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Easter Day | जाने ईस्टर डे कब है, इसका क्या अर्थ है और ईस्टर डे का क्या महत्व है
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Easter Day | जाने ईस्टर डे कब है, इसका क्या अर्थ है और ईसाई धर्म में ईस्टर रविवार का क्या महत्व है
September 27, 2021

Easter Day | जाने ईस्टर डे कब है, इसका क्या अर्थ है और ईसाई धर्म में ईस्टर रविवार का क्या महत्व है

आइए जानते हैं ईस्टर डे के बारे में संक्षेप में, ईस्टर डे कब है , ईस्टर दिवस को कैसे मनाया जाता है,  ईस्टर रविवार का महत्व। 

ईसाई धर्म के अनुयायियों के लिए ईस्टर डे बहुत ही विशेष पर्व माना जाता है। यह दिन ईसाई धर्म के प्रभु ईसा मसीह से जुड़ा हुआ है। ईसाई मानयताओं के अनुसार गुड फ्राइडे के दिन जीजस ने अपना शरीर त्यागा था। इसके 3 दिनों बाद रविवार को त्यागे हुए शरीर में दोबारा प्रवेश कर जीवित हो गए थे। कहा जाता है कि इस पुनर्जन्म के 40 दिनों बाद उन्होंने स्वर्ग की ओर प्रस्थान कर लिया था। इन चालीस दिनों का समय उन्होंने अपने शिष्यों के साथ व्यतीत किया। वहीं समाज को सत्य और प्रेम के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया। इसके बाद जीजस हमेशा के लिए स्वर्ग लोक में चले गए थे। प्राचीन काल में अधिकांश यहूदी ईसाई धर्म को मानते थे। यहूदियों ने प्रभु ईसा मसीह जी के उठ जाने वाले समय का नाम ईस्टर रख दिया।

 

ईस्टर डे का 40 दिनों के उपवास से संबंध

प्रभु ईसा मसीह नेे दोबारा शरीर में प्रवेश करने के बाद पूरे 40 दिनों तक लोगों का मार्गदर्शन किया था और समाज सत्य की राह दिखाई थी। उसके बाद वह हमेशा के लिए मानव शरीर को त्याग कर ईश्वर के पास चले गए थे। इसी कारण से ईस्टर डे को पूरे 40 दिनों तक मनाने का अनुष्ठान है। वह शुरू से स्वयं को ईश्वर का पुत्र बताते थे। ईस्टर डे पर्व के दौरान रात्रि के समय में भी जगकर परंपराओं का पालन करते हुए जागरण किया जाता है। इस दिन अपने मित्रों और रिश्तेदारों को मोमबत्तियां बांटने की परंपरा बहुत ही प्रचलित है।

 

ईस्टर डे को कब मनाया जाता है? (Easter Day Kab Hai)

ईसाई धर्म में गुड फ्राइडे के तीसरे दिन के पश्चात आने वाले रविवार को ही ईस्टर डे के रूप में मनाया जाता है। इस रविवार को ईस्टर डे का पर्व माना जाता है। प्रत्येक वर्ष इस त्योहार की तिथि एक जैसी नहीं रहती है। वर्तमान समय में प्रयोग किए जाने वाले कैलेंडर के अनुसार ईस्टर डे मार्च या अप्रैल के महीने के मध्य में आता है। 

ईस्टर की आराधना और प्रार्थना उषाकाल में विवाहित औरतें करती है। यीशु का पुनरुत्थान इसी समय हुआ था और उनको सर्वप्रथम जिस महिला ने देखा था, उसका नाम मरियम मगदलीनी था। उसी ने स्वयं देखने के बाद अन्य महिलाओं को इसके बारे में सूचित किया था। इसको सनराइज सर्विस कह कर भी बुलाया जाता है। उषाकाल की प्रार्थना के बाद पुनरुत्थान प्रार्थना की जाती है। इस प्रार्थना को 12 बजे के पास किया जाता है।

 

ईस्टर दिवस (Easter Day Festival)

इस पर्व का पहले सप्ताह को ईस्टर सप्ताह कहा जाता है। इस सप्ताह को सभी ईसाई लोग चर्च में जाकर प्रार्थना करते हैं और व्रत का पालन करते हैं। गुड फ्राइडे के उत्सव पर जहां चर्चों से सजाने के सामान को हटा दिया जाता है। वहीं ईस्टर दिवस के समय गिरजाघरों को दोबारा सजाया जाता है। इस दिन छोटी से छोटी चर्चों को भी भक्तों द्वारा बहुत अच्छी तरह से सजाया जाता है। 

ईस्टर दिवस के पवित्र पर्व के समय चर्चों में मोमबत्तियां जलाई जाती हैं। मोमबत्ती जलाकर सभी भक्त एकत्रित होकर प्रार्थना करते हैं और गीत गाकर यीशु के पुनर्जन्म की खुशी को व्यक्त करते हैं। मोमबत्ती जलाकर भक्त यीशु जी के प्रति अपने विश्वास को दर्शाते हैं। इसलिए इस दिन असंख्य मोमबत्तियों को जलाकर गिरजाघरों को सजाया जाता है। इस दिन प्रभु ईसा मसीह ने उन की हत्या करने वाले पापियों को क्षमा कर दिया था। 

इस पर्व में अंडे को शुभ स्मारक माना गया है। जिस प्रकार अंडे से चूजा निकलता है और संसार में प्रवेश करता है। उस प्रकार इस दिन को नव जीवन की शुरुआत के रूप में मनाया जाता है। इस दिन रंगीन अंडे भेंट के रूप में दिए जाते हैं। कई लोग अंडों पर चित्रकारी कर के उनको सजाते हैं। ईसाई धर्म में इसे शुभ माना जाता है और ऐसा करने पर जीवन में कुछ अच्छा होता है। मान्यताओं के अनुसार इस परंपरा का पालन करने से भाग्य खुल जाता है। इसलिए इस दिन को शत्रुता का भाव मन से निकाल कर मनाया जाता है। ईस्टर डे का सीधा संबंध प्रभु ईसा मसीह जी से है इसलिए अब हम जानते है कि इनका जन्म कहा हुआ था।

 

प्रभु यीशु का जन्म स्थान

ईसाई मान्यताओं के अनुसार बेतलेहेम नामक स्थान पर जीजस ने जन्म लिया था। इसलिए इस स्थान को ईसाईयों द्वारा बहुत महत्वपूर्ण और पवित्र स्थान माना गया है। शहर यरूशलेम से यह खास जगह मात्र पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। विश्व में बेतलेहेम स्थान पर बनी चर्च ऑफ द नेटिविटी को सबसे प्राचीन चर्चाें में गिना जाता है। ईस्टर डे के दिन इस पवित्र स्थान पर दूर दूर से ईसाई धर्म के अनुयायी एकत्रित होते हैं। 

इस चर्च की स्थापना 339 ईस्वी में हुई थी। कुछ पापियों ने इस चर्च को नष्ट कर दिया था। लेकिन कुछ वर्ष बीत जाने पर इसी चर्च का निर्माण किया गया और इसे पहले से भी बेहतर तरीके से बनाया गया। वर्तमान समय में यह चर्च आज भी मौजूद है। चर्च में एक स्थान ऐसा है जिसमें चौदह गोल आकृतियां बनी हुई है और संगमरमर के फर्श के ऊपर चांदी का सितारा बनाया गया है। मान्यताओं के अनुसार इस जगह पर ही प्रभु ईसा मसीह जी ने जन्म लिया था।

 

ईस्टर डे का मतलब 

ईसाई मान्यताओं के अनुसार ईस्त्र शब्द से ईस्टर की उत्पत्ति हुई थी। वहीं ईओस्टर को इस पर्व से संबंधित माना जाता है। जिसका अर्थ है देवी। इसको ईसाई धर्म के लोग उर्वरता देवी और वसंत देवी के रूप में मानते है। इनको प्रसन्न करने के लिए ही इस पर्व को अप्रैल के माह में मनाया जाता है। कई बार वर्ष में यह मार्च माह के अंत में भी आ जाता है।

ईस्टर डे क्यों मनाया जाता है?

ईसाई मान्यताओं के अनुसार प्रभु ईसा मसीह अपनी मृत्यु के तीन दिनों बाद पुनः जीवित हो गए थे। इस रविवार को ही यह चमत्कार देखने को मिला था। इसी वजह से इस दिन को ईस्टर डे के रूप में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। ईस्टर डे को ईसाइयों द्वारा चर्च में जाकर प्रार्थना करके और गीत गाकर उत्सव की भांति मनाया जाता है। वहीं गुड फ्राइडे के दिन को शोक दिवस माना गया है क्योंकि इसी दिन यीशु की मृत्यु हुई थी।

 

ईस्टर डे कैसे मनाया जाता है?

इस दिन ईसाई धर्म के लोग गिरजाघरों में गीत और प्रार्थनाओं का आयोजन करके मनाते हैं। इस समय चर्चाें को सजाया जाता है और मोमबत्तियां जलाकर हर तरफ प्रकाश किया जाता है। इस पर्व के समय 40 दिनों का उपवास रखा जाता है। वहीं भक्तों द्वारा ईश वचन पठन किया जाता है। इस समय को त्याग और तपस्या की सहायता से मनाया जाता है। प्रभु ईसी मसीह जी त्याग का एक बहुत बड़ा उदाहरण देकर स्वर्ग लोक गए थे। उन्होंने अपने प्राणों का बलिदान समाज की भलाई के लिए कर दिया था। 

यरूशलेम में ईसा मसीह के तीसरे दिन पुनः जीवित होने के अवसर को खजूर रविवार के रूप में मनाया जाता है। ईसाई धर्म की मान्यताओं के अनुसार लोगों ने रास्ते में खजूर की टहनियां और वस्त्र बिछाकर प्रभु यीशु जी का स्वागत किया था। इस दिन ईसाई धर्म के लोग रंगीन अंडों का छिपाकर परंपरा का पालन करते हैं। जिसमें यह अंडे माता पिता द्वारा छिपाए जाते हैं और बच्चे इन अंडों को ढूंढने का प्रयास करते हैं। अंडे को ईसाइयों द्वारा पुनरुत्थान का प्रतीक माना जाता है।

 

ईस्टर डे का महत्व (Easter Day Ka Mahatva)

ईसाई धर्म में इस दिन को अहिंसा की जीत का पर्व कहा जाता है। यह पर्व सत्य का प्रतीक माना जाता है। इसलिए ईस्टर डे बहुत महत्वपूर्ण और बड़ा पर्व माना जाता है। इस दिन बाइबल का पाठ किया जाता है और व्रत भी किया जाता है। ईसाई धर्म के विशेषज्ञों का मानना है कि प्राचीन काल में ही क्रिश्चियन चर्च द्वारा रविवार के दिन को बहुत ही पवित्र माना जाता है। लेकिन चौथी सदी से ईस्टर डे से पूर्व आने वाले प्रत्येक दिन को पवित्र माना जाने लगा। 

इसी समयकाल में गुड फ्राइडे को भी पवित्र दिनों की सूची में शामिल किया गया। ईस्टर डे ईसाईयों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण पर्व है। प्रत्येक वर्ष पूरी आस्था के साथ इस पर्व को मनाया जाता है। यह एक खुशी से भरा हुआ दिवस होता है, इस दिन लोग अपने पापों की क्षमा मांगकर नवजीवन की शुरूआत करते हैं। इस दिन मन में प्रेम भाव रखना चाहिए और मिलजुलकर इस त्योहार को मनाना चाहिए। प्रभु ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाया गया था और शारिरिक यात्नाएं दी गई थी। जिसके कुछ समय बाद उनकी मृत्यू हो गई थी। इस दिन को गुड फ्राइडे और ब्लैक फ्राइडे के नाम से जाना जाता है। 

ईसा मसीह

वह स्वयं को ईश्वर का पुत्र मानते थे और सभी लोग उनका आदर करते थे। जिससे कुछ धर्मगुरु उनसे ईर्ष्या करते थे। इसी ईर्ष्या के चलते यीशु जी पर अत्याचार किए गए थे और उनकी हत्या कर दी गई थी। लेकिन इतनी पीड़ा को सहन करने के पश्चात भी उन्होंने अपने अंतिम शब्द यह कहे थे कि हे ईश्वर इन लोगों को क्षमा कर देना, इनको अपने इस कर्म का ज्ञान नहीं है। यह नहीं जानते कि यह क्या कर रहें हैं। जिस समय प्रभु ईसा मसीह ने अपने शरीर को त्याग था, उस समय पूरे क्षेत्र में तीन घंटों के लिए अंधकार छा गया था। 

इसलिए इस दिन को शोक दिवस मानकर ब्लैक फ्राईडे के रूप में मनाया जाता है। ईसाई धर्म के लोग इस दिन सजावट के सामान को हटा देते हैं या सजावट के सामान को कपड़े से ढक देते हैं। लेकिन तीन दिनों के बाद प्रभु यीशु ने पुन उस शरीर में प्रवेश करके सभी को  आश्चर्यचकित कर दिया था। इस दिन रविवार का समय था। इसलिए इस दिन को पवित्र मानकर इसे ईस्टर डे के रूप में मनाया जाने लगा था। इस दिन बुरे विचारों को मन से दूर रखकर मनाना चाहिए।

 

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