गोपाष्टमी 2023 – Gopashthmi 2023
Gopashthmi 2023 – इस साल 2023 में गोपाष्टमी का पर्व 20 नवंबर 2023 को यानि सोमवार को मनाया जायेगा। यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। हिन्दू पौराणिक कथाओ की मान्यता के अनुसार गोपाष्टमी का त्यौहार दीपावली के 7 (सात) दिन बाद मनाया जाने वाला त्यौहार है। कथाओ के अनुसार माना जाता है। की जिस दिन भगवान् श्री कृष्ण ने गाय के छोटे – छोटे बछड़ो की जगह गायो को चराने की शुरआत की,उस दिन कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की अष्टमी थी। गायो को चराने की कथा से इस दिन के जुड़ने पर ही इस अष्टमी को गोपाष्टमी कहा जाता है।
गोपाष्टमी कब है – Gopashthmi Kab Hai
इस साल 2023 में गोपाष्टमी कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाई जाएगी। जो इस साल 2023 में 20 नवंबर 2023 को सोमवार के दिन मनाया जायेगा।
गोपाष्टमी का पर्व क्यों मनाया जाता है – Gopashthmi Ka Parv Kyo Manaya Jata Hai
Gopashthmi 2023 – हिंदू सनातनी धर्म में गाय को गौ माता को माता के रूप में स्थान प्राप्त है। गोपाअष्टमी का त्योहार हम इसलिए मनाते हैं क्योंकि हम लोग अपने जीवन के पालन पोषण के लिए गाय पर निर्भर हैं। इसीलिए गाय को हिंदू धर्म में अधुक पूजनीय माना गया है। गाय का दूध,गाय के दूध से निर्मित घी,दही व छाछ व अनन्य सामग्री मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक है। गाय का मूत्र भी मनुष्य के लिए फायदेमंद रहता है। इसका प्रयोग कई बीमारियों के निवारण के लिए किया जाता है। और गौ मूत्र का प्रयोग अनन्य आयुर्वेदिक् दवा के निर्माण में भी किया जाता है। इसीलिए कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को ये पर्व मनाया जाता है।
गोपाष्टमी की पौराणिक कथा – Gopashthmi Ki Pouranik Katha
Gopashthmi 2023 – भगवान श्रीकृष्ण अपनी बाल्यावस्था (6 वर्ष की आयु)में ही अपनी माता यशोदा से हट करने लगे की अब हम गाय के बछड़ो को नहीं बल्कि गाय को ही चराने जायेंगे।माता यशोदा ने उन की जिद्द से परेशान होकर उन्होंने उन्हें अपने पिता नन्द बाबा के पास गाय चराने की अनुमति लेने के लिए भेज दिया। भगवान श्रीकृष्ण ने अपने पिता नंद बाबा से भी फिर यही जिद की कि वह अब गाय चराएंगे बछड़े को नहीं चरायेंगे । नंद बाबा गाय चराने के शुभ मुहूर्त को जानने के लिए शांडिल्य ऋषि के आश्रम चले जाते है।
शांडिल्य ऋषि ने बड़े अचरज से कहा कि अभी इस समय (आज का दिन) के अलावा अगले वर्ष तक कोई भी शुभ मुहूर्त नहीं है। वह दिन कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष कीअष्टमी का दिन था। उस दिन माता यशोदा ने श्रीकृष्ण को अच्छे नहला कर तैयार किया मोर मुकुट लगाया, पैरों में घुंघरु पहनाए व चरण पादुकाएं भी पहनाई । लेकिन उन्होंने पादुकाएं पहनने से साफ़ इंकार कर दिया,और भगवान् श्री कृष्ण बोले कि चरण पादुकाएं तभी पहनेंगे जब आप गाय को भी चरण पादुकाएं पहनाएंगी।Gopashthmi 2023 – उस दिन भगवान श्रीकृष्ण बिना पादुकाओं के ही गाय चराने गए। गाय चराने की वजह से ही श्रीकृष्ण का नाम गोविंद व गोपाल और नन्दलाल पड़ गया।
- बरसाने में जब देवराज इंद्र के भयंकर प्रकोप के कारण लगातार तेज बारिश हो रही थी, उस तेज बारिश के कारण बरसाना वासी बहुत ज्यादा परेशां होने लगे। . बरसाना वासियों को बारिश से होने वाली परेशानी से बचाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को ही अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया था। उस दिन से गोवर्धन पूजा का त्योहार मनाया जाने लगा था। गोपा अष्टमी के दिन देवराज इंद्र को भगवन श्री कृष्ण के सामने अपनी हार स्वीकार की। तब भगवान् श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उंगली से उतार कर नीचे रखा ता।
- गोपाअष्टमी से जुड़ी एक और रोचक किस्सा वह भी है कि एक बार राधा रानी भी गाय चराने के लिए जंगल में जाना चाहती थीं,परन्तु लड़की होने के वजह से कोई गाय चराने को नहीं भेजता था। लेकिन राधा गाय चराने की उत्सुकता अधिक थी इसीलिए वह ग्वाला का रूप धारण कर के श्रीकृष्ण के साथ गाय चराने वन चली गई।
गोपाष्टमी की पूजन विधि – Gopashthmi Ki Pojan Vidhi
- गोपाष्टमी पर्व के दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठ कर स्नानं आदि से निवृत हो कर स्वच्छ वस्त्र को धारण करना चाहिए।
- फिर गौमाता और उसके बछड़े को नहला-धुलाकर उसका श्रंगार कर उसे सजाया जाता है। उसके पैरों में घुंघरु बांधे जाते है,पर अनन्य आभूषण भी पहनाए जाते हैं।
- सुबह जल्दी उठकर तैयार होकर गौमाता के चरण स्पर्श करने का रिवाज हैं व उनकी सींग पर लाल चुनरी भी बांधी जाती है।
- गौमाता की परिक्रमा करने बाद उन्हें हरी घांस चराने के गौमाता को पाने घर से बाहर ले जाया जाता है
- गोपाष्टमी के दिन ग्वालों को भी रोली का तिलक लगाया जाता है व उन्हें दान दक्षिणा भी दिया जाने का रिवाज है।
- गौमाता जब शाम को चर कर जब पुनः घर वापस लौटती है तो फिर उनकी पूजा अर्चना भी की जाती है। गोपाष्टमी के गौमाता को अच्छा भोजन हरा चारा, गुड़ व हरा मटर आदि भोज्य पदार्थ खिलाया जाता है।
- जिन लोगो के घरों में गौमाता नहीं होती है तो वो लोग गौशाला में जाकर उनकी पूजा अर्चना भी करते हैं, और गंगाजल व फूल चढ़ाकर लाल चुनरी ओढ़ा कर गुड़ भी खिलाते हैं।
- बहुत से लोग गोपाष्टमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा – अर्चना करते हैं और श्री कृष्ण के उच्च स्वर में भजन गाते हैं। प्रसाद भी बांटते है। और पूर्ण आनद के साथ इस गोपाष्टमी का पर्व को बड़े धूम धाम से मानते है।
भविष्य पुराण में गौमाता की महिमा – Bhashya Puran Me Goumata Ki Mahima
Gopashthmi 2023 – भविष्य पुराण की मान्यताओ के अनुसार गाय को माता यानी लक्ष्मी का स्वरूप माना गया है। गौमाता के पृष्ठदेश में ब्रह्म का वास है, गले में विष्णु विराजते है , मुख में रुद्र विराजते है, मध्य में सभी देवताओं को और रोमकूपों में महर्षिगण के विराजमान का स्थान है। पूंछ के अंदर अनंत नाग विराजते है। खूरों में समस्त पर्वत (पहाड़िया) गौमूत्र में गंगा नदियां विराजती है गौमय में लक्ष्मी विराजती है और नेत्रों में सूर्य-चन्द्र विराजित हैं।
गौमाता का वैज्ञानिक महत्व – Goumata Ka Vaigyanik Mahatva
Gopashthmi 2023 – हमारे भौतिकी विभाग के प्रोफेसर के एन उत्तम के अध्यन के अनुसार गाय का गोबर परमाणु विकिरण को कम करने की क्षमता रखता है। गाय के गोबर में अल्फा, बीटा और गामा किरणों को अवशोषित करने की क्षमता भी होती है। घर के बाहर गोबर लगाने की परंपरा के पीछे यही वैज्ञानिक कारण है।
वहीं गाय के सींगों का आकार पिरामिड की तरह होने के कारणों पर भी शोध करने पर पाया कि गाय के सींग भी काफी शक्तिशाली एंटीना की तरह कार्य करते हैं और इनकी मदद से गाय सभी आकाशीय ऊर्जाओं को संचित करने में सक्षम हो है और वही ऊर्जा हमें गौमूत्र, दूध और गोबर के जरिये भी मिलती है। Gopashthmi 2023 – इसके अलावा गौमाता की कूबड़ ऊपर की तरफ उठी हुई होती है और शिवलिंग के रूप जैसी पाई जाती है। इसमें सूर्यकेतु नाड़ी भी होती है। जो सूर्य की किरणों से निकलने वाली ऊर्जा शक्ति को सोख लेती है, जिससे गौमाता के शरीर में स्वर्ण (सोना) उत्पन्न होता है। जो सीधे गाय के दूध और मूत्र के रूप में हमे मिलता है। यही कारन है की हमे गौमाता का दूध हल्का पीला प्राप्त होता है।
गौमाता के दूध से मिलने वाला पीलापन कैरोटीन तत्व की वजह से होता है। जिससे कैंसर जैसी कठिन बीमारी और अन्य बीमारियों से मनुष्य के जीवन को बचाया जाता है। गौमाता की बनावट और गौमाता में पाए जाने वाले तत्वों के प्रभाव से सकारात्मक ऊर्जा शक्ति निकलती है। जिससे आसपास का वातावरण शुद्ध होता है और मानसिक शांति मिलती है। और एक सकारात्मक ऊर्जा का भी हमारे वातावरण में संचार होता है।