहले तन की शुद्धि के लिए स्नान करना बहुत आवश्यक माना गया है। लेकिन सनातन धर्म में कुछ मंत्र ऐसे है जिनका उच्चारण सुबह उठते ही बिना स्नान किए करना चाहिए। इन मंत्रों का प्रतिदिन जाप करने से मनुष्य का भाग्य चमक जाता है और शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। तो आइए इनमें से महत्वपूर्ण दो मंत्रों और मंत्र उच्चारण के समय हमें क्या करना चाहिए उसके बारे में भी जानते है।
“ॐ कराग्रे वसते वसते लक्ष्मीः कर मध्ये सरस्वती।
कर मूलेः तू गोविंदाः प्रभाते करदर्शनम्।।”
इस मंत्र के उच्चारण के बाद अपने हाथ को अपने चेहरे और आंखों पर लगाना चाहिए। माना जाता है कि हमारे हाथों में भी देवी देवताओं वास करते हैं और इस प्रकार हम उनका दर्शन कर लेते हैं।
“ब्रह्मा मुरारी त्रिपुरान्तकारी भानु शशि भूमि-सुतो बुधश्च।
गुरुश्च शुक्र शनि राहु केतव: सर्वे मम सुप्रभातम्।।”
ब्रह्म मुहूर्त के साथ प्रकृति का बहुत गहरा संबंध है। वैज्ञानिक दृष्टि से भी यदि देखा जाए तो इस समय ऑक्सीजन की मात्रा वातावरण काफी अधिक होती है। रात से समय औस पड़ने के कारण इस समय वायुमंडल दिन की अपेक्षा काफी शीतल होता है। इस प्रहर में वैदिक अनुष्ठानों के प्रयोग करके संध्या वंदन या किसी भी अन्य पूजन व कार्य को करने में ध्यान लगाने में लाभ मिलता है।
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