Masik Durga Ashtami – हिंदू पंचांग की मान्यता के अनुसार, प्रत्येक महीने की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन मासिक दुर्गा अष्टमी पर्व मनाया जाता है। इस साल के अक्टूबर माह की 22 तारीख को है। हिंदू धर्म में दुर्गा अष्टमी का बहुत ही ज्यादा महत्व है। नवरात्रि के दिनों के अलावा हर माह की दुर्गा अष्टमी खास तरीके से पूजा होती है। दुर्गा अष्टमी के दिन निराहार रहकर व्रत रखा जाता है। और मां दुर्गा की विधि विधान से पूजा-आराधना की जाती है। धार्मिक मान्यता ऐसी है कि इस दिन पूरी श्रद्धा के साथ जो कोई भी भक्त मां दुर्गा की श्रद्धा से पूजा और उपासना करता है मां दुर्गा उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं। साथ ही इस मासिक दुर्गा अष्टमी के दिन पूजा से जीवन में चल रही या आरही किसी भी तरह की समस्या का और जीवन की बाधाओं का समाधान हो जाता है।
Masik Durga Ashtami – मासिक दुर्गा अष्टमी पर्व के दिन प्रातः जल्दी उठाकर स्नान आदि से निवृत होकर जिस स्थान पर पूजा करनी है, उस स्थान पर गंगाजल छिड़क कर उसे पवित्र कर लें। पूजा करते समय मां दुर्गा का गंगा जल से अभिषेक भी करें।साथ ही घर के मंदिर में दीप भी जलाएं। मां दुर्गा को अक्षत, सिन्दूर और लाल पुष्प चढ़ाएं । साथ ही प्रसाद के रूप में फल और मिठाई भोग लगाएं । धूप और दीपक जलाकर उच्च स्वर में माँ दुर्गा चालीसा का पाठ करें और फिर मां दुर्गा की उच्च स्वर में परिवार सहित आरती करें।
Masik Durga Ashtami – मासिक दुर्गा अष्टमी वाले दिन मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए व्रत/उपवास रखा जाता है। मासिक दुर्गा अष्टमी वाले दिन मां दुर्गा की विधि विधान से पूजा करने पर भक्तो की हर मनोकामना पूर्ण होती है। मासिक दुर्गा अष्टमी वाले दिन भक्त माँ दुर्गा का दिव्य आशीर्वाद को प्राप्त करने के लिए निराहार रहकर व्रत/उपवास भी रखते हैं। मासिक दुर्गा अष्टमी वाले दिन व्रत व पूजा करने से मां जगदंबा का असीम आशीर्वाद प्राप्त होता है। दुर्गा अष्टमी व्रत/उपवास करने से घर में खुशहाली और सुख समृद्धि,धन की प्राप्ति होती है।
Masik Durga Ashtami – मासिक दुर्गा अष्टमी वाले दिन माँ दुर्गा की पूजा करते समय यह ध्यान रखना चाहिए। कि पूजा में तुलसी,आंवला,दूर्वा,मदार और आक के पुष्प का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। और घर में कभी एक या एक से अधिक मां दुर्गा की प्रतिमा या मूर्ति नहीं रखना चाहिए।
Masik Durga Ashtami – भारतीय पौराणिक मान्यताओं अनुसार, प्राचीन समय में असुर दंभ को एक महिषासुर नमक पुत्र की प्राप्ति हुई थी, जिसके मन्न में बचपन से ही अजर अमर होने की बहुत ज्यादा इच्छा थीं। अपनी इसी इच्छा की पूर्ति करने हेतु उसने अजर अमर होने का वरदान हासिल करने के लिए भगवान् ब्रह्मा जी की घोर तपस्या की। महिषासुर के द्वारा की गई इस कठोर तपस्या से भगवान् श्री ब्रह्मा जी अति प्रसन्न भी हुए और उन्होंने ठीक वैसा ही किया जैसा महिषासुर नमक राक्षस चाहता था। भगवान् श्री ब्रह्मा जी ने खुश होकर उसे मनचाहा वरदान मांगने को कहा, तभी महिषासुर, जो सिर्फ अजर अमर होने की चाहत रखता था। उसने भगवान् श्री ब्रह्मा जी से वरदान में खुद को अजर अमर करने के लिए उनसे वर माँगा।
Masik Durga Ashtami – लेकिन भगवान् श्री ब्रह्मा जी ने राक्षस महिषासुर को अमरता का वरदान देने की बात पर ये कहते हुए मना कर दिया कि जन्म के बाद मृत्यु और मृत्यु के बाद जन्म निश्चित ही होता है, इसी कारणअमरता जैसे वरदान का कोई अस्तित्व ही नहीं है।ब्रह्मा जी की यह बात को सुनकर महिषासुर ने ब्रह्मा जी एक अन्य वरदान चाहने की इच्छा जताई। और कहा कि ठीक है स्वामी, यदि मृत्यु होना निश्चित ही है तो मुझे वरदान ऐसा दीजिये कि मेरी मृत्यु किसी पुरुष के हाथो न हो केवल स्त्री के हाथो से ही हो, स्त्री के अलावा कोई भी दैत्य या देवता मेरा वध ना कर सकें।
Masik Durga Ashtami – महिषासुर की इच्छा को जान कर ब्रह्मा ने दूसरा वरदान दे दिया। ब्रह्मा जी द्वारा वरदान प्राप्त करते ही महिषासुर को अधिक अहंकार हो गया और इसके साथ ही उसके द्वारा किये जाने वाले अन्याय भी बढ़ते चले गए। मृत्युं के भय से मुक्त होकर वह अपनी सेना को साथ मिलकर पृथ्वी लोक पर आक्रमण कर दिया, जिसके कारण पृथ्वी लोक में चारों तरफ से त्राहिमाम-त्राहिमाम होने लग गई । महिसासुर के बल व सैन्य शक्ति के आगे सभी जीवों और प्राणियों को नतमस्तक होना पड़ा। जिसके बाद पृथ्वी और पाताल लोक को अपने अधीन करने के बाद महिसासुर का अहंकार और भी बढ़ गया फिर उसने ने इन्द्रलोक पर भी आक्रमण कर दिया, जिसमें उसने भगवान् इन्द्र देव को पराजित कर स्वर्ग पर भी अपना अधिकार कर लिया।
Masik Durga Ashtami – महिषासुरके द्वारा किये जाने वाले अत्याचारों से दुःखी होकर सभी देवी और देवता त्रिदेवों के पास मदद करने की गुहार करते हुए पहुंचे। इस पर भगवान् श्री विष्णु जी ने महिसासुर के जीवन के अंत के लिए देवी शक्ति के निर्माण करने की सलाह दी। उसके बाद सभी देवी-देवताओं ने मिलकर देवी शक्ति को अपनी मदद करने के लिए पुकार लगाई और इस पुकार को सुनकर सभी देवताओं के शरीर में से निकलने वाले तेज से एक बहुत ही खूबसूरत सुंदरी (देवी) का निर्माण किया। उसी तेज से उत्पन्न होने वाली मां आदिशक्ति जिसके रूप और तेज से सभी देवी-देवता भी आश्चर्यचकित हो गए थे ।
Masik Durga Ashtami – त्रिदेवों की सहायता से जिस देवी का निर्माण हुआ उस देवी दुर्गा को हिमवान ने सवारी करने के लिए भेंट स्वरुप सिंह दिया और ठीक इसी प्रकार वहां पर मौजूद सभी देवी-देवताओं ने भी मां दुर्गा को अपने एक-एक अस्त्र-शस्त्र भेंट स्वरुप दिए और फिर इस तरह स्वर्ग लोक में देवी दुर्गा को इस समस्या का समाधान हेतु तैयार किया गया। ऐसा माना जाता है कि देवी का बहुत खूबसूरत रूप को देखकर महिषासुर भी उनके प्रति बहुत ही आकर्षित होने लगा और महिसासुर ने अपने ही एक दूत के जरिए देवी के समीप अपने ही विवाह करने का प्रस्ताव तक पहुंचाया। अहंकारी महिषासुर की इस प्रकार की नीच हरकत से देवी भगवती को अत्याधिक क्रोधित कर दिया, उसके बाद ही मां ने महिषासुर को देवी के साथ युद्ध करने के लिए ललकारा।
Masik Durga Ashtami – मां दुर्गा (देवी) से युद्ध की ललकार को सुनकर ब्रह्मा जी से मिले वरदान के अहंकार (घमंड) में पुरा अंधा राक्षस महिषासुर माँ दुर्गा से युद्ध करने के लिए तैयार हो गया। इस युद्ध में एक-एक करके अहंकारी महिषासुर की संपूर्ण सेना का माँ ने वध कर दिया। ऐसा माना जाता है कि ये युद्ध पूरे नौ दिनों तक लगातार चला जिस दौरान असुरों के सम्राट महिषासुर राक्षस ने विभिन्न रूप धारण कर देवी को छलने की अनेको बार कोशिश भी की, लेकिन उसकी सभी कोशिश नाकाम ही रही और देवी भगवती ने अपने चक्र से इस युद्ध में अहंकारी महिषासुर राक्षस का सिर धड़ से अलग करते हुए उसका भी वध कर दिया। अंत में इस तरह देवी भगवती के हाथों अहंकारी महिषासुर राक्षस की मृत्यु संभव हो पाई।
ऐसा माना जाता है कि इसी दिन मां भगवती ने स्वर्ग लोक, पृथ्वी लोक और पाताल लोक को अहंकारी महिषासुर राक्षस के पापों से मुक्ति दिलाई थी उसी दिन से ही दुर्गा अष्टमी का पर्व प्रारम्भ हुआ था।