चलिए आज अम्बेडकर जयंती के बारे में जानते हैं, इसे क्यों और कब मनाया जाता है
भारतवासियों के लिए अम्बेडकर जयंती का दिन बहुत महत्व रखता है। भारतीय संविधान के निर्माण में उनका प्रमुख योगदान रहा है। इनको लोग प्यार से बाबा साहेब नाम से बुलाते थे और आज भी उनका यह नाम काफी लोकप्रिय है। बाबासाहेब स्वतन्त्र भारत के पहले कानून मंत्री थे। भारत में निम्न जाति समुदाय के लिए आरक्षण कानून इन की ही देन है। दलित समाज में इसको ईश्वर के रूप में पूजते हैं।
कब और क्यों मनाई जाती भीमराव अम्बेडकर जयंती (Ambedkar Jayanti kab hai )
बाबासाहेब जी का जन्म 14 अप्रैल के दिन हुआ था, इसलिए उनके जन्मदिन के अवसर को मनाने के लिए भीमराव रामजी अम्बेडकर जयंती मनाई जाती है। प्रत्येक वर्ष इस जयंती को 14 अप्रैल के दिन ही मनाया जाता है।
साल 2023 में गुरुवार के दिन बाबासाहेब की 131 वीं जन्म वर्षगांठ मनाई जाएगी।
इनका जन्म 14 अप्रैल 1891 में सैन्य छावनि महू में स्थित काली पलटन नामक स्थान में हुआ था। भारत में आज भी बाबासाहेब को दलितों द्वारा पूजा जाता है, क्योंकि इन्होंने भेदभाव के विरुद्ध लड़ाई लड़कर दलित समाज को सम्मान दिलाया था। इसलिए उनको याद करने के लिए और पूजने के लिए इस जयंती को मनाया जाता है।
बाबासाहेब के अनुयायियों का मानना है कि बाबासाहेब के विचार और स्वभाव भगवान गुरु बुद्ध से मिलते थे। इसलिए इनको बौद्ध गुरु माना जाता है। समाज में समानता लाने में इनका बहुत योगदान रहा है। बाबासाहेब एक प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ और भारतीय वकील थे। पिछड़ी जातियों के इन्होंने बहुत काम किया है, यह एक समाजसेवी और वैज्ञानिक भी थे।
कैसे मनाई जाती है अम्बेडकर जयंती 2023 (Ambedkar Jayanti 2021)
पूरे भारतवर्ष में इस दिन बाबासाहेब जी को श्रद्धांजलि अर्पित करके और जुलूस निकालकर मनाया जाता है। इस दिवस पर भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, आम जनता और अनुयायी उनकी तस्वीर या प्रतिमा पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। मुंबई में जयंती के शुभ अवसर पर जुलूस निकाले जाते हैं। लेकिन ऐसा दृश्य कुछ विशिष्ट क्षेत्रों में ही देखने को मिलता है।
वाराणसी में इस दिन विशेष आयोजन किया जाता है, जिसमें खेल, सांस्कृतिक और शैक्षणिक गतिविधियां देखने को मिलती है। इस प्रकार प्रश्नोत्तरी गतिविधियां कर के भी अम्बेडकर जयंती को मनाया जाता है। बाबा महाश्मशान नाथ मंदिर में तीन दिनों की अवधि का उत्सव किया जाता है। जिसमें भारी संख्या में लोग दूर दूर से आकर शामिल होते हैं।
भीमराव अम्बेडकर को प्राप्त उपलब्धियां
- छह दिसंबर 1956 को दिल्ली में उनकी मृत्यु हो गई थी। समाज की भलाई के लिए किए गए कार्यों को देखते हुए भारत सरकार ने मरणोपरांत 1990 में उनको भारत रत्न से सम्मानित किया था।
- पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भीमराव अम्बेडकर को मंत्रिमंडल में भारत के प्रथम कानून मंत्री के पद के लिए नियुक्त किया था।
- वर्ष 2023 में 14 अप्रैल को पूरे भारत में सार्वजनिक अवकाश घोषित कर दिया गया था।
- सन 1923 में बहिष्कृत हितकारिणी सभा की स्थापना की थी, ताकि शिक्षा के लिए लोगों को जागरूक किया जा सके और कम आय वाले वर्ग की वित्तीय स्थिति में सुधार लाया जा सके।
- जातिवाद की कुप्रथा को समाप्त करने के लिए सामाजिक आंदोलन किया था। अपने जीवनकाल में भीमराव अम्बेडकर जी ने और भी आंदोलन किए हैं जैसे कि मंदिर प्रवेश आंदोलन, जाति विरोधी आंदोलन और दलित बौद्ध आंदोलन आदि।
- स्वतंत्र भारत के समय सन 1947 में भारत के संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था। उन्होंने भारतीय संविधान को बनाया था जिसे विधानसभा ने सन 1949 में 26 नवंबर के दिन इस संविधान को स्वीकार किया था।
- बाबासाहेब को लिखने का बहुत शौक था। अपने जीवन काल उन्होंने कई पुस्तकें लिखी थी। जिसमें से तीन प्रसिद्ध पुस्तकों के नाम यह है
- “ब्रिटिश भारत में प्रांतीय वित्त का विकास”
- “रूपये की समस्याः इसकी अत्पत्ति और इसका समाधान”
- “पूर्वी भारत कंपनी का प्रशासन और वित”
भीमराव अम्बेडकर का जीवन परिचय
इनका वास्तविक नाम अम्बावाडेकर था। इनका जन्म मध्यप्रदेश के इंदौर में स्थित महू नामक स्थान में हुआ था। उनके पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल और माता जी का नाम भीमाबाई मुरबादकर था। बाबासाहेब के पिता जी भारतीय सेना में सूबेदार मेजर के पद पर अपनी सेवा देते थे। अम्बेडकर जी का जन्म 14वीं संतान के रूप में हुआ था, यह परिवार में सबसे छोटे थे। भीमराव अम्बेडकर की माता की मृत्यु वर्ष 1896 में हुई थी। बाबासाहेब ने अपने जीवन में बहुत संघर्ष किया था। इनका जन्म महार जाति में हुआ था, जिसे बहुत ही निचली जाति माना जाता है।
14 अक्टूबर 1956 में बाबासाहेब ने बौद्ध धर्म को अपना लिया था और लोगों को भी धर्म से जुड़ने के लिए प्रेरित करते थे। कई बर्षाें तक उन्होंने इस धर्म का अध्ययन कर समाज में सुधार लाने के प्रयास किए थे। उनको 9 भाषाएं पूरी तरह से आती थी और 64 विषयों में वह निपुण थे। इस महान समाज सुधारक की 6 दिसंबर 1956 को दिल्ली में सोते समय मृत्यु हुई थी। अपनी मृत्यू के तीन दिन पहले उन्होंने “द बुद्ध एंड हिज़ धम्म” को पूरा किया था।
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