गढ़ गणेश मंदिर – Garh Ganesh Temple
भगवान श्री गणेश को प्रथम पूज्य देवता कहा जाता है। हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार किसी भी शुभ कार्य करने से पहले भगवान श्री गणेश की पूजा अर्चना की जाती है। शादी की पत्रिका यानि शादी का निमंत्रण पत्र सबसे पहले भगवान श्री गणेश को ही दिया जाता है। और कहा जाता है कि मांगलिक कार्यों में श्री गणेश जी की कृपा स्वर प्रथम अनिवार्य है। यूं तो गणेश जी के देशभर में लाखों मंदिर है। देशभर में मौजूद गणेश जी के जितने भी मंदिर है सभी मंदिरों में गणेश जी की प्रतिमा को सूंड के साथ देखा जा सकता है। लेकिन राजस्थान की राजधानी जयपुर में भगवान श्री गणेश का एक ऐसा भी मंदिर है जहां बिना सूंड वाले गणेश जी विराजमान है। और यह है विश्व प्रसिद्ध गढ़ गणेश मंदिर जोकि राजस्थान की राजधानी जयपुर में ब्रह्मपुरी के अंदर स्थित है। यहां भगवान श्री गणेश को उनके बाल रूप में स्थापित किया गया है। और उनके बाल रूप की पूजा की जाती है।
मंदिर में बुधवार के दिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु अपनी मनोकामना को लेकर मंदिर के प्रांगण में आते हैं। और भगवान श्री गणेश के दर्शन करते हैं। जयपुर के उत्तर दिशा में यह मंदिर अरावली पर्वतमाला पर एक पहाड़ी पर मुकुट के रूप में विराजमान है। यह मंदिर बहुत ही प्राचीन है। गढ़ गणेश मंदिर तक जाने के लिए लगभग 500 मीटर की पहाड़ी चढ़ाई करनी पड़ती है। इस मंदिर पर जाकर आप संपूर्ण जयपुर शहर को देखते हैं। यहां से पुराना जयपुर पूरा नजर आता है। एक तरफ तो पहाड़ी पर नाहरगढ़ नजर आता है और दूसरी तरफ पहाड़ी के नीचे जल महल,इसके साथ ही सामने की तरफ शहर की बसावट का खूबसूरत नजारा देखने को मिलता है। बारिश के दौरान यह इलाका पूरी तरह से हरियाली से लबालब हो जाता है और देखने में मन मोहक लगता है।
गढ़ गणेश मंदिर का इतिहास History of Garh Ganesh Temple
राजस्थान की राजधानी जयपुर शहर की उत्तर दिशा में स्थित अरावली पर्वत श्रृंखलाओं में नाहरगढ़ किले की ऊंची पहाड़ी पर स्थित भगवान गणेश का गढ़ गणेश मंदिर की स्थापना 18वीं शताब्दी में की गई थी। परंतु इस कुछ इतिहासकारों का यह भी मानना है कि गढ़ गणेश मंदिर यहां पुराणिक काल में स्थापित किया गया था और आक्रमणों द्वारा उसे ध्वस्त कर उसके मूर्तियों खंडित किया गया और उसके सोने और चांदी केआभूषण , वस्त्रों को लूट कर ले गए थे।
इतिहासकारों की मानें तो मुगलों के आक्रमण द्वारा मंदिर को नष्ट करने के बाद, महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय द्वारा एक बार फिर से मंदिर का जिर्णोद्धार किया गया था। इसके अलावा यह भी माना जाता है कि जिस पहाड़ी में गढ़ गणेश मंदिर स्थापित है। उस पहाड़ी की तलहटी में सवाई जयसिंह द्वितीय ने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया था। उसके बाद ही इस जयपुर शहर को सामरिक तथा आर्थिक महत्व देने के लिए नींव रखी गई थी। इसलिए माना जाता है कि गढ़ गणेश का मंदिर यहां प्राचीन काल में स्थापित हुआ था जिसका जिर्णोद्धार सवाई जयसिंह द्वारा 18वीं शताब्दी यानी 1740 में करवाया गया था।
‘गढ़ गणेश मंदिर’ नाम कैसे पड़ा? How did the name ‘Garh Ganesh Temple’ come about?
गढ़ गणेश मंदिर के बारे में मान्यता है कि क्योंकि यह मंदिर जय गढ़ और नाहरगढ़ किले के पास एक पहाड़ी पर किले (गढ़ )की तरह बना हुआ है इसलिए इस मंदिर को मंदिर को गढ़ गणेश मंदिर के नाम से जाने जाने लगा। महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने गुजरात के प्रसिद्ध पंडितों को बुलाकर 1740 इसे मैं यहां अश्वमेघ यज्ञ करने के लिए आमंत्रित किया और उसके बाद इस मंदिर की स्थापना की गई। सवाई जयसिंह के द्वारा इस मंदिर की स्थापना इस प्रकार की गई कि हर सुबह सिटी पैलेस के चंद्र महल के उपरी मंजिल पर खड़े होकर भगवान ‘गढ़ गणेश के दर्शन कर सके।
गढ़ गणेश मंदिर की वास्तुकला Architecture of Garh Ganesh Temple
गढ़ गणेश मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यह मंदिर जयगढ़ नाहरगढ़ किले की पहाड़ियों पर एक किले के रूप में बनाया गया था इस वजह से गढ़ गणेश नाम मिला। ऊंची पहाड़ी से देखने पर यह मंदिर किसी मुकुट जैसा प्रतीत होता है। पहाड़ी की चोटी पर स्थित मंदिर परिसर से जयपुर का पूरा नजारा देखा जा सकता है। गढ़ गणेश मंदिर का निर्माण इस से किया गया था कि पूर्व राजपरिवार के सदस्य जिस महल में रहते थे उसे चंद्र महल के नाम से जाना जाता था। यह सिटी पैलेस का हिस्सा था। चंद्र महल की ऊपरी मंजिल से इस मंदिर में स्थापित मूर्ति का दर्शन होते थे। माना जाता है कि पूर्व राजा महाराजा गोविंद देव जी महाराज और गढ़ गणेश जी के दर्शन अपनी दिनचर्या की शुरुआत करने से पहले क्या करते थे। मंदिर में दो बड़े मूषक भी है। जिनके कान में श्रद्धालु जन अपनी मनोकामनाएं मांगते हैं।
इस मंदिर के निर्माण को लेकर एक मान्यता यह भी है कि सवाई जयसिंह द्वारा इस मंदिर की स्थापना इस तरह से की गई थी की, पूरा शहर मंदिर से देखा जा सके। उनका मानना था कि ऐसा करने से पूरा शहर भगवान गणेश चरणों में रहेगा और शहर पर भगवान गणेश की बनी दीव्य दर्ष्टि बनी रहेगी। इस मंदिर की खासियत है यह मंदिर जमीन से पहाड़ी के ऊपर 500 मीटर की ऊंचाई पर है और मंदिर तक पहुंचने के लिए 365 सीढ़ियां चढ़कर जाना पड़ता है।