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Ashura – आज हम बात कर रहे हैं इस्लामिक त्योहार “आशूरा” के बारे में इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार मोहर्रम साल का पहला महीना माना जाता है और इस दिन से मुस्लिम त्योहारों की जड़ी शुरू हो जाती है। इसी श्रंखला में मोहर्रम के 10 दिन बाद आशूरा मनाया जाता है। इस्लाम धर्म में मोहर्रम माह शिया और सुन्नी दोनों मुसलामानों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है।Ashura – कैलेंडर के अनुसार 28 जुलाई 2023 से मोहर्रम शुरू हो रहा है और 10 दिन बाद आशूरा मनाया जायेगा, तो लगभग 07 अगस्त 2023 को आशूरा मनाया जाएगा। इस्लामिक धर्म की मान्यताओं के मुताबिक़, इस्लाम धर्म के प्रवर्तक पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन की शहादत के गम में मुहर्रम मनाया जाता है। इस्लाम धर्म में इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हुए आशूरा मनाया जाता है।
आइए जानते हैं आशूरा क्यों मनाया जाता है? तथा इसके पीछे मनाने का कारण क्या है? साथ ही आसरा कैसे मनाया जाता है? संपूर्ण विवरण जानने के लिए आप इस लेखके को ध्यान पूर्वक पढ़ते रहिए।
Ashura – इस्लाम धर्म में जब मोहर्रम शुरू होता है तो उसके दसवें दिन बाद आशूरा मनाया जाता है। दरअसल 680 ईस्वी में मोहर्रम की 10वीं तारीख को कर्बला के मैदान में नरसंहार हुआ था और लड़ते-लड़ते हजरत इमाम हुसैन शहीद कर दिए गए थे। तभी से मोहर्रम का त्योहार मनाने की परंपरा है।Ashura – कर्बला के मैदान में हजरत इमाम हुसैन और उनके 72 जानिसारों के साथ शहादत को याद किया जाता है। मोहर्रम माह में इमाम हुसैन की शहादत को याद किया जाता है। इस दिन मुस्लिम लोग ताज निकालते हैं। ये ताजिया पैगंबर मोहम्मद के नवासे हजरत इमाम हुसैन और हजरत इमाम हसन के मकबरों का प्रतिरूप होते है।
Ashura – इस्लामी कैलेंडर के अनुसार मोहर्रम महीने से साल की शुरुआत होती है और दसवां दिन आशूरा के नाम किया जाता है। इस दिन इमाम हुसैन इराक के प्रसिद्ध कर्बला तीर्थस्थल पर हुसैन इब्न अली ने यज़ीद की सेना का अंत तक मुकाबला किया था और इस मुकाबले में इमाम हुसैन ने अपने प्राणों को वीरगति के नाम कर दिया।Ashura – इसी के साथ मान्यता है कि इसी दिन {आशूरा} मूसा और उनके अनुयायियों ने मिस्र के फिरौन पर विजय प्राप्त की थी। यह युद्ध मोहर्रम महीने के दसवें दिन हुआ था इसलिए इसे इमाम हुसैन की शहादत के रूप में आशूरा नाम से मनाया जाता है। इसीलिए मोहर्रम और आशूरा का इस्लामिक धर्म में काफी महत्व है।
इस दिन खुदा की बड़ी-बड़ी नेमतों की निशानियां जाहिर हुईं जो इस्लाम धर्म को काफी प्रभावित करती है। इसी के साथ ही पूरे इस्लामी विश्व में इस दिन रोजे रखे जाते हैं। क्योंकि पैगंबर मोहम्मद भी इस दिन कर्बला की घटना से पहले भी रोजे रखते थे। तैमूरी रिवायत को मानने वाले मुसलमान रोजा-नमाज के साथ इस दिन ताजियों-अखाड़ों को दफन या ठंडा कर शोक मनाते हैं।
मान्यताओं के अनुसार इस्लामिक धर्म में यौमे आशूरा को सभी मस्जिदों में जुमे की नमाज के खुत्बे में इस दिन की फजीलत और हजरते इमाम हुसैन की शहादत पर विशेष तकरीरें होती हैं। आशूरा के दिन सभी मुसलमान अपने कारोबार को बंद रखते हैं तथा इस दिन को विशेष पर्व के रूप में मनाते हैं। मान्यताओं के चलते इस्लामिक धर्म में जो भी धार्मिक गुरु या श्रेष्ठ व्यक्ति अपने प्राणों की आहुति देता है तो उसे इस दिन याद किया जाता है। तथा इस पर्व को मनाते हुए मस्जिदों में नफिल नमाजें अदा कर रोजा रखकर शाम को इफ्तार किया जाता है। घरों में किस्म-किस्म के खाने बनाए जाते हैं।
आशूरा के दिन मुसलमान समुदाय अपने समाज के प्रति तथा अपनों के प्रति सहयोग का भाव प्रकट करते हैं और इमाम हुसैन की कुर्बानी को संदेश के रूप में फैलाते हैं। क्योकि मुसलमान समुदाय देश की आन बान और शान के लिए अपने प्राणों को न्यौछावर करने में भी पीछे नहीं हटते। इसीलिए इमाम हुसैन को इस्लामिक धर्म में इतनी तवज्जो दी जाती है।
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